दोहा सलिला:
दोहे का रंग कविता के संग 
संजीव 
*
बाहर कम भीतर अधिक जब-जब झाँकें आप 
तब कविता होती प्रगट, अंतर्मन में व्याप 
*
औरों की देखें कमी, दुनिया का दस्तूर 
निज कमियाँ देखो बजे, कविता का संतूर 
*
कविता मन की संगिनी, तन से रखे न काम 
धन से रहती दूर यह, प्रिय जैसे संतान 
*
कविता सविता तिमिर हर, देते दिव्य प्रकाश 
महक उठे मन-मोगरा, निकट लगे आकाश 
*
काव्य -कामिनी ने कभी, करी न कोई चाह 
बैठे चुप थक-हारकर, कांत न पाएं थाह 
*
 
 
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