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शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

doha

दोहा सलिला:

आँखों-आँखों में हुआ, जाने क्या संवाद?
झुकीं-उठीं पलकें सँकुच, मिलीं भूल फरियाद
*
आँखें करतीं साधना, रहीं वैद को टेर
जुल्मी कजरा आँज दे, कर न देर-अंधेर
*
आँखों की आभा अमित, पल में तम दे चीर
जिससे मिलतीं, वह हुआ, दिल को हार फ़क़ीर
*
आँखों में कविता कुसुम, महकें ज्यों जलजात
जूही-चमेली, मोगरा-चम्पा, जग विख्यात
*
विरह अमावस, पूर्णिमा मिलन, कह रही आँख 
प्रीत पखेरू घर बना, बसा समेटे पाँख 
*
आँख आरती हो गयी, पलक प्रार्थना-लीन  
संध्या वंदन साधना, पूजन करे प्रवीण 
*

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