बासंती दोहा ग़ज़ल:
संजीव 
*
*
स्वागत  में ऋतुराज के, पुष्पित हैं कचनार 
किंशुक कुसुम दहक रहे, या दहके अंगार?
*
किंशुक कुसुम दहक रहे, या दहके अंगार?
*
पर्ण-पर्ण पर छा गया, मादक रूप निखार
पवन खो रहा होश निज, लख वनश्री-श्रृंगार 
*
*
महुआ महका देखकर, चहका-बहका प्यार 
 मधुशाला में बिन पिये, सिर पर नशा सवार 
*
*
नहीं निशाना चूकती, पञ्चशरों की मार
पनघट-पनघट हो रहा, इंगित का व्यापार 
*
*
नैन मिले लड़ झुक उठे, करने को इंकार 
देख नैन में बिम्ब निज, कर बैठे इकरार 
*
*
मैं-तुम,  यह-वह ही नहीं, बौराया संसार 
सब पर बासंती नशा, मिल लें गले  खुमार
*
*
ढोलक, टिमकी, मंजीरा, करें ठुमक इसरार 
दुनियावी चिंता भुला, नाचो-झूमो यार 
*
*
घर आँगन तन धो दिया, तन का रूप निखार 
अंतर्मन का मेल भी, प्रियवर! कभी बुहार।
*
बासंती दोहा-गज़ल, मन्मथ की मनुहार 
सीरत-सूरत रख 'सलिल', निर्मल सहज सँवार 
*
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें