कुल पेज दृश्य

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

chhand salila: kakubh chhand -sanjiv

​ककुभ / कुकुभ
संजीव
*
(छंद विधान: १६ - १४, पदांत में २ गुरु)
*
यति रख सोलह-चौदह पर कवि, दो गुरु आखिर में भाया
ककुभ छंद मात्रात्मक द्विपदिक, नाम छंद ने शुभ पाया
*
देश-भक्ति की दिव्य विरासत, भूले मौज करें नेता
बीच धार मल्लाह छेदकर, नौका खुदी डुबा देता
*
आशिको-माशूक के किस्से, सुन-सुनाते उमर बीती.
श्वास मटकी गह नहीं पायी, गिरी चटकी सिसक रीती.
*
जीवन पथ पर चलते जाना, तब ही मंज़िल मिल पाये
फूलों जैसे खिलते जाना, तब ही तितली मँडराये
हो संजीव सलिल निर्मल बह, जग की तृष्णा हर पाये
शत-शत दीप जलें जब मिलकर, तब दीवाली मन पाये
*
(ककुभ = वीणा का मुड़ा हुआ भाग, अर्जुन का वृक्ष)
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, ककुभ, कीर्ति, घनाक्षरी, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, मधुभार, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in/
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

कोई टिप्पणी नहीं: