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गुरुवार, 14 जुलाई 2011

मैं कविता हूँ... --संजीव 'सलिल'

मैं कविता हूँ...
संजीव 'सलिल'
*
मैं कविता हूँ...

मैं युग का दर्पण हूँ, निर्मल नीर हूँ.
योग-भोग-संयोग, दर्द हूँ, पीर हूँ..
धरा-स्वर्ग, गिरि-जंगल, सुमन-समीर हूँ.
परिवर्तन की बाट जोहती धीर हूँ..
तम पर जय पाता जो, मैं वह सविता हूँ.
मैं कविता हूँ...

जिसने समझा, उसको वीणापाणी हूँ.
जीव-जगत की आराध्या- कल्याणी हूँ..
जो न समझता उसे लगी पाषाणी हूँ.
सत्ताओं की आँख खोलती वाणी हूँ..
सद्गुण की राहों पर अर्पित पविता हूँ..
मैं कविता हूँ...

मैं शोषण को कालकूट विषज्वाल हूँ.
निर्माणों हित स्वेद निमज्जित भाल हूँ..
बलिदानों के लिये सुसज्जित थाल हूँ.
नियम बद्ध सैनिक-गायक की ताल हूँ..
राष्ट्रदेव पर गर्वित निष्ठा नमिता हूँ.
मैं कविता हूँ...

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3 टिप्‍पणियां:

shriprakash shukla ✆yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी ,
सुन्दर भावों से सुसज्ज्ति इस श्रेष्ठ रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें |
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल

- उद्धृत पाठ दिखाएं -
--
Web:http://bikhreswar.blogspot.com/

achal verma ✆ ekavita, ने कहा…

\ सदा की तरह एक उत्कृष्ट रचना \
ख़ास कर ये :

योग-भोग-संयोग, दर्द हूँ, पीर हूँ..
धरा-स्वर्ग, गिरि-जंगल, सुमन-समीर हूँ.

वैसे तो कविता के परिधि से बाहर कोई विषय हो ही नहीं सकता |
रामायण और राम चरित मानस भी मेरे रूप
भारत का संग्राम महा कर रहा है जग में धूप
तुलसी सूर कबीर और मीरा नानक मेरे अपने
भजन सभी ही रूप हैं मेरे , सच्चे करते सपने ||

Achal Verma

--- On Wed, 7/13/11, shriprakash shukla

- mcdewedy@gmail.com ने कहा…

बधाई संजीव जी. सुन्दर रचना.
महेश चन्द्र द्विवेदी