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बुधवार, 13 जुलाई 2011

एक कविता: सीखते संज्ञा रहे... -संजीव 'सलिल'

एक कविता:
सीखते संज्ञा रहे...
संजीव 'सलिल'
*
सीखते संज्ञा रहे हम.
बन गये हैं सर्वनाम.
क्रिया कैसी?
क्या विशेषण?
कहाँ है कर्ता अनाम?

कर न पाये
साधना हम
वंदना ना प्रार्थना.
किरण आशा की लिये
करते रहे शब्द-अर्चना.

साथ सुषमा को लिये
पुष्पा रहे रचना कमल.
प्रेरणा देती रहें
नित भावनाएँ नित नवल.

****

 
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

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