नवगीत:
गीत का बनकर / विषय जाड़ा
--संजीव 'सलिल'
*
विषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...
*
कोहरे से
गले मिलते भाव.
निर्मला हैं
बिम्ब के
नव ताव..
शिल्प पर शैदा
हुई रजनी-
रवि विमल
सम्मान करता है...
*
गीत का बनकर
विषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...
*
फूल-पत्तों पर
जमी है ओस.
घास पाले को
रही है कोस.
हौसला सज्जन
झुकाए सिर-
मानसी का
मान करता है...
*
गीत का बनकर
विषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...
*
नमन पूनम को
करे गिरि-व्योम.
शारदा निर्मल,
निनादित ॐ.
नर्मदा का ओज
देख मनोज-
'सलिल' संग
गुणगान करता है...
*
गीत का बनकर
विषय जाड़ा
'सलिल' क्यों
अभिमान करता है?...
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