पूना का रेजिमेंट
जिसमें कथा की
पूर्णाहुति.
व्यास महाराज को
यथाशक्ति दान-दक्षिणा,
इसे बीच श्वेत
अधिकारी का प्रवेश
श्रद्धावनत विनयभाव
व्यास की अनुमति से
जिज्ञासा जनित एक प्रश्न-
मात्र स्थानान्तरण का.
व्यास कथा-वाचक का
मौन मूक चिंतन और
श्वास पर आधारित
लग्न-वेला-मेलापक पर
शांत सस्वर उत्तर-
कार्य-सिद्धि
मात्र सप्ताह में-
अंतिम निर्णय.
श्वेत अधिकारी का
कमीशंड अधिकारी को
इंगिति-
व्यास की व्यस्था और
श्वेत अधिकारी का
साभार प्रस्थान.
व्यास के मस्तिष्क में
विचारों के आरोह-अवरोह
जीवन संकट-ग्रस्त प्रभो!
धारित अवधि में यदि
कार्य-सिद्धि न हुई-
मात्र एक प्रश्न से आक्रांत,
पर वेला में आहुति के
कोई भी वचन मृषा
होता भी तो कैसे/
फिर भी यदि साधना
हुई न साकार.
जागा विवेक
सुन उद्घोष अंतर का
चित्त एकाग्र और
वालिश वृत्ति त्यागकर
ध्यान कर दुर्गा का.
व्यास ने संध्या को
ग्रहण किया आसान
प्रतीची मुख ध्यान में
प्रारंभ किया जप को
प्रातः उठ प्राच्य मुख
न्यौछावर कर सर्वस्व
दुर्गा मातेश्वरी को
ध्यान किया ब्राम्हण ने
एकनिष्ठ भाव से,
पर आशंका पिशाचिन की
विकल करती व्यास को.
साधना में सिद्धि का
अभाव रहा किंचित
तो पथ-भ्रष्ट, पदच्युत
प्रवंचना अनर्थ और
लोक-वेद च्युति
देव योग अथवा
एकाग्रता ने व्यास की
द्वादश प्रहर अंतराल पहुँचाया
एक पत्र उस रेजिमेंट में.
श्वेत अधिकारी नाम-
रेजिमेंट का स्थानान्तरण
मात्र चौबीस घंटों में
जर्मन-फ्रांस सीमा पार.
श्वेत अधिकारी
अपने सहायक को
शीघ्र सावधान कर
चला पास ब्राम्हण के.
विनय-युक्त भाव से
टोपी उतारकर
बोल उठा- महाराज!
आपने तपोबल से
कर दी मेरी कामना पूर्ण,
साधना की सिद्धि
जो प्राप्त हुई मुझको.
श्वेत अधिकारी ने
विदा दी ब्राम्हण को
और मंत्रसिक्त जल से
संवेग मार्जन कर
व्यास ने तिलक दिया-
शुभास्ते पन्थानं .
भारत के मंत्र-तंत्र
अध्यात्म, साधनाबल
करते हठात आव्हान
निज ईश का
इनकी अनुरक्ति-भक्ति
होती इतनी प्रबल
कि देव वर्ग होता
बलात उनके वश में.
देखे मैंने कितने देश
घूमे देशांतर
पर ऐसा देश, ऐसा स्थान
मिला नहीं मुझको .
देश का आकर्षण
और ममता इस देश की
भूलता फिर कैसे?
यही मेरी अंतिम इच्छा
पाऊँ अन्य जन्म यदि
गाऊँ गीत ईश के
बिकाकर हाथ दुर्गा के.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 17 मार्च 2010
कविता: सिद्धि -श्यामलाल उपाध्याय
चिप्पियाँ Labels:
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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