बाबा तपस्वी ने
एक मुक्त जीवन को
ऊर्जा की लालसा से
उपले जलाये थे
घटिका पूर्व,
पर उपलों में
ऊर्जा के अभाव ने
कर दी हड़ताल.
चार पाँच छः सात
उपले जलाने तक
पात्र की गर्मी अन्न तक न पहुँची.
बाबाजी किंचित
घोर व्यंग्य हास कर
बोल उठे-
गोमय में मिश्रण था
बालू और सज्जी का
कहीं राख का भी होता
तो अन्न सिद्ध होता
और क्षुधा शांत होती.
उसी सहानुभूति से
बाबा ने उठाया-
जल-जीवन-कमंडल
और हरिर्दाता के
स्वर के समापन पर
बन गए अगस्त्य.
हरिओम के साथ
बाबा के स्वर ने
एक बार फिर किया
उद्घोष हास
हा हा हा हा !
गोबर में मिश्रण
मिश्रण में गोबर-
बुद्धि की अधोगति
मानव का घोर पतन
होता यदि किंचित
विवेक मात्र स्पर्श
न होता कोई मिश्रण.
अब नैतिकता की
क्या भर्त्सना
जब उसका विमान ही
धराधाम छोड़कर
चला गया अन्यत्र
मनु, विदुर,चाणक्य
नहीं रहे नैतिकता के
महान उपदेशक.
हाँ, बाबा तपस्वियों का
लगा है मेला कुम्भ
जगत के संगम पर
चाहे हो ज्ञान अथवा
सहज भक्ति ऊर्जा का
इनके अभाव में
जी रहे जीने को
लोक-परलोक,
मर्यादा की रक्षा में
साधना की सिद्धि में.
बाब तपस्वी उद्विग्न हो
मिश्रण से, बोल उठे-
अब नहीं रहा जाता
आज उड़े यह राजहंस
आश्रय पाने को
चरण-शरण में.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 12 मार्च 2010
कविता: मिश्रण --श्यामलाल उपाध्याय
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कविता: मिश्रण --श्यामलाल उपाध्याय
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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