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रविवार, 28 मार्च 2010

आज की कविता: संस्था ---आचार्य श्यामलाल उपाध्याय

समूह की इकाई

पंजीकृत, अपंजीकृत

राजनैतिक, सामाजिक,

धार्मिक, सांस्कृतिक,

साहित्यिक, मानवतावादी

नीतिगत, समाजगत,

धर्म-संस्कृतिगत,

नैतिक वा मूल्यगत.


बन क्या सकेगी

आदर्श जन-जीवन की

संस्था वह जिसके

सुचिन्तक बने हैं आप

मंत्री-अध्यक्ष बन

चलते अपनी नाव

बजाते अपनी डफली

अलापते अपना राग

गाते अपने गीत

मात्र अपनी संस्था के.


कैसे करेगी वह

श्रृंगार मानव का

जो रहा सदस्यता

और उसकी छायासे

अति दूर वंचित

देवी तो भूरि-भूरि

आशिष को प्रस्तुत

पर मात्र उसके प्रति

जो रहा निष्ठावान?


इसके क्रिया-कलाप

भले ही हों मर्यादित

अंशतः मानवतावादी

करते दुराग्रह और

हनन मर्यादा का

सार्वभौम सत्ता का

सार्वजनीनता का

बहुजन हिताय और

बहुजन सुखाय का.


जब तक कि उसके भाव

वर्ग सत्ता मोह छोड़

समाज की परिधि लाँघ चले नहीं

तब तक व्यक्ति या समाज

अथवा कोई भी संस्था अन्य

करती रहेगी अपकार

जन-जीवन का

इसका वरदान मात्र

अभिशाप-अनुक्षण

करता रहेगा मनुहार

अपनी संस्था का..



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