समूह की इकाई
पंजीकृत, अपंजीकृत
राजनैतिक, सामाजिक,
धार्मिक, सांस्कृतिक,
साहित्यिक, मानवतावादी
नीतिगत, समाजगत,
धर्म-संस्कृतिगत,
नैतिक वा मूल्यगत.
बन क्या सकेगी
आदर्श जन-जीवन की
संस्था वह जिसके
सुचिन्तक बने हैं आप
मंत्री-अध्यक्ष बन
चलते अपनी नाव
बजाते अपनी डफली
अलापते अपना राग
गाते अपने गीत
मात्र अपनी संस्था के.
कैसे करेगी वह
श्रृंगार मानव का
जो रहा सदस्यता
और उसकी छायासे
अति दूर वंचित
देवी तो भूरि-भूरि
आशिष को प्रस्तुत
पर मात्र उसके प्रति
जो रहा निष्ठावान?
इसके क्रिया-कलाप
भले ही हों मर्यादित
अंशतः मानवतावादी
करते दुराग्रह और
हनन मर्यादा का
सार्वभौम सत्ता का
सार्वजनीनता का
बहुजन हिताय और
बहुजन सुखाय का.
जब तक कि उसके भाव
वर्ग सत्ता मोह छोड़
समाज की परिधि लाँघ चले नहीं
तब तक व्यक्ति या समाज
अथवा कोई भी संस्था अन्य
करती रहेगी अपकार
जन-जीवन का
इसका वरदान मात्र
अभिशाप-अनुक्षण
करता रहेगा मनुहार
अपनी संस्था का..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 28 मार्च 2010
आज की कविता: संस्था ---आचार्य श्यामलाल उपाध्याय
चिप्पियाँ Labels:
acharya shyamlal upadhyay,
bhakti geet. samyik hindi kavita,
sanstha
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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