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शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

पाती प्रभु के नाम : संजीव 'सलिल'

जन्म-जन्म जन्माष्टमी, मना सकूँ हे नाथ.

कृष्ण भक्त को नमन कर, मैं हो सकूँ सनाथ.

वृन्दावन की रेणु पा, हो पाऊँ मैं धन्य.

वेणु बना लो तो नहीं मुझ सा कोई अन्य.

जो जन तेरा नाम ले, उसको करे प्रणाम.

चाकर तेरा है 'सलिल', रसिक शिरोमणि श्याम..

5 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

SARAS BHAVABHIVYAKTI.MEREE BADHAAEE.

Dr. Ghulam Murtaza Shareef ने कहा…

Aadarniy Salil ji, Sadar pranam,

Aapki rachna adwitiy hai, parntu kavita ka shirshaq..PATI PRABHU KE NAM" meri samjh mein nahein aa raha hai. is liye ki antim pankti...CHARAK TERA HAI SALIL se mil nahi pa rahi hai.PATI PRABHU iska matlab patni kah rahi hai aur ant mein aapne apna nam dal diya hai. Jurrat ke liye kshama chahta hoon. Aapke Qdmoon ki dhul Dr.Shareef, Karachi

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

यदा यदा ही धर्मस्य,
ग्लानिर्भवति भारत..
अभ्युत्थानम अधर्मस्य
तदात्मानम सृजाम्यहम
परित्राणायाय साधुनाम,
विनाशायच दुष्कृताम
धर्म सँस्थापनार्थाय,
सँभावामि, युगे, युगे ! "
***************************
श्री राधा मोहन,
श्याम शोभन,
अँग कटि पीताँबरम
जयति जय जय,
जयति जय जय ,
जयति श्री राधा वरम्
आरती आनँदघन,
घनश्याम की अब कीजिये,
कीजिये विनीती ,
हमेँ, शुभ ~ लाभ,
श्री यश दीजिये
दीजिये निज भक्ति का वरदान
श्रीधर गिरिवरम् ..
जयति जय जय,
जयति जय जय ,
जयति श्री राधा वरम्
*********************************
रचनाकार [स्व. पँ. नरेन्द्र शर्मा ]

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

आदरणीय डॉ. शरीफ!

सदर नमन.

टंकण त्रुटि के कारण 'पाती' के स्थान पर 'पति' तथा अंतिम पंक्ति में 'चाकर' के स्थान पर 'चकर" छपने से अर्थ का अनर्थ हो गया. आपको हुई असुविधा के लिए खेद है.

manvanter ने कहा…

badhiya