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सोमवार, 15 अप्रैल 2019

दोहे सम्मान

सामयिक दोहे
'वृद्ध-रत्न' सम्मान दें, बच्चों को यदि आप।
कहें न क्या अपमान यह, रहे किस तरह माप?
*
'उत्तम कोंग्रेसी' दिया, अलंकरण हो हर्ष।
भाजपाई किस तरह ले, उसे लगा अपकर्ष।।
*
'श्रेष्ठ यवन' क्यों दे रहे पंडित जी को मित्र।
'मर्द रत्न' महिला गहे, बहुत अजूबा चित्र।।
*
'फूल मित्र' ले रहे हैं, हँसकर शूल खिताब।
'उत्तम पत्थर'विरुद पा, पीटे शीश गुलाब।।
*
देने-लेने ने किया, सचमुच बंटाढार।
लेन-देन की सत्य ही महिमा सलिल अपार।।
***
संवस
१३.४.२०१९

गीत दूर रहो नोटा से

एक रचना 
*
दूर रहो नोटा से प्यारे!
*
इस-उस दल के यदि प्यादे हो
जिस-तिस नेता के वादे हो
पंडे की हो लिए पालकी
या झंडे सिर पर लादे हो
जाति-धर्म के दीवाने हो
या दल पर हो निज दिल हारे
दूर रहो नोटा से प्यारे!
*
आम आदमी से क्या लेना?
जी लेगा खा चना-चबेना
तुम अरबों के करो घोटाले
स्वार्थ नदी में नैया खेना
मंदिर-मस्जिद पर लड़वाकर
क्षेत्रवाद पर लड़ा-भिड़ा रे!
दूर रहो नोटा से प्यारे!
*
जा विपक्ष में रोको संसद
सत्ता पा बन जाओ अंगद०
भाषा की मर्यादा भूलो
निज हित हेतु तोड़ दो हर हद
जोड़-तोड़ बढ़ाकर भत्ते
बढ़ा टैक्स फिर गला दबा रे!
दूर रहो नोटा से प्यारे!
***
१४-४-२०१९

रविवार, 14 अप्रैल 2019

मुक्तक

मुक्तक सलिला: 
*
बोल जब भी जबान से निकले,
पान ज्यों पानदान से निकले। 
कान में घोल दे गुलकंद 'सलिल-
ज्यों उजाला विहान से निकले।।
*
जो मिला उससे है संतोष नहीं,
छोड़ता है कुबेर कोष नहीं।
नाग पी दूध ज़हर देता है-
यही फितरत है, कहीं दोष नहीं।।
*
बाग़ पुष्पा है, महकती क्यारी,
गंध में गंध घुल रही न्यारी।
मन्त्र पढ़ते हैं भ्रमर पंडित जी-
तितलियाँ ला रही हैं अग्यारी।।
*
आज प्रियदर्शी बना है अम्बर,
शिव लपेटे हैं नाग- बाघम्बर।
नेह की भेंट आप लाई हैं-
चुप उमा छोड़ सकल आडम्बर।।
*
ये प्रभाकर ही योगराज रहा,
स्नेह-सलिला के साथ मौन बहा।
ऊषा-संध्या के साथ रास रचा-
हाथ रजनी का खुले-आम गहा।।
*
करी कल्पना सत्य हो रही,
कालिख कपड़े श्वेत धो रही।
कांति न कांता के चहरे पर-
कलिका पथ में शूल बो रही।।
*
१८-४-२०१४

गीत- तुमने स्वर दे दिया

एक रचना:
तुमने स्वर दे दिया 
*
१. 
तुमने स्वर दे दिया 
बोलें, नहीं सुनेंगे अब ये
चीखें, रोएँ, सिसकी भर ये,
वे गुर्राते हैं दहाड़कर।
चिंघाड़े कोई इस बाजू
फुफकारे कोई गुहारकर।
हाय रे! अमन-चैन ले लिया
तुमने स्वर दे दिया
*
२.
तुमने स्वर दे दिया
यह नेता बेहद धाँसू है
ठठा रहा देकर आँसू है
हँसता पीड़ित को लताड़कर।
तृप्त न होता फिर भी दानव
चाकर पुलिस लुकाती है शव
जाँच रपट देती सुधारकर।
न योगी को हो दर्द मिया
तुमने स्वर दे दिया
*
३.
तुमने स्वर दे दिया
वादा कह जुमला बतलाया
हो विपक्ष यह तनिक न भाया
रख देंगे सबको उजाड़कर।
सरहद पर सर हद से ज्यादा
कटें, न नेता-अफसर-सुत हैं
हम बैठे हैं चुप निहारकर।
छप्पन इंची छाती है, न हिया
तुमने स्वर दे दिया
*
४.
तुमने स्वर दे दिया
खाला का घर है, घुस आओ
खूब पलीता यहाँ लगाओ
जनता को कूटो उभाड़कर।
अरबों-खरबों के घपले कर
मौज करो जाकर विदेश में
लड़ चुनाव लें, सच बिसारकर।
तीन-पाँच दो दूनी सदा किया
तुमने स्वर दे दिया
*

तुमने स्वर दे दिया
तोड़ तानपूरा फेंकेंगे
तबले पर रोटी सेकेंगे
संविधान बाँचें प्रहारकर।
सूरत नहीं सुधारेंगे हम
मूरत तोड़ बिगाड़ेंगे हम
मार-पीट, रोएँ गुहारकर
फर्जी हो प्यादे ने शोर किया
तुमने स्वर दे दिया
***
१४.४.२०१८
टीप: इस रचना का भारत से कुछ लेना-देना नहीं है।

मधुमालती छंद

नवलेखन कार्यशाला 
*
आ गुरूजी
एक प्रयास किया है । कृपया मार्गदर्शन दें । सादर ।
शारदे माँ ( मधुमालती छंद)
माँ शारदे वरदान दो
सद्बुद्धि दो संग ज्ञान दो
मन में नहीं अभिमान हों
अच्छे बुरे की पहचान दो ।
वाणी मधुर रसवान दो
मैं मैं का न गुणगान हों
बच्चे अभी नादान हम
निर्मल एक मुस्कान दो
न जाने कि हम कौन हैं
हमें अपनी पहचान दो
अल्प ज्ञानी मानो हमें
बस चरण में तुम स्थान दो ।।
कल्पना भट्ट, १४-४-२०१७
*
प्रिय कल्पना!
सदा खुश रहें।
मधुमालती १४-१४ के दो चरण, ७-७ पर यति, पदांत २१२ ।
शारदे माँ ( मधुमालती छंद)
माँ शारदे! वरदान दो
सदबुद्धि दो, सँग ज्ञान दो
मन में नहीं अभिमान हो
शुभ-अशुभ की पहचान दो।
वाणी मधुर रसवान दो
'मैं' का नहीं गुण गान हो
बच्चे अभी नादान हैं
निर्मल मधुर मुस्कान दो
किसको पता हम कौन हैं
अपनी हमें पहचान दो
हम अल्प ज्ञानी माँ! हमें
निज चरण में तुम स्थान दो ।।
*

समानिका छंद

ॐ 
छंद बहर का मूल है: २ 
*
छंद परिचय:
ग्यारह मात्रिक रौद्र जातीय छंद।
सप्तवार्णिक उष्णिक जातीय समानिका छंद।
संरचना: SIS ISI S
सूत्र: रगण जगण गुरु / रजग।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं ।
*
सूर्य आप भी बने
*
सत्य को न मारना
झूठ से न हारना
गैर को न पूजना
दीन से न भागना
बात आत्म की सुनें
सूर्य आप भी बने
*
काम काम से रखें
राम-राम भी भजें
डूब राग-रंग में
धर्म-कर्म ना तजें
शुभ विचार कर गुनें
सूर्य आप भी बने
*
देव दैत्य आप हैं
पुण्य-पाप आप हैं
आप ही बुरे-भले
आप ही उगे-ढले
साक्ष्य भाव से जियें
सूर्य आप भी बने
१४.४.२०१७
***

सवैया

रसानंद दे छंद नर्मदा २५ : १४-०४-२०१६ 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

दोहा, सोरठा, रोला, आल्हा, सार, ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई, हरिगीतिका, उल्लाला, गीतिका, घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात तथा कुण्डलिनी छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए सवैया छन्द से.
दोहा, सोरठा, रोला, आल्हा, सार, ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई, हरिगीतिका, उल्लाला, गीतिका, घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात तथा कुण्डलिनी छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए सवैया छन्द से.
सरस सवैया रच पढ़ें
गण की आवृत्ति सात हों, दो गुरु रहें पदांत।
सरस सवैया नित पढो, 'सलिल' न तनिक रसांत।।

बाइस से छब्बीस वर्णों के (सामान्य वृत्तो से बड़े और दंडक छंदों से छोटे) छंदों को सवैया कहा जाता है। सवैया वार्णिक छंद हैं। विविध गणों में से किसी एक गण की सात बार आवृत्तियाँ तथा अंत में दो दीर्घ अक्षरों का प्रयोग कर सवैये की रचना की जाती है। यह एक वर्णिक छन्द है। सवैया को वार्णिक मुक्तक अर्थात वर्ण संख्या के आधार पर रचित मुक्तक भी कहा जाता है। इसका कारन यह है की सवैया में गुरु को लघु पढ़ने की छूट है। जानकी नाथ सिंह ने अपने शोध निबन्ध 'द कंट्रीब्युशन ऑफ़ हिंदी पोयेट्स टु प्राजोडी के चौथे अध्याय में सवैया को वार्णिक सम वृत्त मानने का कारण हिंदी में लय में गाते समय 'गुरु' का 'लघु' की तरह उच्चारण किये जाने की प्रवृत्ति को बताया है। हिंदी में 'ए' के लघु उच्चारण हेतु कोई वर्ण या संकेत चिन्ह नहीं है। रीति काल और भक्ति काल में कवित्त और सवैया बहुत लोकप्रिय रहे हैं. कवितावलि में तुलसी ने इन्हीं दो छंदों का अधिक प्रयोग किया है। कवित्त की ही तरह सवैया भी लय-आधारित छंद है।
विविध गणों के प्रयोग के आधार पर इस छन्द के कई प्रकार (भेद) हैं। यगण, तगण तथा रगण पर आधारित सवैये की गति धीमी होती है जबकि भगण, जगण तथा सगण पर आधारित सवैया तेज गति युक्त होता है। ले के साथ कथ्य के भावपूर्ण शब्द-चित्र अंकित होते हैं। श्रृंगार तथा भक्ति परक वर्ण में विभव, अनुभव, आलंबन, उद्दीपन, संचारी भाव, नायक-नायिका भेद आदि के शब्द-चित्रण में तुलसी, रसखान, घनानंद, आलम आदि ने भावोद्वेग की उत्तम अभिव्यक्ति के लिए सवैया को ही उपयुक्त पाया। भूषण ने वीर रस के लिए सवैये का प्रयोग किया किन्तु वह अपेक्षाकृत फीका रहा।
प्रकार-
सवैया के मुख्य १४ प्रकार हैं। 
१. मदिरा, २. मत्तगयन्द, ३. सुमुखि, ४. दुर्मिल, ५. किरीट, ६. गंगोदक, ७. मुक्तहरा, ८. वाम, ९. अरसात, १०. सुन्दरी, ११. अरविन्द, १२. मानिनी, १३. महाभुजंगप्रयात, १४. सुखी सवैया।

मत्तगयंद (मालती) सवैया
इस वर्णिक छंद के चार चरण होते हैं। हर चरण में सात भगण (S I I) के पश्चात् अंत में दो गुरु (SS) वर्ण होते हैं।
उदाहरण:
१.
धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैंसी बनी सिर सुन्दर चोटी। 
खेलत-खात फिरें अँगना, पग पैंजनिया, कटी पीरि कछौटी।। 
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों ली गयो माखन-रोटी।।

२.
यौवन रूप त्रिया तन गोधन, भोग विनश्वर है जग भाई।
ज्यों चपला चमके नभ में, जिमि मंदर देखत जात बिलाई।। 
देव खगादि नरेन्द्र हरी मरते न बचावत कोई सहाई।
ज्यों मृग को हरि दौड़ दले, वन-रक्षक ताहि न कोई लखाई।।

३.
मोर पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गले पहिरौंगी।
ओढ़ी पीताम्बर लै लकुटी, वन गोधन गजधन संग फिरौंगी।। 
भाव तो याहि कहो रसखान जो, तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।

दुर्मिल (चन्द्रकला) सवैया
इस वर्णिक छंद के चार चरणों में से प्रत्येक में आठ सगण (I I S) और अंत में दो गुरु मिलाकर कुल २५ वर्ण होते हैं.
उदाहरण:
बरसा-बरसा कर प्रेम सुधा, वसुधा न सँवार सकी जिनको।
तरसा-तरसा कर वारि पिता, सु-रसा न सुधार सकी जिनको।।
सविता-कर सी कविता छवि ले, जनता न पुकार सकी जिनको।
नव तार सितार बजा करके, नरता न दुलार सकी जिनको।।

उपजाति सवैया (जिसमें दो भिन्न सवैया एक साथ प्रयुक्त हुए हों) तुलसी की देन है। सर्वप्रथम तुलसी ने 'कवितावली' में तथा बाद में रसखान व केशवदास ने इसका प्रयोग किया। 
मत्तगयन्द - सुन्दरी
प्रथम पद मत्तगयन्द (७ भगण + २ गुरु) - "या लटुकी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुरको तजि डारौ"। तीसरा पद सुन्दरी (७ सगन + १ गुरु) - "रसखानि कबों इन आँखिनते, ब्रजके बन बाग़ तड़ाग निहारौ"।

मदिरा - दुर्मिल 
तुलसी ने एक पद मदिरा का रखकर शेष दुर्मिल के पद रखे हैं। केशव ने भी इसका अनुसरण किया है। पहला मदिरा का पद (७ भगण + एक गुरु) - "ठाढ़े हैं नौ द्रम डार गहे, धनु काँधे धरे कर सायक लै"। दूसरा दुर्मिल का पद (८ सगण) - "बिकटी भृकुटी बड़री अँखियाँ, अनमोल कपोलन की छवि है"।

मत्तगयन्द-वाम और वाम-सुन्दरी की उपजातियाँ तुलसी (कवितावली) में तथा केशव (रसिकप्रिया) में सुप्राप्य है। कवियों ने भाव-चित्रण में अधिक सौन्दर्य तथा चमत्कार उत्पन्न करने हेतु ऐसे प्रयोग किये हैं।
आधुनिक कवियों में भारतेंदु हरिश्चन्द्र, लक्ष्मण सिंह, नाथूराम शंकर आदि ने इनका सुन्दर प्रयोग किया है। जगदीश गुप्त ने इस छन्द में आधुनिक लक्षणा शक्ति का समावेश किया है।
______

शनिवार, 13 अप्रैल 2019

सामयिक दोहे

⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐
सामयिक दोहे
लोकतंत्र की हो गई, आज हार्ट-गति तेज?
राजनीति को हार्ट ने,  दिया सँदेसा भेज?
वादा कर जुमला बता, करते मन की बात
मनमानी को रोक दे, नोटा झटपट तात
मत करिए मत-दान पर, करिए जग मतदान
राज-नीति जन-हित करे, समय पूर्व अनुमान
लोकतंत्र में लोकमत, ठुकराएँ मत भूल
दल-हित साध न झोंकिए, निज आँखों में धूल
सत्ता साध्य न हो सखे, हो जन-हित आराध्य
खो न तंत्र विश्वास दे, जनहित से हो बाध्य
नोटा का उपयोग कर, दें उन सबको रोक
स्वार्थ साधते जो रहे, उनको ठीकरा लोक
⭐⭐⭐⭐

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना 
*
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!! 
अम्ब विमल मति दे..... 

जग सिरमौर बनाएँ भारत.
सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.
आशिष अक्षय दे.....

साहस-शील हृदय में भर दे.
जीवन त्याग तपोमय करदे.
स्वाभिमान भर दे.....

लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम.
मानवता का त्रास हरें हम.
स्वार्थ सकल तज दे.....

दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा,
घर-घर हों काटें भव बाधा.
नवल सृष्टि रच दे....

सद्भावों की सुरसरि पावन.
स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.
'सलिल'-अन्न भर दे...
*

पुरोवाक अनुरक्त-विरक्त कहानी काँति शुक्ल

पुरोवाक :
कहने-पढ़ने योग्य जीवन प्रसंगों से समृद्ध कांति शुक्ल की कहानियाँ 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
आदि मानव ने अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिए कंठजनित ध्वनि का उपयोग सीखने के बाद ध्वनियों को अर्थ देकर भाषा का विकास किया। कालान्तर में ध्वनि संकेतों की प्रचुरता के बाद उन्हें स्मरण रखने में कठिनाई अनुभव कर विविध माध्यमों पर संकेतों के माध्यम से अंकित किया। सहस्त्रों वर्षों में इन संकेतों के साथ विशिष्ट ध्वनियाँ संश्लिष्ट कर लिपि का विकास किया गया। भूमण्डल के विविध क्षेत्रों में विचरण करते विविध मानव समूहों में अलग-अलग भाषाओँ और लिपियों का विकास हुआ। लिपि के विकास के साथ ज्ञान राशि के संचयन का जो क्रम आरम्भ हुआ वह आज तक जारी है और सृष्टि के अंत तक जारी रहेगा। मौखिक या वाचिक और लिखित दोनों माध्यमों में देखे-सुने को सुनाने या किसी अन्य से कहने की उत्कंठा ने कहानी को जान दिया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार ''कहानियों का चलन सभ्य-असभ्य सभी जातियों में चला आ रहा है सब जगह उनका समाविश शिष्ट साहित्य के भीतर भी हुआ है। घटना प्रधान और मार्मिक उनके ये दो स्थूल भेद भी बहुत पुराने हैं और इनका मिश्रण भी।"१ प्राचीन कहानियों में कथ्यगत घटनाक्रम सिलसिलेवार तथा भाव प्रधान रहा जबकि आधुनिक कहानी में घटना-श्रृंखला सीधी एक दिशा में न जाकर, इधर-उधर की घटनाओं से जुड़ती चलती है जिनका समाहार अंत में होता है।

 कल्पना-सापेक्ष गद्यकाव्य का अन्य नाम कहानी है... प्रेमचंद कहानी को ऐसी रचना मानते हैं "जिसमें जीवन के किसी अंग या किसी मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य होता है। बाबू श्याम सुन्दर दस के अनुसार कहानी "एक निश्चित लक्ष्य या प्रभाव को लेकर लिखा गया नाटकीय आख्यान है।" पश्चिमी कहानीकार एडगर एलिन पो के अनुसार कहानी "इतनी छोटी हो कि एक बैठक में पढ़ी जा सके और पाठक पर एक ही प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए लिखी गई हो।" २ "कहानी साहित्य की विकास यात्रा में समय के साथ इसके स्वरुप, सिद्धांत, उद्देश्य एवं कलेवर में आया बदलाव ही जीवंतता का द्योतक है।"३ मेहरुन्निसा परवेज़ के शब्दों में "कहानी मनुष्य के अंतर्मन की अभिव्यक्ति है, मनुष्य के जीवित रहने का सबूत है, उसके गूँगे दुःख, व्यथा, वेदना का दस्तावेज है।"४ स्वाति तिवारी के अनुसार "कहानी गपबाजी नहीं होती, वे विशुद्ध कला भी नहीं होतीं। वे किसी मन का वचन होती हैं, वे मनोविज्ञान होती हैं। जीवन है, उसकी जिजीविषा है, उसके बनते-बिगड़ते सपने हैं, संघर्ष हैं, कहानी इसी जीवन की शब्द यात्रा ही तो है, होनी भी चाहिए, क्योंकि जीवन सर्वोपरि है। जीवन में बदलाव है, विविधता है, अत: फार्मूलाबद्ध लेखन कहानी नहीं हो सकता।"५
सारत: कहानी जीवन की एक झलक (स्नैपशॉट) है। डब्ल्यू. एच. हडसन के अनुसार कहानी में एक हुए केवल एक केंद्रीय विचार होना चाहिए जिसे तार्किक परिणति तक पहुँचाया जाए।६ कांति जी की लगभग सभी कहानियों में यह केंद्रीय एकोन्मुखता देखी जा सकती है। 'बदलता सन्दर्भ' की धोखा तेलिन हो या 'मुकाबला ऐसा भी' की भौजी उनके चरित्र में यह एकोन्मुखता ही उन कहांनियों का प्राण तत्व है।
कहानी के प्रमुख तत्व कथा वस्तु, पात्र, संवाद, वातावरण, शैली और उद्देश्य हैं। इस पृष्ठ भूमि पर श्रीमती कांति शुक्ल की कहानियाँ संवेदना प्रधान, प्रवाहपूर्ण घटनाक्रम युक्त कथानक से समृद्ध हैं। वे कहानियों के कथानक का क्रमिक विकास कर पाठक में कौतूहलमय उत्सुकता जगाते हुए चार्म तक पहुंचाती हैं। स्टीवेंसन के अनुसार "कहानी के प्रारम्भ का वातावरण कुछ ऐसा होना चाहिए कि किसी सुनसान सड़क के किनारे सराय के कमरे में मोमबत्ती के धुंधले प्रकाश में कुछ लोग धीरे-धीरे बात कर रहे हों" आशय यह कि कहानी के आरम्भ में मूल संवेदना के अवतरण हेतु वातावरण की रचना की जानी चाहिए। कांति जी इस कला में निपुण हैं। 'संभावना शेष' के आरम्भ में नायक का मोहभंग, 'आखिर कब तक' और 'आशा-तृष्णा ना मरे' में केंद्रीय चरित का स्वप्न टूटना, 'करमन की गति न्यारी' में नायिका के बचपन की समृद्धि, 'ना माया ना राम' में बिटियों पर पहरेदारी, 'मुकाबला ऐसा भी' के नायक का सुदर्शन रूप आदि मूल कथा के प्रागट्य पूर्व का वातावरण ऐसा उपस्थित करते हैं कि पाठक के मन में आगे के घटनाक्रम के प्रति उत्सुकता जागने लगती है।
कांति जी रचित कहानियों में पात्रों और घटनाओं का विकास इस तरह होता है कि कथानक द्रुत गति से विकसित होकर आतंरिक कुतूहल अथवा संघर्ष के माध्यम से परिणति की ओर अग्रसर होता है। वे पाठक को वैचारिक ऊहापोह में उलझने-भटकने का अवकाश ही नहीं देतीं। 'समरथ का नहीं दोष गुसाई' में ठाकुर-पुत्र के दुर्व्यवहार के प्रत्युत्तर में पारबती की प्रतिक्रिया, उसकी अम्मा की समझाइश, ईंधन की कमी, पारबती का अकेले जाना, न लौटना और अंतत: मृत शरीर मिलना, यह सब इतने शीघ्र और सिलसिलेवार घटता है कि इसके अतिरिक्त किसी अन्य घटनाक्रम की सम्भावना भी पाठक के मस्तिष्क में नहीं उपजती। कांति जी कहानी के कथानक के अनुरूप शब्द-जाल बुनने में दक्ष हैं। 'तेरे कितने रूप' में वैधव्य का वर्णन संतान के प्रति मोह में परिणित होता है तो 'संकल्प और विकल्प' में नवोढ़ा नायिका को मिली उपेक्षा उसके विद्रोह में। संघर्ष, द्वन्द, कुतूहल, आशंका, अनिश्चितता आदि मनोभावों से कहानी विकसित होती है। '५ क' (क्या, कब, कैसे, कहाँ और क्यों?) का यथावश्यक-यथास्थान प्रयोग कर कांति जी कथानक का विकास करती हैं।
इन कहानियों में आशा और आशंका, उत्सुकता और विमुखता, संघर्ष और समर्पण, सहयोग और द्वेष जैसे परस्पर विरोधी मनोभावों के गिरि-शिखरों के मध्य कथा-सलिला की अटूट धार प्रवाहित होकर बनते-बिगड़ते लहर-वर्तुलों की शब्दाभा से पाठक को मोहे रखती है। वेगमयी जलधार के किसी प्रपात से कूद पड़ने या किसी सागर में अचानक विलीन होने की तरह कहानियों का चरम आकस्मिक रूप से उपस्थित होकर पाठक को अतृप्त ही छोड़ देता है। ऐसा नहीं होता, यह कहानीकार की निपुणता का परिचायक है। कांति जी की कहानियों की परिणिति (क्लाइमेक्स) में ही उसका सौंदर्य है, इनमें निर्गति (एंटी क्लाईमेक्स) के लिए स्थान ही नहीं है। सीमित किन्तु जीवंत पात्र, अत्यल्प, आवश्यक और सार्थक संवाद, विश्लेषणात्मक चरित्र चित्रण, वातावरण का जीवंत शब्दांकन, इन कहानियों में यत्र-तत्र दृष्टव्य है।
कहानी के सकल रचना प्रसार में तीन स्थल आदि, मध्य और अंत बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। आरम्भ पूर्वपीठिका है तो अंत प्रतिपाद्य, मध्य इन दोनों के मध्य समन्वय सेतु का कार्य करता है। यदि अंत का निश्चय किए बिना कहानी कही जाए तो वह मध्य में भटक सकती है जबकि अंत को ही सब कुछ मान लिया जाए तो कहानी नद्य में प्रचारात्मक लग सकती है। इन तीनों तत्वों के मध्य संतुलन-समन्वय आवश्यक है। कांति जी इस निकष पर प्राय: सफल रही हैं। डॉ. जगन्नाथ प्रसाद शर्मा के अनुसार 'आड़ी और 'आंत के तारतम्य में 'आंत को अधिक महत्त्व देना चाहिए क्योंकि मूल परिपाक का वही केंद्र बिंदु है।७ कांति जी की कहांनियों में अंत अधिकतर मर्मस्पर्शी हुआ है। 'अनुरक्त विरक्त' और 'चाह गयी चिंता मिटी' के अंत अपवाद स्वरूप हैं।
कहानी में कहानीकार का व्यक्तित्व हर तत्व में अन्तर्निहित होता है। शैली के माध्यम से कहानीकार की अभिव्यक्ति सामर्थ्य (पॉवर ऑफ़ एक्सप्रेशन) की परीक्षा होती है। कहानी में कविता की तुलना में अधिक और उपन्यास की तुलना में अल्प विवरण और वर्णन होते हैं। अत: वर्णन-सामर्थ्य (पॉवर ऑफ़ नरेशन) की परीक्षा भी शैली के माध्यम से होती है। भाषा, भाव और कल्पना अर्थात तन, मन और मस्तिष्क... इन कहानियों में इन तत्वों की प्रतीति भली प्रकार की जा सकती है। कांति जी की कहानियों का वैशिष्ट्य घटना क्रम का सहज विकास है। कहीं भी घटनाएँ थोपी हुई या आरोपित नहीं हैं। चरित्र चित्रण स्वाभाविक रूप से हुआ है। कहानीकार ने बलात किसी चरित्र को आदर्शवाद, या विद्रोह या विमर्श के पक्ष में खड़ा नहीं किया है, न किसी की जय-पराजय को ठूँसने की कोशिश की है।
कहानी के भाषिक विधान के सन्दर्भ में निम्न बिंदु विचारणीय होते हैं- भाषा पात्र को कितना जीवन करती है, भाषा कहानी की संवेदना को कितना उभारती है, भाषा कहानी के केन्द्रीय विचार को कितना सशक्त तरीके के व्यक्त करती है, भाषा कहानी के घटना क्रम के समय के साथ कितना न्याय करती है तथा भाषा वर्तमान युग सन्दर्भ में कितनी ग्राह्य और सहज है।८ ये कहानियाँ वतमान समय से ही हैं अत: समय के परिप्रेक्ष्य की तुलना में पात्र, घटनाक्रम और केन्द्रीय विचार के सन्दर्भ में इन कहानियों की भाषा का आकलन हो तो कांति जी अपनी छाप छोड़ने में सफल हैं। प्राय: सभी कहानियों की भाषा देश-काल. पात्र और परिस्थिति अनुकूल है।
कहानी का उद्देश्य न तो मनरंजन मात्र होता है, न उपदेश या परिष्करण, इससे हटकर कहानी का उद्देश्य कहानी लेखन का उद्देश्य मानव मन में सुप्त भावनाओं को उद्दीप्त कर उसे रस अर्थात उल्लास, उदात्तता और सार्थकता की प्रतीति कराना है। क्षुद्रता, संकीर्णता, स्वार्थपरकता और अहं से मुक्त होकर उदारता, उदात्तता, सर्वहित और नम्रता जनित आनंद की प्रतीति साहित्य सृजन का उद्देश्य होता है। कहानी भी एतदअनुसार कल्पना के माध्यम से यथार्थ का अन्वेषण कर जीवन को परिष्कृत करने का उपक्रम करती है। कांति जी की कहानियाँ इस निकष पर खरी उतरने के साथ-साथ किसी वाद विशेष, विचार विशेष, विमर्श विशेष के पक्ष-विपक्ष में नहीं हैं। उनकी प्रतिबद्धताविहीनता ही निष्पक्षता और प्रमाणिकता का प्रमाण है। प्रथम कहानी संकलन के माध्यम से कांति जी भावी संकलनों के प्रति उत्सुकता जगाने में सफल हुई हैं। कहानी कला में शैली और शिल्पगत हो रहे अधुनातन प्रयोगों से दूर इन कहानियों में ब्यूटी पार्लर का सौंदर्य भले ही न हो किन्तु सलज्ज ग्राम्य बधूटी का सात्विक नैसर्गिक सौंदर्य है। यही इनका वैशिष्ट्य और शक्ति है। 
*********
संदर्भ: १. हिंदी साहित्य का इतिहास- रामचंद्र शुक्ल, २. आलोचना शास्त्र मोहन वल्लभ पंत, ३. समाधान डॉ. सुशीला कपूर, ४. अंतर संवाद रजनी सक्सेना, ५.मेरी प्रिय कथाएँ स्वाति तिवारी, ६. एन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ़ लिटरेचर, ७. कहानी का रचना विधान जगन्नाथ प्रसाद शर्मा, ८समकालीन हिंदी कहानी संपादक डॉ. प्रकाश आतुर में कृष्ण कुमार ।

भव / सोमराजी छंद

छंद बहर का मूल है: १
छंद परिचय:
दस मात्रिक दैशिक जातीय भव छंद।
षडवार्णिक गायत्री जातीय सोमराजी छंद।
संरचना: ISS ISS, 
सूत्र: यगण यगण, यय।
बहर: फ़ऊलुं फ़ऊलुं ।
*
कहेगा-कहेगा
सुनेगा-सुनेगा।
हमारा-तुम्हारा
फ़साना जमाना।
मिलेंगे-खिलेंगे
चलेंगे-बढ़ेंगे।
गिरेंगे-उठेंगे
बनेंगे निशाना।
न रोके रुकेंगे
न टोंके झुकेंगे।
कभी ना चुकेंगे
हमें लक्ष्य पाना।
नदी हो बहेंगे
न पीड़ा तहेंगे।
ख़ुशी से रहेंगे
सुनाएँ तराना।
नहीं हार मानें
नहीं रार ठानें।
नहीं भूल जाएँ
वफायें निभाना।
***
एक कुंडली- दो रचनाकार
दोहा: शशि पुरवार
रोला: संजीव
*
सड़कों के दोनों तरफ, गंधों भरा चिराग
गुलमोहर की छाँव में, फूल रहा अनुराग
फूल रहा अनुराग, लीन घनश्याम-राधिका
दग्ध कंस-उर, हँसें रश्मि-रवि श्वास साधिका
नेह नर्मदा प्रवह, छंद गाती मधुपों के
गंधों भरे चिराग, प्रज्वलित हैं सड़कों के
***
रतन टाटा के सुविचार दोहानुवाद सहित
१. नाश न लोहे का करे, अन्य किन्तु निज जंग
अन्य नहीं मस्तिष्क निज, करें व्यक्ति को तंग
1. None can destroy iron, but its own rust can!
Likewise, none can destroy a person, but his own mindset can.
२. ऊँच-नीच से ही मिले, जीवन में आनंद
ई.सी.जी. में पंक्ति यदि, सीधी धड़कन बंद
2. Ups and downs in life are very important to keep us going, because a straight line even in an E.C.G. means we are not alive.
३. भय के दो ही अर्थ हैं, भूल भुलाकर भाग
या डटकर कर सामना, जूझ लगा दे आग
3. F-E-A-R : has two meanings :
1. Forget Everything And Run
2. Face Everything And Rise.
***

कुण्डलिया शशि पुरवार-संजीव वर्मा

एक कुंडली- दो रचनाकार 
दोहा: शशि पुरवार 
रोला: संजीव 
*
सड़कों के दोनों तरफ, गंधों भरा चिराग 
गुलमोहर की छाँव में, फूल रहा अनुराग
फूल रहा अनुराग, लीन घनश्याम-राधिका
दग्ध कंस-उर, हँसें रश्मि-रवि श्वास साधिका
नेह नर्मदा प्रवह, छंद गाती मधुपों के
गंधों भरे चिराग, प्रज्वलित हैं सड़कों के
***

विमर्श

रतन टाटा के सुविचार दोहानुवाद सहित
१. नाश न लोहे का करे, अन्य किन्तु निज जंग
अन्य नहीं मस्तिष्क निज, करें व्यक्ति को तंग
1. None can destroy iron, but its own rust can!
Likewise, none can destroy a person, but his own mindset can.
२. ऊँच-नीच से ही मिले, जीवन में आनंद
ई.सी.जी. में पंक्ति यदि, सीधी धड़कन बंद
2. Ups and downs in life are very important to keep us going, because a straight line even in an E.C.G. means we are not alive.
३. भय के दो ही अर्थ हैं, भूल भुलाकर भाग
या डटकर कर सामना, जूझ लगा दे आग
3. F-E-A-R : has two meanings :
1. Forget Everything And Run
2. Face Everything And Rise.
***

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

भारतीय भाषा काव्य संकलन २०१९

भारतीय भाषा काव्य संकलन २०१९  
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच और विश्ववाणी हिंदी संस्थान शीघ्र ही भारतीय भाषा-बोलियों में समन्वय और सद्भाव की वृद्धि के लिए एक काव्य संकलन प्रकाशित कर रहे हैं। सहभागिता हेतु इच्छुक कवि अपनी श्रेष्ठ दस रचनाएँ अपने चित्र, व्यक्तिगत परिचय (नाम, जन्म तिथि, शिक्षा, साहित्यिक गुरु, लेखन विधाएँ, प्रकाशित कृतियाँ, उपलब्धि, पता, दूरभाष, चलभाष, ईमेल) यथा शीघ्र प्रेषित करें।
सभी देशज बोलियों (भोजपुरी, अवधी, ब्रज, हरियाणवी, छत्तीसगढ़ी, बुंदेलखण्डी, मालवी, निमाड़ी, मारवाड़ी, हाड़ौती, मेवाड़ी, मैथिली, कन्नौजी, बैंसवाड़ी, अंगिका, बज्जिका आदि) में लिखी रचनाएँ आमंत्रित हैं। अन्य प्रांतीय भाषाओँ की रचनाएँ देवनागरी लिपि में हिंदी अनुवाद सहित भेजें। अपने अंचल की भाषा /बोली में ८ पृष्ठों पर पद्य रचनाएँ चित्र संक्षिप्त परिचय सहित salil.sanjiv@gmail.com पर मेल कर दें. सहयोग राशि १०००/- रचनाएँ स्वीकृत होने पर राशि जमा करने हेतु सूचित किया जायेगा।

सभी देशज बोलियों (भोजपुरी, अवधी, ब्रज, हरियाणवी, छत्तीसगढ़ी, बुंदेलखण्डी, मालवी, निमाड़ी, मारवाड़ी, हाड़ौती, मेवाड़ी, मैथिली, कन्नौजी, बैंसवाड़ी, अंगिका, बज्जिका आदि) में लिखी रचनाएँ आमंत्रित हैं। अन्य प्रांतीय भाषाओँ की रचनाएँ देवनागरी लिपि में हिंदी अनुवाद सहित भेजें। सहयोग राशि मात्र एक हजार रुपये निर्धारित है। हर सहभागी को ८ पृष्ठ दिए जाएँगे। सहभागिता निधि भेजने हेतु बैंक लेखा की जानकारी रचनाएँ स्वीकृत होने के बाद दी जाएगी। 


सहभागिता हेतु सहमत कवि 
१. श्वेताभ पाठक
२. संजीव वर्मा 'सलिल'
३. ओमप्रकाश शुक्ल                                                                                                                                            
४. छाया सक्सेना                                                                                                                                                
५. मिथिलेश बड़गैया                                                                                                                                            
६. अविनाश ब्योहार                                                                                                                                           
७. शोभित वर्मा                                                                                                                                                
८. जयप्रकाश श्रीवास्तव                                                                                                                                      
९. अखिलेश खरे                                                                                                                                              
१०. संतोष नेमा                                                                                                                                                
११.श्रीधर प्रसाद द्विवेदी 
१२. विवेक आस्तिक 
१३. विनय विक्रम सिंह 

***


समीक्षा युद्धरत हूँ मैं हिमकर श्याम

कृति चर्चा:
फ़ोटो का कोई वर्णन उपलब्ध नहीं है.युद्धरत हूँ मैं : जिजीविषा गुंजाती कविताएँ
चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
(कृति विवरण: युद्धरत हूँ मैं, हिंदी गजल-काव्य-दोहा संग्रह, हिमकर श्याम, प्रथम संस्करण, २०१८, आईएसबीएन ९७८८१९३७१९०७७, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ २१२, मूल्य २७५रु., नवजागरण प्रकाशन, नई दिल्ली, कवि संपर्क बीच शांति एंक्लेव, मार्ग ४ ए, कुसुम विहार, मोराबादी, राँची ८३४००८, चलभाष ८६०३१७१७१०) 
*
आदिकवि वाल्मीकि द्वारा मिथुनरत क्रौंच युगल के नर का व्याध द्वारा वध किए जाने पर क्रौंच के चीत्कार को सुनकर प्रथम काव्य रचना हो, नवजात शावक शिकारी द्वारा मारे जाने पर हिरणी के क्रंदन को सुनकर लिखी गई गजल हो, शैली की काव्य पंक्ति 'अवर स्वीटैस्ट सौंग्स आर दोस विच टैल अॉफ सैडेस्ट थॉट' या साहिर का गीत 'हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं' यह सुनिश्चित है कि करुणा और कविता का साथ चोली-दामन का सा है। दुनिया की कोई भी भाषा हो, कोई भी भू भाग हो आदमी की अनुभूति और अभिव्यक्ति समान होती है। पीड़ा, पीड़ा से मुक्ति की चेतना, प्रयास, संघर्ष करते मन को जब यह प्रतीति हो कि हर चुनौती, हर लड़ाई, हर कोशिश करते हुए अपने आप से 'युद्धरत हूँ मैं' तब कवि कविता ही नहीं करता, कविता को जीता है। तब उसकी कविता पिंगल और व्याकरण के मानक पर नहीं, जिंदगी के उतार-चढ़ाव पर बहती हुई नदी की उछलती-गिरती लहरों में निहित कलकल ध्वनि पर परखी जाती है।

हिमकर श्याम की कविता दिमाग से नहीं, दिल से निकलती है। जीवन के षट् राग (खटराग) में अंतर्निहित पंचतत्वों की तरह इस कृति की रचनाएँ कहनी हैं कुछ बातें मन की, युद्धरत हूँ मैं, आखिर कब तक?, झड़ता पारिजात तथा सबकी अपनी पीर पाँच अध्यायों में व्यवस्थित की गई हैं। शारदा वंदन की सनातन परंपरा के साथ बहुशिल्पीय गीति रचनाएँ अंतरंग भावनाओं से सराबोर है। 
आरंभ में ३ से लेकर ६ पदीय अंतरों के गीत मन को बाँधते हैं- 
सुख तो पल भर ही रहा, दुख से लंबी बात
खुशियाँ हैं खैरात सी, अनेकों की सौग़ात

उलझी-उलझी ज़िंदगी, जीना है दुश्वार
साँसों के धन पर चले जीवन का व्यापार
चादर जितनी हो बड़ी, उतनी ही औक़ात

व्यक्तिगत जीवन में कर्क रोग का आगमन और पुनरागमन झेल रहे हिमकर श्याम होते हुए भी शिव की तरह हलाहल का पान करते हुए भी शुभ की जयकार गुँजाते हैं-
दुखिया मन में मधु रस घोलो
शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो

छंद नया है, राग नया है
होंठों पर फिर फाग नया है
सरगम के नव सुर पर डोलो

शूलों की सेज पर भी श्याम का कवि-पत्रकार देश और समाज की फ़िक्र जी रहा है।
मँहगा अब एतबार हो गया 
घर-घर ही बाजार हो गया
मेरी तो पहचान मिट गई
कल का मैं अखबार हो गया

विरासत में अरबी-फारसी मिश्रित हिंदी की शब्द संपदा मसिजीवी कायस्थ परिवारों की वैशिष्ट्य है। हिमकर ने इस विरासत को बखूबी तराशा-सँभाला है। वे नुक़्तों, विराम चिन्हों और संयोजक चिन्ह का प्रयोग करते हैं।
'युद्धरत हूँ मैं' में उनके जिजीविषाजयी जीवन संघर्ष की झलक है किंतु तब भी कातरता, भय या शिकायत के स्थान पर परिचर्चा में जुटी माँ, पिता और मामा की चिंता कवि के फौलादी मनोबल की परिचायक है। जिद्दी सी धुन, काला सूरज, उपचारिकाएँ, किस्तों की ज़िंदगी, युद्धरत हूँ मैं, विष पुरुष, शेष है स्वप्न, दर्द जब लहराए आदि कविताएँ दर्द से मर्द के संघर्ष की महागाथाएँ हैं। तन-मन के संघर्ष को धनाभाव जितना हो सकता है, बढ़ाता है तथापि हिमकर के संकल्प को डिगा नहीं पाता। हिमकर का लोकहितैषी पत्रकार ईसा की तरह व्यक्तिगत पीड़ा को जीते हुए भी देश की चिंता को जीता है। सत्ता, सुख और समृद्धि के लिए लड़े-मरे जा रहे नेताओं, अफसरों और सेठों के हिमकर की कविताओं के पढ़कर मनुष्य होना सीखना चाहिए।
दम तोड़ती इस लोकतांत्रिक 
व्यवस्था के असंख्य 
कलियुगी रावणों का हम
दहन करना भी चाहें तो
आखिर कब तक
*
तोड़ेंगे हम चुप्पी
और उठा सकेंगे 
आवाज़ 
सर्वव्यापी अन्याय के ख़िलाफ़
लड़ सकेंगे तमाम
खौफ़नाक वारदातों से
और अपने इस
निरर्थक अस्तित्व को 
कोई अर्थ दे सकेंगे हम।
*
खूब शोर है विकास का 
जंगल, नदी, पहाड़ की
कौन सुन रहा चीत्कार
अनसुनी आराधना 
कैसी विडंबना 
बिखरी सामूहिक चेतना 
*
यह गाथा है अंतहीन संघर्षों की
घायल उम्मीदों की
अधिकारों की है लड़ाई 
वजूद की है जद्दोजहद

समय के सत्य को जीते हुए, जिंदगी का हलाहल पीते हुए हिमकर श्याम की युगीन चिंताओं का साक्षी दोहा बना है। 
सरकारें चलती रहीं, मैकाले की चाल
हिंदी अपने देश में, अवहेलित बदहाल

कैसा यह उन्माद है, सर पर चढ़ा जुनून
खुद ही मुंसिफ तोड़ते, बना-बना कानून

चाक घुमाकर हाथ से, गढ़े रूप आकार
समय चक्र धीमा हुआ, है कुम्हार लाचार

मूर्ख बनाकर लोक को, मौज करे ये तंत्र
धोखा झूठ फरेब छल, नेताओं के मंत्र

विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर द्वारा प्रकाशित सहयोगाधारित दोहा शतक मंजूषा के भाग २ 'दोहा सलिला निर्मला' में सम्मिलित होने के लिए मुझसे दोहा लेखन सीखकर श्याम ने मुझे गत ५ दशकों की शब्द साधना का पुरस्कार दिया है। सामान्यतः लोग सुख को एकाकी भोगते और दुख को बाँटते हैं किंतु श्याम अपवाद है। उसने नैकट्य के बावजूद अपने दर्द और संघर्ष को छिपाए रखा।इस कृति को पढ़ने पर ही मुझे विद्यार्थी श्याम में छिपे महामानव के जीवट की अनुभूति हुई।
इस एक संकलन में वस्तुत: तीन संकलनों की सामग्री समाविष्ट है। अशोक प्रियदर्शी ने ठीक ही कहा है कि श्याम की रचनाओं में विचार की एकतानता तथा कसावट है और कथन भंगिमा भी प्रवाही है। कोयलांचल ही नहीं देश के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार हरेराम त्रिपाठी 'चेतन' के अनुसार 'रचनाकार अपनी सशक्त रचनाओं से अपने पूर्व की रचनाओं के मापदंडों को झाड़ता और उससे आगे की यात्रा को अधिक जिग्यासा पूर्ण बनाकर तने हुए सामाजिक तंतुओं में अधिक लचीलापन लाता है। मानव-मन की जटिलताओं के गझिन धागों को एक नया आकार देता है।'
इन रचनाओं से गुजरने हुए बार-बार यह अनुभूति होना कि किसी और को नहीं अपने आपको पढ़ रहा हूँ, अपने ही अनजाने मैं को पहचानने की दिशा में बढ़ रहा हूँ और शब्दों की माटी से समय की इबारत गढ़ रहा हूँ। मैं श्याम की जिजीविषा, जीवट, हिंदी प्रेम और रचनाधर्मिता को नमन करता हूँ।
हर हिंदी प्रेमी और सहृदय इंसान श्याम को जीवन संघर्ष का सहभागी और जीवट का साक्षी बन सकता है इस कृति को खरीद-पढ़कर। मैं श्याम के स्वस्थ्य शतायु जीवन की कामना करता हुए आगामी कृतियों की प्रतीक्षा करता हूँ। 
***
संपर्क : विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष ७९९९५५९६१८ ।
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सामयिक दोहे नोटा

सामयिक दोहे

भौंक रहा या रेंकता, सके न ईश्वर जान नेता को देखकर, उल्लू भी हैरान
*
परेशान क्यों हो रहे, महाबली जी आप? मिट जाएँगे विपक्षी, दें साध्वी जी शाप
*
कहें दलित हनुमान जी, वनवासी श्री राम सीता कहें न छोड़ना, मेरा दमन थाम
*
सेना को तो बख्श दो, करो न तर्क वितर्क छीछालेदर मत करो, वे हैं सजग सतर्क
*
टाँग अड़ाते व्यर्थ क्यों, इस-उस को तुम टोंक? खुद को एंकर कह रहे, जब मन चाहे भौंक
*
क्यों न भेजते फ़ौज में, नेताजी सुत आप? वीर नहीं या जानता, कुर्सी देगा बाप??
*
दलाध्यक्ष दल की करे, बात उचित है नीति जो है पूरे देश का, कह क्यों वरे कुरीति?
*
औरों पर ऊँगली उठा, सोच रहे क्यों आप? जनता जान नहीं रही, किये आपने पाप
*
नोटा सप्तक
*
जनता ने पाया नया, शस्त्र करे उपयोग गणित गड़बड़ा दे सभी, नोटा करे प्रयोग
*
सह न सकेंगे इस तरह, नोटा करता वार चारों खाने चित्त कर, कहे मुस्कुरा यार
*
जन अपराधी तत्व को, चाह न सकता रोक नोटा दाँव न चूकता, कोई न सकता टोक
*
निर्बल के बल राम थे, अब नोटा ले जान दलबदलू को दौड़ से, बाहर कर पहचान
*
धन कंबल या सुरा ले, मत न बेचिए आप। नोटा देकर कीजिए, लोकतंत्र का जाप।।
*
नेताओं के झूठ, का केवल एक जवाब। नोटा देकर पूछिए, कैसी चाल जनाब?
*
अपने मुँह बनते मियाँ, मिट्ठू करें न शर्म। मतदाता नोटा दिखा, कहे जानता मर्म।।
***
१२.४.२०१९

नवगीत

नवगीत 
*
हवा महल हो रही
हमारे पैर तले की धरती।
*
सपने देखे धूल हो गए
फूल सुखकर शूल हो गए
नव आशा की फसलोंवाली
धरा हो गई परती।
*
वादे बता थमाए जुमले
फिसले पैर, न तन्नक सँभले
गुब्बारों में हवा न ठहरी
कट पतंग है गिरती।
*
जिजीविषा को रौंद रहे जो
लगा स्वार्थ की पौध रहे वो।
जन-नेता की बखरी में ही
जन-अभिलाषा मरती।
*
११/०४/२०१८

BE SAFE

BE SAFE
SANJIV VERMA "SALIL"
*
1) What should a woman do if she finds herself alone in the company
of a strange male as she prepares to enter a lift in a high-rise apartment late at
night?
Experts Say: Enter the lift. If you need to reach the 13th floor, press
all the buttons up to your destination. No one will dare attack you in a
lift that stops on every floor.
2) What to do if a stranger tries to attack you when you are alone in
your house, run into the kitchen.
Experts Say: You alone know where the chili powder and turmeric are
kept And where the knives and plates are. All these can be turned into
deadly weapons. If nothing else, start throwing plates and utensils all over.
Let them break. Scream. Remember that noise is the greatest enemy
of a molester. He does not want to be caught.
3} Taking an Auto or Taxi at Night.
Experts Say: Before getting into an auto at night, note down its
registration number. Then use the mobile to call your family or friend and pass on the details to them in the language the driver understands .Even if no one
answers your call, pretend you are in a conversation. The driver now
knows someone has his details and he will be in serious trouble if anything
goes wrong. He is now bound to take you home safe and sound. A
potential attacker is now your de facto protector!
4} What if the driver turns into a street he is not supposed to - and
you feel you are entering a danger zone?
Experts Say: Use the handle of your purse or your stole (dupatta) to
wrap around his neck and pull him back. Within seconds, he will feel
choked and helpless. In case you don’t have a purse or stole just pull him
back by his collar. The top button of his shirt would then do the same trick.
5} If you are stalked at night.
Expert Say: enter a shop or a house and explain your predicament.
If it is night and shops are not open, go inside an ATM box. ATM
centers always have security guards. They are also monitored by close circuit
television. Fearing identification, no one will dare attack you.
After all, being mentally alert is the greatest weapon you can ever
have.
Please spread it to all those women u care & spread awareness as dis
is d least we can do for a social & moral cause and fr d safety of
women.
*

आदि शक्ति वंदना

आदि शक्ति वंदना 
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
*
पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..
परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..
जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..
दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.
प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..
मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.
ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
******

संजीव वर्मा सलिल जी