दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
मंगलवार, 9 अप्रैल 2019
दोहा मुक्तिका
भोजपुरी दोहा
दोहा मुक्तिका
द्विपदी
*
परवाने जां निसार कर देंगे.
हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..
*
तितलियों की चाह में भटको न तुम.
फूल बन महको चली आएँगी ये..
*
जब तलक जिन्दा था रोटी न मुहैया थी.
मर गया तो तेरहीं में दावतें हुईं..
*
बाप की दो बात सह नहीं पाते
अफसरों की लात भी परसाद है..
*
पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.
मैं ढूँढ-ढूँढ हारा, घर एक नहीं मिलता..
*
संवस
सोमवार, 8 अप्रैल 2019
दोहा
दो कौड़ी का आदमी, पशु का थोड़ा मोल।
नायक सबका खुदा है, धन्य-धन्य हम झेल।।
*
तू मारे या छोड़ दे, है तेरा उपकार।
न्याय-प्रशासन खड़ा है, हाथ बाँधकर द्वार।।
*
आज कदर है उसी की, जो दमदार दबंग।
इस पल भाईजान हो, उस पल हो बजरंग।।
*
सवा अरब है आदमी, कुचल घटाया भार।
पशु कम मारे कर कृपा, स्वीकारो उपकार।।
*
हम फिल्मी तुम नागरिक, आम न समता एक।
खल बन रुकते हम यहाँ, मरे बने रह नेक।।
*
पानी-पानी हो गया, पानी मिटी न प्यास।
जंगल पर्वत नदी-तल, गायब रही न आस।।
8.4.2018
नवगीत
संजीव
.
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
महाकाव्य बब्बा की मूँछें, उजली पगड़ी
खण्डकाव्य नाना के नाना किस्से रोचक
दादी-नानी बन प्रबंध करती हैं बतरस
सुन अंग्रेजी-गिटपिट करते बच्चे भौंचक
ईंट कहीं की, रोड़ा आया और कहीं से
अपना
आप विधाता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
लक्षाधिक है छंद सरस जो चाहें रचिए
छंदहीन नीरस शब्दों को काव्य न कहिए
कथ्य सरस लययुक्त सारगर्भित मन मोहे
फिर-फिर मुड़कर अलंकार का रूप निरखिए
बिम्ब-प्रतीक सलोने कमसिन सपनों जैसे
निश-दिन
खूब दिखाता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
दृश्य-श्रव्य-चंपू काव्यों से भाई-भतीजे
द्विपदी, त्रिपदी, मुक्तक अपनेपन से भीजे
ऊषा, दुपहर, संध्या, निशा करें बरजोरी
पुरवैया-पछुवा कुण्डलि का फल सुन खीजे
बौद्धिकता से बोझिल कविता
पढ़ता
पर बिसराता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
गीत प्रगीत अगीत नाम कितने भी धर लो
रच अनुगीत मुक्तिका युग-पीड़ा को स्वर दो
तेवरी या नवगीत शाख सब एक वृक्ष की
जड़ को सींचों, माँ शारद से रचना-वर लो
खुद से
खुद बतियाता है यह
कुनबा
गीति विधा का है यह
.
नवगीत बाँस
संजीव
.
बाँस हैं हम
.
पत्थरों में उग आते हैं
सीधी राहों पर जाते हैं
जोड़-तोड़ की इस दुनिया में
काम सभी के हम आते हैं
नहीं सफल के पीछे जाते
अपने ही स्वर में गाते हैं
यह न समझो
नहीं कूबत
फाँस हैं हम
बाँस हैं हम
.
चाली बनकर चढ़ जाते हैं
तम्बू बनकर तन जाते हैं
नश्वर माया हमें न मोहे
अरथी सँग मरघट जाते हैं
वैरागी के मन भाते हैं
लाठी बनकर मुस्काते हैं
निबल के साथी
उसीकी
आँस हैं हम
बाँस हैं हम
.
बन गेंड़ी पग बढ़वाते हैं
अगर उठें अरि भग जाते हैं
मिले ढाबा बनें खटिया
सबको भोजन करवाते हैं
थके हुए तन सो जाते हैं
सुख सपनों में खो जाते हैं
ध्वज लगा
मस्तक नवाओ
नि-धन का धन
काँस हैं हम
बाँस हैं हम
*
नवगीत
धत्तेरे की
*
धत्तेरे की
चप्पलबाज।
*
पद-मद चढ़ा, न रहा आदमी
है असभ्य मत कहो आदमी
चुल्लू भर पानी में डूबे
मुँह काला कर
चप्पलबाज
धत्तेरे की
चप्पलबाज।
*
हाय! जंगली-दुष्ट आदमी
पगलाया है भ्रष्ट आदमी
अपना ही थूका चाटे फिर
झूठ उचारे
चप्पलबाज
धत्तेरे की
चप्पलबाज।
*
गलती करता अगर आदमी
क्षमा माँगता तुरत आदमी
गुंडा-लुच्चा क्षमा न माँगे
क्या हो बोलो
चप्पलबाज?
धत्तेरे की
चप्पलबाज।
*
समीक्षा: सरे राह कहानियाँ सुमन श्रीवास्तव
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
[पुस्तक परिचय- सरे राह, कहानी संग्रह, डाॅं. सुमनलता श्रीवास्तव, प्रथम संस्करण २०१५, आकार २१.५ से.मी. x १४ से.मी., आवरण बहुरंगी पेपरबैक लेमिनेटेड जैकट सहित, मूल्य १५० रु., त्रिवेणी परिषद प्रकाशन, ११२१ विवेकानंद वार्ड, जबलपुर, कहानीकार संपर्क १०७ इंद्रपुरी, नर्मदा मार्ग, जबलपुर।]
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‘कहना’ मानव के अस्तित्व का अपरिहार्य अंग है। ‘सुनना’,‘गुनना’ और ‘करना’ इसके अगले चरण हैं। इन चार चरणों ने ही मनुष्य को न केवल पशु-पक्षियों अपितु सुर, असुर, किन्नर, गंधर्व आदि जातियों पर जय दिलाकर मानव सभ्यता के विकास का पथ प्रशस्त किया। ‘कहना’ अनुशासन और उद्दंेश्य सहित हो तो ‘कहानी’ हो जाता है। जो कहा जंाए वह कहानी, क्या कहा जाए?, वह जो कहे जाने योग्य हो, कहे जाने योग्य क्या है?, वह जो सबके लिये हितकर है। जो सबके हित सहित है वही ‘साहित्य’ है। सबके हित की कामना से जो कथन किया गया वह ‘कथा’ है। भारतीय संस्कृति के प्राणतत्वों संस्कृत और संगीत को हृदयंगम कर विशेष दक्षता अर्जित करनेवाली विदुषी डाॅ. सुमनलता श्रीवास्तव की चैथी कृति और दूसरा कहानी संग्रह ‘सरे राह’ उनकी प्रयोगधर्मी मनोवृत्ति का परिचाायक है।
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- समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१ ८३२४४ , salil.sanjiv@gmail.com
राहुल सांकृत्यायन
राहुल एक जिजीविषा
- सुनील दत्ता
आज के इस विराट पृथ्वी के फलक पर प्रकृति अपने गर्भ में अनेको रहस्य छुपाये रहती है | प्रकृति समय- समय पर इस खुबसूरत कायनात को नये- नये उपहारों से नवाजती आई है |कभी बड़े वैज्ञानिक, ऋषि, महर्षि, दर्शन वेत्ता साहित्य सृजन शिल्पी और इस खुबसूरत कायनात में रंग भरने वाले व्यक्तित्व से सवारती चली आ रही है | ऐसे ही एक बार सवारा था जनपद आज़मगढ़ को ९ अप्रैल १८९३ को केदार पांडेय ( राहुल सांकृत्यायन ) के रूप में। राहुल सांकृत्यायन विश्व- विश्रुत विद्वान् और अनेको भाषाओं के ज्ञाता हुए थे |ज्ञान के विविध क्षेत्रो में उनका अवदान अतुलनीय है | भाषा और साहित्य के अज्ञात गुहाधकारो को आलोकित करने, इतिहास और पुरातत्व के अछूते क्षेत्रो को उदघाटित करने, विश्व- भ्रमण का कीर्तिमान बनाते हुए यात्रा वृतान्तो का विपुल साहित्य- सृजन और यात्रा- वृत्त को “ घुमक्कड़ शास्त्र “ के रूप में शास्त्र- प्रतिष्ठा देने, इसके साथ ही अपनी जीवन- यात्रा के पांच भागो में एक अनुपम आत्मकथा लिखने और अनेको महत्वपूर्ण ज्ञात- अज्ञात महापुरुषों की जीवनी प्रस्तुत करने से लेकर पुरातत्व, इतिहास, समाज दर्शन और अर्थशास्त्र के जीवंत पहलुओ को उदघाटित करने वाली विश्व प्रसिद्द कहानियों और उपन्यासों के सृजन, दर्शन एवं राजनीति पर समर्थ साहित्य रचना के साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी, किसान- आन्दोलन की अगुवाई, राष्ट्रभाषा हिन्दी और जनपदीय भाषाओं की प्रतिष्ठा के लिए एक सिपाही की भाँती सक्रिय संघर्ष करते हुए उन्होंने विदेशो के विश्वविद्यालयों के प्रतिष्ठापूर्ण आचार्य के रूप में अध्यापन और अपने समर्थ पद- संचरण से देश और विदेश के दुर्गम क्षेत्रो को अनवरत देखा- परखा | गुरुदेव के “ एकला चलो रे “ का भाव इनके समग्र जीवन पर था |इतने कार्यो को एक साथ सम्पन्न करना एक साधारण आदमी के वश का कार्य नही हो सकता | वे चलते- फिरते विश्वकोश थे और कर्म शक्ति के कीर्तिमान थे | ऐसे महामानव शताब्दियों के विश्व- पटल पर अवतरित होते है राहुल उन्ही महापुरुषों की श्रृखला में एक थे |सैर की दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहाजिन्दगानी गर कुछ रही तो, नौजवानी फिर कहा |
केदार से राहुल
राहुल जी १९५८ में साढे चार माह की यात्रा पर चीन गये | उसी वर्ष “ मध्य एशिया का इतिहास” नामक उनकी पुस्तक पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरूस्कार प्रदान किया गया | १९५९ में वे कमला जी के अनुरोध पर मसूरी छोड़कर दार्जिलिंग चले गये | उसी वर्ष उन्हें श्री लंका के विश्वविद्यालय में संस्कृत एवं बौद्ध दर्शन विभाग का अध्यक्ष बनाया गया जिस पद पर वे मृत्युपर्यन्त रहे | हिन्दी की सेवा के लिए भागलपुर विश्व विद्यालय ने अपने प्रथम दीक्षान्त समारोह में उन्हें “ डाक्टरेट “ की मांड उपाधि से सम्मानित किया | राष्ट्रभाषा परिषद बिहार ने “ मध्य एशिया का इतिहास “ के लिए पुरस्कृत किया | काशी विद्वत सभा ने उन्हें “ महापंडित “ का अलंकरण दिया तो हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग ने “साहित्य वाचस्पति” का २६ जनवरी १९६१ को भारत सरकार ने पद्मभूषण का अलंकरण प्रदान किया | सरस्वती ने अपने हीरक जयन्ती समारोह के अवसर पर मानपत्र देकर सम्मानित किया | जो उनके बहुमुखी व्यक्तित्व को सामने लाता है |मानपत्र में लिखा था- “आपने इस शती के तीसरे दशक में जब सरस्वती में लेख लिखना प्रारम्भ किया तब आचार्य द्दिवेदी ने साश्चर्य जिज्ञासा की थी कि हिन्दी की यह नवीन उदीयमान प्रतिभा कौन है ? तब से आप बराबर सरस्वती की सेवा करते आ रहे है | आप संस्कृत, हिन्दी और पालि के विद्वान् है | तिब्बती, रुसी और चीनी भाषाओं में निष्ठात है | राजनीति, इतिहास और दर्शन शास्त्र के पंडित है | आपने तिब्बती भाषा में सैकड़ो अज्ञात संस्कृत ग्रंथो का उद्दार किया | हिन्दी के प्रमुख बौद्ध ग्रंथो का अनुवाद कर हिन्दी का भण्डार भरा | “ एशिया का वृहद इतिहास ( भाग एक व दो ) लिखकर हिन्दी के बड़े अभाव को पूरा किया | उपन्यास, कहानी, निबन्ध यात्रा- साहित्य लिखकर आपने अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया | आपकी निष्ठा हम सबके लिए अनुकरणीय है | आप केवल हिन्दी संसार के ही नही बल्कि सारे देश के गौरव है इस अवसर पर सरस्वती के पुराने लेखक तथा देश के महान पण्डित एवं साहित्यकार के रूप में आपका सम्मान कर हम अपने को गौरवान्वित समझते है |
राहुल जी का एक पुराना कहानी संग्रह “ सत्तमी के बच्चे “ है इसकी कहानिया भी उपयुक्त दोनों कहानी संग्रहों के सांचे में ढली है | इसमें राहुल जी ने अपने ननिहाल पन्दहां ग्राम की बाल स्मृतियों को कथा के रूप में चित्रित किया है | सत्तमी के बच्चे संग्रह की सबसे मार्मिक कहानी “ सत्तमी के बच्चे” ही है | उस गाँव की सत्तमी अहिरिन की दयनीय आर्थिक स्थिति का चित्रण किया गया है जो अपने बच्चो को भर पेट भोजन और दवा तक का प्रबन्ध नही कर पाती है और उसके चार बच्चे अकाल ही काल कलवित हो जाते है | ”डीहबाबा “ की कहानी में जीता भर के माध्यम से भर जाती की कर्मठता और स्वामिभक्ति के साथ उनकी दयनीय स्थिति का चित्रण किया है | ”पाठक जी “ उनके नाना का चरित्रगत संस्मरण है और पुजारी जी इसी प्रकार का उनके पिता जी का संस्मरण है | इनका भी उद्देश्य उच्च वर्ग की ब्राह्मण जाती की ठसक और मिथ्या अंह भावना के साथ उनकी भी गरीबी का चित्रण करना है | “जैसिरी” भी पन्दहां के ही एक सच्चे चरित्र है जिनमे अदभुत प्रतिभा थी | पर गरीब परिवार में जन्म लेने के कारण उनकी प्रतिभा का विकास नही हो पाया |मुक्तिका, अम्मी
अम्मी
माहताब की जुन्हाई में
झलक तुम्हारी पाई अम्मी
दरवाजे, कमरे आँगन में
हरदम पडी दिखाई अम्मी
अब्बा की सूनी आँखों में
जब भी झाँका पडी दिखाई
तेरी ही परछाईं अम्मी
पर तेरी कुछ बात और थी
तुझसे घर अपना लगता था
अब बाकी पहुनाई अम्मी
मन तो तेरे साथ रह गया
इत्मीनान हमेशा रखना-
बिटिया नहीं परायी अम्मी
तू ही बेटी-बेटों में है
सच कहती हूँ, तू ही दिखती
भाई और भौजाई अम्मी.
तू रमजान फाग होली है
मेरी तो हर श्वास-आस में
तू ही मिली समाई अम्मी
सामयिक दोहे
*
बेचो घोड़े-गधे भी, सोओ होकर मस्त।
खर्राटे ऊँचे भरो, करो सभी को त्रस्त।।
*
दूर रहो उससे सदा, जो धोता हो हाथ।
झट पीछे पड़ गया तो, पीटोगे निज माथ।।
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टाँग अड़ाना है 'सलिल', जन्म सिद्ध अधिकार।
समझ सको कुछ या नहीं, दो सलाह हर बार।।
*
देवी दर्शन कीजिए, भंडारे के रोज।
देवी खुश हो जब मिले, बिना पकाए भोज।।
*
हर ऊँची दूकान के, फीके हैं पकवान।
भाषण सुनकर हो गया, बच्चों को भी ज्ञान।।
*
नोट वोट नोटा मिलें, जब हों आम चुनाव।
फिर वोटर भूखा मरे, कहीं न मिलता भाव।।
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देवी खड़ीं चुनाव में, नित रखती नौ रूप।
कहें भिखारी से हुई, मैं भिक्षुक तुम भूप।।
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कौन किसी का सगा है, कहो पराया कौन?
प्रश्न किया जब भी मिला, उत्तर केवल मौन।।
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ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन बना बसंत।
दूर गईं पतझड़ हुआ, मन बैरागी संत।।
*
तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद।
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गूँजे छंद।।
*
तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक मन थे दूर।
तू-मैं मिल ज्यों हम हुए, साँस हुई संतूर।।
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दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ।
हँसें अधर मिल-लज नयन, कहें सार्थक साथ।।
*
नयन मिला छवि कैद कर, मूँदे नयन कपाट।
हुए चार दो रह गए, नयना खुद को हार।।
***
शिव स्तवन
शनिवार, 6 अप्रैल 2019
देवी स्तवन
देवी स्तवन
तव च का किल न स्तुतिरंबिके सकल शब्दमयी किल ते तनु:।
निखिलमूर्तिषु मे भवदन्वयोमनसिजासु बहि: प्रसरासु च।।
इति विचिंत्य शिवे! शमिताशिवे! जगति जातमयत्नवशादिदिम्।
स्तुतिजपार्चनचिंतनवर्जिता न खलु काचन कालकलास्ति मे।।
*
भावानुवाद
किस ध्वनिस्तवन में न माँ, सकल शब्दमय देह।
मन-अंदर-बाहर तुम्हीं, निखिल मूर्ति भव गेह।।
सोच-असोचे भी रहे, शिवे तुम्हारा ध्यान।
स्तुति-जप पूजार्चन रहित, पल न एक भी मान।।
*
कौन वांग्मय जो नहीं, करे तुम्हारा गान।
सकल शब्दमय मातु तुम, तुम्हीं तान सुर गान।।
हर संकल्प-विकल्प में, मातु मिले दीदार।
हो भीतर-बाहर तुम्हीं, तुम ही बिंदु प्रसार।।
बिन प्रयास चिंतन बिना, शिवे! तुम्हारा ध्यान।
करे अमंगल ध्वंस हर, हो कल्याण सुजान।।
बिन प्रयास पल-पल रहे, मातु! तुम्हारा ध्यान।
पूजन चिंतन-मनन जप, स्तवन सतत तव गान।।
***
संवस
शक संवत् २०७६
५-४-२०१९
जागो माँ
जागो माँ
*
जागो माँ! जागो माँ!!
*
सीमा पर अरिदल ने भारत को घेरा है
सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है
जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है
भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है
सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
*
जनगण है दीन-हीन, रोटी के लाले हैं
चिड़ियों की रखवाली, बाज मिल सम्हाले हैं
नेता के वसन श्वेत, अंतर्मन काले हैं
सेठों के स्वार्थ भ्रष्ट तंत्र के हवाले हैं
रिश्वत-मँहगाई पर ब्रम्ह अस्त्र दागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
*
जन जैसे प्रतिनिधि को औसत ही वेतन हो
मेहनत का मोल मिले, खुश मजूर का मन हो
नेता-अफसर सुत के हाथों में भी गन हो
मेहनत कर सेठ पले, जन नायक सज्जन हो
राजनीति नैतिकता एक साथ पागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
*
संवस
नवसंवत्सर, ५.४.२०१९
दोहा कृष्ण मृग हत्या
कृष्ण-मृग हत्याकांड
*
मुग्ध हुई वे हिरन पर, किया न मति ने काम।
हरण हुआ बंदी रहीं, कहा विधाता वाम ।।
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मुग्ध हुए ये हिरन पर, मिले गोश्त का स्वाद।
सजा हुई बंदी बने, क्यों करते फ़रियाद?
*
देर हुई है अत्यधिक, नहीं हुआ अंधेर।
सल्लू भैया सुधरिए, अब न कीजिए देर।।
*
हिरणों की हत्या करी, चला न कोई दाँव।
सजा मिली तो टिक नहीं, रहे जमीं पर पाँव।।
*
नर-हत्या से बचे पर, मृग-हत्या का दोष।
नहीं छिप सका भर गया, पापों का घट-कोष।।
*
आहों का होता असर, आज हुआ फिर सिद्ध।
औरों की परवा करें, नर हो बनें न गिद्ध।।
*
हीरो-हीरोइन नहीं, ख़ास नागरिक आम।
सजा सख्त हो तो मिले, सबक भोग अंजाम ।।
*
अब तक बचते रहे पर, न्याय हुआ इस बार।
जो छूटे उन पर करे, ऊँची कोर्ट विचार।।
*
फिर अपील हो सभी को, सख्त मिल सके दंड।
लाभ न दें संदेह का, तब सुधरेंगे बंड।।
*
न्यायपालिका से विनय करें न इतनी देर।
आम आदमी को लगे, होता है अंधेर।।
*
सरकारें जागें न दें, सुविधा कोई विशेष।
जेल जेल जैसी रहे, तनहा समय अशेष।।
५.४.२०१८
**
दोहा अनुप्रास उर्दू
*
दया-दफीना दे दिया, दस्तफ्शां को दान
दरा-दमामा दाद दे, दल्कपोश हैरान
*
दर पर था दरवेश पर, दरपै था दज्जाल
दरहम-बरहम दामनी, दूर देश था दाल
*
दिलावरी दिल हारकर, जीत लिया दिलदार
दिलफरेब-दीप्तान्गिनी, दिलाराम करतार
*
