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बुधवार, 17 जून 2015

muktika:

मुक्तिका:
मापनी -२१२/२१२/२१२/
संजीव
*
वक्त ने आपसे क्या कहा? 
वक्त से आपने क्या गहा??
आस से श्वास गंधित रही
प्यास पी तृप्त-चुप क्या रहा?
पत्थरों से किनारे रहे
प्यार की धार में क्या बहा?
लूट ले दिल मेरा गम नहीं
तू बसा है यहीं आ अहा.
किस्मतों पे भरोसा किया
निस्बतों ने न क्या-क्या सहा?
वायदों का बगीचा जहां
कायदों का वहीं घर ढहा
दर्द को मर्द ने ही तहा
सर्द हो कर 'सलिल' क्यों दहा?
*

muktika

मुक्तिका:
संजीव
*
तुम गलत पर हम सही कहते रहे हैं 
इसलिए ही दूरियाँ सहते रहे हैं 
.
ज़माने ने उजाड़ा हमको हमेशा
मगर फिर-फिर हम यहीं रहते रहे हैं
.
एक भी पूरा हुआ तो कम नहीं है
महल सपनों के अगिन ढहते रहे हैं
.
प्रथाओं को तुम बदलना चाहते हो
पृथाओं से कर्ण हम गहते रहे हैं
.
बिसारी तुमने भले यादें हमारी
सुधि तुम्हारी हम सतत तहते रहे हैं
.
पलाशों की पीर जग ने की अदेखी
व्यथित होकर 'सलिल' चुप दहते रहे हैं
.
हम किनारों पर ठहर कब्जा न चाहें
इसलिए होकर 'सलिल' बहते रहे हैं. 
*

मंगलवार, 16 जून 2015

doha geet

दोहा गीत: 
संजीव
*
अगर नहीं मन में संतोष 
खाली हो भरकर भी कोष 
*
मन-हाथी को साधिये 
संयम अंकुश मार 
विषधर को सर पर धरें 
गरल कंठ में धार
सुख आये करिए संकोच 
जब पायें तजिए उत्कोच 
दुःख जय कर करिए जयघोष 
अगर नहीं मन में संतोष 
खाली हो भरकर भी कोष 
*
रहें तराई में कदम 
चढ़ना हो आसान 
पहुँच शिखर पर तू 'सलिल'
पतन सुनिश्चित जान 
मान मिले तो गर्व न कर 
मनमर्जी को पर्व न कर 
मिले नहीं तो मत कर रोष 
अगर नहीं मन में संतोष 
खाली हो भरकर भी कोष 
*
१३.६.२०१५
१४ रोहिणी विहार, बिलासपुर 
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

doha

दोहा सलिला:
संजीव
*
जिसे मुहब्बत हो वही, है अ-शोक लें मान
श्री वास्तव में दे उसे, खुद बढ़कर भगवान
*
कंकर में शंकर बसे, देख सके तो देख 
दृष्टिहीन दीपक लिए, कहे तिमिर की रेख
*
कब कैसे किससे कहे, बेला मन की दर्द
सुनें हँसेंगे लोग सब, आह भरेंगे सर्द
*

dwipadi

द्विपदी:
रोज महबूब मत नया देखें
रोज नाज़ो-अदा-हया देखें
*

muktak

मुक्तक:
पीर हँसकर सहे, जो वही पीर है 
धीर धरकर रहे जो, वही वीर है
नाव को थाम ले, दिल में घुस जान ले
पूछिए क्या 'सलिल', बूझिये 'तीर' है
*

muktika: sanjiv

मुक्तिका
संजीव
*
अच्छे दिन आयेंगे सुनकर जी लिये
नोट भी पायेंगे सुनकर जी लिये

सूत तजकर सूट को अपना लिया
फ्लैग फहरायेंगे सुनकर जी लिये

रोज झंडा विदेशी फहरा रहे
मन वही भायेंगे सुनकर जी लिये

मौन साधा भाग, हैं वाचाल अब
भाग अजमायेंगे सुनकर जी लिये

चोर-डाकू स्वांग कर हैं एक अब
संत बन जायेंगे सुनकर जी लिये

बात अंग्रेजी में हिंदी की करें
काग ही गायेंगे सुनकर जी लिये

आम भी जब ख़ास बन लड़ते रहें
लोग पछतायेंगे सुनकर जी लिये
***\

सोमवार, 15 जून 2015

haiku: sanjiv

हाइकु:
संजीव
*
चटनी जैसा
खट्टा मीठा तीखा है
जग-जीवन
*
बेला महकी
बेला चहका, आयी
प्रणय बेला
बेला = लता, मोगरा, समय
*
बेसहारा का
बनकर सहारा
ममता हँसे
*

navgeet: magan man -sanjiv

नवगीत:
बेला
संजीव
*
मगन मन महका
*
प्रणय के अंकुर उगे
फागुन लगे सावन.
पवन संग पल्लव उड़े
है कहाँ मनभावन?
खिलीं कलियाँ मुस्कुरा
भँवरे करें गायन-
सुमन सुरभित श्वेत
वेणी पहन मन चहका
मगन मन महका
*
अगिन सपने, निपट अपने
मोतिया गजरा.
चढ़ गया सिर, चीटियों से
लिपटकर निखरा
श्वेत-श्यामल गंग-जमुना
जल-लहर बिखरा.
लालिमामय उषा-संध्या
सँग 'सलिल' दहका.
मगन मन महका
*
१२.६.२०१५
४०१ जीत होटल बिलासपुर

मंगलवार, 9 जून 2015

dwipadi

द्विपदी :
संजीव
*
लाये मुझे पिलाने पर खुद ही पी रहे हैं 
बोतल दिखा के बोले 'बिन पिए जी रहे हैं.
*
बनाये हैं रेत के महल मैंने अब मुझे भूकंप का कुछ डर नहीं
कद्र जज्बातों की जग में हो न हो उड़ न जायेंगे कि उनके पर नहीं
*

doha: aansu -sanjiv

दोहा का रंग आँसू के संग 
संजीव 
*
आँसू टँसुए अश्रु टिअर, अश्क विविध हैं नाम  
नयन-नीर निरपेक्ष रह, दें सुख-दुःख पैगाम 
*
भाषा अक्षर शब्द नत, चखा हार का स्वाद 
कर न सके किंचित कभी, आँसू का अनुवाद 
*
आह-वाह-परवाह से, आँसू  रहता दूर 
कर्म धर्म का मर्म है, कहे भाव-संतूर 
*
घर दर आँगन परछियाँ, तेरी-मेरी भिन्न 
साझा आँसू  की फसल, करती हमें अभिन्न 
*
आल्हा का आँसू छिपा, कजरी का दृष्टव्य 
भजन-प्रार्थना कर हुआ, शांत सुखद भवितव्य 
बूँद-बूँद बहुमूल्य है, रखना 'सलिल' सम्हाल 
टूटे दिल भी जोड़ दे, आँसू धार कमाल 
*
आँसू शोभा आँख की, रहे नयन की कोर 
गिरे-बहे जब-तब न हो, ऐसी संध्या-भोर 
*
मैं-तुम मिल जब हम हुए, आँसू खुश था खूब 
जब बँट हम मैं-तुम हुए, गया शोक में डूब 
*
आँसू  ने हरदम रखा, खुद में दृढ़ विश्वास
सुख-दुःख दोहा-सोरठा, आँसू है अनुप्रास 
*
ममता माया मोह में, आँसू  करे निवास 
क्षोभ उपेक्षा दर्द दुःख, कुछ पल मात्र प्रवास 
*
आँसू  के संसार से, मैल-मिलावट दूर 
जो न बहा पाये 'सलिल', बदनसीब-बेनूर 
*
 इसे अगर काँटा चुभे, उसको होती पीर 
आँसू  इसकी आँख का, उसको करे अधीर 
*
आँसू  के सैलाब में, डूबा वह तैराक 
नेह-नर्मदा का क़िया, जिसने दामन चाक 
*
आँसू  से अठखेलियाँ, करिए नहीं जनाब 
तनिक बहाना पड़े तो, खो जाएगी आब
*
लोहे से कर सामना, दे पत्थर को फोड़ 
'सलिल' सूरमा देखकर, आँसू  ले मुँह मोड़ 
बहे काल के गाल पर, आँसू बनकर कौन?
राधा मीरा द्रौपदी, मोहन सोचें मौन 
*
धूप-छाँव का जब हुआ, आँसू  को अभ्यास 
सुख-दुःख प्रति समभाव है, एक त्रास-परिहास 
*
सुख का रिश्ता है क्षणिक, दुःख का अप्रिय न चाह 
आँसू का मुसकान सँग, रिश्ता दीर्घ-अथाह 
*
तर्क न देखे भावना, बुद्धि करे अन्याय 
न्याय संग सद्भावना, आँसू  का अभिप्राय 
*
मलहम बनकर घाव का, ठीक करे हर चोट 
आँसू दिल का दर्द हर, दूर करे हर खोट 
*
मन के प्रेशर कुकर में, बढ़ जाता जब दाब 
आँसू  सेफ्टी वाल्व बन, करता दूर दबाव 
*
बहे न आँसू आँख से, रहे न दिल में आह
किसको किससे क्या पड़ी, कौन करे परवाह?
*
आँसू के दरबार में, एक सां शाह-फ़क़ीर 
भेद-भाव होता नहीं, ख़ास न कोई हक़ीर 

dwipadi: aansu -sanjiv

द्विपदियाँ (शे'र)
संजीव
*
आँसू का क्या, आ जाते हैं 
किसका इन पर जोर चला है?
*
आँसू वह दौलत है याराँ
जिसको लूट न सके जमाना
*
बहे आँसू मगर इस इश्क ने नही छोड़ा
दिल जलाया तो बने तिल ने दिल ही लूट लिया 
*

navgeet: sanjiv

नव गीत:
आँसू और ओस
संजीव 'सलिल'


हम आँसू हैं,
ओस बूँद 
मत कहिये हमको... 
*
वे पल भर में उड़ जाते हैं,
हम जीवन भर साथ रहेंगे,
हाथ न आते कभी-कहीं वे,
हम सुख-दुःख की कथा कहेंगे.
छिपा न पोछें हमको नाहक
श्वास-आस सम 
हँस-मुस्का  
प्रिय! सहिये हमको ...
*
वे उगते सूरज के साथी,
हम हैं यादों के बाराती,
अमल विमल निस्पृह वे लेकिन
दर्द-पीर के हमीं संगाती.
अपनेपन को अब न छिपायें,
कभी तो कहें: 
बहुत रुके 
'अब बहिये' हमको...
*
ऊँच-नीच में, धूप-छाँव में,
हमने हरदम साथ निभाया.
वे निर्मोही-वीतराग हैं,
सृजन-ध्वंस कुछ उन्हें न भाया.
हारे का हरिनाम हमीं हैं,
'सलिल' नाद 
कलकल ध्वनि हम  
नित गहिये हमको...
*

muktak: aansu -sanjiv

मुक्तक:
संजीव
*
आँसू-नहाओ तो 
दिल में बसाओ तो
कंकर से शंकर हो 
सर पर चढ़ाओ तो
*
आँसू नहीं नियम बंधन हैं  
आँसू नहीं प्रलय संगम हैं 
आँसू ममता स्नेह प्रेम हैं-
आँसू नहीं चरण-चुम्बन हैं 
*
आँसू ये अगड़े हैं, किंचित न पिछड़े हैं 
गीतों के मुखड़े हैं, दुनिया के दुखड़े हैं 
शबनम के कतरे हैं, कविता की सतरें हैं 
ग़ज़लों की बहरें हैं, सागर से गहरे हैं 
*
चंद पल आँसू बहाकर भूल जाते हैं 
गलत है आरोप, हम गंगा नहाते हैं 
श्राद्ध करते ले ह्रदय के भाव अँजुरी में- 
चादरें सुधियों की चुप मन में तहाते हैं 
शक न उल्फत पर हुआ विश्वास पर शक आपको.
हौसलों पर शक नहीं है, ख्वाब पर शक आपको..
त्रास को करते पराजित, प्रयासों का साथ दे-
आँसुओं पर है भरोसा, हास पर शक आपको..
*

Poetry: Tears -Sanjiv

Poetry: 
Tears of a human
sanjiv 
*
Tears of a human 
Flooded with hope
Mountain of hope
Devine help to cope.


Tears of a human
Stored in the heart.
Controls the brain
Put tension apart.


Tears of a human
Rains in deep sadness.
Flows in the pleasure
Jump high in gladness.


Tears of a human
Cleans the chicks bright.
Cares the eye-beauty
Makes the scene bright.


Tears of a human
Do'nt mean heart broken. 
While keeping silence 
Says yet not spoken.

*

virasat: aansu -prasad

विरासत 
आँसू  
जयशंकर
​ प्रसाद
छिल-छिल कर छाले फोड़े 
मल-मल कर मृदुल चरण से 
धुल-धुल कर बह रह जाते 
आँसू करुणा के कण से

​*
इस हृदय कमल का घिरना
 
अलि अलकों की उलझन में 
आँसू मरन्द का गिरना 
मिलना निश्वास पवन में
*​
चातक की चकित पुकारें 
श्यामा ध्वनि सरल रसीली 
मेरी करुणार्द्र कथा की 
टुकड़ी आँसू से गीली

जो घनीभूत पीड़ा थी 
मस्तक में स्मृति-सी छायी 
दुर्दिन में आँसू बनकर 
वह आज बरसने आयी
*
 
मेरे क्रन्दन में बजती 
क्या वीणा, जो सुनते हो 
धागों से इन आँसू के 
निज करुणापट बुनते हो
*

श्यामल अंचल धरणी का 
भर मुक्ता आँसू कन से 
छूँछा बादल बन आया 
मैं प्रेम प्रभात गगन से
*

शीतल समीर आता हैं 
कर पावन परस तुम्हारा 
मैं सिहर उठा करता हूँ 
बरसा कर आँसू धारा
*
अब छुटता नहीं छुड़ाये 
रंग गया हृदय हैं ऐसा 
आँसू से धुला निखरता 
यह रंग अनोखा कैसा
*
नीचे विपुला धरणी हैं 
दुख भार वहन-सी करती 
अपने खारे आँसू से 
करुणा सागर को भरती
*
उच्छ्वास और आँसू में 
विश्राम थका सोता है 
रोई आँखों में निद्रा 
बनकर सपना होता है
*
अपने आँसू की अंजलि 
आँखो से भर क्यों पीता 
नक्षत्र पतन के क्षण में 
उज्जवल होकर है जीता
*
 

वह हँसी और यह आँसू 
घुलने दे-मिल जाने दे 
बरसात नई होने दे 
कलियों को खिल जाने दे
*

फिर उन निराश नयनों की 
जिनके आँसू सूखे हैं 
उस प्रलय दशा को देखा 
जो चिर वंचित भूखे हैं
​*
संदेश में फोटो देखें
​आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
, 94251 83244
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

सोमवार, 8 जून 2015

dwipadi

द्विपदी:
संजीव 
*
राम का है राज, फ़ौज़ हो न हो 
फ़ौज़दार खुद को ये मन मानता है.

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव 
*
फरफराता उड़ा आँचल
जी गया जी, बजी पायल
खनक कंकण कह गया कुछ
छलकती  नयनों की छागल 
देह में
रह कर विदेहित   
मूर्तिमन्त हुआ मिथक है 
*
बजाता है समय मादल 
नाचता मन मोर पागल 
दामिनी से गले मिलकर 
बरस पड़ता रीत बादल 
भीगकर  
जल बिन्दुओं पर    
रीझता भीगा पथिक है 
*
इंद्र-धनु सी भौंह बाँकी
नयन सज्जित सजन झाँकी
प्रणय माथे पर यकायक 
मिलन बिंदी विहँस टाँकी
काम-शर  
के निशाने पर  
ह्रदय, प्रेयसि ही वधिक है 
*

haiku: sanjiv

हाइकु:
संजीव    
*
हर-सिंगार 
शशि  भभूत नाग 
रूप अपार 
*
रूप को देख 
धूप ठिठक गयी
छवि है नयी 
*

doha: sanjiv

दोहा सलिला:
संजीव 
*
रवि से दिव्य प्रकाश पा, सलिल हुआ संजीव 
इंद्र कृपा पा संग में, खिले अगिन राजीव 
*
रेप किया पकडे गये, जो वे हैं नादान 
बिन पकड़े मंत्री बने, जो वे परम सुजान 
*
खामोशी की सुन सकें, यदि हम-तुम आवाज़ 
दूरी पल में दूर हो, सुनकर दिल का साज़ 
*