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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

धरोहर: मराठी कवि कुसुमाग्रज -संजीव 'सलिल'


धरोहर
:


इस स्तम्भ में विश्व की किसी भी भाषा की श्रेष्ठ मूल रचना देवनागरी लिपि में, हिंदी अनुवाद, रचनाकार का परिचय व चित्र, रचना की श्रेष्ठता का आधार जिस कारण पसंद है. संभव हो तो रचनाकार की जन्म-निधन तिथियाँ व कृति सूची दीजिए. धरोहर में सुमित्रा नंदन पंत, मैथिलीशरण गुप्त, नागार्जुन, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, महीयसी महादेवी वर्मा, स्व. धर्मवीर भारती जी तथा उर्दू के युगकवि ग़ालिब के पश्चात् अब आनंद लें मराठी के ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त कविवर कुसुमाग्रज की रचनाओं का।

८. स्व.कुसुमाग्रज 
चित्र-चित्र स्मृति: (विष्णु वामन शिरवाडकर)







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रचना संसार:


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प्रतिनिधि रचना:
क्रांतीचा जयजयकार
कुसुमाग्रज
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(अन्नत्याग करून मृत्यूंच्या दारात पूल टाकताना राजबन्ध्यांच्या ओठावर असलेच गाणे स्फूरळे नसेळ काय?)
गर्जा जयजयकार क्रांतीचा गर्जा जयजयकार .
अन वज्रांचे छातीवरती ध्या झेलून प्रहार..
*
खळखळुद्याया अदय  श्रृंखळा, हातापा यांत.
पोळादाची काय तना मरणाच्या दारात?
सर्पांना उद्दाम, आवळा कसूनिया पाश.
पिचेल मनगट परी उरातीळ अभंग आवेश.
तडिता-घाते कोसळेळ का तारांचा संभार.
कधीही तारांचा संभार
गर्जा जयजयकार क्रांतीचा गर्जा जयजयकार .

कृद्ध भूम पोटात घाळु द्या खुशाल थैमान.
कुरतडु द्या आतडी करुद्या खताचे पान.
संहारक काळी, तुज देती बलीच आव्हान.
बळशाळी मरणाहुन आहे अमुचा अभिमान.
मृत्युंजय आम्ही! आम्हांळा कसळे कारागार.
अहि हे कसळे कारागार.
गर्जा जयजयकार क्रांतीचा गर्जा जयजयकार .
*
पदोपदी पसरून निखारे आपुल्याच हाती.
होऊनिया बेहोष धावळो ध्येयपठावरती.
कधि न थांबळो विश्रांतीस्तव, पाहिळे न मागे.
बांधु न शकळे प्रीतीचे वा कीर्तीचे धागे.
एकच तारा समोर आणिक पायतळी अंगार.   
होता पायतळी अंगार.
गर्जा जयजयकार क्रांतीचा गर्जा जयजयकार .
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श्वासांनो जा वायूसंगे ओलांडुनि भिंत.
अन आईळा कळवा अमुच्या हृदयातीळ खंत.
सांगा वेडी तुझी मुळेही या अंधारात.
बद्ध करांनी अखेरचा तुज करिती प्रणिपात.
तुझ्या मुक्तीचे एकच होते वेड परी अनिवार.
तयांना वेड परी अनिवार.
गर्जा जयजयकार क्रांतीचा गर्जा जयजयकार .
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नाचविता ध्वज तुझा गुंतले श्रृंखळेत हात.
तुझ्या यशाचे पवाड गाता गळ्यात ये तात.
चरणांचे तव पूजन केळे म्हणुनी गुन्हेगार.
देता जीवन-अर्ध्य तुळा ठरलो वेडे पीर.
देशिळ ना पण तुझ्या कुशीचा वेड्यांना आधार.
आई वेड्यांना आधार.   
गर्जा जयजयकार क्रांतीचा गर्जा जयजयकार .
*
कशास आई, भिजविसी डोळे, उजळ तुझे भाळ.
रात्रीचा गर्भात उद्याचा असे उषःकाळ.
सरणावरती आज आनुची पेटताच प्रेते.
उठतिळ त्या ज्वालांतुन भावी क्रांतीचे नेते.
लोहदंड तव पायामधळे खळाखळा तुटणार.
आई, खळाखळा तुटणार.
गर्जा जयजयकार क्रांतीचा गर्जा जयजयकार .
*
आता कर ओंकारा, तांडव गिळावया घास.
नाचत गर्जत टाक बळींच्या गळयांवरी फास.
रक्त-मांस लुटण्यास गिश्चाडे येठ देत क्रूर.
पहा मोकळे केळे आता त्यासाठी ऊर.
शरिरांचा कर सुखेनैव या सुखेनैव संहार. 
मरणा सुखेनैव संहार.
गर्जा जयजयकार क्रांतीचा गर्जा जयजयकार .
*
हिंदी काव्यानुवाद: संजीव 'सलिल'
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(अन्न त्याग पग मृत्यु-द्वार की ओर बढ़ाते
राजबंदियों के अधरों पर गूंजा हो यह गीत)
*
गूंजा जय-जयकार क्रांति का गूंजा जय-जयकार.
हँसकर सीने पर झेलेंगे हम सब वज्र-प्रहार..
*
याद दिलाते बंधन, करती अदय श्रृंखला खन-खन.
कौन पुकार सुने फौलादी मृत्यु हुई जब संगिन??
यह विषधर उद्दाम भले कितना ही कस ले पाश.
भुजा भंग हो, भंग न उर-आवेश तनिक हो काश..
बिजली गिरे, न विचलित होता तारों का संसार.
अविचलित तारों का संसार.
गूंजा जय-जयकार क्रांति का गूंजा जय-जयकार.
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क्षुधा क्रुद्ध हो भरे उदर में कितने भी तूफ़ान.
असरी अंतड़ी ले कुरेद या करे रक्त का पान..
हे विध्वंसक काली तेरा बली करे आव्हान.
नहीं मृत्यु का किंचित भी भय, है हमको अभिमान..
हम मृत्युंजय, रोक सकेगा कैसा कारागार?
कहो तो कैसा कारागार?
गूंजा जय-जयकार क्रांति का गूंजा जय-जयकार.
*
अपने ही हाथों पग-पग पर सुलगाते अंगार.
बेसुध हो बढ़ते जाते, मंजिल की सुनें पुकार..
कभी न पीछे मुड़कर देखा, किया नहीं विश्राम.
प्रेम, कीर्ति, यश का बंधन भी तनिक न पाया थाम..
अपना लक्ष्य हुआ है हमको पैर तले अंगार. 
हमको पैर तले अंगार.
गूंजा जय-जयकार क्रांति का गूंजा जय-जयकार.
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श्वास-श्वास मिल साथ पवन के लांघेंगी दीवार.
दर्द हमारे दिल का पहुँचा दे माता के द्वार..
अन्धकार की चादर ओढ़े चले झूमकर लाल.
हाथ जोड़ अंतिम प्रणाम करते है नत कर भाल..
धुन तेरी मुक्ति की उनको सदा रही अनिवार.
मैया सदा रही अनिवार.
गूंजा जय-जयकार क्रांति का गूंजा जय-जयकार.
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तेरा ध्वज लहराया, चाहे पडी हथकड़ी हाथ.
गले डाल फांसी का फंदा, गीत गाये तव मात..
गुनहगार कहलाये तेरे पदपद्मों को पूजा.
जीवन-अर्ध्य समर्पित तुझको, लक्ष्य न कोई दूजा..
तेरे लालों का संबल है बस तेरा आधार.
माता बस तेरा आधार.
गूंजा जय-जयकार क्रांति का गूंजा जय-जयकार.
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मैया! क्यों नम करतीं आँखें? कर गर्वोन्नत भाल.
निशा-गर्भ से ही निकलेगा कल का ऊषा काल..
जहाँ हमारी चिता जलेगी भड़क उठेगी ज्वाला.
भावी क्रांति जन्म ले बदलेगी कल आनेवाला..
फौलादी बेड़ी पाँवों की, टूटेगी इस बार.
आई रे! टूटेगी इस बार.
गूंजा जय-जयकार क्रांति का गूंजा जय-जयकार.
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हे ओंकार! करो अब तांडव काँप उठे नभ-छोर.
जो बलवान गले में उसके हो फांसी की डोर..
गिद्ध लगायें भोग रक्त-मज्जा का होवें तृप्त.
कतरा-कतरा ले जाएँ किंचित न रहें अतृप्त..
मृत्यु देव! इस नश्वर तन का ग्रहण करें उपहार.
रे माई! रहण करें उपहार.
गूंजा जय-जयकार क्रांति का गूंजा जय-जयकार.
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"Swapnachee Samaptee" (स्वप्नाची समाप्ती).

"ध्येय, प्रेम, आशा यांची
होतसे का कधी पूर्ती
वेड्यापरी पूजातो या
आम्ही भंगणाऱ्या मूर्ती !...

Ideals, love, hope
Are they ever achieved
But we still worship these
brittle idols !...

...काढ सखे, गळ्यातील
तुझे चांदण्याचे हात
क्षितिजाच्या पलीकडे
उभे दिवसाचे दूत....

...girl-friend remove your star-laden hands
from around my neck
emissaries of the day
are standing beyond horizon....

...होते म्हणून स्वप्न एक
एक रात्र पाहिलेले
होते म्हणून वेड एक
एक रात्र राहिलेले....

...there was a dream
Dreamt for a night
there was a folly
that lasted for a night...

...ओततील आग जगी
दूत त्याचे लक्षावधी
उजेडात दिसू वेडे
आणि ठरू अपराधी.

...His million emissaries
will pour fire over the world
Will be seen crazy in daylight
and judged guilty."

(from 'विशाखा' 'Vishakha', 1942).

He wrote this poem in 1936 when he was just 24. World had seen one world war and was on the brink of another.
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

मन्त्र विज्ञान: संतोष भाऊवाला

मन्त्र विज्ञान



संतोष भाऊवाला
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शब्दों की ध्वनि का अलग-अलग अंगों पर एवं वातावरण पर असर होता है। कई शब्दों का उच्चारण कुदरती रूप से होता है। आलस्य के समय कुदरती आ... आ... होता है। रोग की पीड़ा के समय ॐ.... ॐ.... का उच्चारण कुदरती ऊँह.... ऊँह.... के रूप में होता है। यदि कुछ अक्षरों का महत्त्व समझकर उच्चारण किया जाय तो बहुत सारे रोगों से छुट...कारा मिल सकता है। वैज्ञानिक भी भारतीय मंत्र विज्ञान की महिमा जानकर दंग रह गये हैं।


'अ' उच्चारण से जननेन्द्रिय पर अच्छा असर पड़ता है।

  'आ' उच्चारण से जीवनशक्ति आदि पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। दमा और खाँसी के रोग में आराम मिलता है, आलस्य दूर होता है।

  'इ' उच्चारण से कफ, आँतों का विष और मल दूर होता है। कब्ज, पेड़ू के दर्द, सिरदर्द और हृदयरोग में भी बड़ा लाभ होता है। उदासीनता और क्रोध मिटाने में भी यह अक्षर बड़ा फायदा करता है।

'ओ' उच्चारण से ऊर्जाशक्ति का विकास होता है।

'म' उच्चारण से मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं। शायद इसीलिए भारत के ऋषियों ने जन्मदात्री के लिए 'माता' शब्द पसंद किया होगा।

'ॐ' का उच्चारण करने से ऊर्जा प्राप्त होती है और मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं। मस्तिष्क, पेट और सूक्ष्म इन्द्रियों पर सात्त्विक असर होता है।

ह्रीं 'ह्रीं' उच्चारण करने से पाचन-तंत्र, गले और हृदय पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

ह्रं 'ह्रं' उच्चारण करने से पेट, जिगर, तिल्ली, आँतों और गर्भाशय पर अच्छा असर पड़ता है।
 
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गीत शब्द तेरे, शब्द मेरे ... ललित वालिया 'आतिश'


मेरी पसंद: गीत 


 

शब्द तेरे, शब्द मेरे ...
 
ललित वालिया  'आतिश'
 *
शब्द तेरे, शब्द मेरे ...
परिस्तानी बगुले से,
लेखनी पे नाच-नाच;
पांख-पांख नभ कुलांच ...
मेरी दहलीज़, कभी ...
तेरी खुली खिडकियों पे 
ठहर-ठहर जाते हैं 
लहर-लहर जाते हैं ...
शहर कहीं  जागता है, शहर कहीं  सोता है
और कहीं हिचकियों का जुगल बंद होता है ||
 
'भैरवी' से स्वर उचार ...
बगुले से शब्द-पंख 
पन्नों पे थिरकते से
सिमट सिमट जाते हैं
कल्पनाओं से मेरी...
लिपट लिपट जाते हैं |
गो'धूली बेला  में ...
शब्द सिमट जाते हैं ...
सिंदूरी थाल कहीं झील-झील  डुबकते  हैं ..
और कहीं मोम-दीप बूँद-बूँद सुबकते हैं ||
 
होठों के बीच दबा 
लेखनी की नोक तले 
मीठा सा अहसास 
शब्द यही तेरा है | 
अंगुली के पोरों पे
आन जो बिरजा है,
बगुले सा 'मधुमास' ...
आभास तेरा है | 
मीत कहो, प्रीत कहो, शब्द प्राण छलते हैं
लौ  कहीं  मचलती है, दीप कहीं जलते हैं ||
 
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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

दोहा सलिला: संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
१. ठेस:
ठेस लगी दिल को बहुत, देखा- करें विवाद.
संसद में भेजा जिन्हें, करने शुभ संवाद..

२. उम्मीद:
आशा पर ही टँगा है, आसमान- सच मान.
निर्बल को करता सबल, प्रभु का यह वरदान..

३. सौन्दर्य:
दिल में बस बेबस करें, मृगनयनी के नैन.
चन्द्रमुखी की छवि विमल, छीने मन का चैन..

४. आश्चर्य:
हाय! ठगा सा रह गया, विस्मय भी है खूब.
विषमय देखा अमिय को, आश्चर्य में डूब..

५. हास्य:
ब्यूटीपार्लर से मिला, उनको रूप-निखार.
कोयल पर चूना गिरा, मरु में छायी बहार..

६. वक्रोक्ति:
 कौन? कामिनी- तो नहीं, करतीं क्यों कुछ काम?
वामा? तो अनुकूल हो, हरदम रहतीं वाम..

७. सीख:
मत पूछो है देश का, क्या तुम पर उपकार?
आगे बढ़ कर्तव्य निज, कर लो अंगीकार..

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गीत: रचें नयन में आ राँगोली -राकेश खंडेलवाल

कसौटी पर कंचन:
गीत:  

रचें नयन में आ राँगोली

राकेश खंडेलवाल 
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दीवाली के जले दियों की किरन किरन में तुम प्रतिबिम्बित
रंग तुम्हारी अँगड़ाई से पाकर के सजती है होली

तुम तो तुम हो तुलनाओं के लिये नहीं है कुछ भी संभव
कचनारों में चैरी फूलों में, चम्पा में आभा तुमसे
घटा साँवरी,पल सिन्दूरी, खिली धूप का उजियारापन
अपना भाग्य सराहा करते पाकर के छायायें तुमसे
 
उगे दिवस की वाणी हो या हो थक कर बैठी पगडंडी
जब भी बोली शब्द कोई तो नाम तुम्हारा ही बस बोली
 
फ़िसली हुई पान के पत्तों की नोकों से जल की बूँदें
करती हैं जिस पल प्रतिमा के चरणों का जाकर प्रक्षालन
उस पल मन की साधें सहसा घुल जाया करतीं रोली में
और भावनायें हो जातीं कल्पित तुमको कर के चन्दन
 
अविश्वास का पल हो चाहे या दृढ़ गहरी हुई आस्था
अर्पित तुमको भरी आँजुरी, करे अपेक्षा रीती झोली

आवश्क यह नहीं सदा ही खिलें डालियों पर गुलमोहर
आवश्यक यह नहीं हवा के झोंके सदा गंध ही लाये
यह भी निश्चित नहीं साधना पा जाये हर बार अभीप्सित
यह भी तय कब रहा अधर पर गीत प्रीत के ही आ पाय
 
लेकिन इतना तय है प्रियतम, जब भी रजनी थपके पलकें
तब तब स्वप्न तुम्हारे ही बस रचें नयन में आ राँगोली
 
*****

ग़ज़ल: मन्सूर उस्मानी

ग़ज़ल
"मन्सूर" उस्मानी
*
ग़म उठाओगे मुस्कुराओगे
लेकिन अंदर से टूट जाओगे।

जब ये दुनिया तुम्हें सतायेगी,
सारी तहज़ीब भूल जाओगे।

अब तो आँखें भी बुझ गई अपनी,
और कितना हमें रूलाओगे।

रोशनी के फरेब में आकर,
और कितने दिये बुझाओगे।

और कुछ दिन का यह झमेला है,
फिर हमें भी यहां न पाओगे।

याद आयेंगे हम बहुत "मन्सूर",
जब कोई गीत गुनगुनाओगे।।

*****    

बुधवार, 26 सितंबर 2012

दोहे: शशि पाधा

दोहे:
शशि पाधा 
*

कब बोलें कब चुप रहें, कैसे कह दें बात?

उहापोह के बीच में, व्यर्थ गँवाई रात..

रिश्ते तो पनपे नहीं, सींचा बारम्बार.

बीजों के इस हाट में, खोटा हर व्यापार..

चाहे जिनसे मेल मन, वे ही हैं अनमेल.

कैसे खेलें रोज हम, रिश्तों का शुभ खेल?

माँगे से मिलता नहीं, जग में सबको मान.

खरी बात तो यह रही, मिला नहीं अपमान..

गुठली मीठी आम का, उपजा पेड़ बबूल.

बदल गई थी पोटली , कितनी भारी भूल..

घुटी-घुटी सी सांस है, सहमी सी है आँख.

बीहड़ बीजी क्यारियां, खिलती कैसे पाँख?

परबस कोई क्यों रहे?, हो न महल का राज.

टूटा छप्पर घर हुआ, सर पर श्रम का ताज..

पाँव तले धरती नहीं, छोड़ा जब से देस.

माटी सोंधी है नहीं, रुचा नहीं परदेस..

सुख बाँटे चुप दुःख सहे, जीवन की यह रीत.

दुर्गम पथ भी सहज हो, हाथ गहे मनमीत..
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शशिपाधा@जीमेल।कॉम