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सोमवार, 24 सितंबर 2012

धरोहर: २ ~ मैथिलीशरण गुप्त

धरोहर :
इस स्तम्भ में विश्व की किसी भी भाषा की श्रेष्ठ मूल रचना देवनागरी लिपि में, हिंदी अनुवाद, रचनाकार का परिचय व चित्र, रचना की श्रेष्ठता का आधार जिस कारण पसंद है. संभव हो तो रचनाकार की जन्म-निधन तिथियाँ व कृति सूची दीजिए. धरोहर में सुमित्रानंदन पंत जी के पश्चात् अब आनंद लें मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाओं का। 

२.स्व.मैथिलीशरण गुप्त 

प्रस्तुति :
*
नर हो न निराश करो मन को


धरोहर: २ 
नर हो न निराश करो मन को




~  मैथिलीशरण गुप्त जी*
नर हो न निराश करो मन को...
*
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो ।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो ।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।।
*
संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना ।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।।
*
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहां
फिर जा सकता वह सत्त्व कहां
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो ।
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।।
*
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे ।
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

*
कैकेयी का पश्चाताप

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मातृभूमि

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दोहा सलिला: गले मिलें दोहा यमक -संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
गले मिलें दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
जड़ तक हम लौटें मगर, जड़ न कभी हों राम.
चेतनता को दूर कर, भाग्य न करना वाम..
*
तना रहे जो तना सा, तूफां जाता झेल.
डाल- डाल फल-फूल हँस, लखे भाग्य का खेल..
*
फूल न ज्यादा जोड़कर, कहे फूल दे गंध.
झर जाना है एक दिन, तब तक लुटा सुगंध..
*
हुई अपर्णा शाख जब, देख अपर्णा मौन.
बौराई- बौरा मिलें, इसका बौरा कौन??
*
सृजन-साधना का सु-फल, फल पा हर्षा वृक्ष.
सका साध ना बाँटकर, हुआ संत समकक्ष..
*
व्यथित कली तजकर कली, करती मिली विलाप.
'त्याग बेकली', भ्रमर ने कहा, ' न मिलना पाप..'
*
खिल-खिल हँसती प्रेयसी, देख पिया को पास.
खिल-खिल पड़ती कली लख, भ्रमर बुझाता प्यास..
*
अधर न रहकर अधर पर, टिकी बाँसुरी भीत.
साँस-उसाँस मिलीं गले, सुर से गूँजा गीत.. 
*
सर गम को कर कोशिशें, सुर-सरगम को साध.
हुईं सफल उत्साह वर, खुशियाँ बाँट अगाध..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

कविता: प्रेम का अंकुर --संतोष भाऊवाला

कविता:
 
 
प्रेम का अंकुर
 
 
संतोष भाऊवाला 
 *
जिंदगी गर जाफरानी लगे
पूस की धूप सी सुहानी लगे  
 लगे अमन चैन लूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
भावों का सलिल बहने लगे
शब्दों का अभाव रहने लगे
सब्र का बाँध टूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
कुछ करने का न मन करे
तन्हाई में खुद से बाते करें
जग से नाता छूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है

बढ़ने घटने लगे जब साँसों का स्पंदन
लगे प्यारा बस प्यार का ही बन्धन
रोम रोम में घुलता अहसास अनूठा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
मन जब ईश्वर में रम जाये
उसके प्रेम में बंध जाये
माया मोह झूठा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
 

धरोहर:१ स्व. सुमित्रानन्दन पन्त

धरोहर :
इस स्तम्भ में विश्व की किसी भी भाषा की श्रेष्ठ मूल रचना देवनागरी लिपि में, हिंदी अनुवाद, रचनाकार का परिचय व चित्र, रचना की श्रेष्ठता का आधार जिस कारण पसंद है. संभव हो तो रचनाकार की जन्म-निधन तिथियाँ व कृति सूची दीजिए.

१.स्व.सुमित्रानन्दन पन्त

प्रस्तुति : संजीव वर्मा 'सलिल'
*





















*   
हरी बिछली घास

हरी बिछली घास.
डोलती कलगी छरहरे बाजरे की.
अग्र मैं तुमको
ललाती साँझ के नभ की अकेली तारिका 
अब नहीं कहता, या
शारद के भोर की नीहार-न्हाई कुंई,
टटकी कली चम्पे की, वगैरह तो
नहीं कारण कि मेरा हृदय
उथला या कि सूना है,
या कि मेरा प्यार मैला है.
बल्कि केवल यही: ये उपमान मैले हो गये हैं.
देवता इन प्रतीकों के कर गये हैं कूच.
कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है.
मगर- क्या तुम नहीं पहचान पाओगी:
तुम्हारे रूप के- तुम हो, निकट हो, इसी जादू के-
निजी किसी सहज, गहरे बोध से,
                              
किस प्यार से मैं कह रहा हूँ.
अगर मैं यह कहूँ-
बिछ्ली घास हो तुम, लहलहाती हवा में
                                     कलगी छरहरे बाजरे की.
आज हम शहरातियों को
पालतू मालंच पर सँवरी जुही के फूल से
सृष्टि के विस्तार का, ऐश्वर्य का, औदार्य का
कहीं सच्चा, कहीं प्यारा, एक प्रतीक बिछली घास है.
या शारद की साँझ के सूने गगन की पीठिका पर
दोलती कलगी- अकेले बाजरे की.
और सचमुच इन्हें जब-जब देखता हूँ
यह कुहरा वीरान संसृति का घना हो सिमट आता है-
और मैं एकांत होता हूँ समर्पित
शब्द जादू हैं
मगर क्या समर्पण कुछ भी नहीं है?

*
*
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शनिवार, 22 सितंबर 2012

जोहानसबर्ग में नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 2012 विवेक रंजन श्रीवास्तव


नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 2012 जोहानसबर्ग
विवेक रंजन श्रीवास्तव


बैरिस्टर मोहनदास को  महात्मा गांधी बना देनेवाले  दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग शहर में नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 22 से 24 सितंबर २०१२ को सैंडटन कन्वेशन सेन्टर में आयोजित है जिसे विश्व हिन्दी सम्मेलन के तीन दिनों के लिए 'गांधी ग्राम' का नाम दिया जाएगा। हिन्दी ३० से अधिक देशों  में ८० करोड़ लोगों की भाषा  है. सम्मेलन का उद्घाटन भारत और दक्षिण अफ्रीका संयुक्त रूप से करेंगे। सरकारी रूप से आयोजित होनेवाला हिन्दी पर केंद्रित यह महत्वपूर्ण आयोजन है।. सम्मेलन हर चौथे वर्ष आयोजित किया जाता है।

सम्मेलन में विश्व के विविध देशों से गैर हिन्दी भाषी ‘हिन्दी विद्वानों’ सहित लगभग 700 प्रतिनिधि सम्मिलित होना संभावित है। इनमें से तकरीबन 400 प्रतिनिधि खुद के खर्च पर इस सम्मेलन में भाग लेंगे जो उनके हिन्दी प्रेम को दर्शाता है।

पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के सहयोग से  1975 में नागपुर में संपन्न हुआ था जिसमें विनोबाजी ने हिन्दी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित किये जाने हेतु संदेश भेजा था। उसके बाद मॉरीशस, ट्रिनिदाद एवं टोबैको, लंदन, सूरीनाम में ऐसे सम्मेलन हुए।  इनमें से कम से कम चार सम्मेलनों में संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप स्थान दिलाया जाने संबंधी प्रस्ताव पारित हुए पर आज भी हिन्दी को यह स्थान दिलाया नहीं जा सका है।

भाषा की अस्मिता और हिंदी का वैश्विक संदर्भ ९ वें सम्मेलन की मुख्य विषय-वस्तु है। सम्मेलन में नौ शास्त्रीय विवेचन सत्र व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा तथा प्रर्दशनियां लगाई जाएंगी।  गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की ओर से महात्मा गांधी की लिखी पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी। सम्मेलन स्थल का नाम गांधीग्राम रखा गया है  और विभिन्न सत्र  शांति, सत्य, अहिंसा,नीति और न्याय- नेलसन मंडेला सभागार सहित अन्य सभागारों में संपन्न होंगे। 

वैश्विक स्तर पर भारत की राजभाषा हिंदी के प्रति जागरुकता पैदा करने, हिन्दी की विकास यात्रा का मूल्यांकन करने, हिन्दी साहित्य के प्रति सरोकारों को मजबूत करने, लेखक-पाठक का रिश्ता प्रगाढ़ करने व जीवन के विवि‍ध क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 1975 से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की श्रृंखला आरंभ हुई है। हिन्दी को वैश्विक सम्मान दिलाने की इस परिकल्पना को सबसे पहले पूर्व प्रधानमन्त्री स्व.श्रीमती इंदिरा गांधी ने मूर्त रूप दिया। यह सम्मेलन प्रवासी भारतीयों के ‍लिए बेहद भावनात्मक आयोजन होता है। क्योंकि ‍भारत से बाहर रहकर हिन्दी के प्रचार-प्रसार में वे जिस समर्पण और स्नेह से भूमिका निभाते हैं उसकी मान्यता और प्रतिसाद उन्हें इसी सम्मेलन में मिलता है।

पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन 1975

पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में 10 जनवरी से 14 जनवरी 1975 तक नागपुर में आयोजित किया गया था। राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष उपराष्ट्रपति श्री बी.डी. जत्ती थे। पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन का बोधवाक्य था- 'वसुधैव कुटुंबकम'। इस सम्मेलन में 30 देशों के कुल 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।  सम्मेलन में हिन्दी भाषा के लिए पारित किए गए विचार थे-

1- संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाए।
2- वर्धा में विश्व हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना हो।
3- विश्व हिन्दी सम्मेलनों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अत्यंत विचारपूर्वक योजना निर्माण की जाए।

दूसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन 1976

दूसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में हुआ। 28 अगस्त से 30 अगस्त 1976 तक चले इस विश्व सम्मेलन के आयोजक मॉरीशस के प्रधानमंत्री डॉ शिवसागर रामगुलाम थे। सम्मेलन में भारत से केबिनेट मंत्री डॉ. कर्ण सिंह के नेतृत्व में 23 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। भारत के अतिरिक्त सम्मेलन में 17 देशों के 181 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

तीसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन 1983

तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन भारत की राजधानी दिल्ली में 28 अक्टूबर से 30 अक्टूबर 1983 तक विश्व ख्यात छायावादी कवयित्री महीयसी महादेवी वर्मा के मुख्यातिथ्य में संपन्न हुआ था। इस सम्मेलन की राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष डॉ. बलराम जाखड़ थे। 'भारत के सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के कामकाज की स्थिति उस रथ जैसी है जिसमें घोड़े आगे की बजाय पीछे जोत दिए गए हों।' उक्त विचार हिन्दी की सुप्रसिद्ध संवेदनशील कवियत्री महादेवी वर्मा ने तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन के समापन अवसर पर व्यक्त किए थे। सम्मेलन में कुल 6,566 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिनमें विदेशों से आए 260 प्रतिनिधि शामिल थे।

चौथा विश्व हिन्दी सम्मेलन 1993

चौथे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन 2 दिसंबर से 4 दिसंबर 1993 तक पुन: 17 साल बाद मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित किया गया। आयोजन की जिम्मेदारी मॉरीशस के कला, संस्कृति मंत्री मुक्तेश्वर चुनी ने निभाई थी। भारत के प्रतिनिधिमंडल के नेता थे मधुकर राव चौधरी। तत्कालीन गृह राज्यमंत्री श्री रामलाल राही प्रतिनिधिमंडल के उपनेता थे। इसमें 200 विदेशी प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

पांचवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 1996

पांचवां विश्व हिन्दी सम्मेलन त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में 4 अप्रैल से 8 अप्रैल 1996 तक में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले 17 सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल के नेता अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री माता प्रसाद थे। सम्मेलन का केन्द्रीय विषय थे- 'प्रवासी भारतीय और हिन्दी, हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास, कैरेबियाई द्वीपों में हिन्दी की स्थिति एवं कप्यूटर युग में हिन्दी की उपादेयता'। अन्य देशों के 257 प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए।

छठा विश्व हिन्दी सम्मेलन 1999

लंदन में 14 सितंबर से 18 सितंबर 1999 तक आयोजित छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन के अध्यक्ष थे डॉ. कृष्ण कुमार और संयोजक डॉ.पद्मेश गुप्त। सम्मेलन का केंद्रीय विषय था- 'हिन्दी और भावी पीढ़ी'। विदेश राज्यमन्त्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। प्रतिनिधिमंडल के उपनेता थे प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ.विद्यानिवास मिश्र। इस सम्मेलन का ऐतिहासिक महत्त्व है क्योंकि यह संत कबीर की छठी जन्मशती तथा हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने के 50वें वर्ष में आयोजित किया गया था। सम्मेलन में 21 देशों के 700 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें भारत से 350 और ब्रिटेन से 250 प्रतिनिधि शामिल हुए।

सातवां विश्व हिन्दी सम्मेलन :

5 जून से 9 जून 2003 तक सुदूर सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हुआ। 21वीं सदी में आयोजित इस प्रताहम विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजक थे जानकीप्रसाद सिंह। केन्द्रीय विषय था- 'विश्व हिन्दी: नई शताब्दी की चुनौतियां'। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश राज्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने किया। भारत के 200 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें 12 से अधिक देशों के हिन्दी विद्वान शामिल हुए।

आठवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 2007 

आठवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 13 जुलाई से 15 जुलाई 2007 तक संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी न्यूयॉर्क में हुआ। इस सम्मेलन का केंद्रीय विषय था -विश्व मंच पर हिन्दी। इसका आयोजन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा किया गया।

नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन 2012

इसी कड़ी में 22 सितंबर से 24 सितंबर 2012 तक, दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहांसबर्ग में होने जा रहा है सम्मेलन से हिन्दी प्रेमियों को बहुत आशायें हैं .

वैश्विक स्तर पर हिन्दी सम्मेलनों के आयोजन के समानान्तर प्रयास

हिन्दी प्रेमियो के द्वारा निजी व्यय व व्यक्तिगत प्रयासों से सरकारी आयोजनो के साथ ही समानान्तर प्रयास भी किये जा रहे हैं। इसी कड़ी में दुबई में ६ वाँ अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन फरवरी २०१३ में आयोजित किया जा रहा हैजिसमें आप भी स्वयं के व्यय पर भाग ले सकते हैं। निजी स्तर पर ऐसे पांच वैश्विक अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन रायपुर, बैंकाक, मारीशस, पटाया और ताशकंद (उज्बेकिस्तान) में नों के सफलतापूर्वक आयोजन के रूप में किये जा चुके हैं। आगामी 6 वाँ अतंरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन 12 फरवरी से 19 फरवरी, 2013 तक संयुक्त अरब अमीरात (दुबई, शारजाह, आबूधाबी, अज़मान आदि) में (सृजन-सम्मान, ओएनजीसी-देहरादून, निराला शिक्षण समिति-नागपुर, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, अभिव्यक्ति डॉट कॉम, गुरुघासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, छत्तीसगढ़, मिनीमाता फाउंडेशन, छत्तीसगढ) के सहयोग से किया जा रहा है। सम्मेलन में देश-विदेश के हिंदी विद्वान, अध्यापक, लेखक, भाषाविद्, शोधार्थी, संपादक, पत्रकार, टेक्नोक्रेट, बुद्धिजीवी, हिंदीसेवी संस्थाओं के सदस्य, हिन्दी-प्रचारक व हिंदी ब्लागर भाग लेंगे। सम्मेलन का उद्देश्य स्वंयसेवी आधार पर हिंदी-संस्कृति का प्रचार-प्रसार, भाषायी सौहार्द्रता तथा सामूहिक रूप से सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन सहित एक दूसरे से अपरिचित सृजनरत रचनाकारों के मध्य परस्पर रचनात्मक तादात्म्य के लिए अवसर उपलब्ध कराना है। इस तरह के प्रयास हिन्दी के माध्यम से सरकारी दूत बनकर व्यक्तिगत हित साधने वाले स्वार्थी तत्वों पर एक करारा प्रहार भी हैं और समर्पित हिन्दी प्रेमियों का एक यज्ञ भी।

सम्मेलन में हिंदी का सामर्थ्य (संदर्भः भाषा, शिल्प, संप्रेषण, साहित्य, कथा-साहित्य, कविता, उपन्यास, छंद, लघुकथा, निबंध, ललित निबंध, आलोचना, बाल साहित्य, ग़ज़ल, लघुपत्रिका, समकालीन लेखन, अनुवाद, संस्कृति, वैचारिकी, दलित विमर्श, महिला विमर्श, आदिवासी विमर्श, समकालीन संकट, लोकतंत्र, कलाचिंतन, क्लासिकी, रंगमंच और मंच की भाषा, धर्म, प्रौद्योगिकी, खेल, विज्ञान, अर्थतंत्र, ज्ञान-विज्ञान और रोज़गार, शिक्षा, सिनेमा, पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता, नया मीडिया, ब्लॉगिंग, इंटरनेट, उपयोगिता, व्यवहार, विदेश में शिक्षा या प्रचलन आदि के परिप्रेक्ष्य में) आदि विषयों पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी / सेमीनार होंगे।

अन्य महत्वपूर्ण आयोजनों में  भारतीयम् (भारतीय लोक संगीत की प्रस्तुति-अहफाज रशीद / चयन-मानस),  कत्थक (प्रस्तुति- चर्चित कोरियोग्राफर श्रीमती चित्रा जांगिड, जयपुर),  स्थानीय नाट्य मंडली द्वारा नाट्य मंचन (संयोजन- पूर्णमा वर्मन),  अंतरराष्ट्रीय कविता-पाठ आबूधाबी (स्थानीय संयोजन- पूर्णिमा वर्मन ), अंतरराष्ट्रीय लघुकथा पाठ, अंतराष्ट्रीय गीत पाठ, कृतियों का विमोचन (सहभागी रचनाकारों की ), चयनित रचनाकार को निराला काव्य सम्मान (51 हजार की राशि ), चयनित कवि को मिनीमाता फाऊंडेशन सम्मान (21 हजार की राशि), चयनित 11 रचनाकारों को सृजनगाथा-2013 सम्मान, नवगीत पोस्टर प्रदर्शनी (संयोजन-पूर्णिमा वर्मन, आबूधाबी), युएई के प्रतिष्ठित रचनाकारों का सम्मान, प्रतिभागी रचनाकारों का अंलकरण आदि भी प्रस्तावित हैं .
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ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर 

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

रचनाकार परिचय 1. ललित अहलूवालिया 'आतिश'


रचनाकार परिचय 1. 
नाम        : ललित अहलूवालिया 'आतिश'
जन्म       :  नई-देहली, भारत। निवास     :  न्यू-यॉर्क (USA).
शिक्षा      :  बी.ऐ. ऑनर्स (हिन्दी) देहली, एम्.ऐ. (हिन्दू-धर्म दर्शनशास्त्र) आगरा, 
व्यवसाय : Free-Lance  Writer / Director / Music composer.
3 Segment Work shop at Film-craft Philadelphia USA.
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1968  :  
सूचना व प्रसारण मंत्रालय (दूरदर्शन) के 'गीत व नाटक विभाग' में नाटक-कार के पद पर नियुक्त |  एक दशक अपनी नाटक कला से देहली वासियों का मनोरंजन किया तथा रंगमंच की दुनिया में अपना एक स्थान बनाया |
शंभू मित्रा के बंगाली नाटक 'दुई महल' का हिन्दी रूपांतर 'दो रूप ', श्री उत्पल दत्त द्वारा रचित 'फरारी फ़ौज ' का हिन्दीकरण उल्लेखनीय हैं |  स्वलिखित व निर्देशित नाटक  'कंकाल '  १९७० ने उन दिनों के रंग-मंच को नए आयामों से अवगत करवाया तथा एक नई दिशा की ओर मोड़ दिया |  दिग्गज संगीत शास्त्रियों द्वारा संगीत की शिक्षा भी प्राप्त की |  इसके अंतर्गत नाटक के प्रस्तुतिकरण व निर्देशन का अनुभव तथा इस क्षेत्र में प्रौढ़ता का आभास हुआ |  
1978 :
बचपन से नाटकों का प्रबल प्रभाव होने के कारण सिनेमा से बहुत लगाव रहा। फिल्म निर्माण की तक्नीकी शिक्षा हेतु अमरीका आकर स्थाई तौर पर न्यू-यॉर्क में बस गए |  यहाँ भी रंगमंच के प्रति निष्ठा नही छोड़ी और भारतीय विद्या भवन के सौजन्य से अपनी हास्य-एकांकी नाटिका 'बेग़म भाग गयी ' का  प्रस्तुतिकरण किया जिसके लेखन व निर्देशन के लिए सम्मानित किया गया |  

1983 :              
अमरीका में कई छोटी-बड़ी हिंदी संस्थाओं का जन्म हुआ तथा हिंदी रंगमंच व साहित्य विस्तृत हुआ |  'कोई है' शीर्षक से एक फिल्म का निर्माण व निर्देशन किया |  न्यू-यॉर्क में हिंदी के उत्तम अभिनय-कारों के aअभाव के कारण फिल्म अधिक नही सराही गयी, किन्तु नाम प्रवासी भारतीयों में प्रचलित हो गया| 
1995-97: 
स्वयं लिखित व निर्देशित टी.वी. सीरियल 'मौसम ' भारत व विदेशों के टी.वी. चैनल में बहुत चर्चित रहा |  अमरीका में हिंदी-माध्यम में किया गया ये पहला प्रयास था जो भारत के दूरर्शन तक पहुंचाया गया था | 
2000 :  
अनूप जलोटा के भजनों की सी.डी. को स्वरबद्ध करने का प्रयोजन भी बहुत सराहनीय रहा |   विडिओ-विज़न कम्पनी द्वारा प्रायोजित बहुत से टी.वी. कार्यक्रम 'उस पार' व 'डौलर बहू'  इत्यादि के मुख्य-गीत लिखने का अवसर प्राप्त हुआ तथा पार्श्व-गायक श्री सुरेश वाडकर व रूप राठौर के साथ टी.वी. सीरियल के मुख्य-गीत बनाने का अवसर प्राप्त हुआ |   इसी कंपनी द्वारा प्रदर्शित 'दिव्य-ज्योति'  व प्रसिद्ध सितार-वादक उस्ताद विलायत खान पर छोटा चल'चित्र लिखा व निर्देशित किया जो चर्चित हुआ  |  
2010-12 :  
अमरीकन चलचित्र 'The Festival Of Lights'  में एक पात्र निभाने का भी अवसर मिला जो काफ़ी सराहा गया |  हाल ही में कविताओं व गजलों पर निर्देशित किया म्यूजिक डी.वी.डी. 'Poetry 'N Emotions...' काफी सराहनीय व चर्चा में है |      
              अमरीका जैसे ग़ैर भाषा-भाषी देश में रहकर भी लेखन की प्रक्रिया को जीवंत बनाए रखा व  स्थानीय लोकप्रियता बढ़ायी| पहली हिंदी पुस्तक (कविता-संग्रह) 'पंखी ' नाम से  सन २००० में देहली से प्रकाशित हुई; तथा उसके बाद उर्दू ग़ज़ल व नज़्म की क़िताब 'अर्ज़ किया है'  भाग एक, व भाग दो प्रकाशित हुई |  इसके इलावा हिंदी पत्रिकाओं में लघु कथाएं यदा-कदा प्रकाशित हुई, व हो रही हैं |
जल्द ही प्रकाशित होने वाली पुस्तकें है....

'सुरमई आकाश के काले सफ़ेद घोड़े ...'  सत्य-कथाओं पर आधारित कहानी-संग्रह (हिन्दी) देहली प्रकाशन में |
'The Time After...'   (9 short-stories in English)  under publication  in Delhi.
'कोलकाता बौय ...' उपन्यास (हिन्दी व अंग्रेज़ी में) समाप्ति पर...
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गुरुवार, 20 सितंबर 2012

दोहा-मुक्तिका: तरु को तनहा... संजीव 'सलिल'

दोहा-मुक्तिका:

तरु को तनहा कर गये, झर-झर झरते पात



संजीव 'सलिल'
*
तरु को तनहा कर गये, झर-झर झरते पात.
यह जीवन की जीत है, क्यों कहते- हैं मात??
*
सूखी शाखों पर नयी, कोपल फूटे प्रात.
झूम बताती: मृत्यु वर, जीवन देती रात..
*
कोमल कलिका कुलिश सी, होती सह आघात.
गौरी ही काली हुई, सच मत भूलो तात..
*
माँ बहिना भाभी सखी, पत्नि सदृश सौगात.
बिन बेटी कैसे मिले?, मत मारो नवजात..
*
शूल-फूल, सुख-दुःख 'सलिल', धूप-छाँव बारात.
श्वास-आस दूल्हा-दुल्हन, श्रम-कोशिश नग्मात..
*
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada

बुधवार, 19 सितंबर 2012

प्रातस्मरण स्तोत्र (दोहानुवाद सहित) -संजीव 'सलिल'

II ॐ  श्री गणधिपतये नमः II


== प्रातस्मरण स्तोत्र (दोहानुवाद सहित) ==



हिंदी काव्यानुवाद: संजीव 'सलिल'
*
प्रात:स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिंदूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मं
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डमाखण्डलादि सुरनायक वृन्दवन्द्यं
*
प्रात सुमिर गणनाथ नित, दीनस्वामि नत माथ.
शोभित गात सिंदूर से, रखिये सिर पर हाथ..
विघ्न-निवारण हेतु हों, देव दयालु प्रचण्ड.
सुर-सुरेश वन्दित प्रभो!, दें पापी को दण्ड..



प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमान मिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानं.
तं तुन्दिलंद्विरसनाधिप यज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो:शिवाय.
*
ब्रम्ह चतुर्मुखप्रात ही, करें वन्दना नित्य.
मनचाहा वर दास को, देवें देव अनित्य..
उदर विशाल- जनेऊ है, सर्प महाविकराल.
क्रीड़ाप्रिय शिव-शिवासुत, नमन करूँ हर काल..



प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्त शोक दावानलं गणविभुंवर कुंजरास्यम.
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाह मुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्यं..
*
जला शोक-दावाग्नि मम, अभय प्रदायक दैव.
गणनायक गजवदन प्रभु!, रहिए सदय सदैव..

जड़-जंगल अज्ञान का, करें अग्नि बन नष्ट.
शंकर-सुत वंदन नमन, दें उत्साह विशिष्ट..

श्लोकत्रयमिदं पुण्यं, सदा साम्राज्यदायकं.
प्रातरुत्थाय सततं यः, पठेत प्रयाते पुमान..

नित्य प्रात उठकर पढ़े, त्रय पवित्र श्लोक.
सुख-समृद्धि पायें 'सलिल', वसुधा हो सुरलोक..


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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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हास्य सलिला: उमर क़ैद संजीव 'सलिल'



हास्य सलिला:

उमर क़ैद

संजीव 'सलिल'



नोटिस पाकर कचहरी पहुँचे चुप दम साध.
जज बोलीं: 'दिल चुराया, है चोरी अपराध..'

हाथ जोड़ उत्तर दिया, 'क्षमा करें सरकार!.
दिल देकर ही दिल लिया, किया महज व्यापार..'

'बेजा कब्जा कर बसे, दिल में छीना चैन.
रात स्वप्न में आ किया, बरबस ही बेचैन..

लाख़ करो इनकार तुम, हम मानें इकरार.
करो जुर्म स्वीकार- अब, बंद करो तकरार..'

'देख अदा लत लग गयी, किया न कोई गुनाह.
बैठ अदालत में भरें, हम दिल थामे आह..'

'नहीं जमानत मिलेगी, सात पड़ेंगे फंद.
उम्र क़ैद की अमानत, मिली- बोलती बंद..

***


Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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Thought of the day : LADY

Thought of the day : LADY

सोमवार, 17 सितंबर 2012

Seven Wonders of the World --DR.G. M. SINGH

Seven Wonders of the World

DR.G. M. SINGH

A group of Geography students were asked to list what they considered to be the Seven Wonders of the World.

Though there was some disagreement, the following got the most votes:

1. Egypt's Great Pyramids
2. Taj Mahal
3. Grand Canyon
4. Panama Canal
5. Empire State Building
6. St. Peter's Basilica
7. China's Great Wall

While gathering the votes, the teacher noticed one student, a quiet girl, hadn't turned in her paper. So she asked the girl if she was having trouble with her list.

The quiet girl replied, "Yes, a little. I couldn't quite make up my mind because there were so many."

The teacher said, "Well, tell us what you have, and maybe we can help."

The girl hesitated, then read, "I think the Seven Wonders of the World are:

1. to touch
2. to taste
3. to see
4. to hear
5. to run
6. to laugh
7. and to love

Sometimes we forget what really matters. May you be reminded today of those things which are truly wondrous.

 GENERAL MEDICAL SERVICE 3/5 WEST PATEL NAGAR NEW DELHI-110008 INDIA 01142488406;9891635088