दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
मंगलवार, 17 जनवरी 2012
Subject: Clever ideas to make life easier Clever Ideas to Make Life Easier
मंगलवार, 10 जनवरी 2012
सँग चले दोहा-यमक: --संजीव 'सलिल'
सँग चले दोहा-यमक
संजीव 'सलिल'
*
चल न अकेले चलन है, चलना सबके साथ.
कदममिलाकर कदम से, लिये हाथ में हाथ..
*
सर गम हो अनुभव अगर, सरगम दे आनंद.
झूम-झूमकर गाइए, गीत गजल नव छंद..
*
कम ला या ज्यादा नहीं, मुझको किंचित फ़िक्र.
कमला-पूजन कर- न कर, धन-संपद का ज़िक्र..
*
गमला ला पौधा लगा, खुशियाँ मिलें अनंत.
गम लाला खो जायेंगे, महकें दिशा-दिगंत..
*
ग्र कोशिश चट की नहीं, होगी मंजिल दूर.
चटकी मटकी की तरह, सृष्टि लगे बेनूर..
*
नाम रखा शिशु का नहीं, तो रह अज्ञ अनाम.
नाम रखा यदि बड़े का, नाम हुआ बदनाम..
*
लाला ला ला कह मँगे, माखन मिसरी खूब.
मैया प्रीत लुटा रहीं, नेह नर्मदा डूब..
*
आँसू जल न बने अगर, दिल की जलन जनाब.
मिटे न कम हो तनिक भी, टूटें पल में ख्वाब..
*
छप्पर छाया तो मिली, सिर पर छाया मीत.
सोजा पाँव पखार कर, घर हो स्वर्ग प्रतीत..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
संजीव 'सलिल'
*
चल न अकेले चलन है, चलना सबके साथ.
कदममिलाकर कदम से, लिये हाथ में हाथ..
*
सर गम हो अनुभव अगर, सरगम दे आनंद.
झूम-झूमकर गाइए, गीत गजल नव छंद..
*
कम ला या ज्यादा नहीं, मुझको किंचित फ़िक्र.
कमला-पूजन कर- न कर, धन-संपद का ज़िक्र..
*
गमला ला पौधा लगा, खुशियाँ मिलें अनंत.
गम लाला खो जायेंगे, महकें दिशा-दिगंत..
*
ग्र कोशिश चट की नहीं, होगी मंजिल दूर.
चटकी मटकी की तरह, सृष्टि लगे बेनूर..
*
नाम रखा शिशु का नहीं, तो रह अज्ञ अनाम.
नाम रखा यदि बड़े का, नाम हुआ बदनाम..
*
लाला ला ला कह मँगे, माखन मिसरी खूब.
मैया प्रीत लुटा रहीं, नेह नर्मदा डूब..
*
आँसू जल न बने अगर, दिल की जलन जनाब.
मिटे न कम हो तनिक भी, टूटें पल में ख्वाब..
*
छप्पर छाया तो मिली, सिर पर छाया मीत.
सोजा पाँव पखार कर, घर हो स्वर्ग प्रतीत..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
चिप्पियाँ Labels:
दोहा,
यमक,
संजीव 'सलिल'; samyik hindi kavita,
acharya sanjiv verma 'salil',
alankar,
chhand,
Contemporary Hindi Poetry
रचना-प्रति रचना: कुसुम सिन्हा-संजीव 'सलिल
मेरी एक कविता
आदरणीय कुसुम जी!
मर्मस्पर्शी रचना हेतु साधुवाद... प्रतिक्रियास्वरूप प्रतिपक्ष प्रस्तुत करती पंक्तियाँ आपको समर्पित हैं.
प्रति गीत :
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
संजीव 'सलिल'
*
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
मेरा जीवन वन प्रांतर सा
उजड़ा उखड़ा नीरस सूना-सूना.
हो गया अचानक मधुर-सरस
आशा-उछाह लेकर दूना.
उमगा-उछला बन मृग-छौना
जब तुम बसंत बन थीं आयीं..
*
दिन में भी देखे थे सपने,
कुछ गैर बन गये थे अपने.
तब बेमानी से पाये थे
जग के मानक, अपने नपने.
बाँहों ने चाहा चाहों को
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुमसे पाया विश्वास नया.
अपनेपन का आभास नया.
नयनों में तुमने बसा लिया
जब बिम्ब मेरा सायास नया?
खुद को खोना भी हुआ सुखद
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
अधरों को प्यारे गीत लगे
भँवरा-कलिका मन मीत सगे.
बिन बादल इन्द्रधनुष देखा
निशि-वासर मधु से मिले पगे.
बरसों का साथ रहा पल सा
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जीवन रजनी-'मावस
नयनों में मन में है पावस.
हर श्वास चाहती है रुकना
ज्यों दीप चाहता है बुझना.
करता हूँ याद सदा वे पल
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
सुन रुदन रूह दुःख पायेगी.
यह सोच अश्रु निज पीता हूँ.
एकाकी क्रौंच हुआ हूँ मैं
व्याकुल अतीत में जीता हूँ.
रीता कर पाये कर फिर से
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जग-जीवन हुआ सजा
हर पल चाहूँ आ जाये कजा.
किससे पूछूँ क्यों मुझे तजा?
शायद मालिक की यही रजा.
मरने तक पल फिर-फिर जी लूँ
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*******
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
सांसों में महकता था चन्दन
आँखों में सपने फुले थे ल
लहराती आती थी बयार
बालों को छेड़कर जाती थी
जब तुम बसंत बन थे आये
जब शाम घनेरी जुल्फों से
पेड़ों को ढकती आती थी
चिड़िया भी मीठे कलरव से
मन के सितार पर गाती थी
जब तुम बसंत बन थे आये
खुशियों के बदल भी जब तब
मन के आंगन घिर आते थे
मन नचा करता मोरों सा
कोयल कु कु कर जाती थी
जब तुम बसंत बन थे आये
तुम क्या रूठे की जीवन से
अब तो खुशियाँ ही रूठ गईं
मेरे आंगन से खुशियों के
पंछी आ आ कर लौट गए
जब तुम बसंत बन थे आये
साँझ ढले अंधियारे संग
यादें उनकी आ जाती हैं
रात रात भर रुला मुझ्रे
बस सुबह हुए ही जाती हैं
आदरणीय कुसुम जी!
मर्मस्पर्शी रचना हेतु साधुवाद... प्रतिक्रियास्वरूप प्रतिपक्ष प्रस्तुत करती पंक्तियाँ आपको समर्पित हैं.
प्रति गीत :
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
संजीव 'सलिल'
*
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
मेरा जीवन वन प्रांतर सा
उजड़ा उखड़ा नीरस सूना-सूना.
हो गया अचानक मधुर-सरस
आशा-उछाह लेकर दूना.
उमगा-उछला बन मृग-छौना
जब तुम बसंत बन थीं आयीं..
*
दिन में भी देखे थे सपने,
कुछ गैर बन गये थे अपने.
तब बेमानी से पाये थे
जग के मानक, अपने नपने.
बाँहों ने चाहा चाहों को
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुमसे पाया विश्वास नया.
अपनेपन का आभास नया.
नयनों में तुमने बसा लिया
जब बिम्ब मेरा सायास नया?
खुद को खोना भी हुआ सुखद
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
अधरों को प्यारे गीत लगे
भँवरा-कलिका मन मीत सगे.
बिन बादल इन्द्रधनुष देखा
निशि-वासर मधु से मिले पगे.
बरसों का साथ रहा पल सा
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जीवन रजनी-'मावस
नयनों में मन में है पावस.
हर श्वास चाहती है रुकना
ज्यों दीप चाहता है बुझना.
करता हूँ याद सदा वे पल
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
सुन रुदन रूह दुःख पायेगी.
यह सोच अश्रु निज पीता हूँ.
एकाकी क्रौंच हुआ हूँ मैं
व्याकुल अतीत में जीता हूँ.
रीता कर पाये कर फिर से
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जग-जीवन हुआ सजा
हर पल चाहूँ आ जाये कजा.
किससे पूछूँ क्यों मुझे तजा?
शायद मालिक की यही रजा.
मरने तक पल फिर-फिर जी लूँ
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*******
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
चिप्पियाँ Labels:
कुसुम सिन्हा,
गीत,
संजीव 'सलिल',
acharya sanjiv verma 'salil',
contemporary himdi poetry,
samyik hindi kavita
सोमवार, 9 जनवरी 2012
नीर-क्षीर दोहा यमक: -- संजीव 'सलिल'
नीर-क्षीर दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
कभी न हो इति हास की, रचें विहँस इतिहास.
काल करेगा अन्यथा, कोशिश का उपहास.
*
रिसा मकान रिसा रहे, क्यों कर आप हुजूर?
पानी-पानी हो रहे, बादल-दल भरपूर..
*
दल-दल दलदल कर रहे, संसद में है कीच
नेता-नेता पर रहे लांछन-गंद उलीच..
*
धन का धन उपयोग बिन, बन जाता है भार.
धन का ऋण, ऋण दे डुबा, इज्जत बीच बज़ार..
*
माने राय प्रवीण की, भारत का सुल्तान.
इज्जत राय प्रवीण की, कर पाये सम्मान..
*
कभी न कोई दर्द से, कहता 'तू आ भास'.
सभी कह रहे हर्ष से, हो हर पल आभास..
*
बीन बजाकर नचाते, नित्य सँपेरे नाग.
बीन रहे रूपये पुलक, बुझे पेट की आग..
*
बस में बस इतना बचा, कर दें हम मतदान.
किन्तु करें मत दान मत, और न कुछ आदान..
*
नपना सबको नापता, नप ना पाता आप.
नपने जब नपने गये, विवश बन गये नाप..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
संजीव 'सलिल'
*
कभी न हो इति हास की, रचें विहँस इतिहास.
काल करेगा अन्यथा, कोशिश का उपहास.
*
रिसा मकान रिसा रहे, क्यों कर आप हुजूर?
पानी-पानी हो रहे, बादल-दल भरपूर..
*
दल-दल दलदल कर रहे, संसद में है कीच
नेता-नेता पर रहे लांछन-गंद उलीच..
*
धन का धन उपयोग बिन, बन जाता है भार.
धन का ऋण, ऋण दे डुबा, इज्जत बीच बज़ार..
*
माने राय प्रवीण की, भारत का सुल्तान.
इज्जत राय प्रवीण की, कर पाये सम्मान..
*
कभी न कोई दर्द से, कहता 'तू आ भास'.
सभी कह रहे हर्ष से, हो हर पल आभास..
*
बीन बजाकर नचाते, नित्य सँपेरे नाग.
बीन रहे रूपये पुलक, बुझे पेट की आग..
*
बस में बस इतना बचा, कर दें हम मतदान.
किन्तु करें मत दान मत, और न कुछ आदान..
*
नपना सबको नापता, नप ना पाता आप.
नपने जब नपने गये, विवश बन गये नाप..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
चिप्पियाँ Labels:
दोहा,
यमक,
संजीव 'सलिल',
alnkaar,
contmporary hindi poetry,
doha yamak,
hindi chhand,
samyik hindi kavita
गले मिले दोहा यमक : -- संजीव 'सलिल'
गले मिले दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
दस सिर तो देखे मगर, नौ कर दिखे न दैव.
नौकर की ही चाह क्यों, मालिक करे सदैव..
*
करे कलेजा चाक री, लगे चाकरी सौत.
सजन न आये चौथ पर, अरमानों की मौत..
*
बिना हवा के चाक पर, है सरकार सवार.
सफर करे सर कार क्यों?, परेशान सरदार..
*
चाक जनम से घिस रहे, कोई न समझे पीर.
पीर सिया की सलिल थी, राम रहे प्राचीर..
*
कर वट की आराधना, ब्रम्हदेव का वास.
करवट ले सो चैन से, ले अधरों पर हास..
*
पी मत खा ले जाम तू, गह ले नेक सलाह.
जाम मार्ग हो तो करे, वाहन-इंजिन दाह..
*
माँग न रम पी ले शहद, पायेगा नव शक्ति.
नरम जीभ टूटे नहीं, टूटे रद की पंक्ति..
*
कर धन गह कर दिवाली, मना रहे हैं रोज.
करधन-पायल ठुमकतीं, क्यों करिए कुछ खोज?
*
सीना चीरें पवनसुत, दिखे राम का नाम.
सीना सीना जानता, कहिये कौन अनाम?
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
संजीव 'सलिल'
*
दस सिर तो देखे मगर, नौ कर दिखे न दैव.
नौकर की ही चाह क्यों, मालिक करे सदैव..
*
करे कलेजा चाक री, लगे चाकरी सौत.
सजन न आये चौथ पर, अरमानों की मौत..
*
बिना हवा के चाक पर, है सरकार सवार.
सफर करे सर कार क्यों?, परेशान सरदार..
*
चाक जनम से घिस रहे, कोई न समझे पीर.
पीर सिया की सलिल थी, राम रहे प्राचीर..
*
कर वट की आराधना, ब्रम्हदेव का वास.
करवट ले सो चैन से, ले अधरों पर हास..
*
पी मत खा ले जाम तू, गह ले नेक सलाह.
जाम मार्ग हो तो करे, वाहन-इंजिन दाह..
*
माँग न रम पी ले शहद, पायेगा नव शक्ति.
नरम जीभ टूटे नहीं, टूटे रद की पंक्ति..
*
कर धन गह कर दिवाली, मना रहे हैं रोज.
करधन-पायल ठुमकतीं, क्यों करिए कुछ खोज?
*
सीना चीरें पवनसुत, दिखे राम का नाम.
सीना सीना जानता, कहिये कौन अनाम?
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
चिप्पियाँ Labels:
दोहा,
यमक,
संजीव 'सलिल',
acharya sanjiv verma 'salil',
alankar,
Contemporary Hindi Poetry,
doha,
samyik hindi kavita,
yamak
रविवार, 8 जनवरी 2012
रचना-प्रति रचना: महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश-संजीव वर्मा
रचना-प्रति रचना
ताबीर जिस की कुछ नहीं, बेकार का वो ख़्वाब हूँ –
ताबीर जिसकी कुछ नहीं, बेकार का वो ख़्वाब हूँ
*
ताबीर चाहे हो न हो हसीन एक ख्वाब हूँ.
पढ़ रहे सभी जिसे वो प्यार की किताब हूँ..
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
ताबीर जिस की कुछ नहीं, बेकार का वो ख़्वाब हूँ –
महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश
कोई जिसे समझा नहीं मैं वो अजब किताब हूँ
न रंग है न रूप है, मैं फूल हूँ खिजाओं का
मीज़ान जिसका है सिफ़र वो ना-असर हिसाब हूँ
जो आँसुओं को सोख कर भीतर ही भीतर रहे नम
बाहर से दिखे मखमली वो रेशमी हिजाब हूँ
हस्ती मेरी किस काम की जीवन ही मेरा घुट गया
जो उम्र-कैद पा चुकी, बोतल की वो शराब हूँ
लिखता तो हूँ गज़ल ख़लिश, न शायरों में नाम है
जिस की रियासत न कोई वो नाम का नवाब हूँ.
ताबीर = स्वप्नफल
खिजा = पतझड़
मीज़ान = जोड़, कुल जमा
*
मुक्तिका:
संजीव वर्मा*
ताबीर चाहे हो न हो हसीन एक ख्वाब हूँ.
पढ़ रहे सभी जिसे वो प्यार की किताब हूँ..
अनादि हूँ, अनंत हूँ, दिशाएँ हूँ, दिगंत हूँ.
शून्य हूँ ये जान लो, हिसाब बेहिसाब हूँ..
शून्य हूँ ये जान लो, हिसाब बेहिसाब हूँ..
मुस्कुराता अश्रु हूँ, रो रही हँसी हूँ मैं..
दिख रहा हिजाब सा, लग रहा खिजाब हूँ..
दिख रहा अतीत किन्तु आज भी नवीन हूँ.
दे रहा मजा अधिक-अधिक कि ज्यों शराब हूँ..
ले मिला मैं कुछ नहीं, दे चला मैं कुछ नहीं.
खाली हाथ फिर रहा दिल का मैं नवाब हूँ..
'सलिल' खलिश बटोरता, लुटा रहा गुलाब हूँ.
जवाब की तलाश में, सवाल लाजवाब हूँ..
*'सलिल' खलिश बटोरता, लुटा रहा गुलाब हूँ.
जवाब की तलाश में, सवाल लाजवाब हूँ..
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
शनिवार, 7 जनवरी 2012
भोजपुरी के संग: दोहे के रंग --संजीव 'सलिल'
भोजपुरी के संग: दोहे के रंग
संजीव 'सलिल'
भइल किनारे जिन्दगी, अब के से का आस?
ढलते सूरज बर 'सलिल', कोउ न आवत पास..
*
अबला जीवन पड़ गइल, केतना फीका आज.
लाज-सरम के बेंच के, मटक रहल बिन काज..
*
पुड़िया मीठी ज़हर की, जाल भीतरै जाल.
मरद नचावत अउरतें, झूमैं दै-दै ताल..
*
कवि-पाठक के बीच में, कविता बड़का सेतु.
लिखे-पढ़े आनंद बा, सब्भई जोड़े-हेतु..
*
रउआ लिखले सत्य बा, कहले दूनो बात.
मारब आ रोवन न दे, अजब-गजब हालात..
*
पथ ताकत पथरा गइल, आँख- न दरसन दीन.
मत पाकर मतलब सधत, नेता भयल विलीन..
*
हाथ करेजा पे धइल, खोजे आपन दोष.
जे नर ओकरा सदा ही, मिलल 'सलिल' संतोष..
*
मढ़ि के रउआ कपारे, आपन झूठ-फरेब.
लुच्चा बाबा बन गयल, 'सलिल' न छूटल एब..
*
कवि कहsतानी जवन ऊ, साँच कहाँ तक जाँच?
सार-सार के गह 'सलिल', झूठ-लबार न बाँच..
***************************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
संजीव 'सलिल'
भइल किनारे जिन्दगी, अब के से का आस?
ढलते सूरज बर 'सलिल', कोउ न आवत पास..
*
अबला जीवन पड़ गइल, केतना फीका आज.
लाज-सरम के बेंच के, मटक रहल बिन काज..
*
पुड़िया मीठी ज़हर की, जाल भीतरै जाल.
मरद नचावत अउरतें, झूमैं दै-दै ताल..
*
कवि-पाठक के बीच में, कविता बड़का सेतु.
लिखे-पढ़े आनंद बा, सब्भई जोड़े-हेतु..
*
रउआ लिखले सत्य बा, कहले दूनो बात.
मारब आ रोवन न दे, अजब-गजब हालात..
*
पथ ताकत पथरा गइल, आँख- न दरसन दीन.
मत पाकर मतलब सधत, नेता भयल विलीन..
*
हाथ करेजा पे धइल, खोजे आपन दोष.
जे नर ओकरा सदा ही, मिलल 'सलिल' संतोष..
*
मढ़ि के रउआ कपारे, आपन झूठ-फरेब.
लुच्चा बाबा बन गयल, 'सलिल' न छूटल एब..
*
कवि कहsतानी जवन ऊ, साँच कहाँ तक जाँच?
सार-सार के गह 'सलिल', झूठ-लबार न बाँच..
***************************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
चिप्पियाँ Labels:
दोहा,
भोजपुरी,
संजीव 'सलिल',
acharya sanjiv 'salil',
bhojpuri,
Contemporary Hindi Poetry,
doha,
samyik hindi chhand
गुरुवार, 5 जनवरी 2012
चंद चौपदे: --संजीव 'सलिल'
चंद चौपदे
संजीव 'सलिल'
*
ज़िन्दगी है कि जिए जाते हैं.
अश्क अमृत सा पिए जाते हैं.
आह भरना भी ज़माने को गवारा न हुआ
इसलिए होंठ चुपचाप सिये जाते हैं..
*
नेट ने जेट को था मार दिया.
हमने भी दिल को तभी हार दिया.
नेट अब हो गया जां का बैरी.
फिर भी हमने उसे स्वीकार किया..
*
ज़िन्दगी हमेशा बेदाम मिली.
काम होते हुए बेकाम मिली.
मंजिलें कितनी ही सर की इसने-
फिर भी हमेशा नाकाम मिली..
*
छोड़कर छोड़ कहाँ कुछ पाया.
जो भी छोड़ा वही ज्यादा भाया.
जिसको छोड़ा उसी ने जकड़ा है-
दूर होकर न हुआ सरमाया..
*
हाथ हमदम का पकड़ना आसां
साथ हमदम के मटकना आसां
छोड़ना कहिये नहीं मुश्किल क्या?
माथ हमदम के चमकना आसां..
*
महानगर में खो जाता है अपनापन.
सूनापन भी बो जाता है अपनापन.
कभी परायापन गैरों से मिलता है-
देख-देखकर रो जाता है अपनापन..
*
फायर न हो सके मिसफायर ही हो गये.
नेट ना हुए तो वायर ही हो गये.
सारे फटीचरों की यही ज़िंदगी रही-
कुछ और न हुए तो शायर ही हो गये..
*
हाय अब तक न कुछ भी लिख पाया.
खुद को भी खुद ही नहीं दिख पाया.
जो हुआ, हुआ खुदा खैर करे.
खुद को सबसे अधिक नासिख पाया..
*
अब न दम और न ख़म बाकी है.
नहीं मैखाना है, न साकी है.
जिसने सबसे अधिक गुनाह किये-
उसका दावा है वही पाकी है..
*
चाहा सम्हले मगर बहकती है.
भ्रमर के संग कली चहकती है.
आस अंगार, साँस की भट्टी-
फूँक कोशिश की पा दहकती है..
*
हमने खुद को भले गुमनाम किया.
जगने हमको सदा बदनाम किया.
लोग छिपकर गुनाहकर पुजते-
हम पिटे, पुण्य सरेआम किया..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
संजीव 'सलिल'
*
ज़िन्दगी है कि जिए जाते हैं.
अश्क अमृत सा पिए जाते हैं.
आह भरना भी ज़माने को गवारा न हुआ
इसलिए होंठ चुपचाप सिये जाते हैं..
*
नेट ने जेट को था मार दिया.
हमने भी दिल को तभी हार दिया.
नेट अब हो गया जां का बैरी.
फिर भी हमने उसे स्वीकार किया..
*
ज़िन्दगी हमेशा बेदाम मिली.
काम होते हुए बेकाम मिली.
मंजिलें कितनी ही सर की इसने-
फिर भी हमेशा नाकाम मिली..
*
छोड़कर छोड़ कहाँ कुछ पाया.
जो भी छोड़ा वही ज्यादा भाया.
जिसको छोड़ा उसी ने जकड़ा है-
दूर होकर न हुआ सरमाया..
*
हाथ हमदम का पकड़ना आसां
साथ हमदम के मटकना आसां
छोड़ना कहिये नहीं मुश्किल क्या?
माथ हमदम के चमकना आसां..
*
महानगर में खो जाता है अपनापन.
सूनापन भी बो जाता है अपनापन.
कभी परायापन गैरों से मिलता है-
देख-देखकर रो जाता है अपनापन..
*
फायर न हो सके मिसफायर ही हो गये.
नेट ना हुए तो वायर ही हो गये.
सारे फटीचरों की यही ज़िंदगी रही-
कुछ और न हुए तो शायर ही हो गये..
*
हाय अब तक न कुछ भी लिख पाया.
खुद को भी खुद ही नहीं दिख पाया.
जो हुआ, हुआ खुदा खैर करे.
खुद को सबसे अधिक नासिख पाया..
*
अब न दम और न ख़म बाकी है.
नहीं मैखाना है, न साकी है.
जिसने सबसे अधिक गुनाह किये-
उसका दावा है वही पाकी है..
*
चाहा सम्हले मगर बहकती है.
भ्रमर के संग कली चहकती है.
आस अंगार, साँस की भट्टी-
फूँक कोशिश की पा दहकती है..
*
हमने खुद को भले गुमनाम किया.
जगने हमको सदा बदनाम किया.
लोग छिपकर गुनाहकर पुजते-
हम पिटे, पुण्य सरेआम किया..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
चिप्पियाँ Labels:
चौपदे,
संजीव 'सलिल',
acharya sanjiv verma 'salil',
Contemporary Hindi Poetry,
samyik hindi kavita
मंगलवार, 3 जनवरी 2012
दोहा सलिला: दोहा-यमक-मुहावरे, मना रहे नव साल --संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला:
दोहा-यमक-मुहावरे, मना रहे नव साल
संजीव 'सलिल'
*
बरस-बरस घन बरस कर, तनिक न पाया रीत.
बदले बरस न बदलती, तनिक प्रीत की रीत..
*
साल गिरह क्यों साल की, होती केवल एक?
मन की गिरह न खुद खुले, खोलो कहे विवेक..
*
गला काट प्रतियोगिता, कर पर गला न काट.
गला बैर की बर्फ को, मन की दूरी पाट..
*
पानी शेष न आँख में, यही समय को पीर.
पानी पानी हो रही, पानी की प्राचीर..
*
मन मारा, नौ दिन चले, सिर्फ अढ़ाई कोस.
कोस रहे संसार को, जिसने पाला पोस..
*
अपनी ढपली उठाकर, छेड़े अपना राग.
राग न विराग न वर सका, कर दूषित अनुराग..
*
गया न आये लौटकर, कभी समय सच मान.
पल-पल का उपयोग कर, करो समय का मान..
*
निज परछाईं भी नहीं, देती तम में साथ.
परछाईं परछी बने, शरणागत सिर-माथ..
*
दोहा यमक मुहावरे, मना रहे नव साल.
साल रही मन में कसक, क्यों ना बने मिसाल?
*
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
दोहा-यमक-मुहावरे, मना रहे नव साल
संजीव 'सलिल'
*
बरस-बरस घन बरस कर, तनिक न पाया रीत.
बदले बरस न बदलती, तनिक प्रीत की रीत..
*
साल गिरह क्यों साल की, होती केवल एक?
मन की गिरह न खुद खुले, खोलो कहे विवेक..
*
गला काट प्रतियोगिता, कर पर गला न काट.
गला बैर की बर्फ को, मन की दूरी पाट..
*
पानी शेष न आँख में, यही समय को पीर.
पानी पानी हो रही, पानी की प्राचीर..
*
मन मारा, नौ दिन चले, सिर्फ अढ़ाई कोस.
कोस रहे संसार को, जिसने पाला पोस..
*
अपनी ढपली उठाकर, छेड़े अपना राग.
राग न विराग न वर सका, कर दूषित अनुराग..
*
गया न आये लौटकर, कभी समय सच मान.
पल-पल का उपयोग कर, करो समय का मान..
*
निज परछाईं भी नहीं, देती तम में साथ.
परछाईं परछी बने, शरणागत सिर-माथ..
*
दोहा यमक मुहावरे, मना रहे नव साल.
साल रही मन में कसक, क्यों ना बने मिसाल?
*
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
चिप्पियाँ Labels:
दोहा,
मुहावरे,
यमक,
संजीव 'सलिल',
acharya sanjiv verma 'salil',
alankar,
Contemporary Hindi Poetry,
doha,
muhavare,
samyik hindi kavita,
yamak
रविवार, 1 जनवरी 2012
नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'
नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'
संजीव 'सलिल'
*
महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....
*
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है.
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो.
निज मन का
छायांकन कर लो.
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?...
*
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...
*
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब.
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...
*
खाली हाथ?
न रो-पछताओ.
कंकर से
शंकर बन जाओ.
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
देखोगे मन मलिन धुल रहा...
**********************
http://divyanarmada.blogspot.com/
चिप्पियाँ Labels:
नव वर्ष,
नवगीत,
महाकाल,
संजीव 'सलिल',
acharya sanjiv verma 'salil',
contemporaray hindi poetry,
samyik hindi kavita
नव वर्षमंगलमय हो deepti gupta ✆ drdeepti25@yahoo.co.in
वसुधैव कुटुम्बकम्
नव वर्ष की शुभकामनाएँ / नव वर्षमंगलमय हो
नव वर्षाची शुभेच्छा (मराठी)
नवे साल दी बधाईयाँ (पंजाबी)
Deepti
An unusual tunnel in California 's Sequoia National Park
Marcus Levine - slaughtering an artist in the literal sense. He creates his paintings by nailing a white wooden panel. At his latest series of paintings exhibited in a gallery in London, Marcus has sp
नव वर्ष की शुभकामनाएँ / नव वर्षमंगलमय हो
नव वर्षाची शुभेच्छा (मराठी)
नवे साल दी बधाईयाँ (पंजाबी)
नूतन वर्षाभिनन्दन (गुजराती)
नुआ बर्षा शुभेच्छा (उडिया)
नव्यु साल मुबारक होजे (सिंधी)
शुवो नबो बर्षो (बंगाली)
नव्यु साल मुबारक होजे (सिंधी)
शुवो नबो बर्षो (बंगाली)
Bonne Annee (French)
Prosit Neujahr (German)
Felice Anno Nuovo (Italian)
Szczesliwego
Nowego Roku (Polish)
S Novim Godom (Russian)
Let us have a look around the amazing world. It is simply beautiful....!
The world's highest chained carousel, located in Vienna , at a height of 117 meters.
An unusual tunnel in California 's Sequoia National Park
Marcus Levine - slaughtering an artist in the literal sense. He creates his paintings by nailing a white wooden panel. At his latest series of paintings exhibited in a gallery in London, Marcus has sp
चिप्पियाँ Labels:
नव वर्षमंगलमय हो deepti gupta
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)