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रविवार, 16 फ़रवरी 2025

बोगेनवेलिया

कागज़ी फूल बोगनबेलिया 
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मूलरूप से दक्षिण अमेरिकी देशों में प्राप्त बोगनबेलिया को बग़ीचे एवं घर के मुख्य द्वार पर लगाया जाता है। रोचक है कि १७८९ में फ्रांसीसी नौसेना के एडमिरल लुई एंटोनी डे बोगनविले (वनस्पतिशास्त्री और एक्सप्लोरर भी) तथा फिलबर्ट कोमरकोम (कॉमर्रसन) जो महिलाओं के लिए जलयात्रा प्रतिबंधित होने के कारण पुरुष वेश रखे थीं ने जलयात्रा  के दौरान बोगनबेलिया की खोज की थी। इनमें से एक वैज्ञानिक के नाम पर इस पौधे का नाम रखा गया। केरल में १८०९ में  पहली बार अल डे जुससीयू द्वारा 'बोगनवेलिया' प्रकाशित किया गया। १९३० में वनस्पति विज्ञानियों ने इसे अलग प्रजाति  स्वीकार किया जबकि बी स्पेक्टबिलिएस और बी ग्लेब्रा १९८० के मध्य तक भेदभाव कर रहे थे। 

बोगनबेलिया लता प्रजाति का पौधा है। दुनिया में इस पौधे की २० प्रजातियाँ तथा ३०० से अधिक  क़िस्म के पौधे मिलते हैं।बोगनबेलिया हर प्रकार की मिट्टी और जलवायु में ज़िंदा रहता है। इनमें नुकीले काँटे होते हैं। यह बारहों माह फूलता है तथा  हरा भरा रहता  है। बोगेनवेलिया के फूल देखने में ही सुन्दर नहीं हैं बल्कि इससे एलोपैथिक एवं आयुर्वेदिक पद्धतियान में कई रोगों ( खाँसी, दमा, पेचिश, पेट या फेफड़ों के तकलीफ आदि) की चिकित्सा की जाती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार, बोगनवेलिया का पौधा लगाने के लिए सबसे अच्छी दिशाएँ  दक्षिण (मंगल ग्रह से संबंधित, साहस, ऊर्जा और शक्ति वर्धक), पूर्व (सूर्य से संबंधित, सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य, समृद्धि  वर्धक) तथा पश्चिम (चंद्रमा से संबंधित,मन की शांति, प्रेम और सौहार्द वर्धक) हैं। आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने बोगेनवेलिया के फूल से ऐसी कृत्रिम त्वचा तैयार की, जिससे गहरे घाव भरने और खराब हो चुकी त्वचा को जल्दी ठीक करने मे इस्तेमाल किया जा सकेगा। सामान्यतः जितने समय में चोट ठीक होती है या जख्म भरता है उससे आधे समय में हीलिंग हो जाएगी। इस शोध को पेटेंट करा लिया गया है। इस रिसर्च के फॉर्मूले को एक निजी कंपनी को दिया जाएगा जहाँ कृत्रिम त्वचा तैयार की जाएगी। 

बोगनवेलिया काँटेदार लता प्रजाति का सजावटी पौधा है। यह अपने फूलों के लिए जाना जाता है. बोगनवेलिया के खूबसूरत फूल कई तरह के रंगों में पाए जाते हैं। पतले और हल्के बोगनवेलिया कूलों को कागज़ का फूल भी कहा जाता है। नई प्रजाति 'बनॉस वैरीगाटा-जयंती' वैज्ञानिक नाम वाला बोगनवेलिया भूमि पर, गमले या छोटे पॉट में भी लगाया जा सकता है। इस को 'इंटरनेशनल बोगनवेलिया रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी' नई दिल्ली में पंजीकृत करा दिया गया है। यह काँटेदार प्रजाति १ से १२ मीटर ऊँची होती है। जहाँ साल भर बारिश होती है वहाँ ये सदाबहार होते हैं या अगर सूखा मौसम हो तो ये पर्णपाती होते हैं । पत्तियाँ सरल अंडाकार-नुकीली, ४-१३ सेमी लंबी और २-६ सेमी चौड़ी होती हैं। पौधे का वास्तविक फूल छोटा और आम तौर पर सफेद होता है, लेकिन तीन फूलों का प्रत्येक समूह पौधे से जुड़े चमकीले रंगों के साथ तीन या छह सहपत्रों से घिरा होता है जिसमें गुलाबी, मैजेंटा, बैंगनी, लाल, नारंगी, सफेद या पीला शामिल है।

सॉनेट 
बोगनबेलिया 
० 
सदाबहार जिंदगी जीना आओ सीखें 
कैसा भी मौसम हो क्यों कुम्हला-मुरझाएँ 
गले लगा काँटों को बोगनबेलिया दीखें 
फूल  कागज़ी हों तो भी नगमे हँस गाएँ। 
जड़ जमीन में जमा, गगनचुंबी हो जाएँ 
जिसका मिले सहारा ले आगे बढ़ना है  
तितली-भँवरों की क्या चिंता गीत गुँजाएँ 
लक्ष्य हमेशा एक प्रगति सीढ़ी चढ़ना है।
नहीं किसी से किंचित भी हमको डरना है 
रंग गुलाबी लाल श्वेत नारंगी पीला 
मैजेंटा बैंगनी मनोहर छवि मोहे मन 
घर-बाहर हर जगह  बना मौसम रंगीला 
मस्त रहो मस्ती में चार दिनों का जीवन 
फूल-शूल ले साथ पत्तियाँ हँस हरियाएँ
सावन हो या फागुन मस्तक नहीं नवाएँ  
१६.२.२०२५ 
***
बोगनवेलिया पर दोहे 
फूली बोगनवेलिया, झूमा देख पलाश।
धरती माँ आशीष दे, सजल नयन आकाश।।
फूल कागज़ी कहे जग, असली सका न जान। 
जो न पारखी कब सका हीरे को पहचान।। 
० 
ललचाना मत फूल पर, चुभ जाएँगे शूल। 
तितली को समझा रही, फर्ज निभाती धूल॥ 
० 
खिलते-झरते फूल अरु, पैने काँटों बीच। 
संत पात मुस्का रहे, घेरे सज्जन-नीच।। 
० 
मिले अत्यधिक या नहीं, पानी सूखे बेल। 
लाड़ अत्यधिक या नहीं, सुत पा हो बेमेल।। 
१७.२.२०१५ 
०००

   
 
काव्य कुंज                                                                                                                                                                                              ऐ बोगन बेलिया के फूल
० 
ऐ बोगन बेलिया के फूल
क्या तुम ऐसे ही मुस्कुराते हो!
क्या कोई अब भी ऐसे ही बैठता है
तुम्हारी गोद में खिलखिलाकर।

क्या अब भी कोई शामों के अकेलेपन में
घण्टों किया करता है तुमसे बातें।
क्या किसी खुशी में अब भी,
कोई दौड़ा आता है तुम तक!
क्या अब भी सुनते हो तुम सिसकियाँ
किसी के दिल टूटने के क्रम में!

ऐ बोगन बेलिया के फूल,
कैसा है तुम्हारा पड़ोसी, ईमली का पेड़
भूतहा होता है ईमली का पेड़
लोगों को कहते सुना है।
तभी तो बोया गया था इसे
रात-रात भर अट्टहास करती
भूतनियों और चुड़ैलों के बियाबान में।

चुड़ैलें ही तो होती हैं लड़कियां।
तभी तो लोग रचते हैं साजिश
उन्हें बियाबानों, शहरों, गांवों से
खदेड़ने की या वश में करने की।

ऐ बोगन बेलिया तुम्हें तो पता ही होगा कि
तुम्हारा एक और पड़ोसी बोनसाई रह गया
उसे किसी ने खाद-पानी ही नहीं दिया।
दिया तो तुम्हें भी कुछ नहीं लेकिन
तुम्हारे पास कई भूतनियों और चुड़ैलों की
कहानियां रखीं हैं धरोहरों की तरह।

तुम मुझे बहुत याद आते हो बोगन बेलिया
और तुम्हारा पड़ोसी भी याद आता है
जिसे मैं घंटों ताका करती थी अपनी उदास शामों में।

डॉ चित्रलेखा अंशु,
प्राध्यापक, महिला अध्ययन केंद्र
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय
दरभंगा, बिहार
***
बेगनबोलिया और मैं                                                                                                                                                                                              दोस्त,

जानती हो  बोगन बेलिया के फूलों की पत्तियां बेहद पतली व मुलायम तो होती ही हैं पर उसमे कोई सुगंध नही होती। जैसे मुझमें। शायद   इसीलिये मैने अपने घर के चारों तरफ बोगन बेलिया की कई कई रंगो की कतारें सजा रक्खी हैं। जो सुर्ख, सुफेद और पर्पल रंगों में एक जादुई तिलिस्म का अहसास देती हैं। जब कभी इनकी  मासूम, मुलायम पत्तियां हवा के झोंके से या कि आफताब की तपिश  से झर झर कर जमीन पे कालीन सा बिछ जाती हैं, तब उसी मखमली कालीन पर हौले से बैठ कर या कि कभी लेट कर, सलोनी के ख़यालों, ख्वाबों में डूब जाता हूं। तब बोगन बेलिया की एक एक पत्ती उसके चेहरे के एक एक रग व रेषे की मुलायम खबर देती है। तब मै ख्वाबों के न जाने किस राजमहल में पहुचं जाता हूं। जहां सिर्फ सलोनी होती है और सिर्फ सलोनी होती है। और होता हूं मै।  ऐसा ही एक अजीब ख्वाब उस दिन दिखा था। अजीब इस वजह से कि वह एक साथ भयावह व खुशनुमा  था। 
दोस्त, तुम  जानती हो ?   उस ख्वाब में मैने देखा ?
कि मुहब्बत की रेशमी  ड़ोरी और रातरानी की मदहोश  खुषबू से लबरेज़ झूले मे सलोनी झूल रही है। किसी परी की तरह और मै उसे झूलते हुये देख रहा हूं। जब झूला उपर की ओर जाता है, तो उसके नितम्बचुम्बी आबनूषी केश  जमीन तक लहरा जाते। जैसे कोई काली बदरिया आसमान से उतर कर जमीं पे मचल रही हो। 
लेकिन, ये बादल मचल ही रहे थे कुछ और परवान चढ ही रहे थे कि..... 
अचानक कहीं से एक बगूला उठा जो एक तूफान में तब्दील होता गया। और वह  तूफान से ड़र कर वह मेरी तरफ दौड़ पडी़।
और ... मै उसे अपने आगोश  में ले पाता कि वह तूफन उसे उठा ले गया।
और मै उसे औ वह मुझे पुकारती ही रह गयीं।
और तभी मै अपने ख्वाब महल से जो रेत के ढे़र में तब्दील हो गया था, बाहर आ गिरा या। 
और उस वक्त मेरी मुठठी में महज बोगन बेलिया की कुछ मसली व मुरझाई पत्तियां ही रह गयी थी।
और ... एक वह दिन कि आज का दिन मैने खुली ऑखों से कोई ख्वाब नही देखा। 
अगर देखना भी होता है तो, बंद ऑखों से देखता हूं।
जिनके बारे में कम से कम यह तो मालूम रहता ही है कि यह ख्वाब हैं जिन्हे सिर्फ नींद के बाद टूटना ही होता है। 
खैर दोस्त  मै भी कहां की बातें करने लगा। 

कल सारा दिन विजली व पानी के इंतजामात में बीता। शाम  को बिजली तो आयी पर पानी अभी भी नही आया। 
रात आपसे बात करके आराम से सोया। 
अभी अभी आके नेट पे बैठा हूं।

दोपहर में आपसे बात करुंगा।

मुकेश  इलाहाबादी
***

फूल का खिलना यूं ही नहीं होता

प्रो. विवेक कुमार मिश्र
हिंदी विभाग
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा

फूल खिलते हैं और खिलते रहेंगे। फूल खिलकर ही बोलते हैं। अपने होने का, अपने अस्तित्व का गान खिलकर करते हैं। इससे आगे अपने रंग व स्वभाव को इस तरह लेकर आते हैं कि बस देखते रहिए। जो फूल यहाँ खिला है वही फूल और जगह भी खिलता है और अपनी ओर खींचता है पर कुछ जगहें इस तरह ध्यान खींचती है कि बस वह जगह और वह घड़ी महत्वपूर्ण हो जाती है कि उस घड़ी में आप वहाँ है और फूल को खिलते से देख रहे हों । यह समय का एक टुकड़ा रंग देता है मन को, संसार को और दुनिया को इस तरह कि इसके अलावा और कुछ जैसे आंखों को सूझता ही न हो और आंखें हैं कि बस देखती ही जाती हैं । फूल खिल कर मन रंगते हैं, पृथ्वी पर रंग लेकर आ जाते हैं और कहते हैं कि हमारे साथ खिलना सीखों, हमारे साथ खुश रहना सीखो। फूलों के साथ पृथ्वी ही रंगवती व गंधवती होती है । फूल जहां और जैसे भी खिलते हैं बस हम सब देखते ही रह जाते हैं । खिलते फूल को कोई भी छोड़ नहीं पाता । सब खिले रंग में ऐसे खो जाते हैं कि बस यही दुनिया है और इसे ही आंखों में भरना है । आंखों में बसा लेना है । फूलों के साथ हम सब पृथ्वी को खिलते , पृथ्वी की प्रसन्नता को और पृथ्वी की रागमयता को देखते हैं । जब तब ऐसा होता है कि कहीं जाकर आंखें टिक जाती हैं । हम तो बस देखते ही रह जाते हैं । यह देखना एक आश्चर्य की तरह होता है कि अरे ! यह देखो क्या रंग उतर आया ? क्या रंग मिला है ? और आवाज से होते-होते मन ही कहता है कि क्या फूल खिला है ? यह फूल का खिलना… यूं ही नहीं होता , न ही अचानक होता पर जब फूल खिलता है तो बस खिलता ही है और हम देखते रह जाते हैं । फूल जैसे-जैसे और जितने भाव में खिलता है उतने ही भाव और रंग में लोगबाग उसे देखते हैं । फूल हमारे मन को रंगता है । मन के रंग से हम सब संसार देखने लग जाते हैं । फूलों का रंग मन का रंग हो जाता है और जहां यह सब नहीं हो पाता है वहां न फूल बोलते न रंग बोलता न ही मन बोलता । मन का रंग के साथ फूलों की दुनिया में घूमना और अपने हाव भाव के रंग के साथ ही संसार को जानना समझना पड़ता है ।

फूल है । है तो है । वह अपनी जगह पर अडिग है । खिला है जिसे देखना है देखे। फूल सबके लिए खिलते हैं एक बराबर दूरी से सबको रंग , गंध और आंखों में राहत भरने का काम करते हैं । फूल खिल गया पर कैसे खिला ? कितना खिलकर मिला और कहां मिला ? उसे कौन देख रहा है ? कितने लोगों के मन में बस रहा है ? यह जगह अवसर और मुख्य मार्ग पर होने की स्थिति में उसे अलग ही पहचान दिला देता है । वैसे तो फूल जहां कहीं मिलते मन को अच्छा ही लगता है और हर फूल अपने खिलने की दशा में और रंग के हिसाब से अलग-अलग स्थितियों में ध्यान खींचना ही रहता है । यहां गवर्नमेंट कॉलेज कोटा के सामने से जो सड़क सीधे रेलवे स्टेशन की ओर जा रही है वह शहर को रेलवे स्टेशन से जोड़ने वाली मुख्य सड़क है । इस मार्ग पर असंख्य लोग आते जाते हैं यहां सघन हरीतिमा के बीच बोगन बेलिया ऐसे खिला है कि बस देखते रहिए । ऐसे खिला हुआ है कि उसके आगे कोई और नहीं , कुछ भी देखने को दिखता ही नहीं है । बस बोगेनवेलिया दिखता है । इस तरह दिखता है कि उसको छोड़कर कुछ और देखने की स्थिति में नहीं होते । यहां तो बोगन बेलिया यही कह रहा है कि यहां की बहार तो हम ही हैं । यहां का रास्ता हमें ही देखते पूरा होता है । भला हमें भुलाकर या हमें छोड़कर कोई कैसे भी जा सकता है । अपने चटक गुलाबी रंग और लाल रंग के साथ-साथ कई रंगों में , कई सेंड्स में आजकल आता है । इस तरह खिलता है कि बस खिलता ही खिलता है । रंग का उत्सव ऐसे मानता है कि आप बोगनविलिया को देखने समझने और उस पर रुक कर विचार करने के अलावा कुछ और कर ही नहीं सकते । यह बोगनविलिया अपनी और इस तरह खींच लेता है की आप कहीं भी चले जाएं… आंखों में एक बोगन बेलिया बसा ही रहता है । कहते हैं कि जब फूल आंखों में बस जाता है । मन पर छा जाता है और उसका रंग आंखों में उतर जाता है तो फूल के खिलने की उसके होने की और उसके अस्तित्व की कहानी न केवल पूरी होती है बल्कि सार्थक हो जाती है । फूल प्रकृति के साथ , पृथ्वी के साथ रंग का जो उत्सव रचता है वह मानव मन पर जीवन पर इस तरह से छा जाता है कि उसे छोड़कर आप कहीं जा ही नहीं सकते । वह आपके साथ आपके मन को लिए लिए चलता है । फूलों ने लोगों को न केवल अपनी ओर खींचा बल्कि वह लोगों से बातचीत भी करता है । देखने में आता है की कई लोग फूलों के आसपास रुक कर ठहर कर उसे देखते हैं । उससे बात करते हैं उसको समझने की कोशिश करते हैं और उसके रंग और रूप के साथ अपने भीतर आनंद और प्रसन्नता की स्थिति को महसूस करते हैं । इस तरह से इतना तो कहा जाना चाहिए कि जब फूल खिलते हैं तो उनके साथ हमारा मन खिल उठता है । और मन का खिलना ही जीवन का सबसे बड़ा उत्सव है । फूलों ने मन को पृथ्वी को और पूरे जीवन को रंगों से उल्लास से और उत्सव से इस तरह से रच दिया है कि प्रकृति के सहारे जब आप रास्ते पर आगे बढ़ते हैं तो बोगनविलिया आपसे यह कहते हुए चलता है कि आगे बढ़ो और हर स्थिति में हमारी तरह खिलते रहो । खिल कर चलो और अपने रंग से अपने भाव से अपने उल्लास से अपने उत्सव से जीवन में खुशियां बिखेरते चलों… फूलों ने खिलकर लोगों के जीवन में खुशी की ऐसी पूंजी सौंप दी है जिसके सहारे वे अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ते रहते हैं । हर खिला फुल अपने लक्ष्य पर जाने का रास्ता दिखाता है ।

यह बोगनवेलिया सोचने पर बाध्य कर देता है कि रंग के उत्सव होली के समय तरह तरह के रंगों में खिल जाता है। मगन होकर नाचता है । रंगों का मेला ही लगा देता है। जहां जिस तरह खिलता है वहां आसपास की पूरी धरती इन्हीं के रंगों में रंग जाती है । धरती को ये अपना सारा रंग और सारी खुशी ऐसे दे देते हैं कि और कोई काम हो ही नहीं। धरती को रंग का उत्सव देते हुए कहते हैं कि लो खिलो और खुश रहो । फूलों से धरती को इतना और इस तरह रंग देता है कि लोगबाग बस देखते ही कह उठते हैं कि देखो देखो प्रकृति ने होली का रंग रच दिया है । इस समय प्रकृति होली खेल रही है और पृथ्वी पर होली का भला इससे सुंदर और क्या रूप हो सकता है । यह तो बोगनविलिया ही जानता है या उसको अपनी आंखों में बसा कर देखने वाले लोगों का मन जानता है । कहते हैं कि खिलते चलों । राह चलते जब इस तरह खिले हुए बोगनवेलिया की बेल पेड़ों और दीवारों पर चढ़ते चढ़ते दीवार को ऐसे ढ़ंक लेती है कि सब कुछ भरा भरा रंगों से खिला हुआ ऐसा लगता है कि प्रकृति ने मानों रंगोत्सव रच दिया हो … फूलों ने ऐसा संसार रच दिया है कि बस देखते रहिए…. देखते ही रहिए यहां बोगनविलिया खिला है।
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