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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

फरवरी २७, सॉनेट, पंकज उधास, शारदा, सावरकर, तुम, सरहद, कला त्रयोदशी छंद, मुक्तक, दोहा, कुंडलिया, सवैया,

 सलिल सृजन फरवरी २७

सॉनेट
पंकज उधास
नाद के अनुपम पुजारी,
वाक् के थे धनी अनुपम,
कीर्ति है दस दिश तुम्हारी,
रेशमी आवाज मद्धम।
मर्म छूते तराने गा,
भा गए माँ शारदा को,
लोक ने तुमको सराहा,
वरा गायन शुद्धता को।
गीत ग़ज़लें भजन गाए,
प्राण फूँके भाव रस भर,
विधाता को खूब भाए,
बुलाया अब सुने जी भर।
नाम पंकज का अमर है,
काम पंकज का अमर है।
२७-२-२०२४
•••
कार्यशाला
एक कुण्डलिया- दो कवि
घाट कुआँ खग मृग जगे,तेरी नींद विचत्र।
देख उठाता तर्जनी, सूरज तुझ पर मित्र। -राजकुमार महोबिया
सूरज तुझ पर मित्र, चढ़ाते जल अंजुरी भर।
नेह नर्मदा सलिल, समर्पित भास्कर भास्वर।।
उजियारो मन-प्राण, प्रकाशित कर घर-बाट।
शत वंदन जग-नाथ, न तम व्यापे घर-घाट।। -संजीव
***
सॉनेट
शारदा
*
हृदय विराजी मातु शारदा
सलिल करे अभिषेक निरंतर
जन्म सफल करता नित यश गा
सुमति मिले विनती सिर, पग धर
वीणा अनहद नाद गुँजाती
भव्य चारुता अनुपम-अक्षय
सातों स्वर-सरगम दे थाती
विद्या-ज्ञान बनाते निर्भय
अपरा-परा नहीं बिसराएँ
जड़-चेतन में तुम ही तुम हो
देख सकें, नित महिमा गाएँ
तुमसे आए, तुममें गुम हों
सरस्वती माँ सरसवती हे!
भव से तार, दिव्य दर्शन दे
४-२-२०२३
•••
पुस्तक परिचय
श्रीमद्भागवत रसामृतम् - सनातन मूल्यों एवं मान्यताओं का कोष
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
[कृति विवरण - श्रीमद्भागवत रसामृतम्, विधा आध्यात्मिक समालोचना, लेखक - व्याकरणाचार्य डॉ. विनोद शास्त्री, आवरण सजिल्द क्लॉथ बाइंडिंग, आकार २५ से.मी. x २१ से.मी., द्वितीय संस्करण बसंत पंचमी २०२१, पृष्ठ संख्या ८००, मूल्य रु ७४०/-, प्रकाशक भागवत पीयूषधाम समिति दिल्ली।]
*
पुस्तकें मनुष्य की श्रेष्ठ मित्र और मार्गदर्शक हैं। मानव जीवन के हर मोड़ पर पुस्तकों की उपादेयता होती है। अधिकांश पुस्तकें जीवन के एक सोपान पर उपयोगी होने के पश्चात् अपनी उपयोगिता खो बैठती हैं किन्तु कुछ पुस्तकें ऐसी भी होती है जो सतत सनातन ज्ञान सलिला प्रवाहित करती हैं। ऐसी पुस्तकें मित्र मात्र नहीं पथ प्रदर्शक और व्यक्तित्व विकासक भी होती हैं। ऐसी ही एक पुस्तक है 'श्रीमद्भागवत रसामृतम्'। वास्तव में यह ग्रंथराज है। महर्षि वेदव्यास द्वारा प्रणीत श्रीमद्भागवत महापुराण पर की कथा को सात भागों में विभाजित कर साप्ताहिक कथा वाचन की उद्देश्य पूर्ति इस ग्रंथ ने की है। ग्रंथकार डॉ. विनोद शास्त्री जी ने श्रीमद्भागवत पर ही शोधोपाधि प्राप्त की है। यह ग्रंथ प्रामाणिक और सरस बन पड़ा है।
ग्रंथारंभ में श्रीगोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु स्वामी निश्चलानंद जी सरस्वती आशीष देते हुए लिखते हैं- 'डॉ. विनोद शास्त्री महाभागके द्वारा विरचित श्रीमद्भागवत रसामृतम् (साप्ताहिक कथा) आस्थापूर्वक अध्ययन, अनुशीलन और श्रवण करने योग्य है। श्री शास्त्री जी ने अत्यंत गहन विषय को सरलतम शब्दों में व्यक्त किया है। इस ग्रंथ में शब्द विमर्श सहित तात्विक विवेचन के माध्यम से दार्शनिक भाव व्यक्त किए गए हैं।' रमणरेती गोकुल से जगद्गुरु कार्ष्णि श्री गुरु शरणानंद जी महामंडलेश्वर के शब्दों में - 'ग्रंथ में दुरूह स्थलों एवं प्रसंगों को अत्यंत सरल शब्दों एवं भावों में व्यक्त किया गया है। बीच-बीच में संस्कृत श्लोकों की व्याख्या एवं वैयाकरण सौरभ दृष्टिगोचर होता है। रणचरित मानस एवं भगवद्गीता के उद्धरण देने से ग्रंथ की उपादेयता और भी बढ़ गई है। जगद्गुरु द्वाराचार्य मलूक पीठाधीश्वर श्री राजेंद्रदास जी के अनुसार 'श्री वंशीधरी आदि टीकाओं का भाव, सभी प्रसंगों का सरल तात्विक विवेचन, प्रत्येक स्कंध, अध्याय, प्रमुख श्लोकों का व्याख्यान इस ग्रंथ का अनुपम वैशिष्ट्य है। इस अनुपम ग्रंथ की श्री गोदा हरिदेव पीठाधीश्वर जगद्गुरु देवनारायणाचार्य, स्वामी श्री किशोरीरमणाचार्य जी, मारुतिनन्दन वागीश जी, कृष्णचन्द्र शास्त्री जी जैसे विद्वानों ने भी भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
ग्रंथ में श्रीमद्भागवद माहात्म्य के पश्चात् बारह स्कन्धों में कथा का वर्णन है। माहत्म्य के अंतर्गत नाद-भक्ति संवाद, भक्ति का कष्ट विमोचन, गोकर्ण की कथा, धुंधकारी की मुक्ति तथा सप्ताह यज्ञ की विधि वर्णित है। प्रथम स्कंध में भगवद्भक्ति का माहात्म्य, अवतारों का वर्ण, व्यास-नारद संवाद, भागवत रचना, द्रौपदी-सुतों का वध, अश्वत्थामा का मान मर्दन, परीक्षित की रक्षा, भीष्म का देह त्याग, कृष्ण का द्वारका में स्वागत, परीक्षित जन्म, धृतराष्ट्र-गांधारी का हिमालय गमन, परीक्षित राज्याभिषेक, पांडवों का स्वर्ग प्रस्थान, परीक्षित की दिग्विजय, कलियुग का दमन, शृंगी द्वारा शाप तथा शुकदेव द्वारा उपदेश वर्णित हैं। दूसरे स्कंध में ध्यान विधि, विराट स्वरूप, भक्ति माहात्म्य, शुकदेव द्वारा सृष्टि वर्णन, विराट रूप की विभूति का वर्णन, अवतार कथा, ब्रह्मा द्वारा चतुश्लोकी भगवत तथा भागवत के दस लक्षण समाहित हैं। तृतीय स्कंध में उद्धव-विदुर भेंट, कृष्ण की बाल लीला, विदुर - मैत्रेय संवाद, ब्रह्मा की उत्पत्ति, सृष्टि व काल का वर्णन, वाराह अवतार, जय-विजय कथा, हिरण्याक्ष- हिरण्यकशिपु प्रसंग, देवहूति-कर्दम प्रसंग, कपिल जन्म, सांख्ययोग, अष्टांग योग, भक्तियोग आदि प्रसंग हैं। चतुर्थ स्कंध में स्वायंभुव मनु प्रसंग, शंकर-दक्ष प्रसंग, ध्रुव की कथा, वेन, पृथु तथा पुरंजन की कथाओं का विवेचन किया गया है। पंचम स्कंध में प्रियव्रत, आग्नीध्र, नाभि, ऋषभदेव, भारत, राजा रहूगण के प्रसंग, गंगावतरण, भारतवर्ष, षडद्वीप, लोकलोक पर्वत, सूर्य, राहु तथा नरकादि का वर्णन किया गया है। षष्ठ स्कंध में अजामिल आख्यान, नारद-दक्ष प्रसंग, विश्वरूप प्रसंग, दधीचि प्रसंग, वृत्तासुर वध, चित्रकेतु प्रसंग तथा अदिति व दिति प्रसंगों की व्याख्या की गई है।
नारद-युधिष्ठिर संवाद, जय-विजय कथा, हिरण्यकशिपु-प्रह्लाद-नृसिंह प्रसंग, मानव-धर्म, वर्ण-धर्म, स्त्री-धर्म, सन्यास धर्म तथा गृहस्थाश्रम महत्व का वर्णन सप्तम स्कंध में है। आठवें स्तंभ में मन्वन्तरों का वर्णन, गजेंद्र प्रसंग, समुद्र मंथन, शिव द्वारा विष-पान, देवासुर प्रसंग, वामन-बलि प्रसंग तथा मत्स्यावतार की कथा मही गयी है। नौवें स्कंध में वैवस्वत मनु, महर्षि च्यवन, रहा शर्याति, अम्ब्रीश, दुर्वासा, इक्ष्वाकु वंश, मान्धाता, त्रिशंकु, हरिश्चंद्र, सगर, भगीरथ, श्री राम, निमि, चन्द्रवंश, परशुराम, ययाति, पुरु वंश, दुष्यंत, भरत आदि प्रांगण पर प्रकश डाला गया है। दसवें स्कंध के पूर्वार्ध में वासुदेव-देवकी विवाह, श्री कृष्ण जन्म, पूतनादि उद्धार, ब्रह्मा को मोह, कालिय नाग, चीरहरण, गोवर्धन-धारण, रासलीला, अरिष्टासुर वध, कुब्जा पर कृपा, भ्रमर गीत आदि पतसंग हैं। दसवें स्कंध के उत्तरार्ध में जरासंध वध, द्वारका निर्माण, कालयवन-मुचुकुंद प्रसंग, रुक्मिणी से विवाह, प्रद्युम्न जन्म, शंबरासुर वध, जांबवती व सत्यभाभा के साथ विवाह, सीमन्तक हरण. भौमासुर उद्धार, रुक्मि वध, उषा-अनिरुद्ध प्रसंग, श्रीकृष्ण-बाणासुर युद्ध, राजसूय यज्ञ, शिशुपाल उद्धार, शाल्व उद्धार, सुदामा प्रसंग, वसुदेव यज्ञोत्सव, त्रिदेव परीक्षा लीलाविहार आदि प्रसंगों का वर्णन है। ग्यारहवें स्कंध में यदुवंश को ऋषि-शाप, कर्म योग निरूपण, अवतार कथा, अवधूत प्रसंग, भक्ति योग की महिमा, भगवन की विभूतियों का वर्णन, वर्ण धर्म, ज्ञान योग, सांख्य योग, क्रिया योग, परमार्थ निरूपण आदि प्रसंगों का विश्लेषण है। अंतिम बारहवें स्कंध में कलियुग के राजाओं का वर्णन, प्रलय, परीक्षित प्रसंग, अथर्ववेद की शाखाएँ, मार्कण्डेय प्रसंग, श्रीमद्भागवत महिमा आदि का समावेश है।
डॉ. विनोद शास्त्री जी ने श्रीमद्भागवत के विविध प्रसंगों का वर्णन मात्र नहीं किया अपितु उनमें अन्तर्निहित गूढ़ सिद्धांतों, सनातन मूल्यों आदि का सहल-सरल भाषा में सम्यक विश्लेषण भी किया है। श्रीमद्भागवत के हर प्रसंग का समावेश इस ग्रंथ में है। अध्यायों में प्रयुक्त श्लोकों का शब्द विमर्श, पाठक को श्लोक के हर शब्द को समझकर अर्थ ग्रहण करने में सहायक है। शब्द विमर्श में श्लोक का अर्थ, समास, व्युत्पत्ति आदि का अध्ययन कर पाठक अपने ज्ञान, भाषा और अभिव्यक्ति सामर्थ्य की गुणवत्ता वृद्धि कर सकता है। विविध प्रांगण पर प्रकाश डालते समय श्रीमद्भगवतगीता, श्री रामचरित मानस से संबंधित उद्धरणों का समावेश कथ्य के मूलार्थ के साथ-साथ भावार्थ, निहितार्थ को भी समझने में सहायक है। दर्शन के गूढ़ सिद्धांतों को जन सामान्य के लिए सुग्राह्य तथा सहज बोधगम्य बनाने के लिए विनोद जी ने मुख्य आख्यान के साथ-साथ सहायक उपाख्यानों का यथास्थान सटीक प्रयोग किया है। किसी मांगलिक कार्य का श्री गणेश करने के पूर्व ईश वंदना की सनातन परंपरा का पालन करते हुए कृत्यारंभ में मंगलाचरण के अंतर्गत बारह श्लोकों में देव वंदना की गई है। ग्रंथ की श्रेष्ठता का पूर्वानुमान विद्वान् जगद्गुरुओं द्वारा दिए गए शुभाशीष संदेशों से किया जा सकता है।
विनोद जी द्वारा प्रयुक्त शैली के परिचयार्थ स्कंध १, अध्याय ४ से 'विरक्त' का तात्पर्य प्रसंग प्रस्तुत है-
'विष्णो: रक्त: विरक्त:' अर्थात भगवन की भक्ति में अनुरक्त होकर जीवन यापन करो। 'जीवस्यतत्वजिज्ञासा' (भाग. १/२/१०) - जीवन का लक्ष्य है परमात्मा के स्वरूप (तत्व) का ज्ञान करना।
विवेकेन भवत्किं में पुत्रं देहि ब्लादपि।
नोचेत्तयजाम्यहं प्राणांस्त्वदग्रे शोकमूर्छित:।। ३७
आत्मदेव ने कहा- मुझे विवेक से क्या मतलब है? मुझे तो संतान दें। यदि मेरे भाग्य में संतान नहीं है तो अपने भाग्य से दें, नहीं तो मैं शोक मूर्छित हो प्राण त्याग करता हूँ। आत्मदेव - मरने के बाद मेरा पिंडदान कौन करेगा? सन्यासी ने कहा- केवल इतनी सी बात के लिए प्राण त्याग करना चाहते हो। संतान बुढ़ापे में सेवा करेगी, इसकी क्या गारंटी है? आशा ही दुख का कारण है। दशरथ जी के चार पुत्र थे लेकिन अंतिम समय में कोई पास में नहीं था। २० दिन तक तेल की कढ़ाई में शव रखा रहा। इसलिए इस शरीर रूपी पिंड को भगवद्कार्य (सेवा) में समर्पित करो।
उद्धरेदात्म नात्मानं नात्मानमवसादयेत्। (गीता) ६/५
आत्मा से ही आत्मा का उद्धार होगा। याद रखो संतान से तुम्हें सुख मिलनेवाला नहीं है। सन्यासी ने कहा पुत्र ही पिंडदान करेगा, ऐसी आशा छोड़ दो। परमात्मा के अपरोक्ष साक्षात्कार के बिना मुक्ति नहीं मिलती। तमेव विदित्वा अति मृत्युं एति नान्य: पंथा: विद्यते अनयाय। शास्त्रों में कहा है- ऋते ज्ञानान्नमुक्ति: बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं मिलती। अपना पिंडदान अपने हाथ से करो। सन्यासी के उपदेश का आत्मदेव के मन पर कोइ प्रभाव नहीं हुआ। तब सन्यासी को ब्राह्मण पर दया आ गई और उन्होंने आम का एक फल आत्मदेव के हाथ में दिया और कहा- जाओ अपनी पत्नी को यह फल खिला दो।
इदं भक्षय पत्न्या त्वं तट: पुत्रो भविष्यति। ४१
सत्यं शौचं दयादानमेकभक्तं तू भोजनम्।। ४२
इस फल के खाने से तुम्हारी स्त्री के गर्भ से एक सुंदर सात्विक स्वभाववाला पुत्र होगा।
वर्षावधि स्त्रिया कार्य तेन पुत्रोsतिनिर्मल:।। ४२
तुम्हारी स्त्री को सत्य, शौच, दया, एक समय नियम लेना होगा। यह कहकर सन्यासी (योगिराज) चले गए। ब्राम्हण ने घर आकर वह फल अपनी पत्नी (धुंधली) के हाथ में दिया और स्वयं किसी कार्यवश बाहर चला गया। कुटिल पत्नी अपनी सखी से रो-रोकर अपनी व्यथा कहने लगी, बोली- फल खाकर गर्भ रहने पर मेरा पेट बढ़ेगा। मैं अस्वस्थ्य हो जाऊँगी। मेरी जैसी कोमल सुकुमार स्त्री से एक वर्ष तक नियम पालन नहीं होगा। उसने उस फल को नहीं खाया, अपने पति से असत्य कह दिया कि मैंने फल खा लिया है।
पत्या पृष्टं फलं भुक्तं चेति तयेरितं। ५०
धुंधली को पुत्र (फल) प्राप्त करने की इच्छा तो है किंतु बिना दुःख झेले। मनुष्य पुण्य करना नहीं, फल भोगना चाहता है। शास्त्र न जानने के कारण धुंधली ने अनर्थ किया। आत्मा पर बुद्धि का वर्चस्व आ जाता है तो सर्वनाश हो जाता है। पत्नी यदि परमात्मा की और चले तो कल्याण होता है।
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीमं। (दुर्गा सप्तशती)
सरस्वती की कृपा होने पर गृहस्थ को अच्छी पत्नी मिलती है। संतों पर सरस्वती की कृपा होने पर विद्वान बनते हैं। भारतीय पत्नी को पति में ही नारायण के दर्शन होते हैं। पति की सेवा नारायण सेवा ही है। प्रसंग में आगे धुंधकारी कौन है (दार्शनिक भाव), आत्मदेव का चरित्र (दार्शनिक भाव) जोड़ते हुए अंत में धुंधकारी के चरित्र से शिक्षा वर्णित है। विनोद जी ने पौराणिक प्रसंगों को समसामयिक परिस्थितियों और परिवेश से जोड़ते हुए व्यावहारिक उपयोगिता बनाये रखने में सफलता पाई है।
•••
सॉनेट
मानव वह जो कोशिश करता।
कदम-कदम नित आगे बढ़ता।
गिर-गिर, उठ-उठ फिर-फिर चलता।।
असफल होकर वरे सफलता।।
मानव ऐंठे नहीं अकारण।
लड़ बाधा का करे निवारण।
शरणागत का करता तारण।।
संयम-धैर्य करें हँस धारण।।
मानव सुर सम नहीं विलासी।
नहीं असुर सम वह खग्रासी।
कुछ यथार्थ जग, कुछ आभासी।।
आत्मोन्नति हित सदा प्रयासी।।
मानव सलिल-धार सम निर्मल।
करे साधना सतत अचंचल।।
२७-२-२०२२
•••
मुक्तक
हम मतवाले पग पगडंडी पर रख झूमे।
बाधाओं को जय कर लें मंज़िल पग चूमे।।
कंकर को शंकर कर दें हम रखें हौसला-
मेहनत कोशिश लगन साथ ले सब जग घूमे।।
*
मंज़िल की मत फ़िक्र करो हँस कदम बढ़ाओ।
राधा खुद आए यदि तुम कान्हा बन जाओ।।
शिव न उमा के पीछे जाते रहें कर्मरत-
धनुष तोड़ने काबिल हो तो सिय को पाओ।।
*
यायावर राही का राहों से याराना।
बिना रुके आगे, फिर आगे, आगे जाना।।
नई चुनौती नित स्वीकार उसे जय करना-
मंज़िल पर पग धर झट से नव मंज़िल वरना।।
*
काव्य मंजरी छंद राज की जय जय गाए।
काव्य कामिनी अलंकार पर जान लुटाए।।
रस सलिला में नित्य नहा, आनंद पा-लुटा-
मंज़िल लय में विलय हो सके श्वास सिहाए।।
*
मंज़िल से याराना अपना।
हर पल नया तराना अपना।।
आप बनाते अपना नपना।
पूरा करें देख हर सपना।।
२७-२-२०२१
***
छंद सलिला
२९ मात्रिक महायौगिक जातीय, कला त्रयोदशी छंद
*
विधान :
प्रति पद प्रथम / विषम चरण १६ कला (मात्रा)
प्रति पद द्वितीय / सम चरण १३ कला
नामकरण संकेत: कला १६, त्रयोदशी तिथि १३
यति १६ - १३ पर, पदांत गुरु ।
*
लक्षण छंद:
कला कलाधर से गहता जो, शंकर प्रिय तिथि साथी।
सोलह-तेरह पर यति सज्जित, फागुन भंग सुहाती।।
उदाहरण :
शिव आभूषण शशि रति-पति हँस, कला सोलहों धारता।
त्रयोदशी पर व्रत कर चंदा, बाधा-संकट टारता।।
तारापति रजनीश न भूले, शिव सम देव न अन्य है।
कालकूट का ताप हर रहा, शिव सेवा कर धन्य है।।
२२.४.२०१९
*
मुक्तक
सरहद पर संकट का हँसकर, जो करता है सामना।
उसकी कसम तिरंगा कर में, सर कटवाकर थामना।।
बड़ा न कोई छोटा होता, भला-बुरा पहचानना-
वह आदम इंसान नहीं जो, करे किसी का काम ना।।
***
दोहा सलिला
*
नदी नेह की सूखती, धुँधला रहा भविष्य
महाकाल का हो रहा, मानव आप हविष्य
*
दोहा सलिला निर्मला, प्रवहित सतत अखंड
नेह निनादित नर्मदा, रखिए प्रबल प्रचंड
*
कलकल सलिल प्रवाहमय, नदी मिटाती प्यास
अमल विमल जल कमल दल, परिमल हरते त्रास
*
नदी तीर पर सघन वन, पंछी कलरव गान
सनन सनन प्रवहे पवन, पड़े जान में जान
*
नदी न गंदी कीजिए, सविनय करें प्रणाम
मैया कह आशीष लें, स्वर्ग बने भू धाम
*
नदी तीर पर सभ्यता, जन्मे विकसे नित्य
नदी मिटा खुद भी मिटे, अटल यही है सत्य
*
नद निर्झर सर सरोवर, ईश्वर के वरदान
करे नष्ट खुद नष्ट हो, समझ सँभल इंसान
२७-२-२०२०
***
एक रचना
*
जब
जिद, हठधर्मी और
गुंडागर्दी को
मान लिया जाए
एक मात्र राह,
जब
अनदेखी-अनसुनी
बना ली जाए
अंतर्मन की चाह,
तब
विनाश करता है
नंगा नाच
जब
कमर कसकर कोई
दृढ़संकल्पी
उतरता है
जमीन पर,
जब
होता है भरोसा
नायक को
सही दिशा और
गति का
तब
लोगों में सद्भावना
जागती है
भाषणबाज नेताओ
अपने आप पर
शर्म करो
पछताओ
तुम सब सिद्ध हुए
हो नाकारा
और कायर,
अब नहीं है
कोई गाँधी
हम
भारत की संतानें
भाईचारा
मजबूत करें
न डराएँ,
न डरें
राजनीति-दलनीति
जिम्मेदार हैं
दूरियों के लिए
हम बढ़ाएँ
नजदीकियाँ
घृणा की आँधी
रोकें
हमें
अंकित शर्मा के
बलिदान की
कसम है
हम जागें
भड़कानेवाले
नेताओं को
दिखाएँ ठेंगा
देश में कायम करें
अमन-शांति
देश हमारा और
हम देश के हैं
***
कार्यशाला
दोहा से कुंडलिया
*
तुम्हें पुकारे लेखनी, पकड़ नाम की डोर ।
हे बजरंगी जानिए, तिमिर घिरा चहुँ ओर ।। - आशा शैली
तिमिर घिरा चहुँ ओर, हाथ को हाथ न सूझे
दूर निराशा करें, देव! हल अन्य न सूझे
सलिल बुझाने प्यास, तुम्हारे आया द्वारे
आशा कर दो पूर्ण, लेखनी तुम्हें पुकारे - सलिल
*
२७-२-२०२०
***
कार्यशाला
दोहा से कुंडलिया
*
तुम्हें पुकारे लेखनी, पकड़ नाम की डोर ।
हे बजरंगी जानिए, तिमिर घिरा चहुँ ओर ।। - आशा शैली
तिमिर घिरा चहुँ ओर, हाथ को हाथ न सूझे
दूर निराशा करें, देव! हल अन्य न सूझे
सलिल बुझाने प्यास, तुम्हारे आया द्वारे
आशा कर दो पूर्ण, लेखनी तुम्हें पुकारे - सलिल
***
सवैया
विधान : प्रति पद २४ वर्ण, पदांत मगण
*
छंद नहीं स्वच्छंद, नहीं प्रच्छंद सहज छा पाते हैं, मन भाते हैं
सुमन नहीं निर्गंध, लुटाएँ गंध, सु मन मुस्काते हैं, जी जाते हैं
आप करें संतोष, न पाले रोष, न जोड़ें कोष, यहीं रह जाते हैं
छंद मिटाते प्यास, हरें संत्रास, लुटाते हास, होंठ हँस पाते हैं
२७-२-२०२०
***
सावरकर
सावरकर को प्रिय नहीं, रही स्वार्थ अनुरक्ति
उन सा वर कर पंथ हम, करें देश की भक्ति
वीर विनायक ने किया, विहँस आत्म बलिदान
डिगे नहीं संकल्प से, कब चाहा प्रतिदान?
भक्तों! तजकर स्वार्थ हों, नीर-क्षीर वत एक
दोषारोपण बंद कर, हों जनगण मिल एक
मोटी-छोटी अँगुलियाँ, मिल मुट्ठी हों आज
गले लगा-मिल साधिए, सबके सारे काज
२६-२-२०२०
•••
एक रचना
यमराज मिराज ने
*
छोड़ दिए अनलास्त्र
यमराज बने मिराज ने
*
कठपुतली सरकार के
बनकर खान प्रधान
बोल बोलते हैं बड़े,
बुद्धू कहे महान
लिए कटोरा भीख का
सारी दुनिया घूम-
पाल रहे आतंक का
हर पगलाया श्वान
भारत से कर शत्रुता
कोढ़ पाल ली खाज ने
छोड़ दिए अनालास्त्र
यमराज बने मिराज ने
*
कोई साथ न दे रहा
रोज खा रहे मार
पाक हुआ दीवालिया
फ़ौज भीरु-बटमार
एटम से धमका रहा
पाकर फिर-फिर मात
पाठ पढ़ा भारत रहा
दे हारों का हार
शांति कपोतों से घिरा
किया समर्पण बाज ने
छोड़ दिए अनालास्त्र
यमराज बने मिराज ने
*
सैबरजेटों को किया
था नैटों ने ढेर
बोफ़ोर्सों ने खदेड़ा
करगिल से बिन देर
पाजी गाजी डुबो दी
सागर में रख याद
छेड़ न, छोड़ेंगे नहीं
अब भारत के शेर
गीदड़भभकी दे रहा
छोड़ दिया क्या लाज ने?
छोड़ दिए अनालास्त्र
यमराज बने मिराज ने
२६-२-२०१९
***
एक गीत
*
सरहद से
संसद तक
घमासान जारी है
*
सरहद पर आँखों में
गुस्सा है, ज्वाला है.
संसद में पग-पग पर
घपला-घोटाला है.
जनगण ने भेजे हैं
हँस बेटे सरहद पर.
संसद में.सुत भेजें
नेता जी या अफसर.
सरहद पर
आहुति है
संसद में यारी है.
सरहद से
संसद तक
घमासान जारी है
*
सरहद पर धांय-धांय
जान है हथेली पर.
संसद में कांव-कांव
स्वार्थ-सुख गदेली पर.
सरहद से देश को
मिल रही सुरक्षा है.
संसद को देश-प्रेम
की न मिली शिक्षा है.
सरहद है
जांबाजी
संसद ऐयारी है
सरहद से
संसद तक
घमासान जारी है
*
सरहद पर ध्वज फहरे
हौसले बुलंद रहें.
संसद में सत्ता हित
नित्य दंद-फंद रहें.
सरहद ने दुश्मन को
दी कड़ी चुनौती है.
संसद को मिली
झूठ-दगा की बपौती है.
सरहद जो
रण जीते
संसद वह हारी है.
सरहद से
संसद तक
घमासान जारी है
२७-२-२०१८
***
एक रचना :
मानव और लहर
*
लहरें आतीं लेकर ममता,
मानव करता मोह
क्षुब्ध लौट जाती झट तट से,
डुबा करें विद्रोह
*
मानव मन ही मन में माने,
खुद को सबका भूप
लहर बने दर्पण कह देती,
भिक्षुक! लख निज रूप
*
मानव लहर-लहर को करता,
छूकर सिर्फ मलीन
लहर मलिनता मिटा बजाती
कलकल-ध्वनि की बीन
*
मानव संचय करे, लहर ने
नहीं जोड़ना जाना
मानव देता गँवा, लहर ने
सीखा नहीं गँवाना
*
मानव बहुत सयाना कौआ
छीन-झपट में ख्यात
लहर लुटाती खुद को हँसकर
माने पाँत न जात
*
मानव डूबे या उतराये
रहता खाली हाथ
लहर किनारे-पार लगाती
उठा-गिराकर माथ
*
मानव घाट-बाट पर पण्डे-
झण्डे रखता खूब
लहर बहाती पल में लेकिन
बच जाती है दूब
*
'नानक नन्हे यूँ रहो'
मानव कह, जा भूल
लहर कहे चंदन सम धर ले
मातृभूमि की धूल
*
'माटी कहे कुम्हार से'
मनुज भुलाये सत्य
अनहद नाद करे लहर
मिथ्या जगत अनित्य
*
'कर्म प्रधान बिस्व' कहता
पर बिसराता है मर्म
मानव, लहर न भूले पल भर
करे निरंतर कर्म
*
'हुईहै वही जो राम' कह रहा
खुद को कर्ता मान
मानव, लहर न तनिक कर रही
है मन में अभिमान
*
'कर्म करो फल की चिंता तज'
कहता मनुज सदैव
लेकिन फल की आस न तजता
त्यागे लहर कुटैव
*
'पानी केरा बुदबुदा'
कह लेता धन जोड़
मानव, छीने लहर तो
डूबे, सके न छोड़
*
आतीं-जातीं हो निर्मोही,
सम कह मिलन-विछोह
लहर, न मानव बिछुड़े हँसकर
पाले विभ्रम -विमोह
२७-२-२०१८
***
नवगीत:
जब तुम आईं
*
कितने रंग
घुले जीवन में
जब तुम आईं।
*
हल्दी-पीले हाथ द्वार पर
हुए सुशोभित।
लाल-लाल पग-चिन्ह धरा को
करें विभूषित।
हीरक लौंग, सुनहरे कंगन
करें विमोहित।
स्वर्ण सलाई ले
दीपक की
जोत मिलाईं।
*
गोर-काले भाल-बाल
नैना कजरारे।
मैया ममता के रंग रंगकर
नजर उतारे।
लिये शरारत का रंग देवर
नकल उतारे।
लिए चुहुल का
रंग, ननदी ने
गजल सुनाईं।
*
माणिक, मूंगा, मोती, पन्ना,
हीरा, नीलम,
लहसुनिया, पुखराज संग
गोमेद नयन नम।
नौरत्नों के नौ रंगों की
छटा हरे तम।
सतरंग साड़ी
नौरंग चूनर
मन को भाईं।
*
विरह-मिलन की धूप-छाँव
जाने कितने रंग।
नाना नाते नये जुड़े जितने
उतने संग।
तौर-तरीके, रीति-रस्म के
नये-नये ढंग।
नीर-क्षीर सी मिलीं, तनिक
पहले सँकुचाईं
२७-२-२०१६
***
*
नवगीत:
.
सूरज
मुट्ठी में लिये,
आया लाल गुलाल.
देख उषा के
लाज से
हुए गुलाबी गाल.
.
महुआ महका,
टेसू दहका,
अमुआ बौरा खूब.
प्रेमी साँचा,
पनघट नाचा,
प्रणय रंग में डूब.
अमराई में,
खलिहानों में,
तोता-मैना झूम
गुप-चुप मिलते,
खुस-फुस करते,
सबको है मालूम.
चूल्हे का
दिल भी हुआ
हाय! विरह से लाल.
कुटनी लकड़ी
जल मरी
सिगड़ी भई निहाल.
सूरज
मुट्ठी में लिये,
आया लाल गुलाल.
देख उषा के
लाज से
हुए गुलाबी गाल.
.
सड़क-इमारत
जीवन साथी
कभी न छोड़ें हाथ.
मिल खिड़की से,
दरवाज़े ने
रखा उठाये माथ.
बरगद बब्बा
खों-खों करते
चढ़ा रहे हैं भाँग.
पीपल भैया
शेफाली को
माँग रहे भर माँग.
उढ़ा
चमेली को रहा,
चम्पा लकदक शाल.
सदा सुहागन
छंद को
सजा रही निज भाल.
सूरज
मुट्ठी में लिये,
आया लाल गुलाल.
देख उषा के
लाज से
हुए गुलाबी गाल.
२६.२.२०१५
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