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शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

मुक्तिका, मुक्तिका, पैर, दुर्गा पूजा में सरस्वती, हिंदी ग़ज़ल, मुक्तक, दोहा, नवगीत

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मुक्तिका
हुआ है आप बेघर घर, घिरा जब से मकानों से।
घराने माँगते हैं रहम अब तो बेघरानों से।।

कसम खाई कहेगा सच, सरासर झूठ बोलेगा।
अदालत की अदा लत जैसी, बू आती बयानों से।।

कहीं कोई, कहीं कोई, कहीं कोई करे धंधा
खुदा रब ईश्वर हमको बचाना इन दुकानों से।।

कहीं एसिड, कहीं है रेप-मर्डर, आशिकों पे थू।
फरेबों में न आना, दूर रहना निगहबानों से।।

ज़माना आ गया लिव इन का, है मरने से भी बदतर।
खुदाया छुड़ाना ये लत हमारे नौजवानों से।।

कहीं ये टैक्स लेकर बादलों को मार न डालें।
खुदा महफूज़ रक्खे आसमां को हाकिमानों से।।

चलाती हैं कुल्हाड़ी आप अपने पैर पर रस्में।
बचे इंसान खुद मजहबपरस्ती से, 'मशानों से।।
७-१०-२०२२
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माँ सरस्वती के द्वादश नाम
माँ सरस्वती के स्तोत्र, मन्त्र, श्लोक याद न हो तो श्रद्धा सहित इन १२ नामों का जप करें -
हंसवाहिनी बुद्धिदायिनी भारती।
गायत्री शारदा सरस्वती तारती।।
ब्रह्मचारिणी वागीश्वरी! भुवनेश्वरी!
चंद्रकांति जगती कुमुदी लो आरती।।
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हिंदी की शब्द सामर्थ्य
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प्रभु के हों तो "चरण"
आगे बढ़े तो "क़दम"
चिन्ह छोड़े तो "पद"
प्रहार करे तो 'पाद'
बाप की हो तो "लात"
अड़ा दो तो "टाँग"
फूलने लगें तो "पाँव"
भारी हो तो "पैर"
पिराने लगे तो ''गोड़''
गधे की पड़े तो "दुलत्ती"
घुँघरू बाँध दो तो "पग"
भरना पड़े तो ''डग''
खाने के लिए "टंगड़ी"
खेलने के लिए "लंगड़ी"
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विमर्श
दुर्गा पूजा में सरस्वती की पूजा का विधान ?
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बंगला भाषी समाज में दुर्गा पूजा में माँ दुर्गा की प्रतिमा के साथ भगवान शिव,गणेशजी,लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी और कार्तिक जी की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। मध्य तथा उत्तर भारत यह प्रथा नहीं है।
श्रीदुर्गासप्तशती पाठ (गीताप्रेस, गोरखपुर) के पंचम अध्याय, श्लोक १ के अनुसार -
ॐ घण्टाशूलहलानि शंखमूसले चक्रं धनुसायकं हस्ताब्जैर्धतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्य प्रभां।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महापूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुंभादिदैत्यार्दिनीं।।
अर्थात महासरस्वती अपने कर कमलों घण्टा, शूल, हल,शंख,मूसल,चक्र,धनुष और बाण धारण करती हैं। शरद ऋतु के शोभा सम्पन्न चन्द्रमा के समान जिनकी मनोहर कांति है, जो तीनों लोकों की आधारभूता और शुम्भ आदि दैत्यों का नाश करने वाली हैं तथा गौरी के शरीर से जिनका प्राकट्य हुआ है। पंचम अध्याय के प्रारम्भ में ही निम्नलिखित एक श्लोक के द्वारा इस बात का ध्यान किया गया है।
पंचम अध्याय के ऋषि रूद्र, देवता महासरस्वती, छंद अनुष्टुप, शक्ति भीमा, बीज भ्रामरी, तत्व सूर्य है। यह अध्याय सामवेद स्वरूप कहा गया है। दुर्गा स्पृशति के उत्तर चरित्र के पथ में इसका विनियोग माता सरस्वती की प्रसन्नता के लिए ही किया जाता है।
ईश्वर की स्त्री प्रकृति के तीन आयाम दुर्गा(तमस-निष्क्रियता), लक्ष्मी(रजस-जुनून,क्रिया) तथा सरस्वती (सत्व-सीमाओं को तोड़ना,विलीन हो जाना) है।जो ज्ञान की वृद्धि के परे जाने की इच्छा रखते हैं, नश्वर शरीर से परे जाना चाहते हैं, वे सरस्वती की पूजा करते हैं। जीवन के हर पहलू को उत्सव के रूप में मनाना महत्वपूर्ण है। हर अच्छे भावों से जुड़े रहना अच्छी बात है।
विभिन्न मतों में कहीं न कहीं कुछ समानताएँ भी हैं। दुर्गापूजा में माँ के साथ उनकी सभी सन्तानों और पति की भी पूजा होती है। इसका कारण यह है कि दैत्यों के विनाश में इनका तथा अन्य देवी-देवताओं का भी साथ था। सभी देवताओं की एक साथ पूजा होने के कारण ही इस पूजा को 'महापूजा' कहा गया है। साधारणतः इसे महाषष्ठी, महासप्तमी, महाष्टमी, महानवमी, महादशमी के नाम से जाना जाता है।
वस्तुत: लंका युद्ध के समय भगवान राम ने सिर्फ माँ दुर्गा की पूजा की थी। कालांतर में ऐसा माना गया कि माँ दुर्गा अपने मायके आती हैं तो साथ में अपने संतान और पति को भी लातीं हैं या संतान उनसे मिलने आतीहैं, इसलिए सबकी पूजा एक साथ की जाने लगी। यह पूजा बहुत बड़ी पूजा है और इतनी बड़ी पूजा में देवी-देवताओं के आवाहन के लिए बुद्धि, ज्ञान, वाकशक्ति, गायन, नर्तन आदि की आवश्यकता होती है। इनकी अधिष्ठात्री शक्ति होने के नाते भी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।
स्पष्ट है कि माँ दुर्गा की पूजा में अन्य देवी-देवताओं के साथ सरस्वती जी की पूजा बहुत ही महत्वपूर्ण और सार्थक है। इस स्वस्थ्य परंपरा को अन्यत्र भी अपनाया जाना चाहिए।
यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ सरस्वती मंदिरों को शक्ति पीठ की मान्यता प्राप्त है। वहाँ सरस्वती पूजन दुर्गा पूजन की ही तरह किया जाता है और बलि भी दी जाती है। ऐसे मंदिरों में मैहर का शारदा मंदिर प्रमुख है जिन्हें एक ओर आल्हा-ऊदल ने शक्ति की रूप में आराधा तो दूसरी ओर उस्ताद अलाउद्दीन खान ने सारस्वत रूप में उपासा।
७-१०-२०२१
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हिंदी ग़ज़ल
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ब्रम्ह से ब्रम्हांश का संवाद है हिंदी ग़ज़ल।
आत्म से परमात्म की फ़रियाद है हिंदी ग़ज़ल।।
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मत गज़ाला-चश्म कहना, यह कसीदा भी नहीं।
जनक-जननी छन्द-गण, औलाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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जड़ जमी गहरी न खारिज़ समय कर सकता इसे
सिया-सत सी सियासत, मर्याद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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भार-पद गणना, पदांतक, अलंकारी योजना
दो पदी मणि माल, वैदिक पाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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सत्य-शिव-सुन्दर मिले जब, सत्य-चित-आनंद हो
आsत्मिक अनुभूति शाश्वत, नाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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नहीं आक्रामक, न किञ्चित भीरु है, युग जान ले
प्रात कलरव, नव प्रगति का वाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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धूल खिलता फूल, वेणी में महकता मोगरा
छवि बसी मन में समाई याद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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धीर धरकर पीर सहती, हर्ष से उन्मत्त न हो
ह्रदय की अनुभूति का, अनुवाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
*
परिश्रम, पाषाण, छेनी, स्वेद गति-यति नर्मदा
युग रचयिता प्रयासों की दाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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मुक्तक
चुप्पियाँ बहुधा बहुत आवाज़ करती हैं
बिन बताये ही दिलों पर राज करती हैं
बनीं-बिगड़ी अगिन सरकारें कभी कोई
आम लोगों का कहो क्या काज करती हैं?
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दोहा सलिला
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माँ जमीन में जमी जड़, पिता स्वप्न आकाश
पिता हौसला-कोशिशें, माँ ममतामय पाश
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वे दीपक ये स्नेह थीं, वे बाती ये ज्योत
वे नदिया ये घाट थे, मोती-धागा पोत
*
गोदी-आंचल में रखा, पाल-पोस दे प्राण
काँध बिठा, अँगुली गही, किया पुलक संप्राण
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ये गुझिया वे रंग थे, मिल होली त्यौहार
ये घर रहे मकान वे,बाँधे बंदनवार
*
शब्द-भाव रस-लय सदृश, दोनों मिलकर छंद
पढ़-सुन-समझ मिले हमें, जीवन का आनंद
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नेत्र-दृष्टि, कर-शक्ति सम, पैर-कदम मिल पूर्ण
श्वास-आस, शिव-शिवा बिन, हम रह गये अपूर्ण
*
भूमिपुत्र क्यों सियासत, कर बनते हथियार।
राजनीति शोषण करे, तनिक न करती प्यार।।
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फेंक-जलाएँ फसल मत, दें गरीब को दान।
कुछ मरते जी सकें तो, होगा पुण्य महान।।
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कम लागत हो अधिक यदि, फसल करें कम दाम।
सीधे घर-घर बेच दें, मंडी का क्या काम?
*
मरने से हल हो नहीं, कभी समस्या मान।
जी-लड़कर ले न्याय तू, बन सच्चा इंसान।।
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मत शहरों से मोह कर, स्वर्ग सदृश कर गाँव।
पौधों को तरु ले बना, खूब मिलेगी छाँव।।
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७.१०.२०१८
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नवगीत:
समय पर अहसान अपना...
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समय पर अहसान अपना
कर रहे पहचान,
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
हम समय का मान करते,
युगों पल का ध्यान धरते.
नहीं असमय कुछ करें हम-
समय को भगवान करते..
अमिय हो या गरल-
पीकर जिए मर म्रियमाण.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
हमीं जड़, चेतन हमीं हैं.
सुर-असुर केतन यहीं हैं..
कंत वह है, तंत हम हैं-
नियति की रेतन नहीं हैं.
गह न गहते, रह न रहते-
समय-सुत इंसान.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
पीर हैं, बेपीर हैं हम,
हमीं चंचल-धीर हैं हम.
हम शिला-पग, तरें-तारें-
द्रौपदी के चीर हैं हम..
समय दीपक की शिखा हम
करें तम का पान.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
७-१०-२०१०
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