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रविवार, 2 अक्तूबर 2022

मुक्तिका, नवगीत, गाँधी, चौबोला, गोपी, जयकारी, चौपई, भुजंगिनी, गुपाल, उज्ज्वला, छंद


छंदशाला २५
चौबोला छंद
(इससे पूर्व- सुगती, छवि, गंग, निधि, दीप, अहीर  शिव, भव, तोमर, ताण्डव, लीला, नित, चंद्रमणि, धरणी, कज्जल, सखी, विजाति, हाकलि,  मानव, मधुमालती, सुलक्षण, मनमोहन, सरस व मनोरम छंद)
विधान-
प्रति पद १५ मात्रा, पदांत IS ।
लक्षण छंद-
पंद्रह मात्रा के पद रखे।
लघु-गुरु पदों का अंत सखे।।
चौबोला बोला गह हाथ।
शारद सम्मुख हो नत माथ।।

उदाहरण-
बुंदेली खें मीठे बोल।
रस कानन मां देउत घोल।।

बम्बुलिया गा भौतइ नीक।
तुरतइ रचौ अनूठी लीक।।

आल्हा सुन खें मूँछ मरोर।
बैरी सँग अजमाउत जोर।।

मचलें कजरी राई कबीर।
फाग गा रए मलें अबीर।।

सारद माँ खें पूजन  जांय।
पैले रेवा खूब नहांय।।
१-१०-२०२२
•••

छंदशाला २६
गोपी छंद
(इससे पूर्व- सुगती, छवि, गंग, निधि, दीप, अहीर  शिव, भव, तोमर, ताण्डव, लीला, नित, चंद्रमणि, धरणी, कज्जल, सखी, विजाति, हाकलि,  मानव, मधुमालती, सुलक्षण, मनमोहन, सरस, मनोरम व चौबोला छंद)
विधान-
प्रति पद १५ मात्रा, पदादि त्रिकल, पदांत S ।
लक्षण छंद-
पंद्रह कल, त्रिकलादि न भुला।
रास रचा कान्हा मन खिला।।
गोपी-गोप अंत गुरु रखें।
फोड़ें मटकी, माखन चखें।।

उदाहरण-
छंद साथ गोपी मिल रचें।
आदि त्रिकल, अंत गुरु परखें।।

कला दिखा पंद्रह सुख दिया।
नंद-यशोदा हुलसा हिया।।

बंसी बजी गोप सुन गए।
रास रचा प्रभु पुलकित हुए।।

जमुना तट पर खेलें खेल।
होता द्वैताद्वैती मेल।।

कान्हा हर गोपी सह नचे।
नाना रूप मनोहर रचे।।
१-१०-२०२२
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छंदशाला २७
जयकारी छंद
(इससे पूर्व- सुगती, छवि, गंग, निधि, दीप, अहीर  शिव, भव, तोमर, ताण्डव, लीला, नित, चंद्रमणि, धरणी, कज्जल, सखी, विजाति, हाकलि,  मानव, मधुमालती, सुलक्षण, मनमोहन, सरस, मनोरम, चौबोला व गोपी छंद)
विधान-
प्रति पद १५ मात्रा, पदांत SI ।

लक्षण छंद-
अंतिम तिथि कल संख्या मीत।
गुरु-लघु पद का अंत सुनीत।।
जयकारी-चौपई सुनाम।
गति-यति-लय-रस छंद ललाम।।
(संकेत- अंतिम तिथि १५)

उदाहरण-
जयकारी की कला महान।
चमचे सीखें, भरें उड़ान।।

करे वार तारीफ अचूक।
बढ़ती जाती सुनकर भूख।।

कंकर को शंकर कह रहे।
बहती गंगा में बह रहे।।

चरते खेत ईनामों का।
समय है बेईमानों का।।

लेन-देन सौदे कर रहे।
कवि चारण जीकर मर रहे।।
१-१०-२०२२
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छंदशाला २८
भुजंगिनी/गुपाल छंद
(इससे पूर्व- सुगती/शुभगति, छवि/मधुभार, गंग, निधि, दीप, अहीर/अभीर, शिव, भव, तोमर, ताण्डव, लीला, नित, चंद्रमणि/उल्लाला, धरणी/चंडिका, कज्जल, सखी, विजाति, हाकलि, मानव, मधुमालती, सुलक्षण, मनमोहन, सरस, मनोरम, चौबोला, गोपी व जयकारी/चौपई छंद)
विधान
प्रति पद १५ मात्रा, पदांत ISI ।

लक्षण छंद-
नचा भुजंगिनी नच गुपाल।
वसु-ऋषि नाचे ले करताल।।
लघु-गुरु-लघु पद अंत रसाल।
छंद रचे कवि, करे कमाल।।
(संकेत- वसु८+ऋषि७=१५)

उदाहरण-
अपना भारत देश महान।
जग करता इसका गुणगान।।

सजा हिमालय सिर पर ताज।
पग धोता सागर दे मान।।

नदियाँ कलकल बह दिन-रात।
पढ़तीं गीता, ग्रंथ, कुरान।।

पंछी कलरव करें हमेश।
नाप नील नभ भरें उड़ान।।

बहा पसीना करें समृद्ध। 
देश हमारे श्रमिक-किसान।।

चूसें नेता-अफसर-सेठ।
खून बचाओ कृपानिधान।।

एक-नेक हम करें निसार।
भारत माँ पर अपनी जान।।
१-१०-२०२२
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छंदशाला २९
उज्ज्वला छंद
(इससे पूर्व- सुगती/शुभगति, छवि/मधुभार, गंग, निधि, दीप, अहीर/अभीर, शिव, भव, तोमर, ताण्डव, लीला, नित, चंद्रमणि/उल्लाला, धरणी/चंडिका, कज्जल, सखी, विजाति, हाकलि, मानव, मधुमालती, सुलक्षण, मनमोहन, सरस, मनोरम, चौबोला, गोपी, जयकारी/चौपई व भुजंगिनी/गुपाल छंद)
विधान
प्रति पद १५ मात्रा, पदांत SIS ।
   
लक्षण छंद-
उज्ज्वला रच बात बोलिए।
पंद्रह कला लिए डोलिए।।
गुरु-लघु-गुरु पदांत हो सखे!
बात में रस सलिल घोलिए।।

उदाहरण-
कृष्ण भजें पल पल राधिका।
कान्ह सुमिरे अचल साधिका।।

भव भुला चुप डूब भाव में।
भक्ति हो पतवार नाव में।।

शांत बैठ मन कर साधना।
अमला विमला रख भावना।।

नयन सूर हो बृज देख ले।
कान्ह पद रज शीश लेख ले।।

काम न आई मन कामना। 
जब तक मिलता हँस श्याम ना।

२-१०-२०२२
•••

मुक्तिका
*
वो ही खुद को तलाश पाया है 
जिसने खुद को खुदी भुलाया है

जो खुदी को खुदा में खोज रहा
वो खुदा में खुदी समाया है

आईना उसको क्या दिखाएगा
जिसने कुछ भी नहीं छिपाया है

जो बहा वह सलिल रहा निर्मल
जो रुका साफ रह न पाया है

देखता है जो बंदकर आँखें
दीप हो उसने तम मिटाया है

है कमालों ने क्या कमाल किया
आ कबीरों को बेच-खाया है

मार गाँधी को कह रहे बापू
झूठ ने सत्य को हराया है
***
*


नवगीत:
गाँधी
*
गाँधी को मारा
आरोप
गाँधी को भूले
आक्रोश
भूल सुधारी
गर वंदन कर
गाँधी को छीना
प्रतिरोध
गाँधी नहीं बपौती
मानो
गाँधी सद्विचार
सच जानो
बाँधो मत सीमा में
गाँधी
गाँधी परिवर्तन की
आँधी
स्वार्थ साधते रहे
अबोध
गाँधी की मत
नकल उतारो
गाँधी को मत
पूज बिसारो
गाँधी बैठे मन
मंदिर में
तन से गाँधी को
मनुहारो
कर्म करो सत
है अनुरोध
२-१०-२०२०
***

नवगीत: उत्सव का मौसम

*

उत्सव का

मौसम आया

मन बन्दनवार बनो...

*

सूना पनघट और न सिसके.

चौपालों की ईंट न खिसके..

खलिहानों-अमराई की सुध

ले, बखरी की नींव न भिसके..

हवा विषैली

राजनीति की

बनकर पाल तनो...

*

पछुआ को रोके पुरवाई.

ब्रेड-बटर तज दूध-मलाई

खिला किसन को हँसे जसोदा-

आल्हा-कजरी पड़े सुनाई..

कंस बिराजे

फिर सत्ता पर

बन बलराम धुनो...

*

नेह नर्मदा सा अविकल बह.

गगनविहारी बन न, धरा गह..

खुद में ही खुद मत सिमटा रह-

पीर धीर धर, औरों की कह..

दीप ढालने

खातिर माटी के

सँग 'सलिल' सनो.

२-१०-११

***







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