कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019

नवगीत: सांध्य सुंदरी

नवगीत:
सांध्य सुंदरी
तनिक न विस्मित
न्योतें नहीं इमाम
जो शरीफ हैं नाम का
उसको भेजा न्योता
सरहद-करगिल पर काँटों की
फसलें है जो बोता
मेहनतकश की
थकन हरूँ मैं
चुप रहकर हर शाम
नमक किसी का, वफ़ा किसी से
कैसी फितरत है
दम कूकुर की रहे न सीधी
यह ही कुदरत है
खबरों में
लाती ही क्यों हैं
चैनल उसे तमाम?
साथ न उसके मुसलमान हैं
बंदा गंदा है
बिना बात करना विवाद ही
उसका धंधा है
थूको भी मत
उसे देख, मत
करना दुआ-सलाम
***

कोई टिप्पणी नहीं: