अखिल भारतीय गीतिका काव्योत्सव् एवं सम्मान समारोह
गीतिका उतारती है भारती की आरती
नर्मदा है नेह की जो विश्व को है तारती
वास है 'कैलाश' पे 'उमेंश' को नमन करें
'दीपक' दें बाल 'कांति' शांति-दीप धारती
'शुक्ल विश्वम्भर' 'अरुण' के तरुण शब्द
दृगों में समंदर है गीतिका पुकारती
मुक्तिका मनोरम है शोभा 'मुख पुस्तक' की
घनश्याम अभिराम हो अखंड भारती
गीतिका है मापनी से युक्त-मुक्त दोनों ही
छवि है बसंत की अनंत जो सँवारती
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मुक्तक
अपनी जड़ों से टूटकर मत अधर में लटकें कभी
गोद माँ की छोड़कर परिवेश में भटकें नहीं
जो हित सहित है सर्व के साहित्य है केवल वही
रच कल्पना में अल्पना रस-भाव-लय का संतुलन
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मुख पुस्तक पर पढ़ रहे, मन के अंतर्भाव
रच-पढ़-बढ़ते जो सतत, रखकर मन में चाव
वे कण-कण को जोड़ते, सन्नाटे को तोड़
क्षर हो अक्षर का करे, पूजन 'सलिल' सुभाव
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टीप- श्री कैलाश चंद्र पंत मंत्री राष्ट्र भाषा प्रचार समिति विशेष अतिथि, डॉ. उमेश सिंह अध्यक्ष साहित्य अकादमी म. प्र. मुख्य अतिथि, डॉ. देवेन्द्र दीपक निदेशक निराला सर्जन पीठ अध्यक्ष , डॉ. कांति शुक्ल प्रदेश अध्यक्ष मुक्तिका लोक, डॉ. विश्वम्भर शुक्ल संयोजक मुक्तक लोक, अरुण अर्णव खरे संयोजक, घनश्याम मैथिल 'अमृत', अखंड भारती संचालक, बसंत शर्मा अतिथि कवि.
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भोपाल २१२-२-२०१७. स्वराज भवन भोपाल में अखिल भारतीय गीतिका काव्योत्सव् एवं सम्मान समारोह के द्वितीय सत्र की अध्यक्षता की. लगभग ३५ कवियों द्वारा काव्य पाठ में निर्धारित से अधिक समय लेने का मोह न छोड़ने और सभागार रिक्त करने की बाध्यता के कारण अध्यक्षीय वक्तव्य न देकर तुरंत रची मुक्तिका का पाठ किया. क्या कविगण निर्धारित से अधिक समय लेने की लत छोड़ेंगे???
गीतिका है मनोरम सभी के लिये
दृग में है रस समुंदर सभी के लिए
सत्य, शिव और सुंदर सृजन नित करें
नव सृजन मंत्र है यह सभी के लिए
छंद की गंधवाही मलय हिन्दवी
भाव-रस-लय सुवासित सभी के लिए
बिम्ब-प्रतिबिम्ब हों हम सुनयने सदा
साध्य है, साधना है, सभी के लिए
भाव ना भावना, काम ना कामना
तालियाँ अनगिनत गीतिका के लिए
गीत गा गीतिका मु क्तिका से कहे
तेवरी, नव गजल है सभी के लिए
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