कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

nau matrik chhand

नौ मात्रिक छंद
१. पदादि यगण
निहारे सूरज
गुहारे सूरज
उषा को फिर-फिर
पुकारे सूरज
धरा से तम को
मिटाये सूरज
उजाला पल-पल
लुटाये सूरज
पसीना दिन भर
बहाये सूरज
मजूरी फिर भी  
न पाए सूरज
न आँखें संझा
मिलाये सूरज
*
२. पदादि मगण
आओ भी यार!
बाँटेगे प्यार
फूलों से स्नेह
फेंको भी खार
.
बोलेंगे बोल
पीटेंगे ढोल
लोगों को खूब
भोंकेंगे शूल
.
भागेगी रात
आएगा प्रात
ऊषा के साथ
लाये बारात
*
३. पदादि तगण
चंपा-चमेली
खेलें सहेली
दोनों न  बूझें
पूछें पहेली
सीखो लुभाना
बातें बनाना
नेता वही जो
जाने न जाना
वादे करो तो
भूले निभाना
*
४. पदादि रगण
शारदे! वर दे
तार दे, स्वर दे
छंद पाएँ सीख
भाव भी भर दे
बिंब हों अभिनव
व्यंजना नव दे
हों प्रतीक नए
शब्द-अक्षर दे
साध लूँ गति-यति
अर्थ का शर दे
*
५. पदादि जगण
कहें न कहें हम
मिलो न मिलो तुम
रहें न रहें सँग
मिटें न मिटें गम
    कभी न अलग हों
    कभी न विलग हों
    लिखें न लिखें पर
    कभी न विलग हों
चलो चलें सनम!
बनें कथा बलम
मिले अमित खुशी
रहे न कहीं गम   
*
६. पदादि भगण
दीप बन जलना
स्वप्न बन पलना
प्रात उगने को
साँझ हँस ढलना  
लक्ष्य पग चूमे
साथ रह चलना
भूल मत करना
हाथ मत मलना
वक्ष पर अरि के
दाल नित मलना
*
७. पदादि नगण
हर सिंगार झरे
जल फुहार पर
चँदनिया नाचे
रजनिपति सिहरे
.
पढ़ समझ पहले
फिर पढ़ा पगले
दिख रहे पिछड़े
कल बनें अगले
फिसल मत जाना
सम्हल कर बढ़ ले
सपन जो देखे
अब उन्हें गढ़ ले
कठिन मत लिखना
सरल पद कह ले
*
८. पदादि सगण
उठती पतंगें
झुकती पतंगें
लड़ती हमेशा
खुद ही पतंगें
नभ को लुभातीं
हँसतीं पतंगें
उलझें, न सुलझें
फटती पतंगें
सबकी नज़र में
बसतीं पतंगें
कटती वही जो
उड़ती पतंगें
***

कोई टिप्पणी नहीं: