" इस बार सिंहस्थ स्नान करें तो जी भर दर्शन भी करें नर्मदा जल का "
विवेक रंजन श्रीवास्तव
अधीक्षण अभियंता
औ बी ११ विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर जबलपुर
कुंभ मेले की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही मानी जाती है , मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने इनकी विधिवत शुरुआत की थी. पौराणिक कथानक के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश हेतु देवताओ और राक्षसों के युद्ध के दौरान धरती पर अमृत की कुछ बूंदें छलक गई थी. ये पवित्र स्थान जहाँ अमृत घट छलका था , गंगा तट पर हरिद्वार, गंगा यमुना सरस्वती संगम स्थल पर प्रयाग, क्षिप्रा तट पर उज्जैन और गोदावरी के किनारे नासिक थे। ग्रहों की निर्धारित स्थितयो के पुनर्निर्मित होने के अनुसार जो लगभग हर 12 वर्षों में वैसी ही बनतीं हैं , क्रमशः हरिद्वार, इलाहाबाद (प्रयाग), नासिक और उज्जैन में लगभग बारह वर्षों के अन्तराल से कुंभ का आयोजन किया जाता है। कुंभ के आयोजन के ६ वर्षो के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता है . हरिद्वार में पिछला कुंभ २०१० में आयोजित हुआ था ,यहां अगला कुंभ मेला २०२२ में संपन्न होगा . प्रयाग में पिछला कुंभ २०१३ में भरा था . नासिक में पिछला कुंभ २०१५ में संपन्न हुआ . उज्जैन में पिछला कुंभ २००४ में आयोजित हुआ था . अमृत-कुंभ के लिये स्वर्ग में बारह दिन तक संघर्ष चलता रहा था , ये १२ दिन पृथ्वी के अनुसार १२ वर्ष के बराबर होते हैं , इसीलिये हर १२ वर्षो में कुंभ का आयोजन किये जाने की परम्परा बनी . प्रत्येक १४४ वर्षो में हरिद्वार तथा प्रयाग में आयोजित कुंभ को महा कुंभ के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है .
उज्जैन के इस विशाल आयोजन के बाद अब २०१९ में प्रयाग मे अर्धकुंभ , २०२१ में नासिक में अर्धकुंभ के बाद २०२२ में हरिद्वार में कुंभ का भव्य आयोजन होगा , उसी वर्ष उज्जैन में अर्धकुंभ भी आयोजित होगा . उज्जैन में अगला कुंभ २०२८ में संपन्न होगा .
उज्जैन में मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के आने पर यहाँ महाकुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे सिंहस्थ कुम्भ महापर्व के नाम से देशभर में जाना जाता है। सिंहस्थ कुम्भ महापर्व के अवसर पर उज्जैन का धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व स्वयं ही कई गुना बढ़ जाता है। साधु-संतों का एकत्र होना, सर्वत्र पावन स्वरों का गुंजन, शब्द एवं स्वर शक्ति का आत्मिक प्रभाव यहाँ प्राणी मात्र को अलौकिक शान्ति प्रदान करता है। पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान की विधियाँ चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारम्भ होती हैं और वैशाख माह की पूर्णिमा तक यह चलता है .
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल, 52 शक्तिपीठों में से एक माँ हरसिद्धि, महाभारत के अरण्य पर्व के अनुसार उज्जैन 7 पवित्र मोक्ष पुरी या सप्त पुरी में से एक है. उज्जैन के अतिरिक्त अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम और द्वारका को मोक्षपुरी होने का गौरव प्राप्त है . भगवान शिव नें त्रिपुरा राक्षस का वध उज्जैन में ही किया था. पुरातन 4 प्रमुख कुंभ स्थलों में से एक उज्जयिनी, 12 शक्तियों में से 1 गढ़कालिका, 9 नारायणों का स्थल, षष्ठ गणेश का स्थल, मातृकाओं का स्थल, भैरव स्थल, श्मशान स्थल, वल्लभाचार्य जी की बैठक, पाशुपत सम्प्रदाय की प्रमुख स्थली, नाथ सम्प्रदाय के सर्वोच्च गुरु मत्स्येन्द्रनाथ की कर्मस्थली होने से उज्जैन के धार्मिक महत्व का वर्णन शब्दों की सीमा से परे है . पावन क्षिप्रा नदी के तट के कारण युगों-युगों से असंख्य लोगों को उज्जैन ने यात्रा के लिए आमंत्रित किया है . .
इंजीनियरिंग का करिश्मा नर्मदा जल से क्षिप्रा में सिहस्थ स्नान
२००९ में उज्जैन में अभूतपूर्व सूखा पड़ा और पानी की आपूर्ति के लिये शासन को ट्रेन की व्यवस्था तक करनी पड़ी , शायद तभी क्षिप्रा में सिंहस्थ के लिये वैकल्पिक जल स्त्रोत की व्यवस्था करने की जरूरत को समझा जाने लगा था . ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ की स्वीकृति दी गई . इस परियोजना की कामयाबी से महाकाल की नगरी में पहुंची मां नर्मदा . इससे क्षिप्रा नदी को नया जीवन मिलने के साथ मालवा अंचल को गंभीर जल संकट से स्थायी निजात हासिल होने की उम्मीद है। नर्मदा के जल को बिजली के ताकतवर पम्पों की मदद से कोई 50 किलोमीटर की दूरी तक बहाकर और 350 मीटर की उंचाई तक लिफ्ट करके क्षिप्रा के प्राचीन उद्गम स्थल तक इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर उज्जैनी गांव की पहाड़ियों पर जहां क्षिप्रा लुप्त प्राय है , लाने की व्यवस्था की गई है . नर्मदा नदी की ओंकारेश्वर सिंचाई परियोजना के खरगोन जिले स्थित सिसलिया तालाब से पानी लाकर इसे क्षिप्रा के उद्गम स्थल पर छोड़ने की परियोजना से नर्मदा का जल क्षिप्रा में प्रवाहित होगा और तकरीबन 115 किलोमीटर की दूरी तय करता हुआ प्रदेश की प्रमुख धार्मिक नगरी उज्जैन तक पहुंचेगा . ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ की बुनियाद 29 नवंबर 2012 को रखी गयी थी। इस परियोजना के तहत चार स्थानों पर पम्पिंग स्टेशन बनाये गये हैं। इनमें से एक पम्पिंग स्टेशन 1,000 किलोवॉट क्षमता का है, जबकि तीन अन्य पम्पिंग स्टेशन 9,000 किलोवाट क्षमता के हैं। परियोजना के तीनों चरण पूरे होने के बाद मालवा अंचल के लगभग 3,000 गांवों और 70 कस्बों को प्रचुर मात्रा में पीने का पानी भी मुहैया कराया जा सकेगा। इसके साथ ही, अंचल के लगभग 16 लाख एकड़ क्षेत्र में सिंचाई की अतिरिक्त सुविधा विकसित की जा सकेगी।
नर्मदा तो सतत वाहिनी जीवन दायिनी नदी है , उसने क्षिप्रा सहित साबरमती नदी को भी नवजीवन दिया है .गुजरात में नर्मदा जल को सूखी साबरमती में डाला जाता है , लेकिन साबरमती में नर्मदा का पानी नहर के माध्यम से मिलाया जाता है बिजली के पम्प से नीचे से ऊपर नहीं चढ़ाया जाता क्योंकि वहां की भौगोलिक स्थिति तदनुरूप है .
नर्मदा का धार्मिक महत्व अविवादित है , विश्व में केवल यही एक नदी है जिसकी परिक्रमा का धार्मिक महत्व है . नर्मदा के हर कंकर को शंकर की मान्यता प्राप्त है , मान्यता है कि स्वयं गंगा जी वर्ष में एक बार नर्मदा में स्नान हेतु आती हैं , जहां अन्य प्रत्येक नदी या तीर्थ में दुबकी लगाकर स्नान का महत्व है वही नर्मदा के विषय में मान्यता है कि सच्चे मन से पूरी श्रद्धा से नर्मदा के दर्शन मात्र से सारे पाप कट जाते हैं तो इस बार जब सिंहस्थ में क्षिप्रा में डुबकी लगायें तो नर्मदा का ध्यान करके श्रद्धा से दर्शन कर सारे अभिराम दृश्य को मन में अवश्य उतार कर दोहरा पुण्य प्राप्त करने से न चूकें , क्योकि इस बार क्षिप्रा के जिस जल में आप नहा रहे होंगे वह इंजीनियरिंग का करिश्मा नर्मदा जल होगा .
vivek1959@yahoo.co.in
विवेक रंजन श्रीवास्तव
अधीक्षण अभियंता
औ बी ११ विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर जबलपुर
कुंभ मेले की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही मानी जाती है , मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने इनकी विधिवत शुरुआत की थी. पौराणिक कथानक के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश हेतु देवताओ और राक्षसों के युद्ध के दौरान धरती पर अमृत की कुछ बूंदें छलक गई थी. ये पवित्र स्थान जहाँ अमृत घट छलका था , गंगा तट पर हरिद्वार, गंगा यमुना सरस्वती संगम स्थल पर प्रयाग, क्षिप्रा तट पर उज्जैन और गोदावरी के किनारे नासिक थे। ग्रहों की निर्धारित स्थितयो के पुनर्निर्मित होने के अनुसार जो लगभग हर 12 वर्षों में वैसी ही बनतीं हैं , क्रमशः हरिद्वार, इलाहाबाद (प्रयाग), नासिक और उज्जैन में लगभग बारह वर्षों के अन्तराल से कुंभ का आयोजन किया जाता है। कुंभ के आयोजन के ६ वर्षो के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता है . हरिद्वार में पिछला कुंभ २०१० में आयोजित हुआ था ,यहां अगला कुंभ मेला २०२२ में संपन्न होगा . प्रयाग में पिछला कुंभ २०१३ में भरा था . नासिक में पिछला कुंभ २०१५ में संपन्न हुआ . उज्जैन में पिछला कुंभ २००४ में आयोजित हुआ था . अमृत-कुंभ के लिये स्वर्ग में बारह दिन तक संघर्ष चलता रहा था , ये १२ दिन पृथ्वी के अनुसार १२ वर्ष के बराबर होते हैं , इसीलिये हर १२ वर्षो में कुंभ का आयोजन किये जाने की परम्परा बनी . प्रत्येक १४४ वर्षो में हरिद्वार तथा प्रयाग में आयोजित कुंभ को महा कुंभ के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है .
उज्जैन के इस विशाल आयोजन के बाद अब २०१९ में प्रयाग मे अर्धकुंभ , २०२१ में नासिक में अर्धकुंभ के बाद २०२२ में हरिद्वार में कुंभ का भव्य आयोजन होगा , उसी वर्ष उज्जैन में अर्धकुंभ भी आयोजित होगा . उज्जैन में अगला कुंभ २०२८ में संपन्न होगा .
उज्जैन में मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के आने पर यहाँ महाकुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे सिंहस्थ कुम्भ महापर्व के नाम से देशभर में जाना जाता है। सिंहस्थ कुम्भ महापर्व के अवसर पर उज्जैन का धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व स्वयं ही कई गुना बढ़ जाता है। साधु-संतों का एकत्र होना, सर्वत्र पावन स्वरों का गुंजन, शब्द एवं स्वर शक्ति का आत्मिक प्रभाव यहाँ प्राणी मात्र को अलौकिक शान्ति प्रदान करता है। पवित्र क्षिप्रा नदी में पुण्य स्नान की विधियाँ चैत्र मास की पूर्णिमा से प्रारम्भ होती हैं और वैशाख माह की पूर्णिमा तक यह चलता है .
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल, 52 शक्तिपीठों में से एक माँ हरसिद्धि, महाभारत के अरण्य पर्व के अनुसार उज्जैन 7 पवित्र मोक्ष पुरी या सप्त पुरी में से एक है. उज्जैन के अतिरिक्त अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम और द्वारका को मोक्षपुरी होने का गौरव प्राप्त है . भगवान शिव नें त्रिपुरा राक्षस का वध उज्जैन में ही किया था. पुरातन 4 प्रमुख कुंभ स्थलों में से एक उज्जयिनी, 12 शक्तियों में से 1 गढ़कालिका, 9 नारायणों का स्थल, षष्ठ गणेश का स्थल, मातृकाओं का स्थल, भैरव स्थल, श्मशान स्थल, वल्लभाचार्य जी की बैठक, पाशुपत सम्प्रदाय की प्रमुख स्थली, नाथ सम्प्रदाय के सर्वोच्च गुरु मत्स्येन्द्रनाथ की कर्मस्थली होने से उज्जैन के धार्मिक महत्व का वर्णन शब्दों की सीमा से परे है . पावन क्षिप्रा नदी के तट के कारण युगों-युगों से असंख्य लोगों को उज्जैन ने यात्रा के लिए आमंत्रित किया है . .
इंजीनियरिंग का करिश्मा नर्मदा जल से क्षिप्रा में सिहस्थ स्नान
२००९ में उज्जैन में अभूतपूर्व सूखा पड़ा और पानी की आपूर्ति के लिये शासन को ट्रेन की व्यवस्था तक करनी पड़ी , शायद तभी क्षिप्रा में सिंहस्थ के लिये वैकल्पिक जल स्त्रोत की व्यवस्था करने की जरूरत को समझा जाने लगा था . ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ की स्वीकृति दी गई . इस परियोजना की कामयाबी से महाकाल की नगरी में पहुंची मां नर्मदा . इससे क्षिप्रा नदी को नया जीवन मिलने के साथ मालवा अंचल को गंभीर जल संकट से स्थायी निजात हासिल होने की उम्मीद है। नर्मदा के जल को बिजली के ताकतवर पम्पों की मदद से कोई 50 किलोमीटर की दूरी तक बहाकर और 350 मीटर की उंचाई तक लिफ्ट करके क्षिप्रा के प्राचीन उद्गम स्थल तक इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर उज्जैनी गांव की पहाड़ियों पर जहां क्षिप्रा लुप्त प्राय है , लाने की व्यवस्था की गई है . नर्मदा नदी की ओंकारेश्वर सिंचाई परियोजना के खरगोन जिले स्थित सिसलिया तालाब से पानी लाकर इसे क्षिप्रा के उद्गम स्थल पर छोड़ने की परियोजना से नर्मदा का जल क्षिप्रा में प्रवाहित होगा और तकरीबन 115 किलोमीटर की दूरी तय करता हुआ प्रदेश की प्रमुख धार्मिक नगरी उज्जैन तक पहुंचेगा . ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ की बुनियाद 29 नवंबर 2012 को रखी गयी थी। इस परियोजना के तहत चार स्थानों पर पम्पिंग स्टेशन बनाये गये हैं। इनमें से एक पम्पिंग स्टेशन 1,000 किलोवॉट क्षमता का है, जबकि तीन अन्य पम्पिंग स्टेशन 9,000 किलोवाट क्षमता के हैं। परियोजना के तीनों चरण पूरे होने के बाद मालवा अंचल के लगभग 3,000 गांवों और 70 कस्बों को प्रचुर मात्रा में पीने का पानी भी मुहैया कराया जा सकेगा। इसके साथ ही, अंचल के लगभग 16 लाख एकड़ क्षेत्र में सिंचाई की अतिरिक्त सुविधा विकसित की जा सकेगी।
नर्मदा तो सतत वाहिनी जीवन दायिनी नदी है , उसने क्षिप्रा सहित साबरमती नदी को भी नवजीवन दिया है .गुजरात में नर्मदा जल को सूखी साबरमती में डाला जाता है , लेकिन साबरमती में नर्मदा का पानी नहर के माध्यम से मिलाया जाता है बिजली के पम्प से नीचे से ऊपर नहीं चढ़ाया जाता क्योंकि वहां की भौगोलिक स्थिति तदनुरूप है .
नर्मदा का धार्मिक महत्व अविवादित है , विश्व में केवल यही एक नदी है जिसकी परिक्रमा का धार्मिक महत्व है . नर्मदा के हर कंकर को शंकर की मान्यता प्राप्त है , मान्यता है कि स्वयं गंगा जी वर्ष में एक बार नर्मदा में स्नान हेतु आती हैं , जहां अन्य प्रत्येक नदी या तीर्थ में दुबकी लगाकर स्नान का महत्व है वही नर्मदा के विषय में मान्यता है कि सच्चे मन से पूरी श्रद्धा से नर्मदा के दर्शन मात्र से सारे पाप कट जाते हैं तो इस बार जब सिंहस्थ में क्षिप्रा में डुबकी लगायें तो नर्मदा का ध्यान करके श्रद्धा से दर्शन कर सारे अभिराम दृश्य को मन में अवश्य उतार कर दोहरा पुण्य प्राप्त करने से न चूकें , क्योकि इस बार क्षिप्रा के जिस जल में आप नहा रहे होंगे वह इंजीनियरिंग का करिश्मा नर्मदा जल होगा .
vivek1959@yahoo.co.in
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