कुल पेज दृश्य

बुधवार, 6 अप्रैल 2016

haiku muktika

हाइकु मुक्तिका-
संजीव
नव दुर्गा का, हर नव दिन हो, मंगलकारी
नेह नर्मदा, जन-मन रंजक, संकटहारी

मैं-तू रहें न, दो मिल-जुलक,र एक हो सकें
सुविचारों के, सुमन सुवासित, जीवन-क्यारी

गले लगाये, दिल को दिल खिल, गीत सुनाये
हों शरारतें, नटखटपन मन,-रञ्जनकारी 

भारतवासी, सकल विश्व पर, प्यार लुटाते
संत-विरागी, सत-शिव-सुंदर, छटा निहारी 

भाग्य-विधाता, लगन-परिश्रम, साथ हमारे
स्वेद बहाया, लगन लगाकर, दशा सुधारी

पंचतत्व का, तन मन-मंदिर,  कर्म धर्म है
सत्य साधना, 'सलिल' करे बन, मौन पुजारी
(वार्णिक हाइकु छन्द ५-७-५)
***

कोई टिप्पणी नहीं: