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शनिवार, 28 नवंबर 2015

navgeet

एक रचना 
मेरी अपनी! 
*
मेरी अपनी! 
साथ रहो तो 
समय नहीं बतियाने का.
माँ-पापा-बच्चे, घर-कोलेज
सबके बाद थकान शेष जब
करतीं याद मुझे ही तुम तब
यही ख़ुशी संतोष है.
मेरी अपनी!
याद नहीं है
दिवस कभी बिसराने का.
*
मेरी अपनी!
तनिक बताओ
कब-क्या-किसको लाने का?
दूध, सब्जियाँ, राशन, औषध
शेष रहा कुछ या यह ही सब?
नयन बसा हूँ, नयन बसा अब
प्यास-आस ही कोष है.
मेरी अपनी!
स्वाद नहीं है
तुम बिन भोजन पाने का.
*

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