द्विदिवसीय नवगीत महोत्सव लखनऊ २१-२२ नवंबर २०१५
'ऐ शहरे-लखनऊ तुझे मेरा सलाम है' कहते हुए मैं चित्रकूट एक्सप्रेस से रामकिशोर दाहिया, सुवर्णा दीक्षित तथा रोहित रूसिया के साथ २- नवंबर २०१५ को सवेरे १० बजे चारबाग स्टेशन पर उतरा।

२१ नवंबर:
प्रातः ९ बजे- दीप प्रज्वलन सर्व श्री / श्रीमती राधेश्याम बन्धु दिल्ली, डॉ. रामसनेही लाल शर्मा यायावर फिरोजाबाद, डॉ. उषा उपाध्याय अहमदाबाद, पूर्णिमा जी, डॉ. जगदीश व्योम नोएडा, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर, डॉ. मालिनी गौतम महीसागर ने गीतिका वेदिका के कोकिल कंठी स्वर में गुञ्जित हो रही सरस्वती वंदना के मध्य किया।
प्रथम सत्र में पूर्णिमा बर्मन जी की माता श्री तथा श्रीकांत मिश्र जी के अवदान को समारं करते हुए उन्हें मौन श्रृद्धांजलि दी गयी। नवोदित नवगीतकारों द्वारा नवगीतों की प्रस्तुति पश्चात् उन पर वरिष्ठ नवगीतकारों मार्गदर्शन के अंतर्गत गीतिका वेदिका दिल्ली को रामकिशोर दाहिया कटनी, शुभम श्रीवास्तव 'ॐ' मिर्ज़ापुर को आचार्य संजीव वर्मा ;सलिल' जबलपुर, रावेन्द्र 'रवि' खटीमा को राधेश्याम बंधु दिल्ली, रंजना गुप्ता लखनऊ को डॉ. रणजीत पटेल मुजफ्फरपुर,

द्वितीय सत्र में वरिष्ठ नवगीतकारों सर्व श्री / श्रीमती मालिनी गौतम, गणेश गंभीर, रामकिशोर दाहिया, रणजीत पटेल, देवेन्द्र शुक्ल 'सफल', विनोद निगम, डॉ. यायावर, राधेश्याम बन्धु, मधुकर अष्ठाना आदि ने नवगीत पाठ किया।
तृतीय सत्र में सर्वश्री रोहित रसिया, सुवर्णा दीक्षित आदि ने मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये।
२२ नवंबर:



कल्पना रामानी, रोहित रूसिया तथा ओमप्रकाश तिवारी के पश्चात २०१५ का अभिव्यक्ति पुष्पम पुरस्कार २०१५ सृजन, समीक्षा, मार्गदर्शन के क्षेत्रों में निरंतर सक्रिय रहकर महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन हेतु आचार्य संजीव वर्मा सलिल को भेंट किया गया।

अंतिम सत्र में आगंतुकों तथा स्थानीय साहित्यकारों द्वारा काव्यपाठ के साथ इस देर रात इस महत्वपूर्ण सारस्वत अनुष्ठान का समापन हुआ।

***
नवोदित नवगीतकार श्री शिवम् श्रीवास्तव 'ॐ' के नवगीतों पर टिप्पणी, चर्चित नवगीतकार श्री रामकिशोर दाहिया के नवगीत संग्रह 'अल्लाखोह मची' पर समीक्षा, नवगीत के बदलते मानकों पर सारगर्भित चर्चा में सहभागिता, १८ पठनीय पुस्तकों की प्राप्ति तथा अभिव्यक्ति विश्वं के निर्माणाधीन भवन के अवलोकन गत वर्ष की तरह अभियंता के रूप में बेहतर निर्माण व उपयोग के सुझाव दे पाने लिये यह सारस्वत अनुष्ठान चिस्मरणीय है। लगभग ५० वर्षों बाद श्री विनोद निगम जी का आशीष पाया। श्री सुरेश उपाध्याय तथा विनोद जी की कवितायेँ शालेय जीवन में पढ़-सुन कर ही काव्य के प्रति रूचि जगी। दोनों विभूतियों को नमन।
नवगीत महोत्सव लखनऊ के पूर्ण होने पर
एक रचना:
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
*
दूर डाल पर बैठे पंछी
नीड़ छोड़ मिलने आये हैं
कलरव, चें-चें, टें-टें, कुहू
गीत नये फिर गुंजाये हैं
कुछ परंपरा,कुछ नवीनता
कुछ अनगढ़पन,कुछ प्रवीणता
कुछ मीठा,कुछ खट्टा-तीता
शीत-गरम, अब-भावी-बीता
ॐ-व्योम का योग सनातन
खूब सुहाना मीत पर्व यह
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
*
सुख-दुःख, राग-द्वेष बिसराकर
नव आशा-दाने बिखराकर
बोयें-काटें नेह-फसल मिल
ह्रदय-कमल भी जाएँ कुछ खिल
आखर-सबद, अंतरा-मुखड़ा
सुख थोड़ा सा, थोड़ा दुखड़ा
अपनी-अपनी राम कहानी
समय-परिस्थिति में अनुमानी
कलम-सिपाही ह्रदय बसायें
चिर समृद्ध हो रीत, पर्व यह
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
*
मैं-तुम आकर हम बन पायें
मतभेदों को विहँस पचायें
कथ्य शिल्प रस भाव शैलियाँ
चिंतन-मणि से भरी थैलियाँ
नव कोंपल, नव पल्लव सरसे
नव-रस मेघा गरजे-बरसे
आत्म-प्रशंसा-मोह छोड़कर
परनिंदा को पीठ दिखाकर
नये-नये आयाम छू रहे
मना रहे हैं प्रीत-पर्व यह
फिर-फिर होगा गीत पर्व यह
********
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें