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मंगलवार, 17 नवंबर 2015

muktika

मुक्तिका - 
*
मुस्कुराती रही, खिलखिलाती रहो 
पैर रख भूमि पर सिर उठाती रहो

मेहनती तुम बनो, मुश्किलों में तनो
कैद घर में न रह आती-जाती रहो
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मान जाओ न रूठो अधिक देर तक
रूठ जाए कोई तो मनाती रहो
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हो सहनशील सबको पता सत्य है
जो न माने, न नाहक बताती रहो
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कोयलों सम मधुर गीत गाओ मगर
कुछ सबक बाज को भी सिखाती रहो
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नर्मदा सी बहो, मत मलिनता गहो
मुश्किलों के शिखर लड़ ढहाती रहो
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तिनके बिखरे अगरचे नशेमन के हैं
तिनके जोड़ो नशेमन बनाती रहो
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