
मनोवेदना:

ओ ऊपरवाले! नीचे आ
क्या-क्यों करता है तनिक बता?
असमय ले जाता उम्मीदें
क्यों करता है अक्षम्य खता?
कितने ही सपने टूट गये
तुम माली बगिया लूट गये.
क्यों करूँ तुम्हारा आराधन
जब नव आशा घट फूट गये?
मुस्कान मृदुल, मीठी बोली
रससिक्त हृदय की थी खोली
कर ट्रस्ट बनाया ट्रस्ट मगर
संत्रस्त किया, खाली ओली.
मैं जाऊँ कहाँ? निष्ठुर! बोलो,
तज धरा न अंबर में डोलो.
क्या छिपा तुम्हारी करनी में
कुछ तो रहस्य हम पर खोलो.
उल्लास-आसमय युवा रक्त
हिंदी का सुत, नवगीत-भक्त
खो गया कहाँ?, कैसे पायें
वापिस?, क्यों इतने हम अशक्त?
ऐ निर्मम! ह्रदय नहीं काँपा?
क्यों शोक नहीं तुमने भाँपा.
हम सब रोयेंगे सिसक-सिसक
दस दिश में व्यापेगा स्यापा.
संपूर्ण क्रांति का सेनानी,
वह जनगणमन का अभिमानी.
माटी का बेटा पतझड़ बिन
झड़ गया मौन ही बलिदानी.
कितने निर्दय हो जगत्पिता?
क्या पाते हो तुम हमें सता?
असमय अवसान हुआ है क्यों?
क्यों सके नहीं तुम हमें जता?
क्यों कर्क रोग दे बुला लिया?
नव आशा दीपक बुझा दिया.
चीत्कार कर रहे मन लेकिन
गीतों ने बेबस अधर सिया.
बोले थे: 'आनेवाले हो',
कब जाना, जानेवाले हो?
मन कलप रहा तुमको खोकर
यादों में रहनेवाले हो.
श्रीकांत! हुआ श्रीहीन गीत
तुम बिन व्याकुल हम हुए मीत.
जीवन तो जीना ही होगा-
पर रह न सकेंगे हम अभीत।
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