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सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

 दोहा सलिला:                                                                                          
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दीवाली के संग : दोहा का रंग                                                                                                            

संजीव 'सलिल'
*
सरहद पर दे कटा सर, हद अरि करे न  पार.
राष्ट्र-दीप पर हो 'सलिल', प्राण-दीप बलिहार..
*
आपद-विपदाग्रस्त को, 'सलिल' न जाना भूल.
दो दीपक रख आ वहाँ, ले अँजुरी भर फूल..
*
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत??
*
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
*
दीप जला, जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
दीप बुझा, चुप फेंकना, कर्म क्रूर-अक्रूर..
*
चलते रहना ही सफर, रुकना काम-अकाम.
जलते रहना ज़िंदगी, बुझना पूर्ण विराम.
*
सूरज की किरणें करें नवजीवन संचार.
दीपक की किरणें करें, धरती का सिंगार..
*
मन देहरी ने वर लिये, जगमग दोहा-दीप.
तन ड्योढ़ी पर धर दिये, गुपचुप आँगन लीप..
*
करे प्रार्थना, वंदना, प्रेयर, सबद, अजान.
रसनिधि है रसलीन या, दीपक है रसखान..
*
मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान.
दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान..
*
मद्यप परवाना नहीं, समझ सका यह बात.
साक़ी लौ ले उजाला, लाई मरण-सौगात..
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com








6 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ने कहा…

२३ अक्तूबर २०११ ९:३० अपराह्न

आ० आचार्य जी,
अनन्त सार-गर्भित दोहों के लिये मेरा नमन स्वीकार करें |
कितना प्रक्षिप्त दर्शन हैं आपके इस दोहे में -

कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.

रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत??

कुटिया में जन्म पाए दीपक ( दियाली ) ने अंतिम साँस ली राजमहल में | किसी ने यह विचार

नहीं किया कि उसकी मौत वहाँ क्यों हुई जिसकी थाने में रपट भी असंभव बनी |

सुन्दर अति सुन्दर

सादर

कमल

vijay2@comcast.net ✆ ने कहा…

आ० संजीव जी,

अति सुन्दर !



मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान.

दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान..



विजय निकोर

- drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

वन्दनीय, अतिसुन्दर !

संगीता पुरी ने कहा…

२४ अक्तूबर २०११ ६:०७ पूर्वाह्न

बहुत खूब ..
.. दीपावली की शुभकामनाएं !!

- chetnarajput.rana@yahoo.com ने कहा…

आ. संजीव जी,
जितनी प्रशंसा करूँ कम है।
एक-एक दोहा पढ़ती गई, मुँह से वाह निकलता गया।
दीपावली के अवसर पर दोहों की खूबसूरत सौगात देने के लिए हार्दिक बधाई।
चेतना

- drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

संजीव जी,
दोहों की तारीफ़ के लिए उचित शब्द ही नहीं मिल रहे ! अब समझ लीजिए कि कितने अच्छे लगे आपके दोहे ....!
मरहबा...मरहबा.....!
दीपावली की शुभकामनाओं सहित
दीप्ति