कुल पेज दृश्य

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

एक गीत: आईने अब भी वही हैं --संजीव 'सलिल'

एक गीत:
आईने अब भी वही हैं
-- संजीव 'सलिल'
*

आईने अब भी वही हैं
अक्स लेकिन वे नहीं...
*
शिकायत हमको ज़माने से है-
'आँखें फेर लीं.
काम था तो याद की पर
काम बिन ना टेर कीं..'
भूलते हैं हम कि मकसद
जिंदगी का हम नहीं.
मंजिलों के काफिलों में
सम्मिलित हम थे नहीं...
*
तोड़ दें गर आईने
तो भी मिलेगा क्या हमें.
खोजने की चाह में
जो हाथ में है, ना गुमें..
जो जहाँ जैसा सहेजें
व्यर्थ कुछ फेकें नहीं.
और हिम्मत हारकर
घुटने कभी टेकें नहीं...
*
बेहतर शंका भुला दें,
सोचकर ना सिर धुनें.
और होगा अधिक बेहतर
फिर नये सपने बुनें.
कौन है जिसने कहे
सुनकर कभी किस्से नहीं.
और मौका मिला तो
मारे 'सलिल' घिस्से नहीं...
*
भूलकर निज गलतियाँ
औरों को देता दोष है.
सच यही है मन रहा
हरदम स्वयं मदहोश है.
गल्तियाँ कर कर छिपाईं
दण्ड खुद भरते नहीं.
भीत रहते किन्तु कहते
हम तनिक डरते नहीं....
*
आइनों का दोष क्या है?
पूछते हैं आईने.
चुरा नजरें, फेरकर मुँह
सिर झुकाया भाई ने.
तिमिर की करते शिकायत
मौन क्यों धरते नहीं?
'सलिल' बनकर दिया  जलकर
तिमिर क्यों हरते नहीं??...
*****

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

9 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी,
दों सुन्दर रचनाओं के लिये साधुवाद !
आईने तो सही हैं
पर मुखौटे ओढ़ रखे
वही तो दिखेंगे
असली सूरत एक दिन
पहचान में आ जायगी
फिर मुखौटे क्या करेंगे ?

कमल

Rakesh Khandelwal ✆ ekavita ने कहा…

आईने की परेशानियों का सबब
क्या मुखौटे थे मेरे या मैं खुद ही था
अक्स जितने दिखाता रहा आईना
कोई भी एक उनमें से मेरा न था
अक्स के अक्स का अक्स महसूसती
अपने ही अक्स में आईने की नजर
बिम्ब कितने प्रतीक्षित रहे मोड़ पर
खत्म हो जाये असमंजसों का सफ़र

एक गुश्ड़िया मगर साथ शम्माओं के
आप ही आप प्रति[पल पिघलती रही
आईने को भले दोष देते रहे
दृष्टि खुद ही स्वयं को थी छलती रही.

सादर

राकेश

achal verma ✆ ekavita ने कहा…

अति मनोहर चित्रण अपने आप को देखने के लिए |

अचल वर्मा

- drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

मनोहारी एवं स्पर्शी !
बधाई,
दीप्ति

- pratapsingh1971@gmail.com ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी

बहुत सुन्दर गीत !

सादर
प्रताप

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी एवम राकेश जी,
दों सुन्दर रचनाओं के लिये साधुवाद !
आईने तो सही हैं
पर मुखौटे ओढ़ रखे
वही तो दिखेंगे
असली सूरत एक दिन
पहचान में आ जायगी
फिर मुखौटे क्या करेंगे ?

कमल

vijay2@comcast.net ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० संजीव जी,

कमाल कर दिया....


अक्स जितने दिखाता रहा आईना
कोई भी एक उनमें से मेरा न था

बधाई हो
विजय निकोर

Ganesh Jee "Bagi" ने कहा…

आइनों का दोष क्या है?
पूछते हैं आईने.
चुरा नजरें, फेरकर मुँह
सिर झुकाया भाई ने.
तिमिर की करते शिकायत
क्यों तिमिर हारते नहीं?
दिया बनकर जल अँधेरा
'सलिल' क्यों हारते नहीं??...

बेहद रुचिकर रचना, आचार्य जी संदेशपरक गीत हेतु बधाई आपको |

dks poet ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय सलिल जी,
सुंदर गीत हेतु साधुवाद स्वीकारें
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’