साइकल ने बना दिया इंजीनियर
सिवनी। आपने कभी नहीं सुना होगा कि साइकल ने किसी व्यक्ति को मेकेनिकल इंजीनियर बनाया हो लेकिन नगर के काजी चौक में रहने वाले एक व्यक्ति को साइकल ने मेकेनिकल इंजीनियर बना दिया है। पेशे से शिक्षक इस व्यक्ति ने साइकल में इंजन लगाकर उसे पेट्रोल चलित वाहन का रूप दे दिया है। ऐसा करने के लिए उसे मेकेनिकल इंजीनियरिंग का अध्ययन करना पड़ा। हम बात कर रहे हैं समद खान (४५) की जो १२ किमी दूर आमागढ़ के शासकीय स्कूल में शिक्षक हैं। वैसे तो इन्होंने कबाड़ की जुगाड़ से कई सामान बनाए, लेकिन पेट्रोल से चलित और बैटरी से चलने वाली साइकल कुछ खास है।
श्री खान बताते हैं कि जब वे आमागढ़ के शासकीय स्कूल में शिक्षक थे। शहर से रोजाना २४ किमी का सफर करने में उन्हें काफी दिक्कतें होती थी। सन १९८७-८८ में उन्होंने लूना खरीदने की कोशिश की, परंतु उस समय किसी भी गाड़ी खरीदने के लिए नंबर लगाना पड़ता था। नंबर लगाने के कई माह बाद गाड़ी हाथ में आ पाती थी। इन झंझटों में पड़ने की बजाय उन्होंने अपनी साइकल में ही इंजन लगाने की ठान ली और इंजन की तलाश भी शुरू कर दी। इसी दौरान किसी काम से उनका नागपुर जाना हुआ और वहां की एक कबाड़ी की दुकान में इंजन भी मिल गया।
साइकल में इंजन लगाने और उसे गाड़ी का रूप देने में उन्हें इंजीनियरिंग संबंधी विभिन्न पुस्तकों का अध्ययन करना पड़ा। काफी मशक्कत के बाद उन्हें इस कार्य में सफलता मिल गयी। इस कार्य के लिए उन्हें साढ़े छह सौ रूपए खर्च करने पड़े थे। जबकि लूना की कीमत उस समय ८ हजार रुपए थी।
कुछ वर्षों तक वे ७० किमी प्रति लीटर के हिसाब से चलने वाली साइकल से आमागढ़ आते-जाते रहे। इसके बाद उन्होंने बैटरी से चलने वाली साढ़े बारह हजार मूल्य की एक साइकल छिंदवाड़ा से खरीदी। यहां गौर करने वाली बात श्री खान छिंदवाड़ा और सिवनी जिले में सबसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने बैटरी से चलने वाली साइकल खरीदी थी।
उन्होंने बताया कि कुछ ही समय बाद साइकल की बैटरी और चार्जर खराब हो गए। इसे सुधारने के लिए कोई मैकेनिक उन्हें नहीं मिला। यहां तक चार्जर सुधरवाने के लिए वे बाम्बे तक गये लेकिन वहां भी नहीं सुधरा और न ही बैटरी मिली।
इस स्थिति में उन्होंने पुनः किताबों का अध्ययन किया और चार्जर को सुधार लिया। साथ ही बैटरी का जुगाड़ उन्होंने कम्प्यूटर में लगने वाली वेकअप बैटरी से कर लिया। आज वे इस बैटरी से अपनी साइकल चलाते हुए रोजाना २४ किमी का सफर तय करते हैं। इतने सफर में उनका रोज ५ रुपए व्यय होता है।
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 29 नवंबर 2009
साइकल ने बना दिया इंजीनियर

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3 टिप्पणियां:
भारत मे प्रतिभा की कमी नहीं है मगर हर एक को साधन नहीं मिलते ।इसी कारण ऐसी प्रतिभायें छुपी रह जाती हैं आभार इस जानकारी के लिये।
भारत में ऐसी प्रतिभाएँ बहुत मिल जाती हैं पर उनकी प्रतिभाओं का आदर नहीं हो पाता है।
इंसान यदि हौसला बनाए रखे तो क्या नहीं कर सकता है .प्रेरणास्पद समाचार प्रस्तुति ... आभार
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