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दोहा गीत
विजय विषमता तिमिर पर,
कर दे- साम्य हुलास..
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
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जिसने कालिख-तम पिया,
वह काली माँ धन्य.
नव प्रकाश लाईं प्रखर,
दुर्गा देवी अनन्य.
भर अभाव को भाव से,
लक्ष्मी हुईं प्रणम्य.
ताल-नाद, स्वर-सुर सधे,
शारद कृपा सुरम्य.
वाक् भारती माँ, भरें
जीवन में उल्लास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास...
*
सुख-समृद्धि की कामना,
सबका है अधिकार.
अंतर से अंतर मिटा,
ख़त्म करो तकरार.
जीवन-जगत न हो महज-
क्रय-विक्रय व्यापार.
सत-शिव-सुन्दर को करें
सब मिलकर स्वीकार.
विषम घटे, सम बढ़ सके,
हो प्रयास- सायास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
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= दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009
दोहा गीत: मातृ ज्योति- दीपक पिता, sanjiv 'salil'
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5 टिप्पणियां:
अति सुंदर भाव - व्यक्ति:
विषम घटे, सम बढ़ सके,
हो प्रयास - सायास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....
अविनाश वाचस्पति October 16, 2009 11:04 PM
उजास का पर्याय पिता
सायास की राह पिता
सुंदर रचना !!
पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!
sunder abhivyakti................shubh deepawali ki mangalkaamnayen sweekaren.
October 17, 2009 6:10 AM
AlbelaKhatri.com October 17, 2009 12:55 PM
वाह !
आपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की
हार्दिक बधाइयां
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