आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
शब्दों की दीपावली
जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप.
मोती पलते गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप.
सीप-दीप से हम मनुज तनिक न लेते सीख.
इसीलिए तो स्वार्थ में लीन पड़ रहे दीख.
दीप पर्व पर हों संकल्पित रह हिल-मिलकर.
दें उजियारा आत्म-दीप बन निश-दिन जलकर.
- छंद अमृतध्वनि
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009
शब्दों की दीपावली: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
chhand amritdhvani,
deepavali,
geet,
sanjiv 'salil'
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
5 टिप्पणियां:
अच्छा लगा पढ़कर.
बढ़िया रचना....आभार..
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ
सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
जीवन प्रकाश से आलोकित हो !
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
आज सुबह 9 बजे हमारे सहवर्ती हिन्दी ब्लोग
मुम्बई-टाईगर
पर दिपावली के शुभ अवसर पर ताऊ से
सिद्धी बातचीत प्रसारित हो रही है। पढना ना भूले।
♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
द फोटू गैलेरी
महाप्रेम
माई ब्लोग
SELECTION & COLLECTION
आचार्य जी, दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। छंद की द्वितीय पंक्ति को एक बार देखे।
आपकी कविताओं का हर शब्द एक दीप की तरह लगता है और अपने भावों का तेल डाल कर उसमें नेह की बाती जला कर सबको ज्ञान की जो राह दिखा रहे हैं उसके लिये बहुत धन्यबाद.
दीवाली की बहुत शुभकामनाएं!
एक टिप्पणी भेजें