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शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

शब्दों की दीपावली: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

शब्दों की दीपावली

जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप.
मोती पलते गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप.
सीप-दीप से हम मनुज तनिक न लेते सीख.
इसीलिए तो स्वार्थ में लीन पड़ रहे दीख.
दीप पर्व पर हों संकल्पित रह हिल-मिलकर.
दें उजियारा आत्म-दीप बन निश-दिन जलकर.
- छंद अमृतध्वनि

5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा लगा पढ़कर.

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

बढ़िया रचना....आभार..
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
जीवन प्रकाश से आलोकित हो !

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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
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आज सुबह 9 बजे हमारे सहवर्ती हिन्दी ब्लोग
मुम्बई-टाईगर
पर दिपावली के शुभ अवसर पर ताऊ से
सिद्धी बातचीत प्रसारित हो रही है। पढना ना भूले।
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
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महाप्रेम
माई ब्लोग
SELECTION & COLLECTION

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

आचार्य जी, दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। छंद की द्वितीय पंक्ति को एक बार देखे।

Shanno Aggarwal ने कहा…

आपकी कविताओं का हर शब्द एक दीप की तरह लगता है और अपने भावों का तेल डाल कर उसमें नेह की बाती जला कर सबको ज्ञान की जो राह दिखा रहे हैं उसके लिये बहुत धन्यबाद.
दीवाली की बहुत शुभकामनाएं!