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शनिवार, 13 जून 2009

बाल-गीत: लंगडी खेलें... आचार्य संजीव 'सलिल'

बाल गीत: लंगडी -संजीव 'सलिल'
बाल गीत:
आचार्य संजीव 'सलिल'
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*************

8 टिप्‍पणियां:

basant arya ने कहा…

बसंत आर्य ने कहा…
बाल कविताओ के अकाल के इस दौड मे अच्छा प्रयास है

mayank ने कहा…

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
सुन्दर बाल कविता।

अर्चना श्रीवास्तव ने कहा…

इतने अच्छे बाल गीत के लिए हार्दिक बधाई.

-Zakir Ali ‘Rajnish’ ने कहा…

Science Bloggers Association ने कहा…
लंगडी का आनन्‍द ही कुछ और है।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

seema sachdev ने कहा…

आचार्य जी!

आपने तो सचमुच बचपन में पहुंचा दिया । आपकी कविता पढने के बाद मै भी अपने बेटे के साथ लंगडी खेलने लगी और बाद में आपको टिप्पणी लिख रही हूं ।

बहुत मजा आया....::::::))))))

m.m.chatterji ने कहा…

nice

pramod jain ने कहा…

my kid is learning langadee and singing it during play

sanjiv salil ने कहा…

सभी गुण-ग्राहियों को धन्यवाद.