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शनिवार, 3 जुलाई 2021

सड़गोड़ासनी

बुंदेली छंद:
सड़गोड़ासनी
शुभ प्रभात
*
सूरज नील गगन से झाँक
शुभ-प्रभात कहता है।
*
उषा-माथ सिंदूरी सूरज
दिप्-दिप्-दिप् दहता है।
*
धूप खेलती आँखमिचौली,
पवन हुलस बहता है।
*
चूँ-चूँ चहक रही गौरैया,
आँगन सुख गहता है।
*
नयनों से नयनों की बतियाँ,
बज कंगन तहता है।
*
नदी-तलैया देख सूखती
घाट विरह सहता है।
*
पत्थर की नगरी में यारों!
सलिल-ह्रदय रहता है।
***
(टीप: सड़गोड़ासनी बुंदेली बोली का छंद है. मुखड़ा १५-१२ मात्रिक, चार मात्रा पश्चात् गुरु-लघु आवश्यक, अंतरा १६-१२,तथा मुखड़ा-अंतरा समतुकांती होते हैं. इस छंद को आधुनिक हिंदी खड़ी बोली में प्रस्तुत करने के इस प्रयास पर पाठकों की राय आमंत्रित है. अन्य देशज बोलिओं के छंद रचना विधान सहित हिंदी में रचे जाएं तो उन्हें अपने 'छंद कोष' में सम्मिलित कर सकूँगा।)
२.७.२०१८, ७९९९५५९६१८

नर्मदाष्टकं शंकराचार्य

भगवत्पादश्रीमदाद्य शंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं
*
सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंगरंजितं, द्विषत्सुपापजात-जातकारि-वारिसंयुतं
कृतांतदूत कालभूत-भीतिहारि वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .१.

त्वदंबु लीनदीन मीन दिव्य संप्रदायकं, कलौमलौघभारहारि सर्वतीर्थनायकं
सुमत्स्य, कच्छ, तक्र, चक्र, चक्रवाक् शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .२.

महागभीर नीरपूर - पापधूत भूतलं, ध्वनत समस्त पातकारि दारितापदाचलं.
जगल्लये महाभये मृकंडुसूनु - हर्म्यदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .३.

गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा, मृकंडुसूनु शौनकासुरारिसेवितं सदा.
पुनर्भवाब्धिजन्मजं भवाब्धि दु:खवर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .४.

अलक्ष्य-लक्ष किन्नरामरासुरादि पूजितं, सुलक्ष नीरतीर - धीरपक्षि लक्षकूजितं.
वशिष्ठ शिष्ट पिप्पलादि कर्ममादिशर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .५.

सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपादि षट्पदै, घृतंस्वकीय मानसेषु नारदादि षट्पदै:,
रवींदु रन्तिदेव देवराज कर्म शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .६.

अलक्ष्यलक्ष्य लक्ष पाप लक्ष सार सायुधं, ततस्तु जीव जंतु-तंतु भुक्ति मुक्तिदायकं.
विरंचि विष्णु शंकर स्वकीयधाम वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .७.

अहोsमृतं स्वनं श्रुतं महेशकेशजातटे, किरात-सूत वाडवेशु पण्डिते शठे-नटे.
दुरंत पाप-तापहारि सर्वजंतु शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .८.

इदन्तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा, पठंति ते निरंतरं न यांति दुर्गतिं कदा.
सुलक्ष्य देह दुर्लभं महेशधाम गौरवं, पुनर्भवा नरा न वै विलोकयंति रौरवं. ९.

इति श्रीमदशंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं
***
श्रीमद आदि शंकराचार्य रचित नर्मदाष्टक : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'

उठती-गिरती उदधि-लहर की, जलबूंदों सी मोहक-रंजक
निर्मल सलिल प्रवाहितकर, अरि-पापकर्म की नाशक-भंजक
अरि के कालरूप यमदूतों, को वरदायक मातु वर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.१.

दीन-हीन थे, मीन दिव्य हैं, लीन तुम्हारे जल में होकर.
सकल तीर्थ-नायक हैं तव तट, पाप-ताप कलियुग का धोकर.
कच्छप, मक्र, चक्र, चक्री को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.२.

अरिपातक को ललकार रहा, थिर-गंभीर प्रवाह नीर का.
आपद पर्वत चूर कर रहा, अन्तक भू पर पाप-पीर का.
महाप्रलय के भय से निर्भय, मारकंडे मुनि हुए हर्म्यदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.३.

मार्कंडे-शौनक ऋषि-मुनिगण, निशिचर-अरि, देवों से सेवित.
विमल सलिल-दर्शन से भागे, भय-डर सारे देवि सुपूजित.
बारम्बार जन्म के दु:ख से, रक्षा करतीं मातु वर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.४.

दृश्य-अदृश्य अनगिनत किन्नर, नर-सुर तुमको पूज रहे हैं.
नीर-तीर जो बसे धीर धर, पक्षी अगणित कूज रहे हैं.
ऋषि वशिष्ठ, पिप्पल, कर्दम को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.५.

सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप आदि संत बन मधुकर.
चरणकमल ध्याते तव निशि-दिन, मनस मंदिर में धारणकर.
शशि-रवि, रन्तिदेव इन्द्रादिक, पाते कर्म-निदेश सर्वदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.६.

दृष्ट-अदृष्ट लाख पापों के, लक्ष्य-भेद का अचूक आयुध.
तटवासी चर-अचर देखकर, भुक्ति-मुक्ति पाते खो सुध-बुध.
ब्रम्हा-विष्णु-सदा शिव को, निज धाम प्रदायक मातु वर्मदा.
चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.७.

महेश-केश से निर्गत निर्मल, 'सलिल' करे यश-गान तुम्हारा.
सूत-किरात, विप्र, शठ-नट को,भेद-भाव बिन तुमने तारा.
पाप-ताप सब दुरंत हरकर, सकल जंतु भाव-पार शर्मदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.८.

श्रद्धासहित निरंतर पढ़ते, तीन समय जो नर्मद-अष्टक.
कभी न होती दुर्गति उनकी, होती सुलभ देह दुर्लभ तक.
रौरव नर्क-पुनः जीवन से, बच-पाते शिव-धाम सर्वदा.
चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.९.

श्रीमदआदिशंकराचार्य रचित, संजीव 'सलिल' अनुवादित नर्मदाष्टक पूर्ण.

दोहा-हाइकु गीत

अभिनव प्रयोग
दोहा-हाइकु गीत
प्रतिभाओं की कमी नहीं...
संजीव 'सलिल'
**
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
धूप-छाँव का खेल है
खेल सके तो खेल.
हँसना-रोना-विवशता
मन बेमन से झेल.
दीपक जले उजास हित,
नीचे हो अंधेर.
ऊपरवाले को 'सलिल'
हाथ जोड़कर टेर.
उसके बिन तेरा नहीं
कोई कहीं अस्तित्व.
तेरे बिन उसका कहाँ
किंचित बोल प्रभुत्व?
क्षमताओं की
कमी नहीं किंचित
समताओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
पेट दिया दाना नहीं.
कैसा तू नादान?
'आ, मुझ सँग अब माँग ले-
भिक्षा तू भगवान'.
मुट्ठी भर तंदुल दिए,
भूखा सोया रात.
लड्डूवालों को मिली-
सत्ता की सौगात.
मत कहना मतदान कर,
ओ रे माखनचोर.
शीश हमारे कुछ नहीं.
तेरे सिर पर मोर.
उपमाओं की
कमी नहीं किंचित
रचनाओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
३-७-२०११ 
*

मुक्तिका :- सूरज

-: मुक्तिका :-
सूरज - १
संजीव 'सलिल'
*
उषा को नित्य पछियाता है सूरज.
न आती हाथ गरमाता है सूरज..

धरा समझा रही- 'मन शांत करले'
सखी संध्या से बतियाता है सूरज..

पवन उपहास करता, दिखा ठेंगा.
न चिढ़ता, मौन बढ़ जाता है सूरज..

अरूपा का लुभाता रूप- छलना.
सखी संध्या पे मर जाता है सूरज..

भटककर सच समझ आता है आखिर.
निशा को चाह घर लाता है सूरज..

नहीं है 'सूर', नाता नहीं 'रज' से
कभी क्या मन भी बहलाता है सूरज?.

करे निष्काम निश-दिन काम अपना.
'सलिल' तब मान-यश पाता है सूरज..
३-७-२०११ 
*

बाल गीत आन्या गुड़िया

: बाल गीत :
संजीव 'सलिल'
*
आन्या गुड़िया प्यारी,
सब बच्चों से न्यारी।
गुड्डा जो मन भाया,
उससे हाथ मिलाया।
हटा दिया मम्मी ने, 
तब दिल था भर आया।
आन्या रोई-मचली,
मम्मी थी कुछ पिघली। 
नया खिलौना ले लो,
आन्या को समझाया।
उसका संग निभाना 
जिस पर दिल हो आया। 
३-७-२०१० 
***

गीत:प्रेम कविता

गीत:प्रेम कविता...
संजीव 'सलिल'
*
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
प्रेम कविता को लिखा जाता नहीं है.
प्रेम होता है किया जाता नहीं है..
जन्मते ही सुत जननि से प्रेम करता-
कहो क्या यह प्रेम का नाता नहीं है?.
कृष्ण ने जो यशोदा के साथ पाला
प्रेम की पोथी का उद्गाता वही है.
सिर्फ दैहिक मिलन को जो प्रेम कहते
प्रेममय गोपाल भी
क्या दिख सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
प्रेम से हो क्षेम?, आवश्यक नहीं है.
प्रेम में हो त्याग, अंतिम सच यही है..
भगत ने, आजाद ने जो प्रेम पाला.
ज़िंदगी कुर्बान की, देकर उजाला.
कहो मीरां की करोगे याद क्या तुम
प्रेम में हो मस्त पीती गरल-प्याला.
और वह राधा सुमिरती श्याम को जो
प्रेम क्या उसका कभी
कुछ चुक सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
अपर्णा के प्रेम को तुम जान पाये?
सिया के प्रिय-क्षेम को अनुमान पाये?
नर्मदा ने प्रेम-वश मेकल तजा था-
प्रेम कैकेयी का कुछ पहचान पाये?.
पद्मिनी ने प्रेम-हित जौहर वरा था.
शत्रुओं ने भी वहाँ थे सिर झुकाए.
प्रेम टूटी कलम का मोहताज क्यों हो?
प्रेम कब रोके किसी के
रुक सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
३-७-२०१० 
*

शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

छंद सलिला: दोहा गोष्ठी

छंद सलिला:
दोहा गोष्ठी:
*
सूर्य-कांता कह रही, जग!; उठ कर कुछ काम।
चंद्र-कांता हँस कहे, चल कर लें विश्राम।।
*
सूर्य-कांता भोर आ, करती ध्यान अडोल।
चंद्र-कांता साँझ सँग, हँस देती रस घोल।।
*
सूर्य-कांता गा रही, गौरैया सँग गीत।
चंद्र-कांता के हुए, जगमग तारे मीत।।
*
सूर्य-कांता खिलखिला, हँसी सूर्य-मुख लाल।
पवनपुत्र लग रहे हो, किसने मला गुलाल।।
*
चंद्र-कांता मुस्कुरा, रही चाँद पर रीझ।
पिता गगन को देखकर, चाँद सँकुचता खीझ।।
*
सूर्य-कांता मुग्ध हो, देखे अपना रूप।
सलिल-धार दर्पण हुई, सलिल हो गया भूप।।
*
चंद्र-कांता खेलती, सलिल-लहरियों संग।
मन मसोसता चाँद है, देख कुशलता दंग।।
*
सूर्य-कांता ने दिया, जग को कर्म सँदेश।
चंद्र-कांता से मिला, 'शांत रहो' निर्देश।।
***
टीप: उक्त द्विपदियाँ दोहा हैं या नहीं?, अगर दोहा नहीं क्या यह नया छंद है?
मात्रा गणना के अनुसार प्रथम चरण में १२ मात्राएँ है किन्तु पढ़ने पर लय-भंग नहीं है। वाचिक छंद परंपरा में ऐसे छंद दोषयुक्त नहीं कहे जाते, चूँकि वाचन करते हुए समय-साम्य स्थापित कर लिया जाता है।
कथ्य के पश्चात ध्वनिखंड, लय, मात्रा व वर्ण में से किसे कितना महत्व मिले? आपके मत की प्रतीक्षा है।

बुधवार, 30 जून 2021

लोकगीत काए टेरो?

लोकगीत 
काए टेरो? 
*
काए टेरो?, मैया काए टेरो?
सो रओ थो, कओ मैया काए टेरो?
*
दोरा की कुंडी बज रई खटखट
कौना पाहुना हेरो झटपट?
कौना लगा रओ पगफेरो?
काय टेरो?, मैया काए टेरो?...
*
हांत पाँव मों तुरतई धुलाओ
भुज नें भेंटियो, दूरई बिठाओ
मों पै लेओ गमछा घेरो
काय टेरो?, मैया काए टेरो?
*
बिन धोए सामान नें लइयो
बिन कारज बाहर नें जइयो
घरई डार रइओ डेरो
काए टेरो?, मैया काए टेरो
***

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
नहीं कार्य का अंत है, नहीं कार्य में तंत।
माया है सारा जगत, कहते ज्ञानी संत।।
*
आता-जाता कब समय, आते-जाते लोग।
जो चाहें वह कार्य कर, नहीं मनाएँ सोग।।
*
अपनी-पानी चाह है, अपनी-पानी राह।
करें वही जो मन रुचे, पाएँ उसकी थाह।।
*
एक वही है चौधरी, जग जिसकी चौपाल।
विनय उसी से सब करें, सुन कर करे निहाल।।
*
जीव न जग में उलझकर, देखे उसकी ओर।
हो संजीव न चाहता, हटे कृपा की कोर।।
*
मंजुल मूरत श्याम की, कण-कण में अभिराम।
देख सके तो देख ले, करले विनत प्रणाम।।
*
कृष्णा से कब रह सके, कृष्ण कभी भी दूर।
उनके कर में बाँसुरी, इनका मन संतूर।।
*
अपनी करनी कर सदा, कथनी कर ले मौन।
किस पल उससे भेंट हो, कह पाया कब-कौन??
*
करता वह, कर्ता वही, मानव मात्र निमित्त।
निर्णायक खुद को समझ, भरमाता है चित्त।।
*
चित्रकार वह; दृश्य वह, वही चित्र है मित्र।
जीव समझता स्वयं को, माया यही विचित्र।।
*
बिंब प्रदीपा ज्योति का, सलिल-धार में देख।
निज प्रकाश मत समझ रे!, चित्त तनिक सच लेख।।
***
३०.६.२०१८, ७९९९५५९६१८, ९४२५१८३२४४

मंगलवार, 29 जून 2021

शब्दांजलि सलिल

बहुमुखी व्यक्तित्व के साहित्य पुरोधा - 'संजीव वर्मा सलिल'
डॉ. क्रांति कनाटे
***************************
श्री संजीव वर्मा 'सलिल" बहुमुखी प्रतिभा के धनी है । अभियांत्रिकी, विधि, दर्शन शास्त्र और अर्थशास्त्र विषयों में शिक्षा प्राप्त श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जी देश के लब्ध-प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं जिनकी कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीट मेरे, काल है संक्रांति का, सड़क पर और कुरुक्षेत्र गाथा सहित अनेक पुस्तके चर्चित रही है ।
दोहा, कुण्डलिया, रोला, छप्पय और कई छन्द और छंदाधारित गीत रचनाओ के सशक्त हस्ताक्षर सही सलिल जी का पुस्तक प्रेम अनूठा है। इसका प्रमाण इनकी 10 हजार से अधिक श्रेष्ठ पुस्तको का संग्रह से शोभायमान जबलपुर में इनके घर पर इनका पुस्तकालय है ।
इनकी लेखक, कवि, कथाकार, कहानीकार और समालोचक के रूप में अद्वित्तीय पहचान है । मेरे प्रथम काव्य संग्रह 'करते शब्द प्रहार' पर इनका शुभांशा मेरे लिए अविस्मरणीय हो गई । इन्होंने ने कई नव प्रयोग भी किये है । दोहो और कुंडलियों पर इनकी शिल्प विधा पर इनके आलेख को कई विद्वजन उल्लेख करते है ।
जहाँ तक मुझे जानकारी है ये महादेवी वर्मा के नजदीकी रिश्तेदार है । इनकी कई वेसाइट है । ईश्वर के प्रति प्रगाढ़ आस्था के कारण इन्होंने के भजन सृजित किये है और कई संस्कृत की पुस्तकों का हिंदी काव्य रूप में अनुवाद किया है ।
सलिल जी से जब भी कोई जिज्ञासा वश पूछता है तो सहभाव से प्रत्युत्तर दे समाधान करते है । ये इनकी सदाशयता की पहचान है । एक बार इनके अलंकारित दोहो के प्रत्युत्तर में मैंने दोहा क्या लिखा, दोहो में ही आधे घण्टे तक एक दूसरे को जवाब देते रहे, जिन्हें कई कवियों ने सराहा । ऐसे साहित्य पुरोधा श्री 'सलिल' जी साहित्य मर्मज्ञ के साथ ही ऐसे नेक दिल इंसान है जिन्होंने सैकड़ों नवयुवकों को का हौंसला बढ़ाया है । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं है ।
मेरी भावभव्यक्ति -
प्रतिभा के धनी : संजीव वर्मा सलिल
------------------*------------------------
प्रतिभा के लगते धनी, जन्म जात कवि वृन्द ।
हुए पुरोधा कवि 'सलिल',प्यारे जिनको छन्द ।।
प्यारे जिनको छंद, पुस्तके जिनकी चर्चित ।
छन्दों में रच काव्य, करी अति ख्याति अर्जित ।।
कह लक्ष्मण कविराय, साहित्य में लाय विभा*।
साहित्यिक मर्मज्ञ, मानते वर्मा में प्रतिभा ।।
***
*शब्द ब्रम्ह के पुजारी गुरुवार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'*
छाया सक्सेना 'प्रभु'
श्रुति-स्मृति की सनातन परंपरा के देश भारत में शब्द को ब्रम्ह और शब्द साधना को ब्रह्मानंद माना गया है। पाश्चात्य जीवन मूल्यों और अंग्रेजी भाषा के प्रति अंधमोह के काल में, अभियंता होते हुए भी कोई हिंदी भाषा, व्याकरण और साहित्य के प्रति समर्पित हो सकता है, यह आचार्य सलिल जी से मिलकर ही जाना।
भावपरक अलंकृत रचनाओं को कैसे लिखें यह ज्ञान आचार्य संजीव 'सलिल' जी अपने सम्पर्क में आनेवाले इच्छुक रचनाकारों को स्वतः दे देते हैं। लेखन कैसे सुधरे, कैसे आकर्षक हो, कैसे प्रभावी हो ऐसे बहुत से तथ्य आचार्य जी बताते हैं। वे केवल मौखिक जानकारी ही नहीं देते वरन पढ़ने के लिए साहित्य भी उपलब्ध करवाते हैं । उनकी विशाल लाइब्रेरी में हर विषयों पर आधारित पुस्तकें सुसज्जित हैं । विश्ववाणी संस्थान अभियान के कार्यालय में कोई भी साहित्य प्रेमी आचार्य जी से फोन पर सम्पर्क कर मिलने हेतु समय ले सकता है । एक ही मुलाकात में आप अवश्य ही अपने लेखन में आश्चर्य जनक बदलाव पायेंगे ।
साहित्य की किसी भी विधा में आप से मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है । चाहें वो पुरातन छंद हो , नव छंद हो, गीत हो, नवगीत हो या गद्य में आलेख, संस्मरण, उपन्यास, कहानी या लघुकथा इन सभी में आप सिद्धस्थ हैं।
आचार्य सलिल जी संपादन कला में भी माहिर हैं। उन्होंने सामाजिक पत्रिका चित्राशीष, अभियंताओं की पत्रिकाओं इंजीनियर्स टाइम्स, अभियंता बंधु, साहित्यिक पत्रिका नर्मदा, अनेक स्मारिकाओं व पुस्तकों का संपादन किया है। अभियंता कवियों के संकलन निर्माण के नूपुर व नींव के पत्थर तथा समयजयी साहित्यकार भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' के लिए आपको
नाथद्वारा में 'संपादक रत्न' अलंकरण से अलंकृत किया गया है।
आचार्य सलिल जी ने संस्कृत से ५ नर्मदाष्टक, महालक्ष्यमष्टक स्त्रोत, शिव तांडव स्त्रोत, शिव महिम्न स्त्रोत, रामरक्षा स्त्रोत आदि का हिंदी काव्यानुवाद किया है। इस हेतु हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग को रजत जयंती वर्ष में आपको 'वाग्विदांबर' सम्मान प्राप्त हुआ। आचार्य जी ने हिंदी के अतिरिक्त बुंदेली, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, राजस्थानी, अवधी, हरयाणवी, सरायकी आदि में भी सृजन किया है।
बहुआयामी सृजनधर्मिता के धनी सलिल जी अभियांत्रिकी और तकनीकी विषयों को हिंदी में लिखने के प्रति प्रतिबद्ध हैं। आपको 'वैश्विकता के निकष पर भारतीय अभियांत्रिकी संरचनाएँ' पर अभियंताओं की सर्वोच्च संस्था इंस्टीटयूशन अॉफ इंजीनियर्स कोलकाता का अखिल भारतीय स्तर पर द्वितीय श्रेष्ठ पुरस्कार महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा प्रदान किया गया।
जबलपुर (म.प्र.)में १७ फरवरी को आयोजित सृजन पर्व के दौरान एक साथ कई पुस्तकों का विमोचन, समीक्षा व सम्मान समारोह को आचार्य जी ने बहुत ही कलात्मक तरीके से सम्पन्न किया । दोहा संकलन के तीन भाग सफलता पूर्वक न केवल सम्पादित किया वरन दोहाकारों को आपने दोहा सतसई लिखने हेतु प्रेरित भी किया । आपके निर्देशन में समन्वय प्रकाशन भी सफलता पूर्वक पुस्तकों का प्रकाशन कर नए कीर्तिमान गढ़ रहा है ।
***
बहुमुखी प्रतिभा के धनी सलिल जी
डॉ. बाबू जोसफ
आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी के साथ मेरा संबंध वर्षों पुराना है। उनके साथ मेरी पहली मुलाकात सन् 2003 में कर्णाटक के बेलगाम में हुई थी। सलिल जी द्वारा संपादित पत्रिका नर्मदा के तत्वावधान में आयोजित दिव्य अलंकरण समारोह में मुझे हिंदी भूषण पुरस्कार प्राप्त हुआ था। उस सम्मान समारोह में उन्होंने मुझे कुछ किताबें उपहार के रूप में दी थीं, जिनमें एक किताब मध्य प्रदेश के दमोह के अंग्रेजी प्रोफसर अनिल जैन के अंग्रेजी ग़ज़ल संकलन Off and On भी थी। उस पुस्तक में संकलित अंग्रेजी ग़ज़लों से हम इतने प्रभावित हुए कि हमने उन ग़ज़लों का हिंदी में अनुवाद करने की इच्छा प्रकट की। सलिल जी के प्रयास से हमें इसके लिए प्रोफसर अनिल जैन की अनुमति मिली और Off and On का हिंदी अनुवाद यदा-कदा शीर्षक पर जबलपुर से प्रकाशित भी हुआ। सलिल जी हमेशा उत्तर भारत के हिंदी प्रांत को हिंदीतर भाषी क्षेत्रों से जोड़ने का प्रयास करते रहे हैं। उनके इस श्रम के कारण BSF के DIG मनोहर बाथम की हिंदी कविताओं का संकलन सरहद से हमारे हाथ में आ गया। हिंदी साहित्य में फौजी संवेदना की सुंदर अभिव्यक्ति के कारण इस संकलन की कविताएं बेजोड़ हैं। हमने इस काव्य संग्रह का मलयालम में अनुवाद किया, जिसका शीर्षक है 'अतिर्ति'। इस पुस्तक के लिए बढ़िया भूमिका लिखकर सलिल जी ने हमारा उत्साह बढ़ाया। यह विशेष रूप से उल्लेखनीय बात है कि सलिल जी के कारण हिंदी के अनेक विद्वान, कवि,लेखक आदि हमारे मित्र बन गए हैं। हिंदी साहित्य में कवि, आलोचक एवं संपादक के रूप में विख्यात सलिल जी की बहुमुखी प्रतिभा से हिन्दी भाषा का गौरव बढ़ा है। उन्होंने हिंदी को बहुत कुछ दिया है। इस लिए हिंदी साहित्य में उनका नाम हमेशा अमर रहेगा। हमने सलिल जी को बहुत दूर से देखा है, मगर वे हमारे बहुत करीब हैं। हमने उन्हें किताबें और तस्वीरों में देखा है, मगर वे हमें अपने मन की दूरबीन से देखते हैं। उनकी लेखनी के अद्भुत चमत्कार से हमारे दिल का अंधकार दूर हो गया है। सलिल जी को केरल से ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।
- वडक्कन हाऊस, कुरविलंगाडु पोस्ट, कोट्टायम जिला, केरल-686633, मोबाइल.09447868474
***
छंदों का सम्पूर्ण विद्यालय हैं आचार्य संजीव वर्मा "'सलिल'
मंजूषा मन
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' से मेरा परिचय पिछले चार वर्षों से है। लगभग चार वर्ष पहले की बात है, मैं एक छंद के विषय मे जानकारी चाहती थी पर यह जानकारी कहाँ से मिल सकती है यह मुझे पता नहीं था, सो जो हम आमतौर पर करते हैं मैंने भी वही किया... मैंने गूगल की मदद ली और गूगल पर छंद का नाम लिखा तो सबसे पहले मुझे "दिव्य नर्मदा" वेब पत्रिका से छंद की जानकारी प्राप्त हुई। मैंने दिव्य नर्मदा पर बहुत सारी रचनाएँ पढ़ीं।
चूँकि मैं भी जबलपुर की हूँ और जबलपुर मेरा नियमित आनाजाना होता है तो मेरे मन में आचार्य जी से मिलने की तीव्र इच्छा जागृत हुई। दिव्य नर्मदा पर मुझे आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी का पता और फोन नम्बर भी मिला। मैं स्वयं को रोक नहीं पाई और मैंने आचार्य सलिल जी को व्हाट्सएप पर सन्देश लिखा कि मैं भी जबलपुर से हूँ... और जबलपुर आने पर आपसे भेंट करना चाहती हूँ। उन्होंने कहा कि मैं जब भी आऊँ तो उनके निवास स्थान पर उनसे मिल सकती हूँ।
उसके बाद जब में जबलपुर गई तो मैं सलिल जी से मिलने उनके के घर गई। आप बहुत ही सरल हृदय हैं बहुत ही सहजता से मिले और हमने बहुत देर तक साहित्यिक चर्चा की। हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए आप बहुत चिंतित एवं प्रयासरत लगे। चर्चा के दौरान हमने हिन्दी छंद, गीत-नवगीत, माहिया एवं हाइकु आदि पर विस्तार से बात की। लेखन की लगभग सभी विधाओं पर आपका ज्ञान अद्भुत है।
ततपश्चात मैं जब भी जबलपुर जाती हूँ तो आचार्य सलिल जी से अवश्य मिलती हूँ। उनके अथाह साहित्य ज्ञान के सागर से हर बार कुछ मोती चुनने का प्रयास करती हूँ।
ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान उन्होंने सनातन छंदो पर अपने शोध पर विस्तार से बताया। सनातन छंदों पर किया गया यह शोध नवोदित रचनाकारों के लिए गीता साबित होगा।
आचार्य सलिल जी के विषय में चर्चा हो और उनके द्वारा संपादित "दोहा शतक मंजूषा" की चर्चा हो यह सम्भव नहीं। विश्व वाणी साहित्य संस्थान नामक संस्था के माध्यम से आप साहित्य सेवारत हैं। इसी प्रकाशन से प्रकाशित ये दोहा संग्रह पठनीय होने के साथ साथ संकलित करके रखने के योग्य हैं इनमें केवल दोहे संकलित नहीं हैं बल्कि दोहों के विषय मे विस्तार से समझाया गया है जिससे पाठक दोहों के शिल्प को समझ सके और दोहे रचने में सक्षम हो सके।
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी के लिए कुछ कहते हुए शब्द कम पड़ जाते हैं किंतु साहित्य के लिए आपके योगदान की गाथा पूर्ण नहीं होती। आपकी साहित्य सेवा सराहनीय है।
मैं अपने हृदयतल से आपको शुभकामनाएं देती हूँ कि आप आपकी साहित्य सेवा की चर्चा दूर दूर तक पहुंचे। आप सफलता के नए नए कीर्तिमान स्थापित करें अवने विश्व वाणी संस्थान के माध्यम से हिंदी का प्रचार प्रसार करते रहें।
- कार्यकारी अधिकारी, अम्बुजा सीमेंट फाउंडेशन, ग्राम - रवान, जिला - बलौदा बाजार 493331 छत्तीसगढ़
***

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ - मानवीय संवेदनाओं के कवि
बसंत कुमार शर्मा
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी का नाम अंतर्जाल पर हिंदी साहित्य जगत में विशेष रूप से सनातन एवं नवीन छंदों पर किये गए उनके कार्य को लेकर अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है, गूगल पर उनका नाम लिखते ही सैकड़ों के संख्या में अनेकानेक पेज खुल जाते हैं जिनमें छंद पिंगलशास्त्र के बारे में अद्भुत ज्ञान वर्धक आलेख तथ्यों के साथ उपलब्ध हैं और हम सभी का मार्गदर्शन कर रहे हैं. फेसबुक एवं अन्य सोशल मिडिया के माध्यम से नवसिखियों को छंद सिखाने का कार्य वे निरनतर कर रहे हैं. पेशे से इंजीनियर होने के बाबजूद उनका हिंदी भाषा, व्याकरण का ज्ञान अद्भुत है, उन्होंने वकालत की डिग्री भी हासिल की है जो दर्शाता है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती. वे विगत लगभग 20 वर्षों से हिंदी की सेवा माँ के समान निष्काम भाव से कर रहे हैं, उनका यह समर्पण वंदनीय है, साथ साथ हम जैसे नवोदितों के लिए अनुकरणीय है। गीतों में छंद वद्धता और गेयता के वे पक्षधर हैं।
आचार्य जी से मेरी प्रथम मुलाकात आदरणीय अरुण अर्णव खरे जी के साथ उनके निज आवास पर अक्टूबर २०१६ में हुई, उसे कार्यालय या एक पुस्तकालय कहूँ तो उचित होगा, उनके पास दो फ्लैट हैं, एक में उनका परिवार रहता है दूसरा साहित्यिक गतिविधियों को समर्पित है, लगभग दो घंटे हिंदी साहित्य के विकास में हम मिलकर क्या कर सकते हैं, इस पर चर्चा हुई. उनके सहज सरल व्यक्तित्व और हिंदी भाषा के लिए पूर्ण समर्पण के भाव ने मुझे बहुत प्रभावित किया. यह निर्णय लिया गया कि विश्ववाणी हिंदी संस्थान के अंतर्गत अभियान के माध्यम से जबलपुर में हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे लघुकथा, कहानी, दोहा छंद आदि विधाओं पर सीखने सिखाने हेतु कार्यशालाएं/गोष्ठी आयोजित की जाएँ, तब से लेकर आज तक २५ गोष्ठियों का आयोजन किया चुका है और यह क्रम अनवरत जारी है, व्हाट्सएप समूह के माध्यम से भी यह कार्य प्रगति की चल रहा है. इसी अवधि में तीन दोहा संकलन उन्होंने सम्पादित किये हैं, सम्पादन उत्कृष्ट एवं शिक्षाप्रद है.
वे एक कुशल वक्ता हैं, आशुकवि हैं, समयानुशासन का पालन उनकी आदत में शुमार है, चाहे वह किसी आयोजन में उपस्थिति का हो या फिर वक्तव्य, काव्यपाठ की अवधि का, निर्धारित अवधि में अपनी पूरी बात कह देने की कला में वे निपुण हैं. अनुशासन हीनता उन्हें बहुत विचलित करती है, कभी-कभी वे इसे सबके सामने प्रकट भी कर देते हैं.
उन्होंने कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, काल है संक्रांति का, सड़क पर, कुरुक्षेत्र गाथा आदि कृतियों के माध्यम से साहित्य में सबका हित समाहित करने का अनुपम कार्य किया है. यदि सामाजिक विसंगतियों पर करारा प्रहार करना आचार्य सलिल के काव्य की विशेषता है तो समाज में मंगल, प्रकृति की सुंदरता का वर्णन भी समान रूप से उनके काव्य का अंश है, माँ नर्मदा पर उनके उनके छंद हैं, दिव्य नर्मदा के नाम से वे ब्लॉग निरंतर लिख रहे हैं.
उनके साथ मुझे कई साहित्यिक यात्राएँ करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, अपने पैसे एवं समय खर्च कर साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेने का उनका उत्साह सराहनीय है, अनुकरणीय है.
ट्रू मीडिया ने उनके कृतित्व पर एक विशेषांक निकालने का निर्णय लिया है, स्वागत योग्य है, इससे संस्कारधानी जबलपुर गौरवान्वित हुई है. मैं उनके उनके उज्जवल भविष्य और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूँ. माँ शारदा की अनुकम्पा सदैव उन पर बनी रहे.
बसंत कुमार शर्मा
IRTS
संप्रति - वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक, जबलपुर मंडल, पश्चिम मध्य रेल, निवास - 354, रेल्वे डुप्लेक्स, फेथवैली स्कूल के सामने, पचपेढ़ी, साउथ सिविल लाइन्स, जबलपुर 9479356702 ईमेल : basant5366@gmail.com
***

पद

पद - छंद: दोहा 
*
मन मंदिर में बैठे श्याम।।
नटखट-चंचल सुकोमल, भावन छवि अभिराम।
देख लाज से गड़ रहे, नभ सज्जित घनश्याम।।
मेघ मृदंग बजा रहे, पवन जप रहा नाम।
मंजु राधिका मुग्ध मन, छेड़ रहीं अविराम।।
छीन बंसरी अधर धर, कहें न करती काम।
कहें श्याम दो फूँक तब, जब मन हो निष्काम।।
चाह न तजना है मुझे, रहें विधाता वाम।
ये लो अपनी बंसरी, दे दो अपना नाम।।
तुम हो जाओ राधिका, मुझे बना दो श्याम।
श्याम थाम कर हँस रहे, मैं गुलाम बेदाम।।
***
२९.६.२०१२, ७९९९५५९६१८ / ९४२५१८३२४४

गीत:कहे कहानी, आँख का पानी

गीत:कहे कहानी, आँख का पानी.
संजीव 'सलिल'
*
कहे कहानी, आँख का पानी.
की सो की, मत कर नादानी...
*
बरखा आई, रिमझिम लाई.
नदी नवोढ़ा सी इठलाई..
ताल भरे दादुर टर्राये.
शतदल कमल खिले मन भाये..
वसुधा ओढ़े हरी चुनरिया.
बीरबहूटी बनी गुजरिया..
मेघ-दामिनी आँख मिचोली.
खेलें देखे ऊषा भोली..
संध्या-रजनी सखी सुहानी.
कहे कहानी, आँख का पानी...
*
पाला-कोहरा साथी-संगी.
आये साथ, करें हुडदंगी..
दूल्हा जाड़ा सजा अनूठा.
ठिठुरे रवि सहबाला रूठा..
कुसुम-कली पर झूमे भँवरा.
टेर चिरैया चिड़वा सँवरा..
चूड़ी पायल कंगन खनके.
सुन-गुन पनघट के पग बहके.
जो जी चाहे करे जवानी.
कहे कहानी, आँख का पानी....
*
अमन-चैन सब हुई उड़न छू.
सन-सन, सांय-सांय चलती लू..
लंगड़ा चौसा आम दशहरी
खाएँ ख़ास न करते देरी..
कूलर, ए.सी., परदे खस के.
दिल में बसी याद चुप कसके..
बन्ना-बन्नी, चैती-सोहर.
सोंठ-हरीरा, खा-पी जीभर..
कागा सुन कोयल की बानी.
कहे कहानी, आँख का पानी..
२९-६-२०१० 
*********************

बंगाल वैभव संजीव

बंगाल वैभव
*
चित्र गुप्त साकार हो, विधि-हरि-हर रच सृष्टि। 
शारद-रमा-उमा सहित, करें कृपा की वृष्टि।।
रिद्धि-सिद्धि विघ्नेश आ, करें हमें मतिमान। 
वर दें भारत भूमि हो, सुख-समृद्धि की खान।।  
'भारत' की महिमा का वर्णन। करते युग-युग से मिल कवि जन।१।
देश सनातन वैभवशाली। 'गंगारिदयी' धरा शुभ आली।२।
'पाल-सेन' ने भोगी सत्ता। चार सदी तक रख गुणवत्ता।३।
तीन सदी थे मुस्लिम शासक। भोग विलास दमन के नायक।४।
प्लासी में अंग्रेज विजय पा। सके देश में पाँव थे जमा।५।
हा! दुर्दिन थे देश के, जनगण था उद्भ्रांत। 
भद्र बंग विद्वान थे, दीन-हीन अति क्लांत।। 
हिंदू-मुस्लिम किया विभाजन। शोषक बन करते थे शासन।६।
'संतानों' ने किया जागरण। क्रांति शंख ने किया भय हरण।७।
सदी आठवीं से रचनाएँ। साहित्यिक मिलती मन भाएँ।८।
'सिद्धाचार्य' पुरातन कवि थे। ताड़पत्र पर वे लिखते थे।९।
'रामायण कृतिवास' लोकप्रिय। 'चंडीदास' कीर्ति थिर अक्षय।१०।
मिल संस्कृति-साहित्य ने, जन मन को दी शक्ति। 
विपद काल में मनोबल, पाएँ कर प्रभु भक्ति।। 
'मालाधर' 'चैतन्य' चेतना। फैला हरते लोक वेदना।११।
काव्य कथा 'चंडी' व 'मनासा'। कवि 'जयदेव' नाम रवि जैसा।१२।
सन अट्ठारह सौ सत्तावन। जूझा था बंगाली जन जन।१३।
नाटक 'दीनबंधु मित्रा' का। 'नील दोर्पन' लोक व्यथा का।१४।
लोक जागरण का था माध्यम। अंग्रेजों को दिखता था यम।१५।
'ठाकुर देवेंद्रनाथ' ने, संस्था 'ब्रह्मसमाज'। 
गठित करी ले लक्ष्य यह, बदल सकें कुछ आज।। 
'राय राममोहन'  ने जमकर। सती प्रथा को दी थी टक्कर।१६।
'माइकेल मधुसूदन' कवि न्यारे। 'कवि नज़रूल' आँख के तारे।१७।
'वंदे मातरम' दे 'बंकिम' ने। पाई प्रतिष्ठा सब भारत से।१८।
'केशव सेन' व 'विद्यासागर'। शिशु शिक्षा विधवा विवाह कर।१९।
'चितरंजन' परिवर्तन लाए। रूढ़िवादियों से टकराए।२०। 
क्रांति ज्वाल थी जल रही, उबल रह था रक्त। 
डरते थे अंग्रेज भी, बेबस भीरु अशक्त।। 
'सूर्यसेन' और 'प्रीतिलता' से। डरते-थर्राते थे गोरे।२१।
'गुरु रवींद्र' ने नोबल पाया। 'गीतांजलि' ने मान दिलाया।२२।
'परमहंस श्री रामकृष्ण' ने। ईश्वर पाया सब धर्मों से।२३।
'उठो जाग कर मंज़िल पाओ'। अपनी किस्मत आप बनाओ।२४।
'स्वामी विवेकानंद' धर्म ध्वज। फहरा सके दूर पश्चिम तक।२५।  
दलित-दीन-सेवा करी, सह न सके पाखंड। 
जाति प्रथा को चुनौती, दी कह सत्य अखंड।।    
वैज्ञानिक 'सत्येन बोस' ने। कीर्ति कमाई 'बोसान कण' से।२६।
'बसु जगदीश' गज़ब के ज्ञानी। वैज्ञानिक महान वे दानी।२७।
'राय प्रफुल्ल चंद्र' रसायनी। 'नाइट्राइट' विद्या के धनी।२८। 
'मेघनाथ साहा' विशिष्ट थे। जगजाहिर एस्ट्रोफिसिस्ट थे।२९। 
'दत्त रमेश चंद्र' ऋग्वेदी। अर्थशास्त्री विख्यात अरु गुणी।३०। 
प्रतिभाओं से दीप्त था,  भारत का आकाश। 
समय निकट था तोड़ दे, पराधीनता पाश।।  
'रास बिहारी' क्रांतिवीर थे। 'बाघा जतिन' प्रचंड धीर थे।३१।
जला 'लाहिड़ी' ने मशाल दी। गोरी सत्ता थर्राई थी।३२। 
क्रांतिवीर 'अरविन्द-कनाई' । 'बारीलाल' ने धूम मचाई।३३।'
'श्री अरविन्द घोष' थे त्यागी। क्रांति और दर्शन अनुरागी।३४।  
'वीर सुभाष' अमर बलिदानी। रिपु को याद कराई नानी।३५।
अपनी आप मिसाल थे, जलती हुई मशाल।  
नारा दे 'जय हिंद' हैं, अमर साक्षी देश के लाल।। 
'शरतचंद्र' ने पाखंडों पे। किया प्रहार उपन्यासों में।३६। 
'ताराशंकर' 'बिमल मित्र' ने। उपन्यास अनुपम हैं रचे।३७।  
'नंदलाल-अवनींद्र-जैमिनी'। चित्रकार त्रय अनुपम गुनी।३८।   
बंग कोकिला थीं 'सरोजिनी'। 'राय बिधानचंद्र' अति धुनी।३९।
'रॉय बिमल' अरु 'सत्यजीत' ने। नाम कमाया फिल्म जगत में।४०। 
प्रतिभाओं की खान है, बंगभूमि लें मान। 
जो चाहें वह कर सकें, यदि लें मन में ठान।।  
दुर्गा पूजा दिवाली, बंगाली त्यौहार।
रथयात्रा रंगोत्सव, दस दिश रहे बहार।।
षष्ठी तिथि 'बोधन' आमंत्रण। प्राण प्रतिष्ठा भव्य सुतंत्रण।४१। 
भोर-साँझ पूजन फिर बलि हो। 'कोलाकुली' गले मिल खुश हो। ४२। 
'नीलकंठ' दर्शन शुभ जानो। सेंदुर ले-दे 'खेला' ठानो।४३।  
'हरसिंगार' 'कौड़िल्ला' 'छितवन'। 'रोसोगुल्ला' हरता सबका मन।४४। 
'सिक्किम' 'असम' 'बिहार' 'उड़ीसा'। 'झारखण्ड' संगी-साथी सा।४५।  
बांग्लादेश पड़ोस में, है सद्भाव विशेष। 
थे अतीत में एक ही, पाले स्नेह अशेष।। 
'घुग्गी' 'चाट' 'झलमुरी' खाएँ। 'हिलसा मछली' भुला न पाएँ।४६।
घाट बैठ लें चाय चुस्कियाँ। सूर्य डूबता देख झलकियाँ।४७। 
खाड़ी तट पर 'दीघा' जाएँ। 'लतागुड़ी' घूमें हर्षाएँ।४८।   
बसा सिलिगुड़ी, तीर 'टोरसा'। 'जलदापारा' पार्क रम्य सा।४९। 
'सुंदरबन' 'बंगाल टाइगर'। 'दार्जिलिंग' है खूब नामवर।५०। 
'कालिपोंग' मठ-चर्च की, शोभा भव्य अनूप। 
'कुर्सिआंग' 'आर्किड्स' का, देखें रूप अरूप।।
'कामाख्या' मंदिर अतिपावन। 'गंगासागर' छवि मनभावन।५१। 
'शांतिनिकेतन' 'विश्व भारती'। 'सेतु हावड़ा' 'गंग तारती'।५२।  
'गोरूमारा' 'बल्लभपुर' वन। 'बक्सा' घूम हुलस जाए मन।५३। 
'कूचबिहार', 'हल्दिया', 'माल्दा'। 'तारापीठ' 'सैंडकफू' भी जा।५४। 
'माछी-भात', 'पंटूआ', 'चमचम'। 'भज्जा', 'झोल' 'पिथा' खा तज गम। ५५। 
'छेना लड्डू' खाइए, फिर छककर 'संदेश'। 
'रसमलाई' से पाइए, प्रिय! आनंद अशेष।। 
बंगाली हैं भद्रजन, शांत शिष्ट गुणवान। 
देशभक्ति है खून में, जां से प्यारी आन।। 
***

    

चौपाई

मुक्तिका
*
सरला तरला विमला मति दे, शारद मैया तर जाऊँ
वीणा के तारों जैसे पल पल तेरा ही गुण गाऊँ
वाक् शब्द सरगम निनाद तू, तू ही कलकल कलरव है
कल भूला, कल पर न टाल, इस पल ही भज, कल मैं पाऊँ
हारा, कौन सहारा तुम बिन, तारो तारो माँ तारो
कुमति नहीं, शुचि सुमति मिले माँ, कर सत्कर्म तुझे भाऊँ
डगमग पग धर पगडंडी पर, गिर थक डर झुक रुकूँ नहीं
फल की फिक्र न कर, सूरज सम दे प्रकाश जग पर छाऊँ
पग प्रक्षालन करे सलिल, हो मुक्त आचमन कर सब जग
आकुल व्याकुल चित्त शांत हों, सबको तुझ तक ला पाऊँ
***
संजीव 
९४२५१८३२४४

सरस्वती प्रार्थना

मुक्तिका
*
सरला तरला विमला मति दे, शारद मैया तर जाऊँ
वीणा के तारों जैसे पल पल तेरा ही गुण गाऊँ
वाक् शब्द सरगम निनाद तू, तू ही कलकल कलरव है
कल भूला, कल पर न टाल, इस पल ही भज, कल मैं पाऊँ
हारा, कौन सहारा तुम बिन, तारो तारो माँ तारो
कुमति नहीं, शुचि सुमति मिले माँ, कर सत्कर्म तुझे भाऊँ
डगमग पग धर पगडंडी पर, गिर थक डर झुक रुकूँ नहीं
फल की फिक्र न कर, सूरज सम दे प्रकाश जग पर छाऊँ
पग प्रक्षालन करे सलिल, हो मुक्त आचमन कर सब जग
आकुल व्याकुल चित्त शांत हों, सबको तुझ तक ला पाऊँ
***
संजीव 
९४२५१८३२४४

सोमवार, 28 जून 2021

दोहा मुक्तिका

दोहा मुक्तिका:
*
काम न आता प्यार
काम न आता प्यार यदि, क्यों करता करतार।।
जो दिल बस; ले दिल बसा, वह सच्चा दिलदार।।
*
जां की बाजी लगे तो, काम न आता प्यार।
सरहद पर अरि शीश ले, पहले 'सलिल' उतार।।
*
तूफानों में थाम लो, दृढ़ता से पतवार।
काम न आता प्यार गर, घिरे हुए मझधार।।
*
गैरों को अपना बना, दूर करें तकरार।
कभी न घर में रह कहें, काम न आता प्यार।।
*
बिना बोले ही बोलना, अगर हुआ स्वीकार।
'सलिल' नहीं कह सकोगे, काम न आता प्यार।।
*
मिले नहीं बाज़ार में, दो कौड़ी भी दाम।
काम न आता प्यार जब, रहे विधाता वाम।।
*
राजनीति में कभी भी, काम न आता प्यार।
दाँव-पेंच; छल-कपट से, जीवन हो निस्सार।।
*
काम न आता प्यार कह, करें नहीं तकरार।
कहीं काम मनुहार दे, कहीं काम इसरार।।
*
२८.६.२०१८, ७९९९५५९६१८

दोहा संवाद

दोहा संवाद:
*
बिना कहे कहना 'सलिल', सिखला देता वक्त।
सुन औरों की बात पर, कर मन की कमबख्त।।
*
आवन जावन जगत में,सब कुछ स्वप्न समान।
मैं गिरधर के रंग रंगी, मान सके तो मान।। - लता यादव
*
लता न गिरि को धर सके, गिरि पर लता अनेक।
दोहा पढ़कर हँस रहे, गिरिधर गिरि वर एक।। -संजीव
*
मैं मोहन की राधिका, नित उठ करूँ गुहार।
चरण शरण रख लो मुझे, सुनकर नाथ पुकार।। - लता यादव
*
मोहन मोह न अब मुझे, कर माया से मुक्त।
कहे राधिका साधिका, कर मत मुझे वियुक्त।। -संजीव
*
ना मैं जानूँ साधना, ना जानूँ कुछ रीत।
मन ही मन मनका फिरे,कैसी है ये प्रीत।। - लता यादव
*
करे साधना साधना, मिट जाती हर व्याध।
करे काम ना कामना, स्वार्थ रही आराध।। -संजीव
*
सोच सोच हारी सखी, सूझे तनिक न युक्ति ।
जन्म-मरण के फेर से, दिलवा दे जो मुक्ति।। -लता यादव
*
नित्य भोर हो जन फिर, नित्य रात हो मौत।
तन सो-जगता मन मगर, मौन हो रहा फौत।। -संजीव
*
वाणी पर संयम रखूँ, मुझको दो आशीष।
दोहे उत्तम रच सकूँ, कृपा करो जगदीश।। -लता यादव
*
हरि न मौन होते कभी, शब्द-शब्द में व्याप्त।
गीता-वचन उचारते, विश्व सुने चुप आप्त।। -संजीव
*
२८-६-२०१८, ७९९९५५९६१८

दोहा सलिला

दोहा सलिला:
*
हर्ष; खुशी; उल्लास; सुख, या आनंद-प्रमोद।
हैं आकाश-कुसुम 'सलिल', अब आल्हाद विनोद।।
*
कहीं न हैपीनेस है, हुआ लापता जॉय।
हाथों में हालात के, ह्युमन बीइंग टॉय।।
*
एक दूसरे से मिलें, जब मन जाए झूम।
तब जीवन का अर्थ हो, सही हमें मालूम।।
*
मेरे अधरों पर खिले, तुझे देख मुस्कान।
तेरे लब यदि हँस पड़ें, पड़े जान में जान।।
*
तू-तू मैं-मैं भुलकर, मैं तू हम हों मीत।
तो हर मुश्किल जीत लें, यह जीवन की रीत।।
*
श्वास-आस संबंध बो, हरिया जीवन-खेत।
राग-द्वेष कंटक हटा, मतभेदों की रेत।।
*
२८.६.२०१८, ७९९९५५९६१८

प्रश्नोत्तरी दोहा

प्रश्नोत्तरी दोहा  
*
चंपा तुझ में तीन गुण ,रूप ,रंग और बास
अवगुण केवल एक है ,भ्रमर ना आवै पास
चंपा बदनी राधिका भ्रमर कृष्ण का दास
निज जननी अनुहार के भ्रमर न जाये पास
इन दोनों दोहों के दोहाकारों के नाम भूल गया हूँ. बताइये

लघु कथा: बाँस

लघु कथा:
बाँस
.
गेंड़ी पर नाचते नर्तक की गति और कौशल से मुग्ध जनसमूह ने करतल ध्वनि की. नर्तक ने मस्तक झुकाया और तेजी से एक गली में खो गया.
आश्चर्य हुआ प्रशंसा पाने के लिये लोग क्या-क्या नहीं करते? चंद करतल ध्वनियों के लिये रैली, भाषण, सभा, समारोह, यहाँ ताक की खुद प्रायोजित भी कराते हैं. यह अनाम नर्तक इसकी उपेक्षा कर चला गया जबकि विरागी-संत भी तालियों के मोह से मुक्त नहीं हो पाते. मंदिर से संसद तक और कोठों से अमरोहों तक तालियों और गालियों का ही राज्य है.
संयोगवश अगले ही दिन वह नर्तक फिर मिला गया. आज वह पीठ पर एक शिशु को बाँधे हाथ में लंबा बाँस लिये रस्से पर चल रहा था और बज रही थीं तालियाँ लेकिन वह फिर गायब हो गया.
कुछ दिन बाद नुक्कड़ पर फिर दिख गया वह... इस बार कंधे पर रखे बाँस के दोनों ओर जलावन के गट्ठर टँगे थे जिन्हें वह बेचने जा रहा था..
मैंने पुकारा तो वह रुक गया. मैंने उसके नृत्य और रस्से पर चलने की कला की प्रशंसा कर पूछा कि इतना अच्छा कलाकार होने के बाद भी वह अपनी प्रशंसा से दूर क्यों चला जाता है? कला साधना के स्थान पर अन्य कार्यों को समय क्यों देता है?
कुछ पल वह मुझे देखता रहा फिर लम्बी साँस भरकर बोला : 'क्या कहूँ? कला साधना और प्रशंसा तो मुझे भी मन भाती है पर पेट की आग न तो कला से, न प्रशंसा से बुझती है. तालियों की आवाज़ में रमा रहूँ तो बच्चे भूखे रह जायेंगे.' मैंने जरूरत न होते हुए भी जलावन ले ली... उसे परछी में बैठाकर पानी पिलाया और रुपये दिए तो वह बोल पड़ा: 'सब किस्मत का खेल है. अच्छा-खासा व्यापार करता था. पिता को किसी से टक्कर मार दी. उनके इलाज में हुए खर्च में लिये कर्ज को चुकाने में पूँजी ख़त्म हो गयी. बचपन का साथी बाँस और उस पर सीखे खेल ही पेट पालने का जरिया बन गये.' इससे पहले कि मैं उसे हिम्मत देता वह फिर बोला:'फ़िक्र न करें, वे दिन न रहे तो ये भी न रहेंगे. अभी तो मुझे कहीं झुककर, कहीं तनकर बाँस की तरह परिस्थितियों से जूझना ही नहीं उन्हें जीतना भी है.' और वह तेजी से आगे बढ़ गया. मैं देखता रह गया उसके हाथ में झूलता बाँस
२८-६-२०१७ 
*