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बुधवार, 3 अप्रैल 2019

त्रिपदियाँ



त्रिपदियाँ 
*
हर मंच अखाडा है 
लड़ने की कला गायब 
माहौल बिगाड़ा है. 
*
सपनों की होली में 
हैं रंग अनूठे ही 
सांसों की झोली में.
*
भावी जीवन के ख्वाब 
बिटिया ने देखे हैं 
महके हैं सुर्ख गुलाब 
*
चूनर ओढ़ी है लाल
सपने साकार हुए 
फिर गाल गुलाल हुए
*
मासूम हँसी प्यारी 
बिखरी यमुना तट पर
सँग राधा-बनवारी
*
पत्तों ने पतझड़ से 
बरबस सच बोल दिया 
अब जाने की बारी 
*
चुभने वाली यादें 
पूँजी हैं जीवन की 
ज्यों घर की बुनियादें 
*
देखे बिटिया सपने 
घर-आँगन छूट रहा
हैं कौन-कहाँअपने? 
* 
है कैसी अनहोनी?
सँग फूल लिये काँटे 
ज्यों गूंगे की बोली 
३.४.२०१६
***

बुन्देली दोहे

बुन्देली दोहे
महुआ फूरन सों चढ़ो, गौर धना पे रंग।
भाग सराहें पवन के, चूम रहो अँग-अंग।।
मादल-थापों सॅंग परें, जब गैला में पैर।
धड़कन बाॅंकों की बढ़े, राम राखियो खैर।।
हमें सुमिर तुम हो रईं, गोरी लाल गुलाल।
तुमें देख हम हो रए, कैसें कयें निहाल।।
मन म्रिदंग सम झूम रौ, सुन पायल झंकार।
रूप छटा नें छेड़ दै, दिल सितार कें तार।।
नेह नरमदा मा परे, कंकर घाईं बोल।
चाह पखेरू कूक दौ, बानी-मिसरी घोल।।
सैन धनुस लै बेधते, लच्छ नैन बन बान।
निकरन चाहें पै नईं, निकर पा रए प्रान।।
तड़प रई मन मछरिया, नेह-नरमदा चाह।
तन भरमाना घाट पे, जल जल दे रौ दाह।।
अंग-अंग अलसा रओ, पोर-पोर में पीर।
बैरन ननदी बलम सें, चिपटी छूटत धीर।।
कोयल कूके चैत मा, देख बरे बैसाख।
जेठ जिठानी बिन तपे, सूरज फेंके आग।।
३.४.२०१६ 
*

क्षणिका

क्षणिका
कानून और आदमी
*
क़ानून को
आम आदमी तोड़े
तो बदमाश
निर्बल तोड़े
तो शैतान
असहाय तोड़े
तो गुंडा
समर्थ या नेता
तोड़े तो निर्दोष
और अभिनेता
तोड़े तो
सहानुभूति का पात्र.
३.४.२०१३
***

निर्मल वर्मा

स्मरण: निर्मल वर्मा 


*                                                                                                                                                                                          निर्मल वर्मा (३ अप्रैल १९२९- २५ अक्तूबर २००५) हिन्दी के आधुनिक कथाकारों में एक मूर्धन्य कथाकार और पत्रकार थे। शिमला में जन्मे निर्मल वर्मा को मूर्तिदेवी पुरस्कार(१९९५), साहित्य अकादमी पुरस्कार (१९८५) उत्तर प्रदेशहिन्दी संस्थान पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। परिंदे (१९५८) से प्रसिद्धि पाने वाले निर्मल वर्मा की कहानियां अभिव्यक्ति और शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ समझी जाती हैं। ब्रिटिश भारत सरकार के रक्षा विभाग में एक उच्च पदाधिकारी श्री नंद कुमार वर्मा के घर जन्म लेने वाले आठ भाई बहनों में से पांचवें निर्मल वर्मा की संवेदनात्मक बुनावट पर हिमांचल की पहाड़ी छायाएं दूर तक पहचानी जा सकती हैं। हिन्दी कहानी में आधुनिक-बोध लाने वाले कहानीकारों में निर्मल वर्मा का अग्रणी स्थान है। उन्होंने कम लिखा है परंतु जितना लिखा है उतने से ही वे बहुत ख्याति पाने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहानी की प्रचलित कला में तो संशोधन किया ही, प्रत्यक्ष यथार्थ को भेदकर उसके भीतर पहुंचने का भी प्रयत्न किया है। हिन्दी के महान साहित्यकारों में से अज्ञेय और निर्मल वर्मा जैसे कुछ ही साहित्यकार ऐसे रहे हैं जिन्होंने अपने प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर भारतीय और पश्चिम की संस्कृतियों के अंतर्द्वन्द्व पर गहनता एवं व्यापकता से विचार किया है।
प्रकाशित कृतियाँ- उपन्यास- वे दिन, एक चिथड़ा सुख, लाल टीन की छत, रात का रिपोर्टर, अंतिम अरण्य।  कहानी संग्रह- परिंदे, जलती झाड़ी, पिछली गर्मियों में, कव्वे और काला पानी, सूखा और अन्य कहानियाँ।  संस्मरण- चीड़ों पर चाँदनी।

दोहा प्रश्नोत्तर

कार्य शाला :
दोहा प्रश्नोत्तर
*
सरोज सिंह परिहार 'सूरज' नागौद

नीर भरे नैना रहें, लिये दरस की प्यास।
प्यासे नैना जल भरे, अजब विरोधाभास।।
*
संजीव वर्मा 'सलिल'

स्नेह सलिल नैना लिए, करें दरस की प्यास।
नेह नर्मदा मिल बहे, नहीं विरोधाभास।।
***
३.४.२०१९

मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

मुक्तक आँसू

मुक्तक
*
सिर्फ पानी नहीं आँसू, हर्ष भी हैं दर्द भी। 
बहाती नारी न केवल, हैं बनाते मर्द भी।।
गर प्रवाहित हों नहीं तो हृदय ही फट जाएगा-
हों गुलाबी-लाल तो होते कभी ये जर्द भी।।
***

विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर


विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर
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- : दोहा संकलन- "दोहा दुनिया" : -
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में दोहा-लेखन तथा दोहाकारों को प्रोत्साहित-प्रतिष्ठित करने का उद्देश्य लेकर समकालिक वरिष्ठ तथा नवोदित दोहाकारों के दोहा-शतकों का संकलन शीघ्र ही प्रकाशित किया जा रहा है। संकलन में सम्मिलित प्रत्येक दोहाकार के १०० दोहे, चित्र, संक्षिप्त परिचय (नाम, जन्म तिथि व स्थान, माता-पिता, जीवनसाथी के नाम, शिक्षा, लेखन विधा, प्रकाशित कृतियाँ, उपलब्धि, पूरा पता, चलभाष, ईमेल आदि) १० पृष्ठों में प्रकाशित किए जाएँगे। हर सहभागी के दोहों पर संक्षिप्त विमर्श तथा दोहा पर आलेख भी होगा। संपादन वरिष्ठ दोहाकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा किया जा रहा है। प्रत्येक सहभागी ३०००/- अग्रिम सहयोग राशि देना बैंक, राइट टाउन शाखा जबलपुर IFAC: BKDN 0811119 में संजीव वर्मा के खाता क्रमांक 111910002247 में जमाकर पावती तुरंत ईमेल करें। संकलन प्रकाशित होने पर हर सहभागी को सम्मान पत्र तथा ११ प्रतियाँ निशुल्क भेंट की / भेजी जाएँगी। प्राप्त दोहों में आवश्यकतानुसार संशोधन का अधिकार संपादक को होगा। दोहे unicode में भेजने हेतु ईमेल- salil.sanjiv@gmail.com चलभाष ७९९९५५९६१८, ९४२५१८३२४४ । भारतीय बोलियों / अहिन्दी भाषाओँ के दोहे देवनागरी लिपि में आंचलिक शब्दों के अर्थ पाद टिप्पणी में देते हुए भेजें।
अब तक निम्न दोहाकारों के दोहे के दोहे यथावश्यक संशोधित / सम्पादित व अनुमोदित किए जा चुके हैं। वर्ण क्रमानुसार नाम - सर्व श्री / सुश्री / श्रीमती १. अखिलेश खरे 'अखिल', २. अनिल कुमार मिश्र, ३. अरुण अर्णव खरे, ४. अरुण शर्मा, ५. आभा सक्सेना 'दूनवी', ६. उदयभानु तिवारी 'मधुकर', ७. कालिपद प्रसाद, ८. गोपालकृष्ण भट्ट 'आकुल', ९. छगनलाल गर्ग 'विज्ञ', १०. छाया सक्सेना 'प्रभु', ११. जयप्रकाश श्रीवास्तव, १२. त्रिभवन कौल, १३. नीता सैनी, १४. प्रेमबिहारी मिश्र, १५. बसंत शर्मा, १६. मिथिलेश बड़गैया, १७. रामेश्वर प्रसाद सारस्वत, १८. रीता सिवानी, १९.. विजय बागरी, २०. विनोद जैन 'वाग्वर', २१. श्यामल सिन्हा, २२. शुचि भवि, २३. श्रीधर प्रसाद द्विवेदी, २४. सरस्वती कुमारी, २५. सुनीता सिंह २६. सुरेश कुशवाहा 'तन्मय', २७. डॉ. हरि फैजाबादी, २८. हिमकर श्याम। आप सब उक्तानुसार सहयोग निधि भेज सकते हैं। सबसे सहयोग निधि प्राप्त होते ही संकलन प्रथम खंड का मुद्रण कार्य आरंभ हो जाएगा।
निम्न दोहाकारों ने सहभागिता हेतु सहमति दी है दोहों की प्रतीक्षा है। कृपया, शीघ्रता करें। दोहे व निधि एक साथ भेज दें। विलंब होने पर अगले संकलन में स्थान मिल सकेगा । सर्व श्री / सुश्री / श्रीमती आत्म प्रकाश, ओमप्रकाश शुक्ल, कांति शुक्ल, धनञ्जय प्रसाद यादव, निरुपमा चतुर्वेदी, प्रमिला पाण्डे, रमेश विनोदी, रामकुमार चतुर्वेदी, लता यादव, वसुधा कनुप्रिया, विनीता श्रीवास्तव, विशम्भर शुक्ला, शोभित वर्मा, सविता तिवारी मारीशस, सुनीता सिंह, सुमन श्रीवास्तव, सुरेशपाल वर्मा 'जसाला', हिमकर श्याम।
*
दोहा लेखन विधान
१. दोहा द्विपदिक छंद है। दोहा में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं। हर पद में दो चरण होते हैं।
२. दोहा मुक्तक छंद है। कथ्य (जो बात कहना चाहें वह) एक दोहे में पूर्ण हो जाना चाहिए।
३. विषम (पहला, तीसरा) चरण में १३-१३ तथा सम (दूसरा, चौथा) चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।
४. तेरह मात्रिक पहले तथा तीसरे चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित होता है।
६. सम चरणों के अंत में गुरु लघु मात्राएँ आवश्यक हैं।
५. विषम चरणों की ग्यारहवीं मात्रा लघु हो तो लय भंग होने की संभावना कम (समाप्त नहीं) हो जाती है।
८. हिंदी दोहाकार हिंदी व्याकरण नियमों का पालन करें। दोहा में वर्णिक छंद की तरह लघु को गुरु या गुरु को लघु पढ़ने की छूट नहीं होती।
७. हिंदी में खाय, मुस्काय, आत, भात, आब, जाब, डारि, मुस्कानि, हओ, भओ जैसे देशज शब्द-रूपों का उपयोग न करें। बोलियों में दोहा रचना करते समय उस बोली का शुद्ध रूप व्यवहार में लाएँ।
९. श्रेष्ठ दोहे में लाक्षणिकता, संक्षिप्तता, मार्मिकता (मर्मबेधकता), आलंकारिकता, स्पष्टता, पूर्णता तथा सरसता होना चाहिए।
१०. दोहे में संयोजक शब्दों और, तथा, एवं आदि का प्रयोग यथा संभव न करें। औ' वर्जित 'अरु' स्वीकार्य। 'न' सही, 'ना' गलत। 'इक' गलत।
११. दोहे में कोई भी शब्द अनावश्यक न हो। शब्द-चयन ऐसा हो जिसके निकालने या बदलने पर दोहा अधूरा सा लगे।
१३. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करें।
१२. दोहे में कारक (ने, को, से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि) का प्रयोग कम से कम हो।
१४. दोहा सम तुकान्ती छंद है। सम चरण के अंत में समान तुक आवश्यक है।
२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं।
१५. दोहा में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय के बिना दोहा नहीं कहा जा सकता।
*
मात्रा गणना नियम
१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है।
४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६, कोकिला २१२ = ५, और २१ = ३आदि।
३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।
५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = ११ = २, प्रिया = १२ =३ आदि।
६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि।
७. रेफ को आधे अक्षर की तरह गिनें। बर्रैया २+२+२आदि।
९. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५आदि।
१०. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४आदि।
११. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है। इस सारस्वत अनुष्ठान में आपका स्वागत है। कोई शंका होने पर संपर्क करें।
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'कत्अ'

एक चर्चा
'कत्अ'
*
'कत्अ' उर्दू काव्य का एक हिस्सा है। 'कत्अ' का शब्दकोशीय अर्थ 'टुकड़ा या भूखंड' है। 'उर्दू नज़्म की एक किस्म जिसमें गज़ल की तरह काफ़िए की पाबन्दी होती है और जिसमें कोई एक बात कही जाती है'१ कत्अ है। 'कत्अ' को सामान्यत: 'कता' कह या लिख लिया जाता है।
'प्राय: गज़लों में २-३ या इससे अधिक अशार ऐसे होते थे जो भाव की दृष्टि से एक सुगठित इकाई होते थे, इन्हीं को (गजल का) कता कहते थे।'... 'अब गजल से स्वतंत्र रूप से भी कते कहे जाते हैं। आजकल के कते चार मिसरों के होते हैं (वैसे यह अनिवार्य नहीं है) जिसमें दूसरे और चौथे मिसरे हमकाफिया - हमरदीफ़ होते हैं।२
'कत्अ' के अर्थ 'काटा हुआ' है। यह रूप की दृष्टि से गजल और कसीदे से मिलता-जुलता है। यह गजल या कसीदे से काटा हुआ प्रतीत होता है। इसमें काफिये (तुक) का क्रम वही होता है जो गजल का होता है। कम से कम दो शे'र होते हैं, ज्यादा पर कोइ प्रतिबन्ध नहीं है। इसमें प्रत्येक शे'र का दूसरा मिस्रा हम काफिया (समान तुक) होता है। विषय की दृष्टि से सभी शे'रों का एक दूसरे से संबंध होना जरूरी होता है। इसमें हर प्रकार के विषय प्रस्तुत किये जा सकते हैं।३
ग़ालिब की मशहूर गजल 'दिले नादां तुझे हुआ क्या है' के निम्न चार शे'र 'कता' का उदाहरण है-
जबकि तुम बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ खुदा क्या है।
ये परि चेहरा लोग कैसे हैं
गम्ज़-ओ-इश्व-ओ-अदा क्या है।
शिकने-जुल्फ़े-अंबरी क्यों है
निग्हे-चश्मे-सुरमा सा क्या है।
सब्ज़-ओ-गुल कहाँ से आये है
अब्र क्या चीज़ है, हवा क्या है।
फैज़ का एक कता देखें-
हम खस्तातनों से मुहत्सिबो, क्या माल-मनाल की पूछते हो।
इक उम्र में जो कुछ भर पाया, सब सामने लाये देते हैं
दमन में है मुश्ते-खाके-जिगर, सागर एन है कहने-हसरते-मै
लो हमने दामन झाड़ दिया, लो जाम उलटाए देते हैं
यह बिलकुल स्पष्ट है कि कता और मुक्तक समानार्थी नहीं हैं।
***
सन्दर्भ- १. उर्दू हिंदी शब्दकोष, सं. मु. मुस्तफा खां 'मद्दाह', पृष्ठ ९५, २. उर्दू कविता और छन्दशास्त्र, नरेश नदीम पृष्ठ १६, ३.उर्दू काव्य शास्त्र में काव्य का स्वरुप, डॉ. रामदास 'नादार', पृष्ठ ८५-८६, ४.

मुक्तिका

मुक्तिका 
संजीव 'सलिल' 
*
कद छोटा परछाईं बड़ी है. 
कैसी मुश्किल आई घड़ी है. 
*
चोर कर रहे पहरेदारी
सच में सच रुसवाई बड़ी है..
*
बैठी कोष सम्हाले साली
खाली हाथों माई खड़ी है..
*
खुद पर खर्च रहे हैं लाखों
भिक्षुक हेतु न पाई पडी है..
*
'सलिल' सांस-सरहद पर चुप्पी
मौत शीश पर आई-अड़ी है..

२.४.२०१७
*************************

हाइकु के रंग भोजपुरी के संग

हाइकु के रंग भोजपुरी के संग
संजीव 'सलिल'
*
आपन त्रुटि
दोसरा माथे मढ़
जीव ना छूटी..
*
बिना बात के
माथा गरमाइल
केतना फीका?.
*
फनफनात
मेहरारू, मरद
हिनहिनात..
*
बांझो स्त्री के
दिल में ममता के
अमृत-धार..
*
धूप-छाँव बा
नजर के असर
छाँव-धूप बा..
*
तन एहर
प्यार-तकरार में
मन ओहर..
*
झूठ न होला
कवनो अनुभव
बोल अबोला..
*
सबुर दाढे
मेवा फरेला पर
कउनो हद?.
*
घर फूँक के
तमाशा देखल
समझदार?.
*

रविवार, 31 मार्च 2019

गीत भक्तों से सावधान

एक रचना
भक्तों से सावधान
*
जो दुश्मन देश के, निश्चय ही हारेंगे
दिख रहे विरोधी जो वे भी ना मारेंगे
जो तटस्थ-गुरुजन हैं, वे ही तो तारेंगे
मुट्ठी में कब किसके, बँधता है आसमान
भक्तों से सावधान
*
देशभक्ति नारा है, आडंबर प्यारा है
सेना का शौर्य भी स्वार्थों पर वारा है
मनमानी व्याख्या कर सत्य को बुहारा है
जो सहमत केवल वे, हैं इनको मानदान
भक्तों से सावधान
*
अनुशासन तुम चाहो, ये पल-पल तोड़ेंगे
शासन की वल्गाएँ स्वार्थ हेतु मोड़ेंगे
गाली गुस्सा नफरत, हिंसा नहिं छोड़ेंगे
कंधे पर विक्रम के लदे लगें भासमान
भक्तों से सावधान
*
संवस, ७९९९५५९६१८
३१.३.२०१९

शनिवार, 30 मार्च 2019

एक दोहा

एक दोहा
*
सुन पढ़ सीख सका जिसे, लिखा साल-दर साल।
एक निमिष में पढ़ समझ, सचमुच किया कमाल।।
***
संवस
७९९९५५९६१८

पैरोडी- हवाई दोस्ती है ये / अजीब दास्तां है ये

ई मित्रता पर पैरोडी:
संजीव 'सलिल'
*
(बतर्ज़: अजीब दास्तां है ये,
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम...)
*
हवाई दोस्ती है ये,
निभाई जाए किस तरह?
मिलें तो किस तरह मिलें-
मिली नहीं हो जब वज़ह?
हवाई दोस्ती है ये...
*
सवाल इससे कीजिए?
जवाब उससे लीजिए.
नहीं है जिनसे वास्ता-
उन्हीं पे आप रीझिए.
हवाई दोस्ती है ये...
*
जमीं से आसमां मिले,
कली बिना ही गुल खिले.
न जिसका अंत है कहीं-
शुरू हुए हैं सिलसिले.
हवाई दोस्ती है ये...
*
दुआ-सलाम कीजिए,
अनाम नाम लीजिए.
न पाइए न खोइए-
'सलिल' न न ख्वाब देखिए.
हवाई दोस्ती है ये...
*
संवस
७९९९५५९६१८

चिंतन

चिंतन और चर्चा:

विश्वास या विष-वास?
*
= 'विश्वासं फलदायकम्' भारतीय चिंतन धारा का मूलमंत्र है।

= 'श्रद्धावान लभते ग्यानम्' व्यवहार जगत में विश्वास की महत्ता प्रतिपादित करता है।
बिना विश्वास के श्रद्धा हो ही नहीं सकती। शंकाओं का कसौटियों पर अनगिनत बार लगातार विश्वास खरा उतरे, तब श्रद्धा उपजती है।

= श्रद्धा अंध-श्रद्धा बनकर त्याज्य हो जाती है।

= स्वार्थ पर आधारित श्रद्धा, श्रद्धा नहीं दिखावा मात्र होती है।

= तुलसी 'भवानी शंकर वंदे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ' कहकर श्रद्धा और विश्वास के अंतर्संबंध को स्पष्ट कर देते हैं।

शिशु के लिए जन्मदात्री माँ से अधिक विश्वसनीय और कौन है सकता है? भवानी को श्रद्धा कहकर तुलसी ा कहे ही कह देते हैं कि वे सकल सृष्टिकर्त्री आदि प्रकृति महामाया हैं।
तुलसी शंकर को विश्वास बताते हैं। शंकर हैं शंकारि, शंकाओं के शत्रु। शंका का उन्मूलन करनेवाला ही तो विश्वास का भाजन होगा।

= यहाँ एक और महत्वपूर्ण सूत्र है जिसे जानना जरूरी है। अरि अर्थात शत्रु, शत्रुता नकारात्मक ऊर्जा है। संदेह हो सकता है कि क्या नकारात्मकता भी साध्य, वरेण्य हो सकती है? उत्तर हाँ है। यदि नकारात्मकता न हो तो सकारात्मकता को पहचानोगे कैसे? खट्टा, नमकीन, चरपरा, तीखा न हो मीठा भी आनंदहीन हो जाएगा।

सृष्टि की सृष्टि ही अँधेरे के गर्भ से होती है। निशा का निबिड़ अंधकार ही उषा के उजास को जन्म देता है। अमावस का घनेरा अँधेरा न हो तो दिये जलाकर उजाला का पर्व मनाने का आनंद ही न रहेगा।

= शत्रुता या नकारात्मकता आवश्यक तो है पर वह विनाशकारी है, विध्वंसक है, उसे सुप्त रहना चाहिए। वह तभी जागृत हो, तभी सक्रिय हो जब विश्वास और श्रद्धा की स्थापना अपरिहार्य हो। जीर्णोध्दार करने के लिए जीर्ण को मिटाना जरूरी है।

= भव अर्थात संसार, भव को अस्तित्व में लाने वाली भवानी, शून्य से- सर्वस्व का सृजन करनेवाली भवानी सकारात्मक ऊर्जा हैं। वे श्रद्धा हैं।

= विश्वास के बिना श्रद्धा अजन्मा और श्रद्धा के बिना विश्वास निष्क्रिय है। इसीलिए शिव तपस्यारत हैं। शत्रुता विस्मृति के गर्त में रहे तभी कल्याण है किंतु भवानी सक्रिय हैं, सचेष्ट हैं। यही नहीं वे शिव को निष्क्रिय कुलीन भी नहीं रहने देती, तपस्या को भंग करा देती हैं भले ही शिव की रौद्रता काम का विनाश कर दे।

= काम क्या है? काम रति का स्वामी है। रति कौन है? रति है ऊर्जा। काम और रति का दिशा-हीन मिलन वासना, मोह और भोग को प्रधानता देता है। यही काम निष्काम हो तो कल्याणकारी हो जाता है। रति यदि विरति हो तो सृजन ही न होगा, कुरति हो विनाश कर देगी, सुरति है तो सुगतिदात्री होगी।

= काम को मार कर फिर जिलाना शंका उपजाता है। मारा तो जिलाया क्यों? जिलाना था तो मारा क्यों? शंका का समाधान न हो तो विश्वास बिना मारे मर जाएगा।

किसी वास्तुकार से पूछो- जीर्णोध्दार के लिए बनाने से पहले गिराना होता है या नहीं? ऊगनेवाला सूर्य न डूबे तो देगा कैसे? तुम कहो कि ऊगना ही है तो डूबना क्यों या डूबना ही है तो ऊगना क्यों? तो इसका उत्तर यही है कि ऊगना इसलिए कि डूबना है, डूबना इसलिए कि भगवा है। जन्मना इसलिए कि मरना है, मरना इसलिए कि जन्मना है।

= शिव की सुप्त शक्ति पर विश्वास कर उसको जागृत करने-रखने वाली ही शिवा है। शिवारहित शिव शव सदृश्य हैं, मृत नहीं निरानंदी हैं। शिवा रे काम को शांत कर ममता में बदलनेवाले ही शिव हैं। शिवारहित शिवा तामसी नहीं तामसी हैं, उपवासी हैं, अपर्णा हैं। पतझर के बाद अपर्णा प्रकृति सपर्णा न हो तो सृष्टि न होगी इसलिए अपर्णा का लक्ष्य सपर्णा और सपर्णा का लक्ष्य अपर्णा है ।

= विश्वास और श्रद्धा भी शिव और शिवा का तरह अन्योन्याश्रित हैं। शंकाओं के गिरि से- उत्पन्न गिरिजा विश्वास के शंकर का वरण कर गर्भ से जन्मती हैं वरद, दयालु, नन्हें को गणनायक गणेश को जिनसे आ मिलते हैं षडानन और तुलसी करते हैं जय जय-

जय जय गिरिवर राज किसोरी, जय महेश मुख चंद्र चकोरी।
जय गजल-नजम षडानन माता, जगत जननि दामिनी द्युति दाता।।
नहिं तव आदि मध्य अलसाना, अमित प्रभाव वेद नहिं जाना।।

= विश्वास और श्रद्धा के बिना गण और गणतंत्र के गणपति बनने के अभिलाषी तब जान लें कि काम-सिद्धि को साध्य मानने की परिणाम क्षार होने में होता है। पक्ष-विपक्ष शत्रु नहीं पूरक हैं। एक दूसरे के प्रति विश्वास और गण के प्रति श्रद्धा ही उन्हें गणनायक बना सकती है अन्यथा जनशक्ति का शिव उन्हें सत्ता सौंप सकता है तो जनाक्रोश का रुद्र उन्हें मिट्टी में भी मिला सकता है।

= विश्वास और श्रद्धा का वरण कर जनता जनार्दन नोटा के तीसरे नेत्र का उपयोग कर सत्ता प्राप्ति के काम के प्रति रति रखनेवाले आपराधिक प्रवृत्तिवाले प्रत्याशियों और उन्हें मैदान में उतारनेवाले दलों को क्षार कर, जनसेवा के प्रति समर्पित जनप्रतिनिधियों को नवजीवन देने से पीछे नहीं हटेगी।
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संवस
७९९९५५९६१८