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शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

परिचय, जबलपुर के साहित्यकार

मुख्य अतिथि
माननीय राजेंद्र तिवारी जी
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साहित्य और संस्कृति को श्वास-श्वास जीने जीने और  सनातन मूल्यों की मशाल थामकर न्याय व्यवस्था को देश हुए समाज के प्रति संवेदनशील और सजग बनाये रखने के लिए गत ५५ वर्षों से सतत सक्रिय माननीय राजेंद्र तिवारी जी संस्कारधानी के ऐसे सपूत हैं जो अपनी विद्वता, वाग्वैदग्ध्य, विश्लेषण सामर्थ्य, अन्वेषण दृष्टि तथा प्रभावी भाषावली के लिए जाने जाते हैं।  १४ अप्रैल १९३६ को जन्मे तिवारी जी ने शिक्षक, पत्रकार व् अधिवक्ता के रूप में अपनी कार्य शैली, समर्पण, निपुणता  तथा नवोन्मेषपरक दृष्टि की छाप समाज पर छोड़ी है। वरिष्ठ अधिवक्ता, सदस्य नियम निर्माण समिति तथा उपमहाधिवक्ता के रूप में आपकी कार्य कुशलता से प्रभावित मध्य प्रदेश शासन ने महाधिवक्ता के रूप में आपका चयन कर दूरदृष्टि का परिचय दिया है। 
बहुमुखी प्रतिभा तथा बहु आयामी सक्रियता के धनी माननीय तिवारी जी ने संगीत समाज जबलपुर के अध्यक्ष, जबलपुर शिक्षा समिति के अध्यक्ष, इंटेक के आजीवन सदस्य, परिवार नियोजन संघ के सचिव, अमृत बाजार पत्रिका के संवाददाता, रोटरी क्लब के अध्यक्ष व् सह प्रांतपाल के रूप में ख्याति अर्जित की। आपने विश्व विख्यात दार्शनिक आचार्य रजनीश के साथ अखिल भारतीय डिबेटर के रूप में पुरस्कृत होकर अपनी प्रतिभा का परिचय विद्यार्थी काल में ही दे दिया था। 
'योग: कर्मसु कौशलम' के आदर्श को जीते तिवारी जी नई पीढ़ी के आदर्श हैं। वे नर्मदा को मैया और जबलपुर को अपना घर मानते हुए सबके भले के लिए कर्मरत रहते हैं। साहित्य तथा संस्कृति जगत को आपका मार्गदर्शन सतत प्राप्त होता है। आपके पास संस्मरणों का अगाध भण्डार है। हमारा अनुरोध है की आप अपनी आत्मकथा और संस्मरण लिखकर हिंदी वांग्मय को समृद्ध करें। 
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अध्यक्ष 
आचार्य कृष्णकान्त चतुर्वेदी जी 
भारतीय मनीषा के श्रेष्ठ प्रतिनिधि, विद्वता के पर्याय, सरलता के सागर, वाग्विदग्धता के शिखर आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी का जन्म १९ दिसंबर १९३७ को हुआ। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की निम्न पंक्तियाँ आपके व्यक्तित्व पर सटीक बैठती हैं- 
जितने कष्ट-कंटकों में है जिसका जीवन सुमन खिला  
गौरव गंध उसे उतना ही यत्र-तत्र-सर्वत्र मिला।।
कालिदास अकादमी उज्जैन के निदेशक, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में संस्कृत, पाली, प्रकृत विभाग के अध्यक्ष व् आचार्य पदों की गौरव वृद्धि कर चुके, भारत सरकार द्वारा शास्त्र-चूड़ामणि मनोनीत किये जा चुके, अखिल भारतीय प्राच्य विद्या परिषद् के सर्वाध्यक्ष निर्वाचित किये जा चुके, महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा प्राच्य विद्या के विशिष्ट विद्वान के रूप में सम्मानित, राजशेखर अकादमी के निदेशन आदि अनेक पदों की शोभा वृद्धि कर चुके आचार्य जी ने ४० छात्रों को पी एच डी, तथा २ छात्रों को डी.लिट् करने में मार्गदर्शन दिया है। राधा भाव सूत्र, आगत का स्वागत, अनुवाक, अथातो ब्रम्ह जिज्ञासा, ड्वायर वेदांत तत्व समीक्षा, आगत का स्वागत, बृज गंधा, पिबत भागवतम, आदि अबहुमूल्य कृतियों की रच कर आचार्य जी ने भारती के वांग्मय कोष की वृद्धि की है। 
जगद्गुरु रामानंदाचार्य सम्मान, पद्मश्री श्रीधर वाकणकर सम्मान, अखिल भारतीय कला सम्मान, ज्योतिष रत्न सम्मान, विद्वत मार्तण्ड, विद्वत रत्न, सम्मान, स्वामी अखंडानंद सामान, युगतुलसी रामकिंकर सम्मान, ललित कला सम्मान, अदि से सम्मानित किये जा चुके आचार्य श्री संस्कारधानी ही नहीं देश के गौरव पुत्र हैं। आप अफ्रीका, केन्या, वेबुये आदि देशों में भारतीय वांग्मय व् संस्कृति की पताका फहरा चुके हैं। आपकी उपस्थिति व आशीष हमारा सौभाग्य है। 
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विशिष्ट वक्ता 
डॉ. सुरेश कुमार वर्मा 
श्रद्धेय डॉ. सुरेश कुमार वर्मा नर्मदांचल की साधनास्थली संस्कारधानी जबलपुर के गौरव हैं। "सदा जीवन उच्च विचार" के सूत्र को जीवन में मूर्त करने वाले डॉ. वर्मा अपनी विद्वता के सूर्य को सरलता व् विनम्रता के श्वेत-श्याम मेघों से आवृत्त किये रहते हैं। २० दिसंबर १९३८ को जन्मे डॉ. वर्मा ने प्राध्यापक हिंदी, विभागाध्यक्ष हिंदी, प्राचार्य तथा अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा के पदों पर रहकर शुचिता और समर्पण का इतिहास रचा है। आपके शिष्य आपको ऋषि परंपरा का आधुनिक प्रतिनिधि मानते हैं। 
शिक्षण तथा  सृजन राजपथ-जनपथ पर कदम-डर-कदम बढ़ते हुए आपने मुमताज महल, रेसमान, सबका मालिक एक तथा महाराज छत्रसाल औपन्यासिक कृतियोन की रचना की है। निम्न मार्गी व दिशाहीन आपकी  नाट्य कृतियाँ हैं। जंग के बारजे पर तथा मंदिर एवं अन्य कहानियाँ कहानी संग्रह तथा करमन की गति न्यारी, मैं तुम्हारे हाथ का लीला कमल हूँ आपके निबंध संग्रह हैं। डॉ. राम कुमार वर्मा की नाट्यकला आलोचना तथा हिंदी अर्थान्तर भाषा विज्ञान का ग्रन्थ है। इन ग्रंथों से आपने बहुआयामी रचनाधर्मिता व् सृजन सामर्थ्य की पताका फहराई है। 
डॉ. सुरेश कुमार वर्मा हिंदी समालोचना के क्षेत्र में व्याप्त शून्यता को दूर करने में सक्षम और समर्थ हैं। सामाजिक विषमता, विसंगति, बिखराब एयर टकराव के दिशाहीन मानक तय कर समाज में अराजकता बढ़ाने की दुष्प्रवृत्ति को रोकने में जिस सात्विक और कल्याणकारी दृष्टि की आवश्यकता है, आप उससे संपन्न हैं। 
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विशिष्ट वक्ता डॉ. इला घोष  
वैदिक-पौराणिक काल  की विदुषी महिलाओं गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा, रोमशा, पार्वती, घोषवती की परंपरा को इस काल में महीयसी महादेवी जी व चित्रा चतुर्वेदी जी के पश्चात् आदरणीया इला घोष जी ने निरंतरता दी है। ४३ वर्षों तक महाविद्यालयों में शिक्षण तथा प्राचार्य के रूप में दिशा-दर्शन करने के साथ ७५ शोधपत्रों का लेखन-प्रकाशन व १३० शोध संगोष्ठियों को अपनी कारयित्री प्रतिभा से प्रकाशित करने वाली इला जी संस्कारधानी की गौरव हैं। 
संस्कृत वांग्मय में शिल्प कलाएँ, संस्कृत वांग्मये कृषि विज्ञानं, ऋग्वैदिक ऋषिकाएँ: जीवन एवं दर्शन, वैदिक संस्कृति संरचना, नारी योगदान विभूषित, सफलता के सूत्र- वैदिक दृष्टि, व्यक्तित्व विकास में वैदिक वांग्मय का योगदान, तमसा तीरे तथा महीयसी आदि कृतियां आपके पांडित्य तथा सृजन-सामर्थ्य का जीवंत प्रमाण हैं। 
दिल्ली संस्कृत साहित्य अकादमी, द्वारा वर्ष २००३ में 'संस्कृत साहित्ये जल विग्यानम व् 'ऋग्वैदिक ऋषिकाएँ: जीवन एवं दर्शन' को तथा वर्ष २००४ में 'वैदिक संस्कृति संरचना'  को कालिदास अकादमी उज्जैन द्वारा भोज पुरस्कार से सामंत्रित किया जाना आपके सृजन की श्रेष्ठता का प्रमाण है। संस्कृत, हिंदी, बांग्ला  के मध्य भाषिक सृजन सेतु की दिशा में आपकी सक्रियता स्तुत्य है। वेद-विज्ञान को वर्तमान विज्ञान के प्रकाश में परिभाषित-विश्लेषित करने की दिशा में आपके सत्प्रयाह सराहनीय हैं। हिंदी छंद के प्रति आपका आकर्षण और उनमें रचना की अभिलाष आपके व्यक्तित्व का अनुकरणीय पहलू है। 
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लेख-
जबलपुर के श्रेष्ठ कलमकार
गीतिका श्रीव, बरेला
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                     संस्कारधानी जबलपुर पुरातन नगरी है। सत्य-शिव-सुंदर का इस नगरी से अद्भुत संबंध है। एक ओर शिव द्वारा दिव्य शक्ति का उपयोग कर अमरकंटक में वंशलोचन वन-सरोवर का अमृतमय जल कालजयी कलकल निनादिनी नर्मदा के रूप में इस नगर को प्राप्त है दूसरी ओर त्रिपुरी ग्राम में त्रिपुरासुर की तीन पूरियों को क्षण मात्र में ध्वंस कर देने की कथा भी पुराणों में वर्णित है। भगवती गौरी की तपस्थली गौरीघाट और चौंसठ योगिनी के मंदिर भी इस नगरी की महत्त प्रतिपादित करते हैं। इस नगरी की महत्ता विद्या और कला के अधिष्ठाता शिव के साथ-साथ शब्द ब्रह्म उपासक कलमकारों से भी है। भारतीय नाट्य शास्त्र को नांदी पाठ की विरासत देने वाले आचार्य नंदिकेश्वर समीपस्थ बरगी ग्राम के निवासी थे। भृगु, जाबालि, अगस्त्य आदि ऋषि-मुनियों की तपस्थली रही है जबलपुर।

                     आधुनिक हिंदी के उद्भव काल से अब तक महत्व पूर्ण दिवंगत रचनाकारों में विनायक राव, जगमोहन सिंह, रघुवर प्रसाद द्विवेदी, सुखराम चौबे 'गुणाकर', राय देवी प्रसाद 'पूर्ण', गंगा प्रसाद अग्निहोत्री, कामता प्रसाद गुरु, लक्ष्मण सिंह चौहान, महादेव प्रसाद 'सामी', बाल मुकुंद त्रिपाठी, सेठ गोविंद दास, तोरण देवी लली, रामानुज श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी', ब्योहार राजेन्द्र सिंह, द्वारका प्रसाद मिश्र, झलकनलाल वर्मा 'छैल', हरिहर शरण मिश्र, सुभद्रा कुमारी चौहान, केशव प्रसाद पाठक, शांति देवी वर्मा, रामकिशोर अग्रवाल 'मनोज', भवानी प्रसाद तिवारी, नर्मदा प्रसाद खरे, रामेश्वर प्रसाद गुरु, माणिकलाल चौरसिया 'मुसाफिर', जीवन लाल वर्मा 'विद्रोही', पन्नालाल श्रीवास्तव 'नूर', डॉ. पूरन चंद श्रीवास्तव, डॉ. चंद्र प्रकाश वर्मा, शकुंतला खरे, श्री बाल पांडेय, डॉ. मलय, इन्द्र बहादुर खरे, रामकृष्ण श्रीवास्तव, रास बिहारी पाण्डेय, ब्रजेश माधव, जवाहर लाल चौरसिया 'तरुण, ललित श्रीवास्तव, डॉ. रामशंकर मिश्र, डॉ. गार्गी शरण मिश्र, डॉ. चित्रा चतुर्वेदी कार्तिका', श्रीराम ठाकुर 'दादा', श्याम श्रीवास्तव, मोइनुद्दीन अतहर, पूर्णिमा निगम 'पूनम', इं. भवानी शंकर मालपाणी, इं. गोपाल कृष्ण चौरसिया 'मधुर',इं. कोमल चंद जैन, इं. राम राज फौजदार, आशुतोष विश्वकर्मा 'असर' आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

                     समकालीन सृजनरत रचनाकार भी हिंदी भाषा के सारस्वत कोश की श्रीवृद्धि करने में महती भूमिका निभा रहे हैं। जिन महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों के अवदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता उनमें से कुछ हैं- 

आचार्य कृष्णकान्त चतुर्वेदी- संस्कृत, पाली प्राकृत साहित्य शास्त्र तथा बौद्ध दर्शन के विद्वान चतुर्वेदी जी कालिदास अकादमी मध्य प्रदेश के निदेशक, आचार्य एवं अध्यक्ष संसकरु-पालि-प्राकृत विभाग रानी दुर्गावती विश्व विद्यालय जबलपुर आदि पदों पर प्रतिष्ठित रहे हैं। अथातो  ब्रह्म जिज्ञासा, द्वैत वेदान्त तत्व समीक्षा, भारतीय परंपरा एवं अनुशीलन, वेदान्त दर्शन की पीठिका, मध्य प्रदेश में बुद्ध दर्शन, क्रस्न-विलास, राधाभाव सूत्र, अनुवाक्, आगत का स्वागत तथा क्षण के साथ चलाचल आपकी कृतियाँ हैं। 

डॉ. सुरेश कुमार वर्मा- नगर के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुमार वर्मा का जन्म २० दिसंबर १९३८ को हुआ। आपने  हिंदी में पी-एच. डी., डी. लिट. की उपाधि प्राप्त कर, मध्य ऑरदेश के शासकीय महाविद्यालयों में प्राध्यापक, विभागाध्यक्ष, प्राचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय तथा अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा के महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया। आपकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं- उपन्यास: मुंतहमहल, रेसमान, सबका मालिक एक, महाराजा छत्रसाल, नीले घोड़े का सवार आदि, नाटक: निम्नमार्गी, दिशाहीन, कहानी संग्रह: जंग के बारजे पर, मंदिर एवं अन्य कहानियाँ, आलोचना: डॉ. रामकुमार वर्मा की नाट्य कला, निबंध संग्रह: करमन की गति न्यारी, मैं तुम्हारे हाथ का लीला कमल हूँ, भाषा विज्ञान: हिंदी अर्थान्तर।

आचार्य भगवत दुबे- 
१८ अगस्त १९४३ को जन्मे आचार्य जी संस्कारधानी ही नहीं समस्त भारत के समकालिक साहित्यकारों में बहुचर्चित हैं। आचार्य जी ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्हें पाकर सम्मान सम्मानित होते हैं। आपने हिंदी साहित्य की अधिकांश विधाओं कहानी, लघुकथा, निबंध, संस्मरण, समीक्षा, गीत, ग़ज़ल, हाइकू, तांका, बांका, फाग, गेट, नवगीत, कुंडलिया, सवैया, घनाक्षरी, मुक्तक आदि में विपुल लेखन। ५० से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। उत्तर प्रदेश शासन द्वारा साहित्य भूषण अलंकरण (दो लाख रुपए नगद) सहित असंख्य सम्मान व पुरस्कार। भारत की ३ भाषाओँ में रचनाएँ अनुदित। आपके सृजन पर अनेक शोध कार्य संपन्न हुए।

डॉ. इला घोष- संस्कृत वांग्मय में शिल्प कलाएँ, संस्कृत वांग्मये कृषि विज्ञानं, ऋग्वैदिक ऋषिकाएँ: जीवन एवं दर्शन, वैदिक संस्कृति संरचना, नारी योगदान विभूषित, सफलता के सूत्र- वैदिक दृष्टि, व्यक्तित्व विकास में वैदिक वांग्मय का योगदान, तमसा तीरे तथा महीयसी आदि कृतियों के द्वारा अपने पांडित्य की पताका फहरानेवाली इला जी शसकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालयों में प्राध्यापक तथा प्राचार्य रही हैं।  

डॉ. निशा तिवारी- शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक तथा प्राचार्य पदों पर श्रेष्ठ कार्य हेतु ख्यात निशा जी का जन्म २५ अक्टूबर १९४४ को हुआ। आपकी महत्वपूर्ण कृतियाँ मूल्य और मूल्यांकन, विमर्श विविधा, पाश्चात्य काव्य शास्त्र, भारतीय काव्य शास्त्र, पाश्चात्य साहित्य शास्त्र, आज कविता अवधारणा और सृजन, सिलसिले को तोड़ती राजेन्द्र मिश्र की कविताएँ आदि है।  

इं. अमरेन्द्र नारायण- २१ नवम्बर १९४५, मटुकपुर, भोजपुर,बिहार में जन्में अमरेन्द्र नारायण जी ने बी.एस-सी. इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की। आप भारतीय दूर संचार सेवा और एशिया फैसिफिक टेलीकम्युनिटी के महासचिव पद से सेवानिवृत्त हैं। आपकी कृतियाँ-  उपन्यास- संघर्ष, एकता और शक्ति, Unity and Strength,The Smile of Jasmine, Fragrance Beyond Borders काव्य- श्री हनुमत् श्रद्धा सुमन, सिर्फ एक लालटेन जलती है, अनुभूति, जीवन चरित:पावन चरित-डाॅ.राजेन्द्र प्रसाद आदि हैं। आपको असाधारण उत्कृष्ठ सेवा हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ से स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ है। 

राम सेंगर- भारतीय रेलवे में जनवरी २००५ तक कार्यालय अधीक्षक (कार्मिक) के पद पर कार्यरत रहे सेंगर जी का जन्म २ जनवरी  १९४५ को हुआ। शेष रहने के लिए, जिरह फिर कभी होगी तथा एक गैल अपनी भी आपके बहुचर्चित नवगीत संग्रह हैं। आप नवगीत दशक २ तथा नवगीत अर्ध शती में सहभागी रहे हैं। आप कई पुरस्कारों से अलंकृत किए जा चुके हैं। 

डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव- संगीताधिराज हृदयनारायण देव, सरे राह तथा जिजीविषा आदि कृतियों की रचयिता सुमन लता श्रीवास्तव नगर की विदुषियों में अग्रगण्य हैं, ग्रहणी रहते हुए भी आपने पी-एच. डी., डी. लिट. आदि उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा बहुचर्चित कृतियों द्वारा ख्याति पाई।  

इं. उदयभानु तिवारी 'मधुकर'- आपने डी.सी.ई., एम.बी.ई.एच., डी. एच. एम. एस., आयुर्वेदरत्न आदि उपढ़ियाँ की हैं। आप जल संसाधन विभाग मध्य प्रदेश में उप अभियंता के पद पर कार्यरत रहे। १८ अगस्त १९४६ को जन्मे मधुकर जी की कृतियाँ गीता मानस, मधुकर काव्य कलश, मधुकर भाव सुमन, रासलीला पंचाध्यायी आदि हैं।   

जयप्रकाश श्रीवास्तव- नरसिंहपुर में ९ मई १९५१ को जन्मे जयप्रकाश जी हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षक रहे हैं। हिंदी नवगीत के सशक्त स्तंभ जयप्रकाश जी की कृतियाँ हैं- मन का साकेत, परिंदे संवेदना के, शब्द वर्तमान, रेत हुआ दिन, बीच बहस में, धूप खुलकर नहीं आती, चल कबीरा लौट चल। समकालीन गीतकोश तथा नवगीत में मानवतावाद में आपका उल्लेख है।     

आचार्य इं. संजीव वर्मा 'सलिल'- २० अगस्त १९५२ को मण्डला मध्य प्रदेश में जन्मे सलिल जी लोक निर्माण विभाग में संभागीय परियोजना अभियंता पद पर कार्य कर चुके हैं। अंतर्जाल पर हिंदी पिंगल (रस-छंद-अलंकार) शिक्षण का श्रीगणेश करने तथा ५०० से अधिक नए छंदों के आविष्कार हेतु आपकी ख्याति है। आपने तकनीकी शिक्षा के हिंदीकरण हेतु सुदीर्घ संघर्ष किया है। आपके अथक प्रयास से जबलपुर विश्व का एकमात्र नगर बन सका है जहाँ भारतरत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की ९ मूर्तियाँ स्थापित हैं। आप हिंदी सोनेट छंद के प्रवर्तक हैं। आपकी प्रकाशित कृतियाँ कलम के देव, भूकंप के साथ जीना सीखें, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, सौरभ:, कुरुक्षेत्र गाथा, काल है संक्रांति का, सड़क पर, आदमी अब भी जिंदा है,  

मीना भट्ट- श्रीमती मीना भट्ट संस्कारधानी के साहित्यकारों में विशिष्ट स्थान रखती हैं। आप हिंदी छंद तथा गजल में अधिक सक्रिय हैं। ३० अप्रैल १९५३ को जन्मी मीना जी जिला एवं सत्र न्यायाधीश रही हैं। 'पंचतंत्र में नारी' आपकी उल्लेखनीय कृति है।    

इं. सुरेन्द्र सिंह पवार- जल संसाधन विभाग से कार्यपालन यंत्री के पद से सेवा निवृत्त पवार जी का जन्म २५ जून १९५७ को हुआ। आपने बी. ई., एम.बी.ए., तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। आपकी कृति परख पुस्तक समीक्षा संग्रह है। आप साहित्य संस्कार त्रैमासिकी के संपादक हैं। 

बसंत कुमार शर्मा-  आपकी जन्म तिथि ५ मार्च १९६६ है। संस्कारधानी जबलपुर में रहकर नवगीत, दोहा, गजल, गीत आदि विविध विधाओं में अपनी कलम का लोहा मनवाने वाले बसंत कुमार शर्मा आई,आर.टी.एस. में चयनित होकर भारतीय रेलवे में सेवारत हैं। अपनी सहजता-सरलता से लोकप्रिय शर्मा जी बोनसाई कला में निपुण हैं। आपकी प्रकाशित कृतियाँ नवगीत संग्रह बुधिया लेता टोह, दोहा संग्रह ढाई आखर तथा गजल संग्रह शाम हँसी पुरवाई में हैं। नवगीत संग्रह बुधिया लेता टोह को भारतीय रैलवे विभाग द्वारा ...   पुरस्कार प्रदान किया गया है।    

हरि सहाय पांडे- आपका जन्म १० जून १९६६ को हुआ। छंदबद्ध काव्य में विशेष रुचि रखनेवाले हरि सहाय पांडे जी स्नातकोत्तर (कृषि) शिक्षा प्राप्त कार  पश्चिम मध्य रेलवे में ------------------ पद पर जबलपुर में पदस्थ है। आपकी रुचि छंदबद्ध काव्य लेखन में है। दोहा, चौपाई, गीत, सोनेट आदि विधाओं में आप सिद्धहस्त हैं। मिलनसार स्वभाव के पांडे जी हमेशा परोपकार हेतु तत्पर रहते हैं। 'हिंदी सोनेट सलिला' में आपके सोनेट संकलित हैं। आपकी रचनाओं में सात्विक सनातन मूल्यों का प्रतिपादन होता है। 

अविनाश ब्योहार- २८ अक्टूबर १९६६ को जन्मे अविनाश जी ने बी.एस-सी. तथा स्टेनोग्राफी की उपाधि प्राप्त की है। आप मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में महाधिवक्ता कार्यालय में व्याकतीसहायक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी कृतियाँ अंधे पीसे कुत्ते कहानी, पोखर ठोके दावा, कोयल करे मुनादी, तथा मौसम अंगार आदि हैं। 

                     संस्कारधानी जबलपुर में ५०० से अधिक साहित्यकार सृजनरत हैं। नदी की अपार जलराशि में से कुछ बूँदें लेकर अभिषेक किया जाता है, उसी भाव से कुछ सरस्वती पुत्रों का उल्लेख यहाँ किया गया है। सबका उल्लेख करने पर ग्रंथ ही बन जाएगा। शेष सभी सरस्वती सुतों के व्यक्तित्व-कृतित्व को सादर प्रणाम है। 
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विनोद नयन-  


कृष्ण कुमार चौरसिया 'पथिक' (५ मई १९३७)  रका

मनोरमा तिवारी (२८ अगस्त १९३८)

डॉ. राज कुमार तिवारी सुमित्र (२५-१०-१९३८)

साधना उपाध्याय (८ अप्रैल आ १९४१)

इं. सुरेश 'सरल' (१ अगस्त १९४२)

वीणा तिवारी (३० जुलाई १९४४)

राज सागरी (१ अप्रैल १९५४)

अभय तिवारी (१ फरवरी १९५५)

इं. सुरेन्द्र सिंह पवार

अंबर प्रियदर्शी (२१ सितंबर १९५५)

संध्या जैन 'श्रुति' (१ अक्टूबर १९६०)

डॉ. जयश्री जोशी, कुँवर प्रेमिल, डॉ. अपरा तिवारी, डॉ. स्मृति शुक्ल, डॉ. नीना उपाध्याय, अखिलेश खरे, मनीषा  सहाय,











संस्था परिचय
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विश्ववाणी हिंदी संस्थान
समन्वय अभियान जबलपुर
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२० अगस्त १९७४ को समन्वय संस्था को हिंदी भाषा-साहित्य तथा राष्ट्रीय भाव के संवर्धन हेतु आरंभ किया गया। प्रथम गोष्ठी में अध्यक्ष श्रद्धेय ब्योहार राजेंद्र सिंह जी तथा मुख्य अतिथि ख्यात कवि रामेश्वर शुक्ल 'अञ्चल' ने आशीष प्रदान किया। २५ जून १९७५ को आपातकाल लगने से २१ मार्च १९७७ को आपात काल के समापन के मध्य सदस्यों ने लोकतांत्रिक चेतना जगाने के लिए निरंतर गोष्ठियाँ कीं।  सर्व श्री दादा धर्माधिकारी, द्वारका प्रसाद मिश्र, सत्येंद्र मिश्र, गणेश प्रसाद नायक, कालिका प्रसाद दीक्षित 'कुसुमाकर, वल्लभ दास जैन, बद्रीनाथ गुप्ता आदि के मार्गदर्शन में कुमार संजीव, राजेश जैन 'वत्सल', श्रीकांत पटेरिया अनूप सोलहा आदि ने प्रशासनिक दमन के विरोध में निरंतर लेखन किया तथा जन जागरण का लक्ष्य लेकर लोकनायक व्याख्यानमाला (गांधी जयंती २ अक्टूबर से जयप्रकाश जयंती ८ अक्टूबर) का वार्षिक आयोजन शहीद स्मारक में किया। इस रचनात्मक आंदोलन को नई दिशा मिली डॉ. रामजी सिंह भागलपुर, श्रीमती इंदुमती केलकर तथा यदुनाथ थत्ते से।  आपातकाल के समापन के बाद हुए आम चुनाव  सदस्यों ने सर्व दलीय प्रत्याशी श्री शरद यादव की विजय सुनिश्चित कर अपनी भूमिका साहित्य सृजन तक सीमित कर ली। 
१९८० में अनियतकालीन सामाजिक पत्रिका चित्राशीष का प्रकाशन आरंभ हुआ। १५-९-१९८१ को अभियान जबलपुर के अन्तर्गत साहित्यिक-सामाजिक गतिविधियों तथा समन्वय प्रकाशन के अंतर्गत को प्रकाशन  संबंधी गतिविधियां संचालित की जाने लगीं। अभियंता दिवस १९८३ पर सामूहिक काव्य संकलन निर्माण के नूपुर तथा १९८५ में नींव के पत्थर का प्रकाशन किया गया। १९८६ से १९९० तक पत्रिका यांत्रिकी समय का प्रकाशन श्री कुलदेव मिश्रा के साथ मिलकर किया गया। नवलेखन गोष्ठियों के माध्यम से सदस्यों के लेखन को परिमार्जित करने के प्रयास चलते रहे। वर्ष १९९६ से १९९८ तक पत्रिका इंजीनियर्स टाइम्स का प्रकाशन किया गया। वर्ष २००० में समन्वय अभियान की प्रतिष्ठापरक प्रस्तुति तिनका-तिनक नीड़ को व्यापक सराहना मिली। वर्ष २००२ से २००८ तक नर्मदा पत्रिका का प्रकाशन किया गया। 
दिव्य नर्मदा अलंकरण:
१७ मार्च १९९७ को अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण समारोह के के मुख्य अतिथि श्री शिवकुमार श्रीवास्तव कुलपति सागर विश्व विद्यालय रहे। श्री चंद्र सेन विराट इंदौर, स्व. शंभूरत्न दुबे तथा श्री प्रबोध गोविल जयपुर को उत्कृष्ट लेखन हेतु पाँच-पाँच हजार रुपये के पुरस्कार भेंट किये गए। १० अगस्त १९९८ को दिव्य नर्मदा अलंकरण समारोह में श्री अनंत राम मिश्र गोला गोकर्ण नाथ, श्री भगवान दास श्रीवास्तव इंदौर,  श्रीमती सुधा रानी श्रीवास्तव जबलपुर, राजेश अरोरा 'शलभ' लखनऊ, श्री मनोहर काजल दमोह, डॉ, सुशीला टाकभौरे नागपुर, ओमप्रकाश यति सोनभद्र, शांति शेठ अहमदाबाद, डॉ. रमेश खरे दमोह, डॉ. ए. जे अब्राहम कुरुविल्ला केरल, आचार्य भगवद दुबे जबलपुर तथा डॉ. शकुंतला चौधरी जबलपुर  को विविध विधाओं में श्रेष्ठ लेखन हेतु ५-५ हजार रूपए के तीन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।  बसंत पंचमी १० फरवरी २००० के अवसर पर दिव्य नर्मदा अलंकरण समारोह का आयोजन मंडला में किया गया। आचार्य भगवद दुबे जबलपुर, डॉ. चंद्रपाल चेन्नई, शिवानंद कंडे दुर्ग, चन्द्रसेन विराट ीांडौर, गिरिमोहन गुरु होशंगाबाद, रामप्रताप खरे भोपाल। शिव गुलाम केहरि हरदोई, चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध' मंडला, रत्न लाल वर्मा जमीरपुर हिमाचल प्रदेश, गोमती प्रसाद 'विकल' रीवा, विजय जोशी कोटा, केदारनाथ मुजफ्फरपुर, सुमन जेतली मुरादाबाद पुरस्कृत किये गए। ३० जनवरी २००१ को नैनपुर में संपन्न समारोह में डॉ. श्यामनन्द सरस्वती 'रोशन' दिल्ली, डॉ. एन. चंद्रशेखरन नायर तिरुवनंतपुरम, चन्द्रसेन विराट इंदौर, जसपाल सिंह 'संप्राण' अम्बाला, अनंत राम मिश्र गोला गोकर्णनाथ, वीरेंद्र खरे अकेला 'छतरपुर, प्रो देवी सिंह चौहान रायपुर, रसिक लाल परमार करेली, डॉ. गार्गी शरण मिश्र 'मारआल जबलपुर, राम गोपाल भावुक डबरा, रजनी सक्सेना छतरपुर, मेजर मुनवा सिंह चौहान लखनऊ, चेतन भारती रायपुर को पुरस्कृत किया गया। उम्र की पगडंडियों पर स्व. राजेंद्र श्रीवास्तव तथा माता-ए-परवीन परवीन हक़ का विमोचन संपन्न हुआ।
७ नवंबर २००२ को दिव्य नर्मदा अलंकरण का प्रतिष्ठा परक आयोजन लखनऊ में महामहिम राज्यपाल आचार्य विष्णुकांत शास्त्री के मुख्यातिथ्य, विधान सभाध्यक्ष श्री केशरी नाथ त्रिपाठी, व्यंग्यकार पद्म श्री के. पी. सक्सेना,  ग़ज़ल सम्राट श्री कृष्ण बिहारी 'नूर',  नरेश सक्सेना अध्यक्ष मुक्तिबोध सृजन पीठ व सीमा रिज़वी राज्य मंत्री सूचना प्रौद्योगिकी के विशिष्टातिथ्य तथा महापौर पद्म श्री डॉ. एम्. सी. राय की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। आचार्य पूनम चंद्र तिवारी ग्वालियर, आचार्य भगवत प्रसाद मिश्र अहमदाबाद, राजेश अरोरा 'शलभ' लखनऊ, चंद्र सेन विराट इंदौर, गिरीश सिन्हा 'जीवन' जौनपुर, अशोक गीते खंडवा, रसूल अहमद सागर बकाई जालौन, राम प्रसाद विमोही रायपुर, संध्या जैन 'श्रुति' जबलपुर, गोपीनाथ कालभोर खंडवा, राज सागरी जबलपुर, डॉ. गार्गी शरण मिश्र जबलपुर, वंश बहादुर यादव धनबाद, आर्य प्रहलाद गिरी आसनसोल सम्मनित किये गए। मीत मेरे संजीव 'सलिल', सौरभ: डॉ. श्याम सुन्दर हेमकार, कदाचित सुभाष पांडेय, ऑफ़ एन्ड ऑन अनिल जैन, तथा पहला कदम डॉ. अनूप निगम का विमोचन शास्त्री जी के कर कमलों से हुआ।
वर्ष २००३ में श्री मनमोहन दुबे जबलपुर, डॉ. रजनीकांत जोशी अहमदाबाद, जसपाल 'संप्राण' अंबाला, मनोज श्रीवास्तव लखनऊ, राजेंद्र नागदेव दिल्ली, डॉ. शरद मिश्र शहडोल, श्री कृष्णवल्लभ पौराणिक इंदौर, मेजाओ राहुल शर्मा बेलगाम, डॉ. शेषपाल सिंह 'शेष' आगरा, डॉ. रमेश खरे दमोह, श्री रविशंकर परसाई पिपरिया, डॉ. बाबू जोसफ कोट्टायम केरल, डॉ. कृष्ण गोपाल मिश्र होशंगाबाद, डॉ. रामनारायण पटेल भुक्ता उड़ीसा, सदाशिव कौतुक इंदौर, ज्ञानेंद्र साज़ अलीगढ, विजय राठौड़ जांजगीर, डॉ. ब्रम्हजीत गौतम भोपाल, देवीसिंह चौहान रायपुर, खिश्ना मणि चतुर्वेदी गौसे सिनसपुर, श्री बद्री प्रसाद परसाई पिपरिया, श्रीमती रत्न ओझा जबलपुर, महेश जोशी खरगोन,. डॉ. ओमप्रकाश हयारण झांसी, महेंद्र सिंह 'नीलम' वाराणसी, उमेश अग्रवाल कोरबा, जितेंद्र प्रसाद 'भिखारी' वाराणसी, गिरिजा शंकर पाठक 'गिरिजेश' बीकानेर, कल्पना शील बड़ौदा, जयनारायण वैरागी झांबा, सत्या पूरी नाहन, अमृत लाल मालवीय होशंगाबाद, अरुम इंग्ले भोपाल तथा तोमर सिंह साहू कुरुद पुरस्कृत किये गए। समारोह २९.३.२००३ को महामहिम केदारनाथ साहनी राज्यपाल गोवा के मुख्यातिथ्य तथा न्यायमूर्ति अजित कब्बिन कर्णाटक उच्च न्यायालय व ओमप्रकाश पुलिस महानिरीक्षक कर्णाटक  के विशेषातिथ्य व वीर राजेंद्र सिंह 'बाफना' अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष महावीर इंटरनेशनल की अध्यक्षता में हुआ। 
१४.९.२००४ को साहित्य मंडल नाथद्वारा में चंद्र सेन विराट इंदौर, डॉ. सुशीला कपूर भोपाल, रुद्रदत्त दुबे जबलपुर, सरिता अग्निहोत्री मंडला, महाकवि जगमोहन प्रसाद चंचरीक जयपुर, डॉ. बी. इस. जौहरी - डॉ. पुष्प जौहरी मुम्बई, आचार्य भगवत दुबे जबलपुर, अज़ीज़ अंसारी इंदौर, श्याम विद्यार्थी डिब्रूगढ़, रामेश्वर हरिद मंडला, करुणा श्रीवास्तव जयपुर, प्रूराम साहू धमतरी, गजानन सिंह चौहान मंडलेश्वर, महेश सक्सेना भोपाल, रमेश बेल बालाघाट, ममता सिंह बीकानेर, त्रिभुवन सिंह चौहान लखनऊ, सुगन चंद जैन 'नलिन' गुना, विजय राठौर जांजगीर, शशिकांत पशीने 'शाकिर' अमरावती, रमेश चौरसिया 'राही' कोरबा, कैलाश त्रिपाठी ओरैया, दयाराम गुप्त पथिक ब्योहारी, गिरिमोहन गुरु होशंगाबाद, लक्ष्मी शर्मा जबलपुर, जगदीश जोशीला खरगौन, प्रभा पन्द्र 'पुरनम' जबलपुर, मणि मुकुल जबलपुर, ओमप्रकाश हयारण झांसी तथा डॉ. ओमप्रकाश लखनऊ को सम्मानित किया गया। मुख्या अतिथि प्रसिद्ध  साहित्यकार नरेंद्र कोहली दिल्ली तथा अध्यक्ष श्री नरहर ठाकर मुख्य पुजारी श्री नाथद्वारा मन्दिर रहे।
वर्ष २००६ में दिव्य नर्मदा अलंकरणों का आयोजन खंडवा में किया गया।
पुस्तक मेला:
१ से १० जनवरी २००० तक नगर में प्रथम पुस्तक मेले का आयोजन समय प्रकाशन दिल्ली के सहयोग से कराया गया जिसका उद्घाटन महापौर विश्वनथ दुबे ने किया, मुख्य अतिथि विधान सभा उपाध्यक्ष  ईश्वर दास रोहाणी  थे। २९-९-२००१ से ५-१०-२००१ तक नगर में पहली बार ग्रामीण तकनीकी विकास व्यापार मेला कृषि उपज मंडी में आयोजित किया गया।
वास्तु विद्या सम्मेलन:
१२-१४ जनवरी २००२ को मानस भवन में वास्तु विद्या सम्मेलन का आयोजन वास्तु विज्ञान संस्थान के साथ किया गया। इस अवसर पर प्रकाशित स्मारिका का विमोचन श्री सुदर्शन सरसंघ चालक, भाई महावीर राज्यपाल म.प्र. व् महापौर विश्वनाथ दुबे के कर कमलों से हुआ।
      

दोहा सलिला निर्मला डॉ. अरुण मिश्र

पुस्तक चर्चा:
नई उम्र की नई फसल: दोहा सलिला निर्मला
डॉ. अरुण मिश्र
*
प्रतिभा कवित्व का बीज है जिसके बिना काव्य रचना संभव नहीं है। 'कवित्तं दुर्लभं लोके' काव्य रचना सृष्टि में सर्वाधिक दुर्लभ कार्य है। आचार्यों के अनुसार काव्य के ३ हेतु हैं।

' नैसर्गिकी च प्रतिभा, श्रुतञ्च बहु निर्मलं।
अमंदश्चाभियोगश्च, कारणं काव्य संपद:।।' दंडी काव्यादर्श १ / १०३

निसर्गजात प्रतिभा, निर्भ्रांत लोक-शास्त्र ज्ञान और अमंद अभियोग यही काव्य के लक्षण हैं। कावय की रचना शक्ति, निपुणता और अभ्यास द्वारा ही संभव है। काव्य छंद-विधान से युक्त सरस वाणी है जिसका सीधा संबंध लोक मंगल से होता है। आचार्य शुक्ल भी यही स्वीकार करते हैं कि जिस काव्य में लोक के प्रति अधिक भावना होगी, वही उत्तम है। छंद-शास्त्र का ज्ञान सभी को प्राप्त नहीं है, वाग्देवी की कृपा ही छंद-युक्त काव्य के लिए प्रेरित करती है।
आचार्य श्री संजीव वर्मा 'सलिल' एवं डॉ. साधना वर्मा के संपादन में विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर द्वारा शांतिराज पुस्तक माला के अंतर्गत प्रकाशित दोहा शतक मञ्जूषा २ 'दोहा सलिला निर्मला' कृति का प्रकाशन हुआ है। आज के दौर में साहित्य-लेखन में छंदों का प्रयोग नगण्य होता जा रहा है तथापि कुछ रचनाकार ऐसे हैं जिन्होंने छंदों के प्रति असीम निष्ठा का भाव अपनाकर छंद-रचना से खुद को अलग नहीं किया है। वे छंद-विधान में निष्णात हैं। संपादक द्वय ने इनकी प्रतिभा का आकलन कर पंद्रह-पंद्रह दोहाकारों द्वारा रचित सौ-सौ दोहों को इस कृति में संग्रहित किया है। यह संग्रह उपयुक्त व सटीक है। इस संग्रह की विशेष बात यह है कि हर दोहाकार के दोहों पर पहले संपादक द्वारा समीक्षकीय टिप्पणी करने के साथ-साथ पाद टिप्पणी में दोहा में ही दोहा विषयक जानकारी दी गई है।
संग्रह के पहले रचनाकार अखिलेश खरे 'अखिल' के दोहों में ग्राम्य जीवन की सुवास महकती है-
खेतों से डोली चली, खलिहानों में शोर।
पिता-गेह से ज्यों बिदा, पिया गेह की ओर।।

निम्न दोहे में ग्राम्य व नगर जीवन की सटीक तुलना की गई है-
शहर-शहर सा सुघर है, उससे सुंदर गाँव।
सुदिन बांचता भोर से, कागा कर-कर काँव।।

श्रृंगार रस से भरपूर दोहे भी अखिल जी द्वारा लिखे गए हैं-
नैना खुली किताब से, छुपा राज कह मौन।
महक छिपे कब इत्र की, कहो लगाए कौन।।

प्रेम की भाषा मौन रहती है पर प्रेम छिपाये नहीं छिपता। यह प्रेम स्वर्गीय ज्योति से प्रकाशित रहता है।
दोहाकार अरुण शर्मा की चिंता गंगा-शुद्धि को लेकर है। निर्मल पतित पावनी, राम की गंगा को मैली होते देख कवि ने अनायास यह दोहा कहा होगा-
गंगा नद सा नद नहीं, ना गंगे सा नीर।
दर्जा पाया मातु का, फिर भी गंदे तीर।।

करते गंगा आरती, लेकर मन-संताप।
मन-मैला धोया नहीं, कहाँ मिटेंगे पाप।।

बरही कटनी निवासी श्री उदयभानु तिवारी के दोहों में भक्ति और प्रेम की रसधारा प्रवाहित है। महारास लीला शीर्षक उनके दोहों में मधुरा भक्ति का प्राकट्य हुआ है। मन को आल्हादित करने वाले एक-एक दोहे में पाठक का मन रमता जाता है और वह ब्रम्हानंद सहोदर का आनंद उठाता है-
गोपी जीवन प्रेम है, कान्हा परमानंद।
मोहे खग नर नाग सब, फैला सर्वानंद।।

श्री कृष्ण योगिराज हैं। 'वासुदेव पुरोज्ञानं वासुदेव पराङ्गति।' इन दोहों को हृदयंगम कर बरबस ही स्मरण हो आते हैं ये दोहे-
कित मुरली कित चंद्रिका, कित गोपियन के साथ। 
अपने जन के कारने, कृष्ण भये यदुनाथ।।

महारास में 'मैं-'तुम' का विभेद नहीं रहता, सब प्रेम-पयोधि में डूब जाते हैं। बिहारी कहते हैं-
गिरि वे ऊँचै रसिक मन, बूड़ै जहाँ हजार।
वहै सदा पशु नरन को, प्रेम पयोधि पगार।।

बरौंसा, सुल्तानपुर के ओमप्रकाश शुक्ल गाँधीवादी विचारधारा के पोषक हैं। समसामयिक परिवेश में जो घटित है, उसके प्रति उनकी चिंता स्वाभाविक है-
भरे खज़ाना देश का, पर अद्भुत दुर्योग।
निर्धन हित त्यागें; करें, चोर-लुटेरे भोग।।

समानता, न्याय का सभी को अधिकार प्राप्त हो कवि की यही कामना है-
सबको सबका हक मिले, बिंदु-बिंदु हो न्याय।
ऐसा हो कानून जो, रहे धर्म-पर्याय।।

जीवन में सहजता और सारल्य ही शक्ति देता है, इसलिए दोहाकार ने संतोष व्यक्त किया है। उसकी इच्छा है कि सब प्रेम से रहें, सन्मार्ग पर चलें-
सत का पथ मत छोड़ना, हे भारत के लाल।
राजभोग क्यों लालसा, जब है रोटी दाल।।

नरसिंहपुर निवासी जयप्रकाश श्रीवास्तव गीत-नवगीत के रचनाकार हैं। वे निसर्ग से संवाद करते नज़र आते हैं-
यूँ तो सूरज नापता, धरती का भूगोल।
पर कोइ सुनता नहीं गौरैया के बोल।।

पेड़ हुए फिर से नए, पहन धुले परिधान।
फूलों ने हँसकर किया, मौसम का सम्मान।।

हिंदी में प्रारंभ से ही नीतिपरक दोहों का चलन रहा है। इसी परंपरा में नीता सैनी के दोहों का सृजन हुआ है-
नैतिकता कायम रहे, करिए चरित-विकास।
कोरे भाषण नीति के, तनिक न आते रास।।

उनके इस दोहे में गंगा के प्रति असीम निष्ठा का भाव अभिव्यक्त हुआ है-
युगों-युगों से धो रहीं, गंगा मैया पाप।
निर्मल मन करतीं सदा, हरतीं पीड़ा-पाप।।

सोहागपुर, शहडोल निवासी डॉ. नीलमणि दुबे का व्यक्तित्व ही काव्यमय है। छंदविधान उनकी बाल्य जीवन की कविताओं में दृष्टव्य है। वे हिंदी प्रध्यापाल होने के पहले काव्य-रचयिता हैं। कविता उनके आस-पास विचरती है। संस्कृतनिष्ठ पदावली में उनकी गीत-रचना पाठकों को सहज ही लुभाती है। वर्तमान समय में बेमानी होते संबंधों को वे दोहे के माध्यम से उजागर करते हैं-
आग-आग सब शहर हैं, जहर हुए संबंध। 
फूल-फूल पर लग गए, मौसम के अनुबंध।।

प्रकृति के प्रति असीम लगाव है उन्हें। खेतों की हरियाली, वासंतिक प्रभा उन्हें विमोहित करती है। प्रकृति के पल-पल बदलते परिवेश का वे स्वागत करती हैं-
आम्र-मंजरी मिस मधुर, देते अमृत घोल।
हिय में गहरे उतरते, पिक के मीठे बोल।।

सरसों सँकुचाई खड़ी, खिला-खिला कचनार। 
कर सिंगार सँकुचा गई, हरसिंगार की डार।।

धौलपुर, राजस्थान के कवि बसंत कुमार शर्मा राजस्थान की वीरभूमि व् टैग-बलिदान की माटी की सुवास लेकर दोहे रचते हैं। उन्हें छंदों के प्रति विशेष लगाव है। शोष्हित वर्ग के प्रति उनके मन में विशेष करुणा है। हमारे कृषि प्रधान देश में किसान प्रकृति के रूठ जाने से लचर हो जाता है-
रामू हरिया खेत में, बैठा मौन उदास।
सूखा गया असाढ़ तो, अब सावन से आस।.
सिवनी मध्य प्रदेश के रहनेवाले डॉ. रामकुमार चतुर्वेदी वर्तमान व्यवस्था से आक्रोशित हैं। वे अपने परिवेश को व्यंग्य-धार से समझाते हैं-
पाँव पकड़ विनती करैं, सिद्ध करो सब काम। 
अपना हिस्सा तुम रखो, कुछ अपने भी नाम।।

विषय चयन के क्षेत्र में, गाए अपना राग। 
कौआ छीने कान को, कहते भागमभाग।।

सिवान, बिहार की रीता सिवानी युवा कवयित्री हैं। वे समतामूलक समाज में पूर्ण आस्था रखती हैं-
धरा जगत के एक है, अंबर सबका एक। 
मनुज एक मिट्टी बने, रंगत रूप अनेक।।

रिश्ते में जब प्रीत हो, तभी बने वह खास। 
प्रीत बिना रिश्ते लगें, बोझिल मूक उदास।।

प्रेम जहाँ है, वहाँ तर्क नहीं है क्योंकि तर्क से विद्वेष बढ़ता है। जहाँ प्रेम हो, निष्ठां हो, वहां कुतर्कों का स्थान नहीं है, प्रेम के बिना जीवन सूना है। अहंकार को त्यगना ही सच्चा प्रेम है। कबीर की वाणी में- 'जब मैं था तब हरि नहिं, अब हरि है मैं नाहिँ'। ईश्वर को पाना है, अच्छा इंसान बनना है तो अहंकार का त्याग आवश्यक है-
गर्व नहीं करना कभी, धन पर ऐ इंसान! 
कर जाता पल में प्रलय, छोटा सा तूफ़ान।।

शुचि भवि भिलाई (छत्तीसगढ़)निवासी हैं। विरोधाभास की जिंदगी उनहोंने देखी है। परिवार-समाज से वे कुछ चाहती हैं। समाज में विश्वास नहीं रहा है। सहज-सरल लोगों का आज जीना दुश्वार हो गया है। भवि को समाज से सिर्फ निराशा ही नहीं है अपितु कहीं न कहीं वह आशान्वित भी हैं।भवि जीवन में सरलता के साथ ही विनम्रता को प्रश्रय देते हुए कहती हैं-
कटु वचनों से क्या कहीं, बनती है कुछ बात? 
बोलो मीठे वचन तो, सुधरेंगे हालात।।

तुलसीदास जी भी यही कहते हैं-
लसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर। 
बसीकरन इक मंत्र है, परिहरु बचन कठोर।।

'भवानी शंकरौ वजनदे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ' की अनुगूँज भवि के इस दोहे में व्यंजित है-
बूँद-बूँद विश्वास से, बनती है पहचान। 
पल भर में कोई कभी, होता नहीं महान।।

दिल्ली में जन्में शोभित वर्मा में एक अभियांत्रिकी महाविद्यालय में विभागाध्यक्ष होने के बाद भी पारिवारिक संस्कार के कारण हिंदी के प्रति रूचि है। सलिल जी से जुड़ाव ने उनमें और छंद के प्रति लगाव उत्पन्न कर दिया। उनका कवि पर्यावरण के प्रति जागरूक है-
काट रहे नित पेड़ हम, करते नहीं विचार। 
आपने पाँव कुल्हाड़ पर, आप रहे हैं मार।।

अभियंता होने के नाते वे जानते हैं की किसी निर्णय का समय पर होना कितना आवश्यक है-
यदि न समय पर लिया तो निर्णय हो बेअर्थ। 
समय बीतने पर लिया निर्णय करे अनर्थ।।

सुदूर ईटानगर अरुणांचल में पेशे से शिक्षिका सरस्वती कुमारी ने अपने दोहों में सामाजिक विसंगतियों को उद्घाटित किया है। वे नारी शक्ति की समर्थक और राधा-कृष्ण के प्रेम की उपासिका हैं-
रंग-रँगीली राधिका, छैल छबीला श्याम। 
रास रचाते जमुन-तट, दोनों आठों याम।।

गीता का कर्म योग भी उनके दोहों में व्याप्त है-
ढूँढ जरा ऐ ज़िंदगी!, तू अपनी पहचान। 
भाग्य बदल दे कर्म कर, लिख अपना उन्वान।।

हिंदी प्राध्यापक फैज़ाबाद निवासी हरी फ़ैज़ाबादी अवधि के कवि हैं। वे कविता की पारम्परिकता को बरकरार रखे हुआ माँ को श्रेष्ठ मानते हैं-
कर देती नौ रात में, जीवन का उद्धार। 
माँ की महिमा यूँ नहीं, गाता है संसार।।

स्वच्छता अभियान के लिए वे जागरूक हैं। उनकी पीड़ा यह कि स्वच्छ रहने के लिए भी अभियान चलना पड़ रहा है-
आखिर चमके किस तरह मेरा हिंदुस्तान। 
यहाँ सफाई भी नहीं, होती बिन अभियान।।

सारण बिहार में जन्मे, रांची में कार्यरत हिमकर श्याम इस दोहा संग्रह के अंतिम रचनाकार हैं। पत्रकारिता में स्नातक होने के साथ ही वे दोहा, ग़ज़ल, रिपोर्ताज लिखने में सिद्धहस्त हैं। सहज व्यक्तित्व होने के कारण ही वे पर्यावरणीय विक्षोभ से चिंतित हैं। प्रकृति के प्रति असीम अनुराग उनके लेखन में व्याप्त है-
झूमे सरसों खेत में, बौराए हैं आम। 
दहके फूल पलाश के, है सिंदूरी शाम।।

वृक्षों की अंधाधुंध कटाई उन्हें चिंतित करती है। आँगन में लगे तुलसी के पौधे के नीचे रखे दीपक अब ध्यान में नहीं है-
आँगन की तुलसी कहाँ, दिखे नहीं अब नीम। 
जामुन-पीपल कट गए, ढूँढे कहाँ हकीम।।

आचार्य संजीव सलिल तथा प्रो। साधना वर्मा द्वारा 'शान्तिराज पुस्तक मालांतर्गत संपादित 'दोहा शतक मञ्जूषा २ "दोहा सलिला निर्मला" छंद विधान की परंपरा को सुदृढ़ बना सकी है। स्वतंत्रता के बाद विशेषकर नवें-दसवें दशक से छंद यत्र-तत्र ही दिखते हैं। छंद लेखन कठिन कार्य है। आचार्य संजीव सलिल जी ने अथक श्रम कर दोहाकारों को तैयार कर उनके प्रतिनिधि दोहों का चयन कर यह दोहा शतक मंजूषा श्रृंखला बनाई है जो वर्तमान परिवेश और सामयिक समस्याओं के अनुकूल है। ये रचनाकार अपने परिवेश से सुपरिचित हैं। अत; उसे अभिव्यक्त करने में वे संकोच नहीं करते हैं। कुल मिलाकर सभी दृष्टियों से संग्रहीत कवियों के दोहे छंद-विधान के उपयुक्त व् सटीक हैं। संपादक द्वय को ढेर सीबधाई और शुभकानाएँ। विश्वास है कि भविष्य में ये दोहे पाठकों को दिशा-सोची बना सकेंगे। 
***
संपर्क: विभागाध्यक्ष हिंदी, शासकीय मानकुँवर बाई स्नातकोत्तर स्वशासी महिला महाविद्यालय, जबलपुर ४८२००१

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

ग़ज़ल नवीन चतुर्वेदी

कर्मवीरों के प्रयासों को डिगा सकते नहीं।
शब्द-सन्धानी 1 कोई बदलाव ला सकते नहीं।।

गुप्त-गाथाएँ पढ़ीं तो दग्ध-अन्तस ने कहा।
“एक धोका खा चुके हैं और खा सकते नहीं”।

अब कहाँ वे लोग जो कहते थे सीना तान कर। 
“सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं”।।

अस्मिता का अर्थ बस उपलब्धि हो जिनके लिए।
इस तरह के झुण्ड निज-गौरव बचा सकते नहीं।।

जो भी कुछ करना है तुमको अब तो कर ही डालिये।
इस तरह हर रोज़ हम लाशें उठा सकते नहीं।।

1 लफ़्फ़ाज़, बकलोल

नवीन सी. चतुर्वेदी

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

लघु कथा वैलेंटाइन

लघु कथा
वैलेंटाइन
*
'तुझे कितना समझती हूँ, सुनता ही नहीं. उस छोरी को किसी न किसी बहाने कुछ न कुछ देता रहता है. इतने दिनों में तो बात आगे बढ़ी नहीं. अब तो उसका पीछा छोड़ दे'
"क्यों छोड़ दूँ? तेरे कहने से रोज सूर्य को जल देता हूँ न? फिर कैसे छोड़ दूँ?"
'सूर्य को जल देने से इसका क्या संबंध?'
"हैं न, देख सूर्य धरती को धू की गिफ्ट देकर प्रोपोज करता हैं न. धरती माने या न माने सोराज धुप देना बंद तो नहीं करता. मैं सूरज की रोज पूजा करून और उससे इतनी सी सीख भी न लूँ की किसी को चाहो तो बदले में कुछ न चाहो, तो रोज जल चढ़ाना व्यर्थ हो जायेगा न? सूरज और धरती की तरह मुझे भी मनाते रहना है वैलेंटाइन."
***
१४-२-२०१७ 

मुक्तक वैलेंटाइन

हास्य सलिला:
वैलेंटाइन पर्व:
संजीव
*
भेंट पुष्प टॉफी वादा आलिंगन भालू फिर प्रस्ताव
लला-लली को हुआ पालना घर से 'प्रेम करें' शुभ चाव
कोई बाँह में, कोई चाह में और राह में कोई और
वे लें टाई न, ये लें फ्राईम, सुबह-शाम बदलें का दौर
***

दोहा वैलेंटाइन

दोहा वैलेंटाइन 
उषा न संध्या वंदना, करें खाप-चौपाल
मौसम का विक्षेप ही, बजा रहा करताल
*
लेन-देन ही प्रेम का मानक मानें आप
किसको कितना प्रेम है?, रहे गिफ्ट से नाप
*
बेलन टाइम आगया, हेलमेट धर शीश
घर में घुसिए मित्रवर, रहें सहायक ईश
*
पर्व स्वदेशी बिसरकर, मना विदेशी पर्व
नकद संस्कृति त्याग दी, है उधार पर गर्व
*
उषा गुलाबी गाल पर, लेकर आई गुलाब
प्रेमी सूरज कह रहा, प्रोमिस कर तत्काल
*
धूप गिफ्ट दे धरा को, दिनकर करे प्रपोज
देख रहा नभ मन रहा, वैलेंटाइन रोज
*
रवि-शशि से उपहार ले, संध्या दोनों हाथ
मिले गगन से चाहती, बादल का भी साथ
*
चंदा रजनी-चाँदनी, को भेजे पैगाम
मैंने दिल कर दिया है, दिलवर तेरे नाम
*
पुरवैया-पछुआ कहें, चखो प्रेम का डोज
मौसम करवट बदलता, जब-जब करे प्रपोज
*
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कार्यशाला कुण्डलिया

कार्यशाला
कुण्डलिया 
साजन हैं मन में बसे, भले नजर से दूर
सजनी प्रिय के नाम से, हुई जगत मशहूर -मिथलेश 
हुई जगत मशहूर, तड़पती रहे रात दिन
अमन चैन है दूर, सजनि का साजन के बिन
निकट रहे या दूर, नहीं प्रिय है दूजा जन
सजनी के मन बसे, हमेशा से ही साजन - संजीव

मुक्तक महिमा है हिंदी की

मुक्तक 
महिमा है हिंदी की, गरिमा है हिंदी की, हिंदी बोलिए तो, पूजा हो जाती है
जो न हिंदी बोलते हैं, अंतर्मन न खोलते हैं, अनजाने उनसे ही, भूल हो जाती है
भारती की आरती, उतारते हैं पुण्यवान, नेह नर्मदा आप, उनके घर आती है
रात हो प्रभात, सूर्य कीर्ति का चमकता है, लेखनी आप ही, गंगा में नहाती है
१४-२-२०१७ 

नवगीत जन चाहता

द्विपदी 
लब तरसते रहे आयीं न, चाय भिजवा दी
आह दिल ने करी, लब दिलजले का जला.
*
नवगीत:
संजीव
.
जन चाहता 
बदले मिज़ाज 
राजनीति का
.
भागे न
शावकों सा
लड़े आम आदमी
इन्साफ मिले
हो ना अब
गुलाम आदमी
तन माँगता
शुभ रहे काज
न्याय नीति का
.
नेता न
नायकों सा
रहे आक आदमी
तकलीफ
अपनी कह सके
तमाम आदमी
मन चाहता
फिसले न ताज
लोकनीति का
(रौद्राक छंद)
*

१४-२-२०१५ 

हाइकु

हाइकु
संजीव
.
दर्द की धूप 
जो सहे बिना झुलसे 
वही है भूप
.
चाँदनी रात
चाँद को सुनाते हैं
तारे नग्मात
.
शोर करता
बहुत जो दरिया
काम न आता
.
गरजते हैं
जो बादल वे नहीं
बरसते हैं
.
बैर भुलाओ
वैलेंटाइन मना
हाथ मिलाओ
.
मौन तपस्वी
मलिनता मिटाये
नदी का पानी
.
नहीं बिगड़ा
नदी का कुछ कभी
घाट के कोसे
.
गाँव-गली के
दिल हैं पत्थर से
पर हैं मेरे
.
गले लगाते
हँस-मुस्काते पेड़
धूप को भाते
*

१४-२-२०१५ 

मुक्तिका: जमीं बिस्तर है

मुक्तिका:
जमीं बिस्तर है
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
जमीं बिस्तर है, दुल्हन ज़िंदगी है.
न कुछ भी शेष धर तो बंदगी है..
नहीं कुदरत करे अपना-पराया.
दिमागे-आदमी की गंदगी है..
बिना कोशिश जो मंजिल चाहता है
इरादों-हौसलों की मंदगी है..
जबरिया बात मनवाना किसी से
नहीं इंसानियत, दरिन्दगी है..
बात कहने से पहले तौल ले गर
'सलिल' कविताई असली छंदगी है..
**************************
१३-२- २०११

मुक्तिका साथ बुजुर्गों का

मुक्तक 
आशा की कंदील झूलती 
मिली समय की शाख पर 
जलकर भी देती उजियारा 
खुश हो खुद को राख कर
*
मुक्तिका
साथ बुजुर्गों का...
संजीव 'सलिल'
*
साथ बुजुर्गों का बरगद की छाया जैसा.
जब हटता तब अनुभव होता था वह कैसा?
मिले विकलता, हो मायूस मौन सहता मन.
मिले सफलता, नशा मूंड़ पर चढ़ता मै सा..
कम हो तो दुःख, अधिक मिले होता विनाश है.
अमृत और गरल दोनों बन जाता पैसा..
हटे शीश से छाँव, धूप-पानी सिर झेले.
फिर जाने बिजली, अंधड़, तूफां हो ऐसा..
जो बोया है वह काटोगे 'सलिल' न भूलो.
नियति-नियम है अटल, मिले जैसा को तैसा..
***********************************
१३-२-२०११

हाइकु नवगीत- टूटा विश्वास

हाइकु नवगीत :
संजीव
.
टूटा विश्वास
शेष रह गया है 
विष का वास
.
कलरव है
कलकल से दूर
टूटा सन्तूर
जीवन हुआ
किलकिल-पर्याय
मात्र संत्रास
.
जनता मौन
संसद दिशाहीन
नियंता कौन?
प्रशासन ने
कस लिया शिकंजा
थाम ली रास
.
अनुशासन
एकमात्र है राह
लोक सत्ता की.
जनांदोलन
शांत रह कीजिए
बढ़े उजास
.

कुण्डलिया

षटपदियाँ:
आभा की देहरी हुआ, जब से देहरादून 
चमक अर्थ पर यूं रहा, जैसे नभ में मून
जैसे नभ में मून, दून आनंद दे रहा
कितने ही यू-टर्न, मसूरी घुमा ले रहा 
सलिल धार से दूरी रख, वर्ना हो व्याधा
देख हिमालय शिखर, अनूठी जिसकी आभा.
.
हुए अवस्था प्राप्त जो, मिला अवस्थी नाम
राम नाम निश-दिन जपें, नहीं काम से काम
नहीं काम से काम, हुए बेकाम देखकर
शास्त्राइन ने बेलन थामा, लक्ष्य बेधकर
भागे जान बचाकर, घर से भंग बिन पिए
बेदर बेघर-द्वार आज देवेश भी हुए

नवगीत- कम लिखता हूँ

नवगीत:

कम लिखता हूँ...

संजीव 'सलिल'
*
क्या?, कैसा है??
कम लिखता हूँ,
बहुत समझना...
*
पोखर सूखे,
पानी प्यासा.
देती पुलिस
चोर को झाँसा.
खेतों संग
रोती अमराई.
अन्न सड़ रहा,
फिके उदासा.
किस्मत केवल
है गरीब की
भूखा मरना...
*
चूहा खोजे,
मिला न दाना.
चमड़ी ही है
तन पर बाना.
कहता भूख,
नहीं बीमारी,
जिला प्रशासन
बना बहाना.
न्यायालय से
छल करता है
नेता अपना...
*
शेष न जंगल,
यही मंगल.
पर्वत खोदे-
हमने तिल-तिल.
नदियों में
लहरें ना पानी.
न्योता मरुथल
हाथ रहे मल.
जो जैसा है
जब लिखता हूँ
बहुत समझना...
१३.२.२०११ 
***************

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

हस्तिनापुर की बिथा-कथा बुंदेली महाकाव्य डॉ. मुरारीलाल खरे


हस्तिनापुर की बिथा-कथा
बुंदेली महाकाव्य
डॉ. मुरारीलाल खरे
विश्ववाणी हिंदी संस्थान
समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर
*

हस्तिनापुर की बिथा-कथा
महाकाव्य
डॉ. मुरारीलाल खरे
प्रथम संस्करण २०१९
प्रतिलिप्याधिकार: रचनाकार
ISBN
मूल्य: २००/-
*
स्मरण:
*
समर्पण
*
भूमिका
*
अपनी बात

बुंदेली में ई लेखक कौ काव्य रचना कौ पैलो प्रयास 'बुंदेली रमायण सन २०१३ में छपो तो। ऊके बाद एक खंड काव्य साहित्यिक हिंदी में 'शर शैया पर भीष्म पितामह' सन २०१५ में छपो। तबहूँ जौ बिचार मन में उठो कै महाभारत की कथा खौं छोटो करकें बुंदेली में काव्य-रचना करी जाए। महाभारत की कथा तौ भौत बड़ी है। ऊखौं  पूरौ पड़बे की फुरसत और धीरज कोऊ खौं नइंयां। छोटो करबे में कैऊ प्रसंग छोड़ने परे। जौ बात कछू विद्वानन खौं खटक सख्त ई के लानें छमा चाउत। बुंदेली में हस्तिनापुर की बिथा-कथा लिखबे में कैऊ मुश्किलें आईं। एक तौ जौ कै बुंदेली कौ कोनउ  मानक स्वरुप सर्वसम्मति सेन स्वीकार नइंयां। एकई शब्द कौ अर्थ बताबे बारे जगाँ-जगाँ अलग-अलग शब्द हैं, जैसें 'बहुट के लाने भौत, भारी, बड़ौ, मटके, गल्लां, बिलात, ढेरन।  उच्चारन सोउ अलग-अलग हैं। ईसें कैऊ भाँत सें समझौता करने परो। हिंदी के 'ओस को कऊँ 'बौ' और कितऊँ 'ऊ' बोलो जात। उसको की जगां 'बाए' 'उयै', 'ऊखों' कौ इस्तेमाल होत। 'को' के लाने 'खौं' और 'खाँ' दोऊ चलत आंय। 'यहाँ', 'वहाँ' के लानें दतिया में 'हिना', हुआँ' झाँसी में 'हिआँ', 'हुआँ', कऊँ 'इहाँ-उहाँ' तौ कितऊँ 'इतै-उतै', 'इताएँ-उताएँ', इतईं-उतईं बोलो जात। ई रचना में जितै जैसो सुभीतो परौ वैसोइ शब्द लै लओ। बिद्वान लोग इयै   एक रूपता की कमी मान सकत। लेखक कौ बचपनो झाँसी, ललितपुर और मऊरानीपुर-गरौठा के ग्रामीण अंचल में बीतो, सो उतै की बोलियन कौ असर ई रचना में जरूर आओ हुये। 

बुंदेली में अवधी की भाँत 'श' को उच्चारन 'स' और 'व' को उच्चारन कऊँ-कऊँ 'ब' होत। ऐसोइ ई काव्य में है। 'ण' को उच्चारन 'न' है पर ई रचना में 'ण' जितै कोऊ के नाव में है तौ ऊकौ 'न' नईं करो गओ जैसें द्रोण, कर्ण, कृष्ण, कृष्णा में सुद्ध रूप लओ है, उनें द्रोन, करन, कृस्न, कृस्ना नईं करो। सब पात्रन के नाव सुद्ध रूप में रखे गए उनकों बुंदेली अपभृंस नईं करो। ठेठ बुंदेली के तरफ़दार ई पै ऐतराज कर सकत। शब्द खौं जबरदस्ती देहाती उच्चारन दैवे के लाने बिगारो नइयाँ। एकदम ठेठ देहाती और कम चलवे वारे स्थानीय शब्द न आ पाएँ, ऐसी कोसिस रई। व्याकरन बुंदेली कौ है, शब्द सब कऊँ बुंदेली के नइयाँ। ई कोसिस में लेखक खौं कां तक सफलता मिली जे तो पाठक हरें तै कर सकत। विनती है उनें जौ रचना कैसी लगी, जौ बतावे की किरपा करें। अंत में निवेदन है 'भूल-चूक माफ़'।  
विनयवंत 
एम. एल. खरे 
     (डॉ. मुरारी लाल खरे) 
*
कितै का है?
अध्याय संख्या और नाव                                                                पन्ना संख्या 
१. हस्तिनापुर कौ राजबंस 

२. कुवँरन की शिक्षा और दुर्योधन की ईरखा 

३. द्रौपदी स्वयंवर और राज कौ बँटवारौ 

४. छल कौ खेल और पांडव बनवास 

५. अज्ञातवास में पाण्डव 

६. दुर्योधन कौ पलटवौ और युद्ध के बदरा 

७. महायुद्ध (भाग १) पितामह की अगुआई में 

८. महायुद्ध (भाग २) आख़िरी आठ दिन 

९. महायुद्ध के बाद 

***

कैसी बिथा?

कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में घाव हस्तिनापुर खा गओ
राजबंस की द्वेष आग में झुलस आर्यावर्त गओ

घर में आग लगाई, घर में बरत दिया की भड़की लौ
सत्यानास देस कौ भओ  तो, नईं वंस कौ भओ भलो

लरकाईं में संग रये जो, संग-संग खाये-खेले
बेी युद्ध में एक दुसरे के हथयारन खौं झेले

दिव्य अस्त्र पाए ते जतन सें, होवे खौं कुल के रक्षक
नष्ट भये आपस में भिड़कें, बने बंधुअन के भक्षक

गरव करतते अपने बल कौ, जो वे रण में मर-खप गए
वेदव्यास आंखन देखी जा, बिथा-कथा लिख कें धर गए

***
पैलो अध्याय

हस्तिनापुर कौ राजबंस

कब, कितै और काए 

द्वापर के आखिरी दिनन भारत माता की छाती पै।
भाव बड़ौ संग्राम भयंकर कुरुक्षेत्र की थाती पै।१।

बा लड़ाई में शामिल भए ते केऊ राजा बड़े-बड़े।
कछू पाण्डवन संग रए ते, कछू कौरवां संग खड़े।२।

एकई राजबंस के ककाजात भइयन में युद्ध भओ। 
जीसें भारत भर के के कैऊ राजघरन कौ नास भओ।३।

भारी मार-काट भइती, धरती पै भौतइ गिरो रकत।
सत्यानास देस कौ भओ, बौ युद्ध कहाओ महाभारत।४।

चलो अठारा दिना हतो बौ, घमासान युद्ध भारी।
धरासाई भए बियर कैऊ, लासन सें पाती भूमि सारी।५।

जब-जब घर में फुट परत, तौ बैर ईरखा बड़न लगत।
स्वारथ भारी परत नीति पै, तब-तब भैया लड़न लगत।६।

ज्ञान धरम कौ नईं रहै जब, ऊकौ भटकन लगै अरथ।
भड़के भूँक राजसुख की, छिड़ जात छिड़ जात युद्ध होत अनरथ।७।

राज हस्तिनापुर के बँटवारे के लाने युद्ध भओ।
जेठौ कौरव तनकउ हिस्सा, देवे खौं तैयार न भओ।८।

उत्तर में गंगा के करकें, हतो हस्तिनापुर कौ राज।
जीपै शासन करत रये, कुरुबंसी सांतनु राजधिराज।९।

कथा महाभारत की शुरू, होत सांतनु म्हराज सें है।
सुनवे बारी, बड़ी बिचित्र, जुडी भइ सोउ कृष्ण सें है।१०।

सांतनु की चौथी पैरी एक न रई, दो फाँक भई।
नाव एक कौ परो पाण्डव, दूजी कौरव कही गई।११।
.... निरंतर