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शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

दोहा वैलेंटाइन

दोहा वैलेंटाइन
उषा दुपहरी सांझ से, पाल रहा जो प्रीत. 
छलिया सूरज को कहे, जग क्यों 'सलिल' पुनीत?.
८.२.२०१० 

नवगीत मर्तबान में

नवगीत:
संजीव
.
तह करके 
रख दिये ख्वाब सब 
धूप दिखाकर
मर्तबान में
.
कोशिश-फाँकें
बाधा-राई-नोन
समय ने रखा अथाना
धूप सफलता
मिल न सकी तो
कैसा गलना, किसे गलाना?
कल ही
कल को कल गिरवी रख
मोल पा रहा वर्तमान में
.
सत्ता सूप
उठाये घूमे
कह जनगण से 'करो सफाई'
पंजा-झाड़ू
संग नहीं तो
किसने बाती कहो मिलायी?
सबने चुना
हो गया दल का
पान गया ज्यों पीकदान में.
.
८-२-२०१५

maithili haiku

मैथिली हाइकु 
*
स्नेह करब 
हमर मंत्र अछि 
गरा लागब.
*

दोहा वैलेंटाइन

दोहा वैलेंटाइन
दिनकर प्रिय सुधि रश्मि से, करे प्रणय शुरुआत।
विरह तिमिर का अंत कर, जगा रहा जज्बात।।
*

दोहा वैलेंटाइन

दोहा वैलेंटाइन 
रोज, प्रप्रोज पठा रहा, नाती कैसा काल।
पोता हो लव बर्ड तो, आ जाए भूचाल।।

दस मात्रिक छंद

दस मात्रिक छंद
९. पदांत यगण
मनुआ! जग गा रे!
प्राची रवि लाई
ऊषा मुसकाई
रहा टेर कागा
पहुना सुधि आई
विधना झट ला रे!
कुण्डी खटकाई
गोरी झट आई
अँखियाँ टकराईं
झुक-उठ शरमाईं
मुड़कर मात जारे!
हुई मन मिलाई
सुध-बुध बिसराई
गयी खनक चूड़ी
ननदी झट आई
चट-पट छिप जा रे!
*
१०. पदांत मगण
मन क्यों आवारा?
जैसे बंजारा
हर दम चाहे हो
केवल पौबारा
*
११. पदांत तगण
ख्वाब में हैं आप
साथ में हैं आप
हम जहाँ मौजूद
न हों पर हैं आप
*
१२. पदांत रगण
बात जब कीजिए
साथ चल दीजिए
सच नहीं भी रुचे
तो नहीं खीजिए
कर मिलें, ना मिलें
मन मिला लीजिए
आँख से भी कभी
कुछ लगा पीजिए
नेह के नीर में
सँग नहा भीजिए
*
१३. पदांत जगण ६+१२१
किसे कहें अनाथ?
सभी मनुज सनाथ
सबका ईश एक
झुकाएँ नित माथ
*
१४. पदांत भगण
लाया है सावन
त्यौहार सुपावन
मिल इसे मनायें
राखी मन भावन
.
सीमा पर दुर्जन
दें मार सैन्य जन
अरि के घर मातम
बोयेगा सावन
*
१५, पदांत नगण
जब से गए सजन
बेसुध सा तन-मन
दस दिश चहल-पहल
सूना मन-मधुवन
किया सतत सुमिरन
हर दिन, हर पल-छिन
पौधारोपण कर
जी पायें फिर वन
वह दिखता रहबर
हो न कहीं रहजन
*
१६. पदांत सगण
हमको है कहना
दूर नहीं रहना
चुप, कब तक पहनें
सुधियों का गहना?
मजबूरी अपनी
विरह व्यथा तहना
सलिला कब कहती
मुझे नहीं बहना?
मंगल मन रही
क्यों केवल बहना?
*
१७. २ यगण
निहारो-निहारो
सितारों निहारो
सदा भारती की
करो आरती ही
हसीं चाँदनी को
धरा पर उतारो
सँवारो-सँवारो
धरा को सँवारो
१८. २ तगण
सीता वरें राम
सीता तजें राम
छोड़ें नहीं राग
सीता भजें राम
१९. २ रगण
आपसे काम ना
हो, यही कामना
गर्व का वास ना
हो, नहीं वासना
स्वार्थ को साध ना
छंद को साधना
माप की नाप ना
नाप ही नापना
उच्च हो भाव ना
शुद्ध हो भावना
*
२०. यगण तगण
कहीं है नीलाभ
कहीं है पीताभ
कपासी भी मेघ
कहीं क्यों रक्ताभ?
कड़े हो या नर्म
रहो जैसे डाभ
सहेगा जो हानि
कमाएगा लाभ
२१. तगण यगण
वादा न निभाया
कर्जा न चुकाया
जोड़ा धन थोड़ा
मोहे मत माया
जो पुन्य कमाया
आ अंत भुनाया
ठानो न करोगे
जो काम न भाया
२१. यगण रगण
किये जाओ मजा
चली आती क़ज़ा
किया तो भोग भी
यही दैवी रजा
कहो तो स्वार्थ को
कभी क्या है तजा?
रही है सत्य की
सदा ऊँची ध्वजा
न बोले प्रेयसी
'मुझे क्या जा-न जा'
*
२२. रगण यगण
आपका सहारा
दे रहा इशारा
हैं यही मुरादें
साथ हो हमारा
दूर जा पुकारा
पास आ निहारा
याद है न वादा?
प्यार हो न कारा?
आँख में बसा है
रूप ये तुम्हारा
*
२३. तगण रगण २२१ २१२
आओ! कहीं चलें
बोलो कहाँ मिलें?
माँगें यही दुआ
कोई नहीं छले
*
२४. रगण तगण
आज का पैगाम
जीत पाए लाम
आपका सौभाग्य
आप आये काम
सोचते हैं लोग
है विधाता वाम
चाहिए क्यों पुण्य
कर्म है निष्काम
खूब पाया नाम
बात है ये ख़ास
प्रेरणा लें आम
*

हिंदी साहित्य: प्रश्नोत्तर

हिंदी साहित्य: प्रश्नोत्तर 
१ . सूरदास ने सूरसागर किस बोली में लिखी?----ब्रज
२ . पहेलियाँ और मुकेरियाँ किसकी रचना हैं?----अमीर खुसरो
३ . कामायनी के लेखक कौन हैं?----जयशंकर प्रसाद
४ . साकेत और भारतभारती के लेखक कौन है?----मैथिलीशरण गुप्त
५ . चिदंबरा के लेखक कौन हैं?---सुमित्रानंदन पन्त
६ . बिहारी ने सतसई की रचना किस बोली में की है?---मैथिली
७ . अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी बोलियाँ हिंदी की किस उपभाषा के अंतर्गत आती हैं?---पूर्वी हिंदी
८ . रामचरितमानस की रचना किसने की और किस बोली में?---तुलसीदास ने अवधी में
९ . मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावत की रचना किस बोली में की?---अवधी
१० . मेवाती, मारवाड़ी, हाडौती, मेवाड़ी किस उपभाषा की बोलियाँ हैं?----राजस्थानी
११. मैथिली, मगही, भोजपुरी किस उपभाषा की बोलियाँ हैं?---बिहारी
१२ . मैथिल कोकिल के नाम से कौन प्रसिद्ध है जिन्होंने पदावली की रचना मैथिली में की?---विद्यापति
१३ . मंडियाली(हिमाचली), कुमाऊनी, गढ़वाली किस उपभाषा की बोलियाँ हैं?---पहाड़ी
१४ . ब्रज, खड़ीबोली, बांगरू (हरियाणवी), बुन्देली, कन्नौजी किस उपभाषा की बोलियाँ हैं?---पश्चिमी हिंदी
१५ . हिंदी विश्व के किस भाषा परिवार से संबंधित है?---भारत-यूरोपीय भाषा परिवार
१६ . भारतीय आर्य भाषा परिवार की प्राचीनतम भाषा कौनसी है?---संस्कृत
१७ . देवनागरी लिपि का विकास किस प्राचीन लिपि से हुआ है?--ब्राह्मी लिपि
१८ . पंजाबी भाषा की लिपि कौनसी है?---गुरुमुखी
१९ . उर्दू की लिपि कौनसी है?---फारसी
२० . कौनसी लिपि दांये से बांये लिखी जाती है?--फारसी
२१ . अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश भाषाओं की लिपि कौनसी है?---रोमन
२२ . हिंदी का विकास किस भाषा से हुआ है?---संस्कृत

क्रिकेट के दोहे

क्रिकेट के दोहे 
*
चहल-पहल कर चहल ने, खड़ी करी है खाट 
कम गेंदें ज्यादा विकेट, मारा धोबीपाट 
*
धोनी ने धो ही दिया, सब अंग्रजी ठाठ
बल्ले-बल्ले कर रहा, बल्ला पढ़ लो पाठ
*
रैना चैना छीनकर, नैना रहा तरेर
ढेर हो गए सर झुका, सब अंग्रेजी शेर
*
है विराट के नाम की, है विराट ही धाक
कुक ने स्तीफा दिया, हाय कट गयी नाक
*
अंग्रेजों से छिन गया, ट्वंटी का भी ताज
गोरी बाला वर जयी, हुए विहँस युवराज
*
नेहरा गहरा वार कर, पहरा देता खूब
विकट नहीं या रन नहीं, गए विपक्षी डूब
***

विद्या छंद मुक्तिका

एक मुक्तिका
छंद- यौगिक जातीय विद्या छंद
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
बहर- फाइलातुन x ४
*
फूलने दो बाग़ में गुंचे मिलेगी खूब खुश्बू
गीत गायेंगे ख़ुशी से झूम भौंरे देख जादू
कौन बोलेगा न झूमो? कौन चाहेगा न गाओ?
राह में राही मिलेंगे, थाम लेना हाथ ही तू
उम्र का ही है तकाजा लोग मानें या न मानें
जोश में होता कहाँ है होश?, होता है न काबू
आप नेता हैं, नहीं तो आपका कोई न चर्चा
आपकी पीड़ा न पीड़ा, फेंक एसिड, मार चाकू
सांसदों को खूब भत्ते और भूखों को न दाना
वाह रे आजाद लोगो! है न आज़ादी गुड़ाखू
***

नव गीतः सुग्गा बोलो

नव गीतः 
सुग्गा बोलो 
जय सिया राम...
सन्जीव
*
सुग्गा बोलो
जय सिया राम...
*
काने कौए कुर्सी को
पकड़ सयाने बन बैठे
भूल गये रुकना-झुकना
देख आईना हँस एँठे
खिसकी पाँव तले धरती
नाम हुआ बेहद बदनाम...
*
मोहन ने फिर व्यूह रचा
किया पार्थ ने शर-सन्धान
कौरव हुए धराशायी
जनगण सिद्‍ध हुआ मतिमान
खुश मत हो, सच याद रखो
जन-हित बिन होगे गुमनाम...
*
हर चूल्हे में आग जले
गौ-भिक्षुक रोटी पाये
सांझ-सकारे गली-गली
दाता की जय-जय गाये
मौका पाये काबलियत
मेहनत पाये अपना दाम...
*
१३-७-२०१४

मुक्तिका

मुक्तिका 
मिल गया 
*
घर में आग लगानेवाला, आज मिल गया है बिन खोजे. 
खुद को खुदी मिटानेवाला, हाय! मिल गया है बिन खोजे.
*
जयचंदों की गही विरासत, क्षत्रिय शकुनी दुर्योधन भी
बच्चों को धमकानेवाला, हाथ मिल गया है बिन खोजे.
*
'गोली' बना नारियाँ लूटीं, किसने यह भी तनिक बताओ?
निज मुँह कालिख मलनेवाला, वीर मिल गया है बिन खोजे.
*
सूर्य किरण से दूर रखा था, किसने शत-शत ललनाओं को?
पूछ रहे हैं किले पुराने, वक्त मिल गया है बिन खोजे.
*
मार मरों को वीर बन रहे, किंतु सत्य को पचा न पाते
अपने मुँह जो बनता मिट्ठू, मियाँ मिल गया है बिन खोजे.
*
सत्ता बाँट रही जन-जन को, जातिवाद का प्रेत पालकर
छद्म श्रेष्ठता प्रगट मूढ़ता, आज मिल गया है बिन खोजे.
*
अब तक दिखता जहाँ ढोल था, वहीं पोल सब देख हँस रहे
कायर से भी ज्यादा कायर, वीर मिल गया है बिन खोजे.
***
२५.१.२०१८

काह न स्त्री कर सके

पुरुष बिचारा
स्त्री को हमेशा एक पुरुष का साथ चाहिए जिसे हर गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार ठहराना जा सके।
पिता तानाशाह
भाई लापरवाह
पति नाकाबिल
बेटा नालायक
पोता नादान
देवियाँ भी पीछे नहीं हैं।
- लक्ष्मी विष्णु से- 'दिन भर पसरे रहते हो, कभी तो बाहर जाओ।'
- पार्वती शिव से 'कभी तो भले मानुषों की तरह घर में रहा करो।'
- राधा कृष्ण से बुढ़ापा आ रहा है अब तो सुधर जाओ।
- सरस्वती ब्रम्हा से- बूढ़े हो गए, पीछा छोड़ो।
- रिद्धि-सिद्धि की किचकिच से घबराकर गणेश जी ने हाथी से कान उधार लेकर रुई ठूँस ली।
- शंकर जी ने पंगा लिया तो पार्वती जी महाकाली बन उनकी छाती पर सवार हो गईं।
- नंदिनी-इरावती से घबराकर कायस्थों के कुलदेवता ऐसे भागे कि लौटे ही नहीं, इसलिए  उनका नाम ही हो गया चित्रगुप्त।
खैर चाहते हो बने रहो जोरू के गुलाम, वह भी बेदाम।
***

कविता भेड़िया

एक रचना
*
तुम नहीं माने
घने जंगल काट डाले।
खोद दिए हैं पहाड़,
गुफाएँ दी हैं उजाड़,
धरती को कर दिया है नंगा
जंगलों में मजा दिया है दंगा।
प्रकृति से खिलवाड़
विकास की ले आड़।
अपनी समझ में
तुमने उसे मार डाला है।
अब वह
कहीं नहीं दिखता,
उसके भय से
आदमी नहीं छिपता।
लेकिन
तुम्हें नहीं पता,
कर चुके हो खता।
उसने नहीं किया माफ
पाते ही मैदान साफ
बदलकर अपना
डेरा और चोला
तुम्हीं में आ बसा है।
अनजाने-अनचाहे
अनदेखे-अनलेखे
तुम्हें अपनी गिरफ्त में कसा है।
वह धूर्त है,
निर्मम है।
हर्ष नहीं, मातम है।
खोजो,
कितना भी खोजो
यही कहोगे
वह कहीं दिखाई नहीं दिया
दिखाई देगा भी नहीं।
यह न सोचो कि नहीं है
वह रहता यहीं है
पर दिखता नहीं है
क्योंकि तुम्हीं में आ बसा है
जंगल का
खूँखार भेड़िया।
***

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

दोहा

दोहा
*
दो ने दो के साथ मिल, कर चारों को एक। 
सारी दुनिया से कहा, हम जैसे हो नेक।।


चित्र पर रचना

चित्र  पर रचना 


दोहे 
'नभ में घूमे मेघ बन, बरसे भू को सींच
पत्ती, कलियों, पुष्प को, ले बाँहों में भींच
*
पौधे-वृक्ष हरे रहें, प्यास बुझाएँ जीव 
'सलिल' धन्य हो कर सके, सकल सृष्टि संजीव
***

कार्यशाला: दोहा में यमक और श्लेष

कार्यशाला: 
दोहा में यमक और श्लेष 
*
नारी पाती दो जगत, जब हो कन्यादान 
पाती है वरदान वह, भले न हो वर-दान 
*

दोहा-यमक

गले मिले दोहा यमक 
*
दिल न मिलाये रह गए, मात्र मिलकर हाथ
दिल ने दिल के साथ रह, नहीं निभाया साथ
*
निर्जल रहने की व्यथा, जान सकेगा कौन?
चंद्र नयन-जल दे रहा, चंद्र देखता मौन
*
खोद-खोदकर थका जब, तब सच पाया जान
खो देगा ईमान जब, खोदेगा ईमान
*
कौन किसी का सगा है, सब मतलब के मीत
हार न चाहें- हार ही, पाते जब हो जीत
*
निकट न होकर निकट हैं, दूर न होकर दूर
चूर न मद से छोर हैं, सूर न हो हैं सूर
*
इस असार संसार में, खोज रहा है सार
तार जोड़ता बात का, डिजिटल युग बे-तार
*
५-२-२०१७

कार्यशाला: वचन दोष

कार्यशाला: वचन दोष 
उदाहरण:
नेता बोले भीड़ से,
तुम हो मेरे साथ।
हम यह वादा कर रहे,
रखें हाथ में हाथ।।
टीप- नेता एकवचन, बोले बहुवचन, भीड़ बहुवचन, तुम एकवचन, हम बहुवचन।

एक रचना राज को पाती

एक रचना 
राज को पाती: 
*
सारा भारत  एक हैं, राज कौन है गैर? 
महाराष्ट्र क्यों राष्ट्र की, नहीं चाहता खैर? 

कौन पराया तू बता?, और सगा है कौन? 
राज हुआ नाराज क्यों ख़ुद से?रह अब मौन. 

उत्तर-दक्षिण शीश-पग, पूरब-पश्चिम हाथ. 
ह्रदय मध्य में ले बसा, सब हों तेरे साथ. 

भारत माता कह रही, सबका बन तू मीत. 
तज कुरीत, सबको बना अपना, दिल ले जीत. 

सच्चा राजा वह करे जो हर दिल पर राज. 
‘सलिल’ तभी चरणों झुकें, उसके सारे ताज.
६.२.२०१० 
***

नवगीत: चले श्वास-चौसर...

चले श्वास-चौसर...
*
चले श्वास-चौसर पर...
आसों का शकुनी नित दाँव.
मौन रो रही कोयल,
कागा हँसकर बोले काँव...
*
संबंधों को अनुबंधों ने
बना दिया बाज़ार.
प्रतिबंधों के धंधों के
आगे दुनिया लाचार.
कामनाओं ने भावनाओं को
करा दिया नीलम.
बद को अच्छा माने दुनिया
कहे बुरा बदनाम.
ठंडक देती धूप
तप रही बेहद कबसे छाँव...
*
सद्भावों की सती नहीं है,
राजनीति रथ्या.
हरिश्चंद्र ने त्याग सत्य
चुन लिया असत मिथ्या.
सत्ता शूर्पनखा हित लड़ते.
हाय! लक्ष्मण-राम.
खुद अपने दुश्मन बन बैठे
कहें विधाता वाम.
भूखे मरने शहर जा रहे
नित ही अपने गाँव...
*
'सलिल' समय पर
न्याय न मिलता,
देर करे अंधेर.
मार-मारकर बाज खा रहे
कुर्सी बैठ बटेर.
बेच रहे निष्ठाएँ अपनी
पल में लेकर दाम.
और कह रहे हैं संसद में
'भला करेंगे राम.'
अपने हाथों तोड़-खोजते
कहाँ खो गया ठाँव?...
१.२.२०१०
********
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम