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रविवार, 30 मार्च 2014

kruti charcha: kumar gaurav ajitendu ke haiku -sanjiv

पुरोवाक:
सम्भावनाओं की आहट : कुमार गौरव अजितेंदु के हाइकु
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
विश्ववाणी हिंदी का छंदकोष  इतना समृद्ध और विविधतापूर्ण है कि अन्य कोई भी भाषा उससे होड़ नहीं ले सकती। देवभाषा संस्कृत से प्राप्त छांदस विरासत को हिंदी ने न केवल बचाया-बढ़ाया अपितु अन्य भाषाओँ को छंदों का उपहार (उर्दू को बहरें/रुक्न) दिया और अन्य भाषाओं से छंद ग्रहण कर (पंजाबी से माहिया, अवधी से कजरी, बुंदेली से राई-बम्बुलिया, अंग्रेजी से आद्याक्षरी छंद, सोनेट, जापानी से हाइकु, बांका, तांका, स्नैर्यू आदि) उन्हें भारतीयता के ढाँचे और हिंदी के साँचे ढालकर अपना लिया।

द्विपदिक (द्विपदी,  दोहा, रोला, सोरठा, दोसुखने आदि) तथा त्रिपदिक छंदों (कुकुभ, गायत्री, सलासी, माहिया, टप्पा, बंबुलियाँ आदि) की परंपरा संस्कृत व अन्य भारतीय भाषाओं में चिरकाल से रही है. एकाधिक  भाषाओँ के जानकार कवियों ने संस्कृत के साथ पाली, प्राकृत, अपभ्रंश तथा लोकभाषाओं में भी इन छंदों का प्रयोग किया। विदेशों से लघ्वाकारी काव्य विधाओं में ३ पंक्ति के छंद (हाइकु, वाका, तांका, सैंर्यु आदि) भारतीय भाषाओँ में विकसित हुए।

हिंदी में हाइकु का विकास स्वतंत्र वर्णिक छंद के साथ हाइकु-गीत, हाइकु-मुक्तिका, हाइकु खंड काव्य के रूप में भी हुआ है। वस्तुतः हाइकु ५-७-५ वर्णों नहीं, ध्वनि-घटकों (सिलेबल) से निर्मित है जिसे हिंदी भाषा में 'वर्ण' कहा जाता है।

कैनेथ यशुदा के अनुसार हाइकु का  विकासक्रम 'रेंगा' से 'हाइकाइ' फिर 'होक्कु' और आनर में 'हाइकु' है। भारत में कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपनी जापान यात्रा के पश्चात् 'जापान यात्री' में चोका, सदोका आदि शीर्षकों से जापानी छंदों के अनुवाद देकर वर्तमान 'हाइकु' के लिये  द्वार खोला। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् लौटे अमरीकियों-अंग्रेजों के साथ हाइकु का अंग्रेजीकरण हुआ। छंद-शिल्प की दृष्टि से हाइकु त्रिपदिक, ५-७-५ में १७ अक्षरीय वर्णिक छंद है। उसे जापानी छंद तांका / वाका की प्रथम ३ पंक्तियाँ भी कहा गया है। जापानी समीक्षक कोजी कावामोटो के अनुसार कथ्य की दृष्टि से तांका, वाका या रेंगा से उत्पन्न हाइकु 'वाका' (दरबारी काव्य) के रूढ़, कड़े तथा आम जन-भावनाओं से दूर विषय-चयन (ऋतु परिवर्तन,  प्रेम, शोक, यात्रा आदि से उपजा एकाकीपन), शब्द-साम्य को  महत्व दिये जाने तथा स्थानीय-देशज शब्दों का करने की प्रवृत्ति के विरोध में 'हाइकाइ' (हास्यपरक पद्य) के रूप में आरंभ हुआ जिसे बाशो ने गहनता, विस्तार व ऊँचाइयाँ हास्य कविता को 'सैंर्यु' नाम से पृथक पहचान दी। बाशो के अनुसार संसार का कोई भी विषय हाइकु का विषय हो सकता है।

शुद्ध हाइकु रच पाना हर कवि के वश की बात नहीं है। यह सूत्र काव्य की तरह कम शब्दों में अधिक अभिव्यक्त करने की काव्य-साधना है। ३ अन्य जापानी छंदों तांका (५-७-५-७-७), सेदोका (५-७-७ -५-७-७) तथा चोका (५-७, ५-७ पंक्तिसंख्या अनिश्चित) में भी ५-७-५ ध्वनिघटकों का संयोजन है किन्तु उनकी आकार में अंतर है।

छंद संवेदनाओं की प्रस्तुति का वाहक / माध्यम होता है। कवि को अपने वस्त्रों की तरह रचना के छंद-चयन की स्वतंत्रता होती है। हिंदी की छांदस विरासत को न केवल ग्रहण अपितु अधिक समृद्ध कर  रहे हस्ताक्षरों में से एक कुमार गौरव अजितेंदु के हाइकु इस त्रिपदिक छंद के ५-७-५  वर्णिक रूप की रुक्ष प्रस्तुति मात्र नहीं हैं, वे मूल जापानी छंद का हिन्दीकरण भी नहीं हैं, वे अपने परिवेश के प्रति सजग तरुण-कवि मन में उत्पन्न विचार तरंगों के आरोह-अवरोह की छंदानुशासन में बंधी-कसी प्रस्तुति हैं।

अजीतेंदु के हाइकु व्यक्ति, देश, समाज, काल के मध्य विचार-सेतु बनाते हैं। छंद की सीमा और कवि की अभिव्यक्ति-सामर्थ्य का ताल-मेल भावों और कथ्य के प्रस्तुतीकरण को सहज-सरस बनाता है। शिल्प की दृष्टि से अजीतेंदु ने ५-७-५ वर्णों का ढाँचा अपनाया है। जापानी में यह ढाँचा (फ्रेम) सामने तो है किन्तु अनिवार्य नहीं। बाशो ने २२ तथा १९, उनके शिष्य किकाकु ने २१, बुशोन ने २४ ध्वनि घटकों के हाइकु रचे हैं। जापानी भाषा पॉलीसिलेबिक है। इसकी दो ध्वनिमूलक लिपियाँ 'हीरागाना' तथा 'काताकाना' हैं। जापानी भाषा में चीनी भावाक्षरों का विशिष्ट अर्थ व महत्व है। हिंदी में हाइकु रचते समय हिंदी की भाषिक प्रकृति तथा शब्दों के भारतीय परिवेश में विशिष्ट अर्थ प्रयुक्त किये जाना सर्वथा उपयुक्त है। सामान्यतः ५-७-५ वर्ण-बंधन को मानने 

अजितेन्दु के हाइकु प्राकृतिक सुषमा और मानवीय ममता के मनोरम  चित्र प्रस्तुत करते हैं। इनमें सामयिक विसंगतियों के प्रति आक्रोश की अभिव्यक्ति है।ये पाठक को तृप्त न कर आगे पढ़ने की प्यास जगाते हैं। आप पायेंगे कि इन हाइकुओं में बहुत कुछ अनकहा है किन्तु जो-जितना कहा गया है वह अनकहे की ओर आपके चिंतन को ले जाता है। इनमें प्राकृतिक सौंदर्य- रात झरोखा / चंद्र खड़ा निहारे / तारों के दीप, पारिस्थितिक वैषम्य- जिम्मेदारियाँ / अपनी आकांक्षाएँ / कशमक, तरुणोचित आक्रोश- बन चुके हैं / दिल में जमे आँसू / खौलता लावा, कैशोर्य की जिज्ञासा- जीवन-अर्थ / साँस-साँस का प्रश्न / क्या दूँ जवाब, युवकोचित परिवर्तन की आकांक्षा- लगे जो प्यास / मांगो न कहीं पानी / खोद लो कुँआ, गौरैया जैसे निरीह प्राणी के प्रति संवेदना- विषैली हवा / मोबाइल टावर / गौरैया लुप्त, राष्ट्रीय एकता- गाँव अग्रज / शहर छोटे भाई / बेटे देश के, राजनीति के प्रति क्षोभ- गिद्धों ने माँगी / चूहों की स्वतंत्रता / खुद के लिए, आस्था के स्वर- धुंध छँटेगी / मौसम बदलेगा / भरोसा रखो, आत्म-निरीक्षण, आव्हान- उठा लो शस्त्र / धर्मयुद्ध प्रारंभ / है निर्णायक, पर्यावरण प्रदूषण- रोक लेता है / कारखाने का धुँआ / साँसों का रास्ता, विदेशी हस्तक्षेप - देसी चोले में / विदेशी षडयंत्र / घुसे निर्भीक, निर्दोष बचपन- सहेजे हुए / मेरे बचपन को / मेरा ये गाँव, विडम्बना- सूखा जो पेड़ /जड़ों की थी साजिश / पत्तों का दोष, मानवीय निष्ठुरता- कौओं से बचा / इंसानों ने उजाड़ा / मैना का नीड़ अर्थात जीवन के अधिकांश क्षेत्रों से जुड़ी अभिव्यक्तियाँ हैं।

अजितेन्दु के हाइकु भारतीय परिवेश और समाज की समस्याओं,  भावनाओं व चिंतन का प्रतिनिधित्व करते हैं. इनमें प्रयुक्त बिंब, प्रतीक और शब्द सामान्य जन के लिये सहज ग्रहणीय हैं। इन हाइकुओं के भाषा  सटीक-शुद्ध है। अजितेन्दु का यह प्रथम हाइकु संकलन उनके आगामी रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करता है।
____________________
 
कुमार गौरव अजितेंदु के हाइकु 
() दुर्गम पथ
   अनजान पथिक
   मन शंकित
() प्रकृति माता
    स्नेहमयी आँचल
   करे पालन
() साँस व्यथित
   धड़कनें क्रंदित
   हताश मन
() पंख हैं छोटे
   विराट आसमान
   पंछी बेबस
() मुक्त उड़ान
   बादलों का नगर
   दिल का ख्वाब
() स्वतंत्र छाया
   शक्तिशाली मुखौटा
   गंदा मजाक
() भागमभाग
   अंधी प्रतिस्पर्धाएँ
   टूटते ख्वाब
() विषैली हवा
    मोबाइल टावर
    गौरैया लुप्त
() अंधा सम्राट
   लिप्सा, महत्वाकांक्षा
   महाभारत
(१०) जीवन वृक्ष
    आजादी जड़, तना
    चेतना पत्ते
(११) जा रही ठंढ
    नाचता पतझड़
    आता बसंत
(१२) आपसी प्यार
    समर्पण, विश्वास
    घर की नींव
(१३) तृप्त हृदय
    खिलखिलाती साँसें
    जीवन सुख
(१४) हृदय विश्व
    मन अपना देश
    चुनना तुम्हें
(१५) रात झरोखा
    चंद्र खड़ा निहारे
    तारों के दीप
(१६) मैना के किस्से
    डाल-डाल की बातें
    तोते से पूछो
(१७) काँटों का शह्र
    गुलाबों के महल
    कैसा रहस्य
(१८) तुष्टिकरण
    छद्मनिरपेक्षता
    सर्वनाशक
(१९) घाती घर में
    बेटों रहो सतर्क
    राष्ट्र का प्रश्न
(२०) फैली दिव्यता
    हटे तम के तंबू
   हुआ सवेरा
(२१) जिम्मेदारियाँ
    अपनी आकांक्षाएँ
    कशमकश
(२२) नहीं अभाव
    वितरण का खोट
    जन्मा आक्रोश
(२३) सीधा सादा
    "तेज" हो गया ज्यादा
    आम आदमी
(२४) खोखलापन
    भ्रामक आवरण
    सर्वसुलभ
(२५) खुद में खोट
    राजनेता को दोष
    पुराना ट्रेंड
(२६) पन्ने पुराने
    यादों के खंडहर
    पड़े अकेले
(२७) साँसों की भाषा
    धड़कनों की बातें
    पिया ही बूझे
(२८) मन की पीर
    उफनते जज्बात
    गीत के बोल
(२९) काँटों से तीक्ष्ण
    जलाते पल-पल
    अधूरे ख्वाब
(३०) तन्हाई दर्द
    तन्हाई ही ढाढस
    तन्हा जिंदगी
(३१) वक्त मदारी
    जीवन बंदरिया
    सत्य तो यही
(३२) पथिक अंधा
    अनजान सड़क
   बुरा है अंत
(३३) मन-पखेरू
    व्यग्रता बने पंख
    उड़ा जा रहा
(३४) दर्द के तूफाँ
    निराशा का भँवर
    माँझी कहाँ हो
(३५) पानी ही पानी
    तिनका तक नहीं
    डूब जाऊँगा
(३६) मीत मिलेगा
    कब फूल खिलेगा
    पूछे पुरवा
(३७) जीवन-अर्थ
    साँस-साँस का प्रश्न
    क्या दूँ जवाब?
(३८) हारा हृदय
    दिवास्वप्न व्यसन
    चुभते पल
(३९) तम के जाले
    अनिश्चिय की धूल
    ढँकी चेतना
(४०) धुंध छँटेगी
    मौसम बदलेगा
    भरोसा रखो
(४१) हवा है मीत
    नाचता संग-संग
    बूढ़ा पीपल
(४२) निकला चाँद
    विरहन देखती
    मिला सहारा
(४३) एक शिखर
    दूसरा तलहटी
    मिलन कैसा
(४४) हंसों का जोड़ा
    प्रेम का साक्षी चाँद
    झील बिछौना
(४५) हो गयी रात
    बल्ब जले तारों के
    मस्ती में चाँद
(४६) खुद को कोसे
    निहारे आसमान
    ताड़ अकेला
(४७) नभ दे वर
    हरियाली दुलारे
    वन्य जीवन
(४८) आस के मोती
    धड़कनों की डोर
    जीवनमाला
(४९) तारों की टोली
    चंद्रमा का अँगना
    निशा का गाँव
(५० ) चेतना-वृक्ष
    भावनाओं की डालें
    काव्य ही फल
(५१)
बुलाते कर्म
रोके अकर्मण्यता
मन की स्थिति

(५२)
विषैली गैसें
नाभिकीय कचरे
रोती प्रकृति

(५३)
नभ की पीड़ा
पवन की उदासी
दिल जलाती

(५४)
मेघों को दिया
समंदरों में बाँटा
बचे ही आँसू

(५५)
जीवन युद्ध
जिजीविषा ही शस्त्र
धर्म कवच

(५६)
झुग्गी में कार
याचक बने राजा
आया चुनाव

(५७)
नंगे से नृत्य
सट्टेबाजी, फरेब
कैसा ये खेल

(५८)
दिल ने लिखी
नयनों ने सुनाई
वो पाती तुम्हें

(५९)
मेघा भी रोये
मयूरों ने मनाया
माने मेघ

(६०)
धरती फटी
बादल रहे रूठे
दुखी किसान

(६१)
भोर रिझाती
शाम दिल चुराती
मेघों के देश

(६२)
तोड़े बंधन
पा लिया आसमान
जन्म सफल

(६३)
त्यागो संशय
छानो गहराईयाँ
मोती मिलेंगे

(६४)
कँटीली झाड़
दकियानूसी रीति
हटाने योग्य

(६५)
सुअवसर
दुष्टों का नाश करो
युद्ध टालो

(६६)
अति उदार
अप्रत्यक्ष अधर्मी
साक्षी अतीत

(६७)
शाम दीवानी
सजी हैं महफिलें
हम अकेले

(६८)
रात अंधेरी
निशाचरों की बेला
भोर हो जल्दी

(६९)
बिम्ब ही मोती
अलंकार नगीने
हाइकुमाला

(७०)
कोयल मौन
उपवन उदास
कैसा बसंत

(७१)
थोथी अहिंसा
रीढ़हीन सिद्धांत
आत्मघातक

(७२)
आत्महीनता
मजनुइया इश्क
कुंठाजनक

(७३)
स्नेह का लेप
उत्तम उपचार
भरता घाव

(७४)
कच्चे जज्बात
फकत मौजमस्ती
प्यार का नाम

(७५)
वासना जन्मी
प्यार ने कहा विदा
होंगे कुकर्म

(७६)
श्वेत वो मूर्ति
कोयला है पड़ोसी
दाग का डर

(७७)
उठा लो शस्त्र
धर्मयुद्ध प्रारंभ
है निर्णायक

(७८)
कौओं की एका
चींटी की उदारता
सीख मानव

(७९)
एक ही धातु
कोई गढ़े बर्तन
कोई कटार

(८०)
मायावीलोक
आहट से समझो
नैनों को पढ़ो

(८१)
मृत्यु का लोक
जीवन को ढूँढता
तन नादान

(८२)
देखा मंजर
विस्फोट, आग, धुँआ
उबला रक्त

(८३)
चूड़ी-कंगना
बिंदिया, वो सिन्दूर
बने "लो क्लास"

(८४)
उड़े-उड़े से
चेहरा ज्यों छिपाते
वफा के रंग

(८५)
आस रखो
आरोप लगाओ
वो आश्रित है

(८६)
दुर्भाग्यशाली
अंग-अंग गुलाम
कठपुतली

(८७)
खिली वादियाँ
महकता चमन
वफा तुम्हारी

(८८)
नभ तो भ्रम
धरती ही प्रणम्य
आश्रयदाता

(८९)
जड़ों से प्यार
नभ करे सलाम
धरतीपुत्र

(९०)
प्रचंड तेज
हम हैं सनातनी
गर्व है हमें

(९१)
बूँदों का चित्र
सूरज भरे रंग
इन्द्रधनुष

(९२)
मेघों का नीर
धरा की अमानत
कहता नभ

(९३)
रंग उड़ातीं
ज्यों पुष्पों को चिढ़ाती
ये तितलियाँ

(९४)
भौंरों से खेला
गाल गोरी के चूमे
पुष्प वो सूखा

(९५)
चुभते ख्वाब
सागर को तरसे
ताल की मीन

(९६)
धुँए से लोग
साथ कष्टदायक
दम घुटता

(९७)
कुत्ते दहाड़े
नाचा खुद मदारी
वक्त का खेल

(९८)
विज्ञानी शत्रु
यांत्रिक शर-शूल
बिंधा ओजोन

(९९)
प्राप्त को खोना
अप्राप्य की लालसा
मानववृत्ति

(१००)
भ्रम के धब्बे
गगन की कालिख
भोर ने धोयी

हाइकु

(१०१)
कहीं तेजाबी
कहीं सुहानी वर्षा
आँसू उसके

(१०२)
वो टूटा पत्ता
हवा जिधर फेंके
मजबूर है

(१०३)
दीये बुझाता
होगा तम का ग्रास
सर्वप्रथम

(१०४)
काँटे न व्यर्थ
रक्षक हैं पौधे के
पुष्प बताते

(१०५)
बया का नीड़
हवाएं दुलारती
झूला झुलातीं

(१०६)
वो गजराज
तुम एक श्रृंगाल
लड़ोगे कैसे

(१०७)
लगा ठहाके
हवा-रथ पे बैठे
आये बादल

(१०८)
ठंढ की डिब्बी
सुगंधों की थैलियाँ
हवा ने खोली

(१०९)
जेठ न माना
आषाढ़ हारा लौटा
सावन आया

(११०)
दीप बेबस
डाले न कोई तेल
तम प्रसन्न

(१११)
ढंग सुधारो
अपने को सँवारो
शीशे न तोड़ो

(११२)
ठंढी है रात
मेघ-रजाई ओढ़े
सोया है चाँद

(११३)
परिपक्व सी
भौंरों को तरसतीं
कच्ची कलियाँ

(११४)
भौंरों की प्यास
कलियों का यौवन
लगेगी आग

(११५)
दिखा चमन
तितलियाँ बौरायीं
पी ली ज्यों भंग

(११६)
चींटियाँ आतीं
मक्खियाँ मँडरातीं
गुड़ है कहीं

(११७)
बाग ही ढूँढें
मरुथल से भागें
मेघों की बूँदें

(११८)
बन्धों में बँधी
दायरों में सिमटी
जनचेतना

(११९)
नक्सलवाद
आतंक की तपिश
राष्ट्रीय शर्म

(१२०)
उच्छृंखलता
आजादी की उड़ान
भिन्न हैं दोनों

(१२१)
दुष्ट पड़ोसी
जानता कमजोरी
हावी है तभी

(१२२)
रोना न कभी
हँसेंगे सब शत्रु
प्रसन्न रहो

(१२३)
बूँदों के मोती
मखमली हवाएं
वर्षा है रानी

(१२४)
कोहरा ओढ़े
सिहरन लुटाती
आयी है ठंढ

(१२५)
माली का ख्वाब
भौंरों का भोग मात्र
नन्हीं वो कली

(१२६)
हाय! दुर्भाग्य
पँखुड़ियाँ लड़तीं
फूल बेहाल

(१२७)
लगी नजर
बिखरा उपवन
सजे गमले

(१२८)
चैन की छाँव
साझा होते तजुर्बे
साँझ की बेला

(१२९)
जाने क्या बोले
बावरा सा घूमता
मन पपीहा

(१३०)
लम्बी सी रातें
बारहमासी धुंध
पीर का देश

(१३१)
हवा भुलाती
पानी याद दिलाता
धूल को सत्य

(१३२)
कीच को देखा
भरमाया नादान
नीर को त्यागा

(१३३)
कसमें भूले
प्रेम-डाल से उड़े
वफा के पंछी

(१३४)
छीनी खुशियाँ
बर्बाद कर गया
हमराज था

(१३५)
डर का साथ
नादानियों का दाग
छूट न पाया

(१३६)
ईंटों की भठ्ठी
मकान बनवाती
साँसों को खाती

(१३७)
यश लुटाते
बदनामियाँ लाते
पूत या मूत

(१३८)
साँझ को ओढ़े
सितारे बिखराती
आ रही रात

(१३९)
हर्ष मनाओ
घना हुआ अंधेरा
होगी सुबह

(१४०)
हो पड़ताल
मामला है गंभीर
काँपी क्यों मैना

(१४१)
फूटी कोपलें
बंजरता परास्त
जीती लगन

(१४२)
खूं की रवानी
जीवन की कहानी
बोल पिया के

(१४३)
नुचती लाश
बदनाम क्यों गिद्ध
दोषी इंसान

(१४४)
कौओं से बचा
इंसानों ने उजाड़ा
मैना का नीड़

(१४५)
यही संसार
रीतियाँ बदलतीं
स्वीकार करो

(१४६)
बर्फ न व्यर्थ
पानी भी अनिवार्य
भाप जरूरी

(१४७)
नमी, शुष्कता
सूक्ष्मता, विशालता
जग अचंभा

(१४८)
लगा मुखौटा
रंगीन कपड़ों में
आई कालिख

(१४९)
आँधी से डरे
लगे खूब चिल्लाने
सारे ही पेड़

(१५०)
हवा ने डाँटा
लहरों ने भी मारा
रो पड़ा देश

(१५१)
हाथ न आते
झट से उड़ जाते
वक्त के पंछी

(१५२)
ग़ज़लें लिखूँ
यादों में पनाह दूँ
लायक न तू

(१५३)
तुमने तोड़ी
हमने कहाँ छोड़ी
रिश्तों की डोर

(१५४)
है मरुस्थल
न दिखा उसे बाग
और रोएगा

(१५५)
काव्य चुराते
व्यर्थ प्रशंसा पाते
फेसबुकिये

(१५६)
हड़बड़ाते
ज्यों दफ्तर को जाते
भोर में पंछी

(१५७)
ताल-तलैया
पंछियों को बुलाते
हाल सुनाते

(१५८)
बाग दुल्हन
धार पुष्पाभूषण
इठला रही

(१५९)
बड़ा ही जिद्दी
चंचल, शरारती
मन बालक

(१६०)
वृक्षों का धन
पतझड़ ले जाता
बसंत लाता

(१६१)
नभ हर्षाया
मेघ-मल्हार गाया
नाचे विटप

(१६२)
तम है तो क्या
होना ही है उजाला
कहते तारे

(१६३)
नन्हें सितारे
झंडाबरदार हैं
उजियारों के

(१६४)
निशा नगर
चंद्रमा महाराजा
सितारे प्रजा

(१६५)
फूलों ने लाँघी
चमन की मर्यादा
कुचले गये

(१६६)
मन की हूक
हृदय की कसक
काव्य के शब्द

(१६७)
धरा की पीर
गगन ने दिखायी
रो पड़े मेघ

(१६८)
मानवी भूलें
क्रुद्ध हुआ सागर
आई सुनामी

(१६९)
दिल में धँसे
अपराधों के बोध
टीस मारते

(१७०)
काटो न पंख
पंछियों का जीवन
नभ की सैर

(१७१)
दिल सराय
आतीं तेरी यादें
रुकने यहाँ

(१७२)
आये भुजंग
डसे जाएंगे सारे
लापरवाह

(१७३)
ढूँढते कहाँ
बेईमानों से सीखो
ईमानदारी

(१७४)
होश ले जाती
तेरे गालों से आती
गंध गुलाबी

(१७५)
चहके पत्ते
लगा झूमने पेड़
बोले जो पंछी

(१७६)
गाँव बेचारे
शहरों के नौकर
धोते जूठन

(१७७)
भटकी कली
काँटों से घुली-मिली
चुभने लगी

(१७८)
झील उद्यान
भ्रमण को निकले
हंस कुँवर

(१७९)
जामुनी किला
पहरे को मुस्तैद
तोतों की सेना

(१८०)
पड़ी आँखों में
दुनियादारी धूल
निकले आँसू

(१८१)
मिला जो पानी
लहलहाता गया
ख्वाबों का खेत

(१८२)
पानी की बूँद
दो सीपी का पालना
बने वो मोती

(१८३)
कलियाँ गुँथीं
बिगड़ गई माला
आई न काम

(१८४)
कल्पनालोक
इच्छाओं का महल
नन्हें निवासी

(१८५)
हुई सुबह
जागे जूही, गुलाब
ली अँगड़ाई

(१८६)
गेंदा, चमेली
ठंढ से ठिठुरते
धूप चाहते

(१८७)
धूप ने छुआ
ताजा हुआ मौसम
भागी उबन

(१८८)
उदास पुष्प
धूप का दुलार पा
हँसने लगे

(१८९)
रास्ते में छोड़ा
तेरी यादों का बक्सा
बढ़ी रफ्तार

(१९०)
भौंरों के यान
बागों पे मँडराते
शोर मचाते

(१९१)
भरे नभ में
स्थान को तरसता
जीवनतारा

(१९२)
जीवन-भूसा
गुम हो गई जहाँ
चैन की सुई

(१९३)
जीवन दौड़
बन पसीना चैन
बहा जा रहा

(१९४)
जीवनपाखी
पंख न उग रहे
चिंतित बड़ी

(१९५)
बीज उदास
मिल न रही भूमि
अंकुरे कहाँ

(१९६)
सूखा गुलाब
अतीत के पन्नों में
तेरी यादों का

(१९७)
ऊँचे पर्वत
ओढ़ हिम कंबल
धूप सेंकते

(१९८)
हर दाम का
बाजार में जमीर
जैसा चाहो लो

(१९९)
स्वप्न पराया
नयनों में बसाया
छिनना ही था

(२००)
फूल हैं खिले
गूँथ लो जल्दी माला
सूख न जाएं


(२०१)
साँसें गगन
टिमटिमाते जहाँ
आस के तारे

(२०२)
ऊँचे वो चढ़ा
दिखेगा ही उसको
निचला छोटा

(२०३)
तस्वीर तेरी
यादों का दलदल
लगे डुबोने

(२०४)
तेरी छुअन
छुपा रखी है मैंने
धड़कनों में

(२०५)
यादे-बेवफा
बेपतवार कश्ती
चढ़ो न कोई

(२०६)
नया जमाना
पीछे भागती शमा
परवानों के

(२०७)
नन्हें व्यापारी
डालोंपर लगाते
मधु की फैक्ट्री

(२०८)
भू का टुकड़ा
फूलों से कहलाता
चमन न्यारा

(२०९)
कर्म औजार
स्वप्नों के राजमिस्त्री
गढ़ें यथार्थ

(२१०)
यूँ तो न भाता
मर्यादा हो तोड़नी
पर्दा सुहाता

(२११)
पुष्प जीवन
देवों को हो अर्पित
तभी सार्थक

(२१२)
मधु से आई
माटी की ही सुगंध
ये हैं संस्कार

(२१३)
सड़ रहा है
भोगवादिताओं में
रिश्तों का शव

(२१४)
शैया पे आते
चुग लेती है होश
थकान-पाखी

(२१५)
चिंतित हो क्यों
रोक न पाते काँटे
फूलों की गंध

(२१६)
नैन-भ्रमर
चूसते मकरंद
रूप-पुष्प का

(२१७)
नयन-ताल
कभी नहीं बुझाते
प्यास पंछी की

(२१८)
था गृहयुद्ध
दीवारें उठा बची
प्रेम की जान

(२१९)
नन्हीं कलियाँ
धूल में सन खोतीं
निज सुगंध

(२२०)
फूलों का रूप
रहा उनका शत्रु
तुड़वा डाले

(२२१)
फूलों के हिये
भ्रमरों का गुंजन
प्रीत जगाता

(२२२)
सुध-बुध खो
लहरों की ताल पे
नाचतीं मीनें

(२२३)
प्रेम-अगन
फूँक डाले पल में
दहेज-झाड़

(२२४)
प्यार-पतंग
वफा-डोर से बंधी
छूती आसमां

(२२५)
प्यार को खाती
बेवफाई की घुन
करे खोखला

(२२६)
जो भी है गिरा
अश्कों के तालाब में
डूबा निश्चित

(२२७)
हीनभावना
दानवी भयंकर
खाती विश्वास

(२२८)
तारों से भरा
नभ का कोषागार
दिखाती रात

(२२९)

चाँदी के सिक्के
रात रोज लुटाती
खिलखिलाती

(२३०)
फूल पूछते
खुशबुओं का पता
क्या विडंबना

(२३१)
गिद्धों ने माँगी
चूहों की स्वतंत्रता
खुद के लिए

(२३२)
चील चतुर
सबको भरमाते
ढँको न मांस

(२३३)
चोरों की चाल
कहते नया दौर
खोलो किवाड़

(२३४)
फैली अंधता
भेड़ियों को समझा
भेड़ों ने मीत

(२३५)
तय अंजाम
बहला ले गयी है
मुर्गे को बिल्ली

(२३६)
सारे जग को
थमा देती है भोर
कार्यों की सूची

(२३७)
भ्रम है भीड़
होता इंसान तन्हा
हर जगह

(२३८)
भौंरों से डरी
पत्तियों में जा छिपी
कली नवेली

(२३९)
भौंरों को न दो
मधुमक्खी को मिले
फूलों का रस

(२४०)
फैला तू कीच
कमल खिलाऊँगा
मैं वहीं-वहीं

(२४१)
ख्वाबों में डूबी
हकीकत की कश्ती
उसे निकालो

(२४२)
लाज ने तोड़ी
कब हुस्न से दोस्ती
पता न चला

(२४३)
घिसा न करो
अतीत के चिराग
जिन्न आते हैं

(२४४)
साँसों में लेता
यदि धुँआ न होता
तेरा वजूद

(२४५)
तू टूटा शीशा
देखना भी तुझको
अपशकुन

(२४६)
दीये न जला
तम को लाया जब
साथ शौक से

(२४७)
भटके पुष्प
मान बैठे मंजिल
भ्रमरों को ही

(२४८)
सुनो शिखरों
खड़े हो तुम सभी
जमींपर ही

(२४९)
कहाँ को चली
चींटियों की बारात
बिना दूल्हे के

(२५०)
फूलों के ताने
सुन-सुन के काँटे
हो जाते बागी

(२५१)
टूट न सका
हवाओं के झिंझोड़े
वृक्ष का तप

(२५२)
पुष्प संयंत्र
हवाएं वितरक
सुगंध माल

(२५३)
दाग पे प्रश्न
कालिख ने उठाये
उत्तर क्यों दूँ

(२५४)
वफा-प्रहरी
करते हिफाजत
प्यार-किले की

(२५५)
वफा ही जड़
कटते सूख जाता
प्यार का पेड़

(२५६)
प्रेम-जहाज
हुआ तूफान पार
वफा थी माँझी

(२५७)
जग का हाल
तितलियों से जान
मुस्काये फूल

(२५८)
तितलीरानी
बना रहा बगीचा
आना जरूर

(२५९)
मौन ने थामा
जुबानी चक्रवात
टली तबाही

(२६०)
है मुक्ताकाश
भर लो दामन में
ऊँचाईयों को

(२६१)
नैनों ने खींचा
हृदय को दिखाया
जग का चित्र

(२६२)
गूंगे नयन
बनते हैं सहारा
अंधी जुबां का

(२६३)
क्रोध कुरेदे
जुबां से लगे घाव
करे नासूर

(२६४)
गिरा जमीं पे
खा रहा है ठोकरें
टूटा शिखर

(२६५)
यादें तुम्हारी
खींचती बार-बार
आज से दूर

(२६६)
हवा सी बही
तेरी वो मोहब्बत
हाथ न आई

(२६७)
एक नमक
कहीं बने जिन्दगी
कहीं पे मौत

(२६८)
जीत की हवा
पल में हटा देती
वादों का धुँआ

(२६९)
डरे हैं पशु
जंगल में आये थे
कुछ इंसान

(२७०)
शंकित मैना
इंसानों ने डाला है
खाने को दाना

(२७१)
रोती चिड़िया
छूना था आसमान
मिला पिंजरा

(२७२)
हाट में सजी
पिंजरों की बंधक
ऊँची उड़ानें

(२७३)
यादों का मेला
घूमने गया मन
गुम हो गया

(२७४)
लोहा हो तुम
रक्षक हो सोने के
कुंठा न पालो

(२७५)
पेड़ सुनाते
किस्से बड़े निराले
सुने तो कोई

(२७६)
पूर्णमासी ने
पेड़ोंपर चढ़ाया
चाँदी का पानी

(२७७)
अरसे बाद
बरसे सुख-मेघ
ओढूँ क्यों छाता

(२७८)
दिखी चिरैया
आसपास ही होगी
जीवन-नदी

(२७९)
आओ करीब
क्यों बैठी दूर-दूर
मेरी खुशियों

(२८०)
थमा तूफान
निकल पड़ी मैना
चुगने दाना

(२८१)
दाग न बनो
पोंछ दिए जाओगे
सभी स्थानों से

(२८२)
सुख बरसा
पल में धुल गई
दुखों की धूल

(२८३)
फिजां चुनावी
खिलाती जीभर के
वादों के फूल

(२८४)
पकड़े गये
करते कई लोग
मौसमी इश्क

(२८५)
न आतीं कभी
खुद्दार बुराईयाँ
बिना बुलाये

(२८६)
स्वप्न कोमल
कहाँ रखूँ इनको
टूटें न कभी

(२८७)
आस की बूँद
जतन से है पाई
रखूँ छिपा के

(२८८)
"अबला" शब्द
सच ढँकनेवाला
पर्दा न बने

(२८९)
था समझौता
टूटा तो मिल गया
नाम लूट का

(२९०)
स्वप्न थे ऊँचे
इज्जत लगी बोझ
उतार फेंकी

(२९१)
देखते उसे
अतीत के कोने में
जा गिरा मन

(२९२)
तेरा असर
टकराये तट से
जैसे लहर

(२९३)
चुन-चुनके
दिल से मिटा दिए
तेरे निशान

(२९४)
लगे जो प्यास
मांगो न कहीं पानी
खोद लो कुँआ

(२९५)
मचल रहीं
साँसों की ये लहरें
चाँद छूने को

(२९६)
सह-सहके
पाषाण होने लगा
जैसे हृदय

(२९७)
लगता जैसे
रच-बस सा गया
शोर में मौन

(२९८)
यादें पुरानी
मन-डिब्बे में सडीं
जहर बनीं

(२९९)
मन ने मेरे
तस्वीरें वो तुम्हारी
फाड़ी कबके

(३००)
त्याग संशय
खोट नहीं तुझमें
शीशा ही झूठा

(३०१)
असहनीय
हृदय को चीरता
मौन का शोर

(३०२)
रख न पाती
शरीरों की दूरियाँ
दिलों को दूर

(३०३)
फिजां ने जोड़ी
पंछियों ने तोड़ दी
ख्यालों की डोर

(३०४)
नैनों का क्या है
सभी को बिठा लेते
पलकों तले

(३०५)
भाव हों सच्चे
पत्र हों या ई-मेल
लगते अच्छे

(३०६)
टिकने न दे
चंचलता की काई
प्रेम को कभी

(३०७)
छू नहीं पाया
वफा की गहराई
प्यार तुम्हारा

(३०८)
लगे लड़ने
सुगंध और रंग
फूल हैरान

(३०९)
तीक्ष्ण तमन्ना
काट देगी निश्चित
सिर हदों का

(३१०)
अश्कों के मोती
बेवफा की झोली में
भूले न डालो

(३११)
आँखों के लिए
बेवफा की झलक
एक चुभन

(३१२)
गर्मी में जली
रोयी स्वेद के आँसू
मानव देह

(३१३)
तेरे नैनों में
बसा हुआ है मेरा
जीवन-गाँव

(३१४)
दुखी हृदय
करने जाता स्नान
अश्रुताल में

(३१५)
डूब अश्कों में
सड़ जाते हैं सारे
ख्वाबों के बीज

(३१६)
मन-सागर
मचले बार-बार
छूने को चाँद

(३१७)
यादों के दीये
अतीत के घरों में
सजे हुए हैं

(३१८)
तेरी ही बातें
करता है अतीत
तन्हाईयों में

(३१९)
बीज अभागा
मिली न जिसे भूमि
प्यार हमारा

(३२०)
क्यों हो उदास
पाते नहीं चकोर
चाँद का साथ

(३२१)
जा नहीं पाता
समंदर बेचारा
चाँद के गाँव

(३२२)
हंसों के लिए
झील में हर रात
आता है चाँद

(३२३)
घटे जंगल
बढ़ता चला गया
जंगलीपन

(३२४)
हँसी तुम्हारी
दिल में बना देती
खुशी के किले

(३२५)
रात जलाती
नींद की मुंडेर पे
ख्वाबों के दीये

(३२६)
यादों के फूल
आसपास उड़ता
मन-भ्रमर

(३२७)
हाल बताते
तेरे नैन-दर्पण
मेरी प्रीत का

(३२८)
प्यार ये मेरा
तेरे नैनों में रोज
देखे खुद को

(३२९)
मन की गाय
यादों के खूँटे बंधी
करे जुगाली

(३३०)
मन-बालक
मचाये दिनभर
उछल-कूद

(३३१)
मन-पथिक
घूम आता है रोज
सारी दुनिया

(३३२)
मन-चादर
टँकते हरदिन
यादों के मोती

(३३३)
मन लिखता
दिल की डायरी में
अनुभूतियाँ

(३३४)
नैन छापते
दिल की पांडुलिपि
भाव-स्याही से

(३३५)
धूप के तीर
चीर देते हैं सदा
धुंध का सीना

(३३६)
नन्हीं कलियाँ
सीखतीं रंग-ढंग
संगी पुष्पों से

(३३७)
कहे तुम्हारे
शब्द वो अनकहे
सुने हैं मैंने

(३३८)
नींद लिखती
ख्वाबों की पटकथा
बैठ रात को

(३३९)
दीन मनुष्य
साँसभर हवा भी
पेड़ों से माँगे

(३४०)
शुद्धताओं को
अशुद्धि में बदलें
इंसानी साँसें

(३४१)
कैसा समय
रंगरेजों से पड़ा
फूलों को काम

(३४२)
बाग के पेड़
चुकाते हैं किराया
फल देकर

(३४३)
आम के पेड़
लगाते गर्मियों में
मीठा सा इत्र

(३४४)
देख अंधेरा
चौकन्ना हो गया है
वातावरण

(३४५)
रूप से तेरे
श्रृंगार करते हैं
नित्य श्रृंगार

(३४६)
चिड़िया लाई
कोई खुशखबरी
गा उठा पेड़

(३४७)
फँसा लेते हैं
आजकल के पंछी
सैयाद को ही

(३४८)
पूछे तोते से
नन्हीं गिलहरियाँ
मैं कैसे उड़ूँ

(३४९)
बड़ा चिढ़ातीं
एक-दूजे को रोज
मैना व मीन

(३५०)
उगे ज्यों पंख
कहने लगी पाखी
पेड़ को कैद

(३५१)
सैन्य बलों सा
शहर में तैनात
घना कोहरा

(३५२)
कैद हैं मानों
कोहरे के किले में
तपती साँसें

(३५३)
देते चुनौती
कोहरे की सत्ता को
बागी अलाव

(३५४)
सेहत-धन
चुराने की ताक में
चोर कोहरा

(३५५)
घरों में लोग
कोहरे ने बुलाया
बंद जो आज

(३५६)
आई बिटिया
ससुराल के नये
ढंगों में ढँकी

(३५७)
बेटी को देख
बिटिया को आता है
मायका याद

(३५८)
ले जाती बेटी
यादों की गठरियाँ
ससुराल में

(३५९)
ऐसे भी सोचो
दो घरों की लाडली
होगी बिटिया

(३६०)
ऐसी दो सीख
ससुराल में बेटी
बने दुलारी

(३६१)
सुनो रे माली
गुँथना भी सिखाओ
फूलों को कभी

(३६२)
बना सकता
ढलने का गुण ही
सर्वस्वीकार्य

(३६३)
ये लव-मेल्स
हैं उत्तराधिकारी
प्रेम-पत्रों के

(३६४)
प्रेम-परिन्दे
फेसबुक-पेड़ पे
पाते आराम

(३६५)
अंकुरा रहे
फेसबुक के खेत
प्रेम के बीज

(३६६)
वाहन बन
दौड़ रहा है शोर
सड़कोंपर

(३६७)
बढ़ी आबादी
एक-दूसरेपर
बैठे हैं लोग

(३६८)
सिमट रहा
सुकून का दायरा
बढ़ी बेचैनी

(३६९)
शोर-शिकारी
मार देते पल में
चैन-मैना को

(३७०)
रोक लेता है
कारखाने का धुँआ
साँसों का रास्ता

(३७१)
दानव धुँआ
करता अट्टाहास
सहमी साँसें

(३७२)
एक पहलू
बेतहाशा गति का
भटकाव भी

(३७३)
लापरवाही
सड़कों पे खोदती
मौत के कुएँ

(३७४)
माँगों को ले के
हड़ताल पे गयी
विधि-व्यवस्था

(३७५)
तेरी मिठास
रहे गुण ही तेरा
बने न बंध

(३७६)
ढूँढता फिरे
शहरों में आकर
पानी खुदको

(३७७)
बिक रही है
पानी का रूप ले के
इंसानी प्यास

(३७८)
पानी की कमी
टैंकर जमाखोर
काटते चाँदी

(३७९)
प्यास के मारे
हलकान शहर
पीता जहर

(३८०)
केरोसिन सा
बेच रहे हैं पानी
महानगर

(३८१)
गाँवों का चैन
छीनकर शहर
खुश हैं बड़े

(३८२)
गाँव-शहर
होते रहे पूरक
एक-दूजे के

(३८३)
गाँव अग्रज
शहर छोटे भाई
बेटे देश के

(३८४)
गाँवों को देते
शहरी वातायन
ताजी हवाएं

(३८५)
आते शहर
गाँवों में अक्सर ही
छुट्टी मनाने

(३८६)
बात-बेबात
भूखा रख सताती
दुष्ट गरीबी

(३८७)
खाती न कभी
बच्चों पे भी तरस
ये निर्धनता

(३८८)
जला देती है
निर्धनता की भठ्ठी
सारी इच्छाएं

(३८९)
गुणों को ढाँपे
गरीबी की चादर
दे गुमनामी

(३९०)
जहाँ गरीबी
मौसम कष्टमय
सारे वहाँ के

(३९१)
हीरा ही है वो
उपेक्षा मत करो
तराशो उसे

(३९२)
सोचो तो जरा
जो न होती दीवार
होता संग्राम

(३९३)
डूब नशे में
नाली में गिरी आस
रो रही साँसें

(३९४)
गिरी तन से
पत्तियों की चादर
ठिठुरा पेड़

(३९५)
भटकी पुनः
बुरी संगत पा के
एक उम्मीद

(३९६)
सूखा जो पेड़
जड़ों की थी साजिश
पत्तों का दोष

(३९७)
तू है पतंग
उड़ नहीं सकती
इच्छानुसार

(३९८)
कटी पतंग
रोती नसीबपर
लुटने गिरी

(३९९)
कर चित्कार
वहशी चंगुल में
मरी पतंग

(४००)
मस्ती में चूर
परिन्दों को चिढ़ाती
उड़ी पतंग

हाइकुकार - कुमार गौरव अजीतेन्दु

(४०१)
होतीं न जुदा
साँस व धड़कन
पक्की सखियाँ

(४०२)
दिल किले का
दिमाग द्वारपाल
करे सुरक्षा

(४०३)
संवेदनाएं
साँसें हैं हृदय की
रोको न इन्हें

(४०४)
दिल गवैया
धड़कनें हैं गीत
जीवन श्रोता

(४०५)
दिल गिटार
छेड़ता रहता है
जीवन धुन

(४०६)
देह-ईंजन
दिल मजदूर सा
झोंके ईंधन

(४०७)
खोलता नहीं
झूठे प्यार के लिए
दिल किवाड़

(४०८)
माँगते सदा
नयन भाव सारे
दिल से ही तो

(४०९)
जमा होते हैं
अनुभवों के मोती
दिल-कोष में

(४१०)
दिल-कलश
रहे जहाँ संचित
जीवनरस

(४११)
समूह में भी
"मैं" का ही एहसास
ले रहा साँसें

(४१२)
कायम यहाँ
अस्तित्व अमीरी का
गरीबी से ही

(४१३)
रोते मन को
तन्हाईयों की हँसी
लगती प्यारी

(४१४)
मुस्कुराहट
किसी भी चेहरे का
सच्चा श्रृंगार

(४१५)
वक्त उगाता
नयी-नयी डालियाँ
मन-वृक्ष पे

(४१६)
नयी पीढ़ियाँ
पुरानी गलतियाँ
कब तलक

(४१७)
झील हंसों की
जमा रहे हैं कब्जा
बगुले कई

(४१८)
रुष्ट पुष्पों ने
किया है समझौता
शोलों के साथ

(४१९)
दीप वो कैसा
कालिख देता ज्यादा
बुझा दो उसे

(४२०)
बिना विरोध
चल देती है धूल
हवा के साथ

(४२१)
मिलने लगा
जरूरतपूर्ति को
दोस्ती का नाम

(४२२)
चलता खेल
आदान-प्रदान का
मित्रता कहाँ

(४२३)
गौरैया जैसी
दिखती कभी-कभी
सच्ची मित्रता

(४२४)
मित्र हों ऐसे
सर्दियों में अलाव
लगते जैसे

(४२५)
तपे मन को
मित्र करे शीतल
बारिश बन

(४२६)
भीड़ वो तीर
बेध सकता है जो
कोई भी लक्ष्य

(४२७)
भीड़ नकाब
पहन बदमाश
करते जुर्म

(४२८)
आई है भीड़
राजदूत बनके
जनाक्रोश का

(४२९)
भीड़ की आज्ञा
सुन परिवर्तन
दौड़ के आते

(४३०)
डरती सत्ता
असीम अधिकार
भीड़ के पास

(४३१)
खुशी से सजी
सहमति से गुँथी
हो वरमाला

(४३२)
मन जो तेरे
अतीत का टुकड़ा
फाँस या फूल

(४३३)
तभी विवाह
मिले जब दुल्हन
दिल के साथ

(४३४)
दिल से दूर
तन न बसा पाता
नया संसार

(४३५)
चेत जवानी
जने नहीं अतीत
भविष्यहंता

(४३६)
डरता मन
दिखते जब मेघ
तेरे नैनों में

(४३७)
जानता हूँ मैं
मैंने दे दी दस्तक
तेरे दिल पे

(४३८)
बंद नैनों से
खोल दिया किवाड़
तूने दिल का

(४३९)
सच है न ये
तुम रोज बुलाती
ख्वाबों में मुझे

(४४०)
छुपा लेती हो
पलकों तले तुम
तस्वीर मेरी

(४४१)
हमदोनों को
ला रही हैं करीब
खुद दूरियाँ

(४४२)
लाती हो तुम
मु्स्कान-मिठाईयाँ
सदा ही ताजी

(४४३)
धड़कनों से
दिल तुम्हारा मुझे
पुकारता है

(४४४)
साँसें तुम्हारी
ढूँढती है खुशबू
मेरी ही सदा

(४४५)
तुम देखती
बंद कर पलकें
दिल से मुझे

(४४६)
घास न कहो
बरसात में जमी
काई है वह

(४४७)
साँस व धुआँ
मानो दो तलवारें
म्यान फेफड़ा

(४४८)
हुआ ज्यों धुआँ
साँस-मधुमक्खियाँ
भागीं तुरंत

(४४९)
फूल चाहते
तितली सा जीवन
कैसे संभव

(४५०)
दीखा काजल
फरेबी के नैनों में
डरावना सा

(४५१)
महाजटिल
अनबूझ पहेली
कुछ चरित्र

(४५२)
कौओं से छिना
एकाधिकार अब
कर्कशता का

(४५३)
कागजपर
शब्दों का रूप ले के
आया बारूद

(४५४)
बारूदी फिजां
गिरे न चिनगारी
शब्दों की यहाँ

(४५५)
ओ दिलवालों
ये महफिल भरी
दिलजलों से

(४५६)
आता बसंत
दूत चिड़ी पेड़ को
देती खबर

(४५७)
हो रहा फिर
चिड़िया सम्मेलन
बरगद पे

(४५८)
जन्मा है चिड़ा
चिड़ी रानी के यहाँ
आये संबंधी

(४५९)
खुश है चिड़ी
जाना है डेटपर
चिड़े के साथ

(४६०)
पेड़ प्यार से
थकी बैठी चिड़ी पे
झलता पंखा

(४६१)
हुई सुबह
जाग घास चेहरा
धोती ओस से

(४६२)
सर्पमणि सी
चमकती घास पे
ओस भोर में

(४६३)
ओस पीकर
दिनभर खटती
धूप में घास

(४६४)
देती है ओस
भू पे आने के लिए
घास को कर

(४६५)
घास छिपाती
लूटे ओस के मोती
भोर होते ही

(४६६)
आँधी तोड़ती
बच्चापार्टी के लिए
पेड़ों से आम

(४६७)
खट्टी अमिया
परिपक्व होने पे
देगी मिठास

(४६८)
आम सा फल
गुणों के बलपर
बनता खास

(४६९)
पेश करते
ये आम के मंजर
खास नजारा

(४७०)
तने बैठे हैं
फल-दरबार में
सम्राट आम

(४७१)
रंग से नहीं
रंगों से बनता है
सुंदर चित्र

(४७२)
बन चुके हैं
दिल में जमे आँसू
खौलता लावा

(४७३)
लाते संदेश
हृदयनगर का
दूत नयन

(४७४)
है सुरक्षित
दिल-संगणक में
सारा अतीत

(४७५)
समययोगी
फेरता रहता है
मौसममाला

(४७६)
ओढ़ कोहरा
अलसाये से लेटे
बागों में फूल

(४७७)
हुई सुबह
ले रहीं अँगड़ाई
जागी कलियाँ

(४७८)
देख कुहासा
रूठ के बैठ गये
सारे ही फूल

(४७९)
हार के लौटीं
कुहासे की टोलियाँ
माने न फूल

(४८०)
खिली ज्यों धूप
गायब हुआ गुस्सा
प्यारे फूलों का

(४८१)
गाँव लौटते
दौड़ करें स्वागत
बीते वो दिन

(४८२)
सहेजे हुए
मेरे बचपन को
मेरा ये गाँव

(४८३)
बाग के पेड़
देखते ही आज भी
लगाते गले

(४८४)
गाती चिड़िया
ताजा कराती यादें
बीते दिनों की

(४८५)
जवां है धूम
गलियों में मची जो
बचपन में

(४८६)
जालिम राहें
दिख रहीं आमादा
भटकाने पे

(४८७)
सौ कोटि साँसें
साथ-साथ जो चलें
बनेंगी आँधी

(४८८)
मन के हाथ
छोड़ना न चाहते
ख्वाबों की डोर

(४८९)
भारी पड़ते
रक्त-संबंधोंपर
धन-संबंध

(४९०)
दिखा जो हंस
मची है खलबली
कौआटोली में

(४९१)
चली बारात
लाने दूर देश से
नयी आशाएं

(४९२)
वधू के द्वार
हुआ खूब स्वागत
नवयुग का

(४९३)
अभिनंदन
वरमाला ने किया
नये रिश्ते का

(४९४)
बाँध दी गयीं
दो भिन्न श्रृंखलाएं
सप्तबंधों में

(४९५)
माँग के विदा
वंश-लता के संग
लौटी बारात

(४९६)
पानी क्या पड़ा
पल में धुल गया
नकली रंग

(४९७)
छद्म सफेदी
हो गई दागदार
लाल होठों से

(४९८)
पहना फिर
आदर्शों का मुखौटा
षडयंत्रों ने

(४९९)
देसी चोले में
विदेशी षडयंत्र
घुसे निर्भीक

(५००)
श्वेत वेश ले
अंधेरे के पुजारी
करते छल

हाइकुकार - कुमार गौरव अजीतेन्दु
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'


शनिवार, 29 मार्च 2014

chhand salila: manmohan chhand --sanjiv

छंद सलिला:
मनमोहन छंद
संजीव
*
लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ८-६, चरणांत लघु लघु लघु (नगण) होता है.  

लक्षण छंद:
रासविहारी, कमलनयन
अष्ट-षष्ठ यति, छंद रतन
अंत धरे लघु तीन कदम
नतमस्तक बलि, मिटे भरम.   

उदाहरण:
१.
हे गोपालक!, हे गिरिधर!!
   हे जसुदासुत!, हे नटवर!!
   हरो मुरारी! कष्ट सकल
  
प्रभु! प्रयास हर करो सफल. 


२. राधा-कृष्णा सखी प्रवर
   पार्थ-सुदामा सखा सुघर
   दो माँ-बाबा, सँग हलधर   
   लाड लड़ाते जी भरकर
 

३. कंकर-कंकर शंकर हर
   पग-पग चलकर मंज़िल वर
   बाधा-संकट से मर डर
   नीलकंठ सम पियो ज़हर

  *********************************************
 (अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

lekh: doha doha kavya ras -sanjiv

  विशेष आलेख 

दोहा दोहा काव्य रस   

संजीव 

दोहा भास्कर काव्य नभ, दस दिश रश्मि उजास ‌
गागर में सागर भरे, छलके हर्ष हुलास ‌ ‌
रस, भाव, संधि, बिम्ब, प्रतीक, शैली, अलंकार आदि काव्य तत्वों की चर्चा करने का उद्देश्य यह है कि दोहों में इन तत्वों को पहचानने और सराहने के साथ दोहा रचते समय इन तत्वों का यथोचित समावेश कर किया जा सके। ‌
रसः 
काव्य को पढ़ने या सुनने से मिलनेवाला आनंद ही रस है। काव्य मानव मन में छिपे भावों को जगाकर रस की अनुभूति कराता है। भरत मुनि के अनुसार "विभावानुभाव संचारी संयोगाद्रसनिष्पत्तिः" अर्थात् विभाव, अनुभाव व संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। रस के ४ अंग स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव व संचारी भाव हैं-
स्थायी भावः मानव ह्र्दय में हमेशा विद्यमान, छिपाये न जा सकनेवाले, अपरिवर्तनीय भावों को स्थायी भाव कहा जाता है।
रस:  १. श्रृंगार, २. हास्य, ३. करुण, ४. रौद्र, ५. वीर, ६. भयानक, ७. वीभत्स,  ८. अद्भुत, ९. शांत,  १०. वात्सल्य, ११. भक्ति।
क्रमश:स्थायी भाव: १. रति, २. हास, ३. शोक, ४. क्रोध, ५. उत्साह, ६. भय, ७. घृणा, ८. विस्मय,  निर्वेद, ९.  १०. संतान प्रेम, ११. समर्पण।
विभावः
किसी व्यक्ति के मन में स्थायी भाव उत्पन्न करनेवाले कारण को विभाव कहते हैं। व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति भी विभाव हो सकती है। ‌विभाव के दो प्रकार आलंबन व उद्दीपन हैं। ‌

आलंबन विभाव के सहारे रस निष्पत्ति होती है। इसके दो भेद आश्रय व विषय हैं ‌
आश्रयः 
जिस व्यक्ति में स्थायी भाव स्थिर रहता है उसे आश्रय कहते हैं। ‌श्रृंगार रस में नायक नायिका एक दूसरे के आश्रय होंगे।‌
विषयः 
जिसके प्रति आश्रय के मन में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न हो, उसे विषय कहते हैं ‌ "क" को "ख" के प्रति प्रेम हो तो "क" आश्रय तथा "ख" विषय होगा।‌
उद्दीपन विभाव: 
आलंबन द्वारा उत्पन्न भावों को तीव्र करनेवाले कारण उद्दीपन विभाव कहे जाते हैं। जिसके दो भेद बाह्य वातावरण व बाह्य चेष्टाएँ हैं। वन में सिंह गर्जन सुनकर डरनेवाला व्यक्ति आश्रय, सिंह विषय, निर्जन वन, अँधेरा, गर्जन आदि उद्दीपन विभाव तथा सिंह का मुँह फैलाना आदि विषय की बाह्य चेष्टाएँ हैं ।
अनुभावः 
आश्रय की बाह्य चेष्टाओं को अनुभाव या अभिनय कहते हैं। भयभीत व्यक्ति का काँपना, चीखना, भागना आदि अनुभाव हैं। ‌
संचारी भावः 
आश्रय के चित्त में क्षणिक रूप से उत्पन्न अथवा नष्ट मनोविकारों या भावों को संचारी भाव कहते हैं। भयग्रस्त व्यक्ति के मन में उत्पन्न शंका, चिंता, मोह, उन्माद आदि संचारी भाव हैं। मुख्य ३३ संचारी भाव निर्वेद, ग्लानि, मद, स्मृति, शंका, आलस्य, चिंता, दैन्य, मोह, चपलता, हर्ष, धृति, त्रास, उग्रता, उन्माद, असूया, श्रम, क्रीड़ा, आवेग, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अवमर्ष, अवहित्था, मति, व्याथि, मरण, त्रास व वितर्क हैं।
रस
१. श्रृंगार 
अ. संयोग श्रृंगार:
तुमने छेड़े प्रेम के, ऐसे राग हुजूर
बजते रहते हैं सदा, तन-मन में संतूर
- अशोक अंजुम, नई सदी के प्रतिनिधि दोहाकार
आ. वियोग श्रृंगार:
हाथ छुटा तो अश्रु से, भीग गये थे गाल ‌
गाड़ी चल दी देर तक, हिला एक रूमाल
- चंद्रसेन "विराट", चुटकी चुटकी चाँदनी
२. हास्यः
आफिस में फाइल चले, कछुए की रफ्तार ‌
बाबू बैठा सर्प सा, बीच कुंडली मार
- राजेश अरोरा"शलभ", हास्य पर टैक्स नहीं
व्यंग्यः
अंकित है हर पृष्ठ पर, बाँच सके तो बाँच ‌
सोलह दूनी आठ है, अब इस युग का साँच
- जय चक्रवर्ती, संदर्भों की आग
३. करुणः
हाय, भूख की बेबसी, हाय, अभागे पेट ‌
बचपन चाकर बन गया, धोता है कप-प्लेट
- डॉ. अनंतराम मिश्र "अनंत", उग आयी फिर दूब
४. रौद्रः
शिखर कारगिल पर मचल, फड़क रहे भुजपाश ‌
जान हथेली पर लिये, अरि को करते लाश
- संजीव 
५. वीरः
रणभेरी जब-जब बजे, जगे युद्ध संगीत ‌
कण-कण माटी का लिखे, बलिदानों के गीत
- डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा "यायावर", आँसू का अनुवाद
६. भयानकः
उफनाती नदियाँ चलीं, क्रुद्ध खोलकर केश ‌
वर्षा में धारण किया, रणचंडी का वेश
- आचार्य भगवत दुबे, शब्दों के संवाद
७. वीभत्सः
हा, पशुओं की लाश को, नोचें कौए गिद्ध ‌
हा, पीते जन-रक्त फिर, नेता अफसर सिद्ध
- संजीव
८. अद्भुतः
पांडुपुत्र ने उसी क्षण, उस तन में शत बार ‌
पृथक-पृथक संपूर्ण जग, देखे विविध प्रकार
- डॉ. उदयभानु तिवारी "मधुकर", श्री गीता मानस
९. शांतः
जिसको यह जग घर लगे, वह ठहरा नादान ‌
समझे इसे सराय जो, वह है चतुर सुजान
- डॉ. श्यामानंद सरस्वती "रौशन", होते ही अंतर्मुखी
१० . वात्सल्यः
छौने को दिल से लगा, हिरनी चाटे खाल ‌
पान करा पय मनाती, चिरजीवी हो लाल
-संजीव 
११. भक्तिः
दूब दबाये शुण्ड में, लंबोदर गजमुण्ड ‌
बुद्धि विनायक हे प्रभो!, हरो विघ्न के झुण्ड
- भानुदत्त त्रिपाठी "मधुरेश", दोहा कुंज
दोहा में हर रस को अभिव्यक्त करने की सामर्थ्य है। आशा है दोहाकार अपनी रुचि के अनुकूल खड़ी बोली या टकसाली हिंदी में दोहे रचने की चुनौती को स्वीकारेंगे। हिंदी के अन्य भाषिक रूपों यथा उर्दू, बृज, अवधी, बुन्देली, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका, बज्जिका, छत्तीसगढ़ी, मालवीनिमाड़ी, बघेली, कठियावाड़ी, शेखावाटी, मारवाड़ी, हरयाणवी आदि तथा अन्य भाषाओँ गुजराती, मराठी, गुरुमुखी, उड़िया, बांगला, तमिल, तेलुगुकन्नड़, डोगरी, असमीआदि तथा अभारतीय भाषाओँ अंग्रेजी इत्यादि में दोहा भेजते समय उसका उल्लेख किया जाना उपयुक्त होगा ताकि उस रूप / भाषा विशेष में प्रयुक्त शब्दरूप व क्रियापद को अशुद्धि न समझा जाए।
 
**********

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

gazal: r.p. ghayal

ग़ज़ल:
राजेंद्र पासवान 'घायल'
*
उसका  लिया  जो  नाम  तो  ख़ुशबू  बिखर गयी
तितली    मेरे    करीब   से  होकर   गुज़र  गयी

अधखुली आँखों  से  उसने  जब कभी  देखा मुझे
मेरे  मन  की हर उदासी  हर  ख़ुशी  से भर गयी

फूल  जब  दामन से  उसके  गुफ़्तगू  करने लगे
देह की ख़ुशबू से  उनकी अपनी  ख़ुशबू डर गयी

हुस्न है तो इश्क है कितना ग़लत कहते हैं लोग
लैला मजनूं की मोहब्बत  नाम रोशन कर गयी

उसकी आँखों  की चमक  से  या  वफ़ा के नूर से
रात  काली  थी  मगर  वो  रोशनी  से  भर गयी

याद है  उसकी  कि 'घायल'  भोर  की  ठंडी  हवा
गुदगुदाकर जो मुझे फिर आज  तन्हा कर गयी

आर पी 'घायल'

muktika: main -sanjiv

चित्र पर कविता;
मुक्तिका 
मैं
संजीव
*


मुझमें कितने 'मैं' बैठे हैं?, किससे आँख मिलाऊँ मैं?
क्या जाने क्यों कब किस-किससे बरबस आँख चुराऊँ मैं??
*
खुद ही खुद में लीन हुआ 'मैं', तो 'पर' को देखे कैसे?
बेपर की भरता उड़ान पर, पर को तौल न पाऊँ मैं.
*
बंद करूँ जब आँख, सामना तुमसे होता है तब ही
कहीं न होकर सदा यहीं हो, किस-किस को समझाऊँ मैं?
*
मैं नादां बाकी सब दाना, दाना रहे जुटाते हँस
पाकर-खोया, खोकर-पाया, खो खुद को पा जाऊँ मैं
*
बोल न अपने ही सुनता मन, व्यर्थ सुनाता औरों को
भूल कुबोल-अबोल सकूँ जब तब तुमको सुन पाऊँ मैं
*
देह गेह है जिसका उसको, मन मंदिर में देख सकूँ
ज्यों कि त्यों धर पाऊँ चादर, तब तो आँख उठाऊँ मैं.
*
आँख दिखाता रहा जमाना, बेगाना है बेगाना
अपना कौन पराया किसको, कह खुद को समझाऊँ मैं?
***




gazal: abhishek kumar 'abhi'

एक ग़ज़ल :
—अभिषेक कुमार ''अभी''
(बहर:मुसतफइलुन/मुसतफइलुन/मुफाईलुन/मुफाईलुन)
.
इस ज़िंदगी को, हम यहाँ, अकेले ही गुज़ारे हैं
कोई न आए साथ को, यहाँ जब जब पुकारे हैं
.
हालात ऐसे आज हैं, कि सब, शब में समाए हैं
देखे सहर मुद्दत बिता, सुबह भी निकले तारे हैं
.
कुश्ती मची इक-दूजे में,हराए कौन किसको अब
घूमा नज़र, देखो जहाँ, वहीं दिखते अखाड़े हैं
.
दोनों जहाँ जिसने बनाया, वो भी देख हँसता है
जिन्हें सजाने को कहा, वही इन्हें उजाड़े हैं
.
अब तो सभी पूजे उसे, न दौलत की कमी जिसको
कोई न सुनता उनका अब, 'अभी' जो बे-सहारे हैं

(शब=रात)
.
Is zindgi ko, ham yhan, akele hi guzare hain
Koi n aaye sath ko, yhan jab jab pukare hain
.
Halat aise aaj hen,ki sb, shb me smaye hain
Dekhe sahar muddt bita, subah bhi nikle tare hain
.
Kushti machi ik-duje me, haraye kaun kisko ab
Ghuma nazar, dekho jahan, whin dikhte akhade hain
.
Dono jahan jisne banaya, wo bhi dekh hansta hai
Jinhen sajaane ko k'ha, wahi inhain ujade hain
.
Ab to sabhi pooje use, n daulat ki kami jis ko
Koyi n sunta un ka ab, 'abhi' jo be-sahare hain.
-Abhishek Kumar ''Abhi''
(Shb=Raat)

awadhi geet: omprakash tiwari

अवधी गीत:

पप्पू के पापा तुहूँ लड़ा

- ओमप्रकाश तिवारी

पप्पू के पापा तुहूँ लड़ा
अबकिन चुनाव मा हुअव खड़ा।

निरहू-घुरहू अस कइव जने
सब दावं इलेक्सन मा जीते,
संसद का समझिन समधियान
सब जने देस का लइ बीते ;
न केहू कै वै भला किहिन
न केहू कै कल्यान किहिन,
सीना फुलाय घूमैं जइसे
वै हुवैं सिकंदर जग जीते।

टुटहा घर बनिगा महल अइस,
हैं छापिन नोटव कड़ा-कड़ा।
पप्पू के पापा -------

न काम किहिन न काज किहिन
सोने के भाव अनाज किहिन,
बभनौटन से तुहंका लड़ाय
अपुना दिल्ली मा राज किहिन ;
वै कहिन जाय निपटाउब हम
दुख-दर्द सकल भयवादी कै,
लेकिन सत्ता की गल्ली मा
वै जाय कोढ़ मा खाज किहिन।

खद्दर कै रंग चढ़ा अस की,
होइ गवा करैला नीम चढ़ा ।
पप्पू के पापा ---------

उनकी थइली मा माल भवा
तौ झूर गलुक्का लाल भवा,
मोटर पै बिजुली लाल जरै
हारन जिउ कै जंजाल भवा ;
सब गांव खड़ंजा का तरसै
वै घर तक रोड बनाय लिहिन,
जे तनिकौ मूड़ उठाय दिहिस
ऊ पिपरे कै बैताल भवा ।

केहू गड़ही मा परा मिला,
केहू पै मोटर जाय चढ़ा ।
पप्पू के पापा --------

मँगनी कै धोती पहिर-पहिर
वै नात-बाँत के जात रहीं,
घर मा यक जून जरै चूल्हा
वै भौंरी-भाँटा खात रहीं  ;
अब नेता कै मेहरि बनि के
गहना से लदी-फँदी घूमै,
सोझे मुँह बात न चीत करैं
नखरा नकचढ़ा अमात नहीं।

काने में झुमकी हीरा कै,
नेकुना पै सब्जा बड़ा-बड़ा ।
पप्पू के पापा -------

उनके लरिका कै सुनौ हाल
किरवा झरि जइहैं काने कै,
वकरे चपरहपन के किस्सा से
रंगा रजिस्टर थाने कै ;
बिटिया-पतुअह घर बंद भईं
पहरा लागै डड़वारे पै,
सगरौ पवस्त ऊबा वहसे
चक्कर काटै देवथान्हे कै ।

है गाँव-देस मा अब चर्चा,
इनके पापन कै भरा घड़ा ।
पप्पू के पापा -------
*
 Om Prakash Tiwari
Chief of Mumbai Bureau Dainik Jagran Jagran Prakashan Ltd., Peninsula Center, Dr. S.S.Rao Road, Opp. Mahatma Gandhi Hospital, Parel (E), Mumbai- 400012
Tel : 022 24197171, Fax : 022 24112009, M : 098696 49598
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गुरुवार, 27 मार्च 2014

chhand salila: madhumalti chhand -sanjiv

छंद सलिला:
मधुमालती छंद
संजीव
*
लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ७-७, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण) होता है.  

लक्षण छंद:
मधुमालती आनंद दे
ऋषि साध सुर नव छंद दे 
चरणांत गुरु लघु गुरु रहे
हर छंद नवउत्कर्ष दे।   

उदाहरण:
१.
माँ भारती वरदान दो
   सत्-शिव-सरस हर गान दो
   मन में नहीं अभिमान हो
  
घर-अग्र 'सलिल' मधु गान हो।


२. सोते बहुत अब तो जगो
   खुद को नहीं खुद ही ठगो 
   कानून को तोड़ो नहीं-    
   अधिकार भी छोडो नहीं 

  *********************************************
 (अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

chhand salila: mohan / saras chhand

छंद सलिला:
मोहन (सरस) छंद
संजीव
*
लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ७-७, चरणांत लघु लघु लघु (नगण) होता है.  

लक्षण छंद:
शुभ छंद रच मोहन-सरस 

चौदह सुकल यति सात पर
प्रभु सुयश गा, नित कर नमन
चरणान्त में लघु तीन धर। 

उदाहरण:
१.
मोहो नहीं मोहन विनय 
   स्वीकार लो करुणा-अयन
   छोडो नहीं भव पार कर
  
निज शरण लो राधारमण।

२. जिसका दरस इतना सरस
   भज तो मिले पारस परस
   मिथ्या अहम् तजकर विहँस
   पा मुक्ति मत नाहक तरस।

३. छोड़ दल-हित, साध जन-हित
   त्याग दल-मत, पूछ जनमत
   छोड़ दुविधा, राज-पथ तज-
   त्याग सुविधा, वरो जन-पथ।

४. छोडो न रण वर लो विजय 
   धरती-गगन-नभ हो अभय
   मतिमान हो इंसान अब-
   भी हो नहीं वीरान अब।
 *********************************************
 (अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

chhand salila: manoram chhand -sanjiv

छंद सलिला:
मनोरम छंद
संजीव
*
लक्षण: समपाद मात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणारंभ गुरु, चरणांत गुरु लघु लघु या लघु गुरु गुरु होता है.  
लक्षण छंद:
हैं भुवन चौदह मनोरम 
आदि गुरु हो तो मिले मग
हो हमेश अंत में अंत भय  

लक्ष्य वर लो बढ़ाओ पग
उदाहरण:
१.
साया भी साथ न देता
   जाया भी साथ न देता
   माया जब मन भरमाती
  
काया कब साथ निभाती

२. सत्य तज मत 'सलिल' भागो
   कर्म कर फल तुम न माँगो
   प्राप्य तुमको खुद मिलेगा
   धर्म सच्चा समझ जागो

३. लो चलो अब तो बचाओ
   देश को दल बेच खाते
   नीति खो नेता सभी मिल
   रिश्वतें ले जोड़ते धन

४. सांसदों तज मोह-माया
   संसदीय परंपरा को 
   आज बदलो, लोक जोड़ो-
   तंत्र को जन हेतु मोड़ो
 *********************************************
 (अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

बुधवार, 26 मार्च 2014

chhand salila: pratibha chhand -sanjiv

छंद सलिला:
प्रतिभा छंद
संजीव
*
लक्षण: मात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणारंभ लघु, चरणांत गुरु
लक्षण छंद:
लघु अारंभ सुअंत बड़ा
प्रतिभा ले मनु हुआ खड़ा
कण-कण से संसार गढ़ा
पथ पर पग-पग 'सलिल' बढ़ा
उदाहरण:
१. प्रतिभा की राह न रोको 

   बढ़ते पग बढ़ें, न टोको
   लघु कोशिश अंत बड़ा हो
   निज पग पर व्यक्ति खड़ा हो

२. हमारी आन है हिंदी
   हमारी शान है हिंदी
   बनेगी विश्व भाषा भी
   हमारी जान है हिंदी
३. प्रखर है सूर्य नित श्रम का
   मुखर विश्वास निज मन का
   प्रयासों का लिए मनका
   सतत फेरे- बढ़े तिनका
 *********************************************
 (अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

chhand salila: kajjal chhand -sanjiv

छंद सलिला:
कज्जल छंद
संजीव
*
लक्षण: सममात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणांत लघु-गुरु
लक्षण छंद:
कज्जल कोर निहार मौन,
चौदह रत्न न चाह कौन?
गुरु-लघु अंत रखें समान,
रचिए छंद सरस सुजान
उदाहरण:
१. देव! निहार मेरी ओर,
रखें कर में जीवन-डोर
शांत रहे मन भूल शोर,
नयी आस दे नित्य भोर

२. कोई नहीं तुमसा ईश
तुम्हीं नदीश, तुम्ही गिरीश।
अगनि गगन तुम्हीं पृथीश
मनुज हो सके प्रभु मनीष।
३. करेंगे हिंदी में काम
तभी हो भारत का नाम
तजिए मत लें धैर्य थाम
समय ठीक या रहे वाम
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

renu khatod:

 उपलब्धि:रेणु खटोड़

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उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हिंदी माध्यम से शालेय शिक्षा प्राप्त रेणु खटोड़ युनिवर्सिटी ऑफ़ ह्यूस्टन अमेरिका सिस्टम कि चांसलर (कुलपति) पद पर सुशोभित हुई हैं. विश्ववाणी हिंदी को अपनी इस बिटिया पर गर्व है.
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

samayik kavita: kare faisla kaun? -sanjiv

सामयिक रचना :
करे फैसला कौन?
संजीव
*
मन का भाव बुनावट में निखरा कढ़कर है
जो भीतर से जगा,  कौन उससे बढ़कर है?
करे फैसला कौन?, कौन किससे बढ़कर है??
*जगा जगा दुनिया को हारे खुद सोते ही रहे
गीत नर्मदा के गाये पर खुद ही नहीं बहे
अकथ कहानी चाह-आह की किससे कौन कहे
कर्म चदरिया बुने कबीरा गुपचुप बिना तहे
निज नज़रों में हर कोई सबसे चढ़कर है
जो भीतर से जगा,  कौन उससे बढ़कर है?

करे फैसला कौन?, कौन किससे बढ़कर है??
*
निर्माता-निर्देशक भौंचक कितनी पीर सहे
पात्र पटकथा लिख मनमानी अपने हाथ गहे
मण्डी में मंदी, मानक के पल में मूल्य ढहे
सोच रहा निष्पक्ष भाव जो अपनी आग दहे
माटी माटी से माटी आयी गढ़कर है
जो भीतर से जगा,  कौन उससे बढ़कर है?
करे फैसला कौन?, कौन किससे बढ़कर है??
*

मंगलवार, 25 मार्च 2014

chitragupt rakasya -sanjiv

चित्रगुप्त-रहस्य

संजीव
*
चित्रगुप्त पर ब्रम्ह हैं, ॐ अनाहद नाद
योगी पल-पल ध्यानकर, कर पाते संवाद
निराकार पर ब्रम्ह का, बिन आकार न चित्र
चित्र गुप्त कहते इन्हें, सकल जीव के मित्र
नाद तरंगें संघनित, मिलें आप से आप
सूक्ष्म कणों का रूप ले, सकें शून्य में व्याप
कण जब गहते भार तो, नाम मिले बोसॉन
प्रभु! पदार्थ निर्माण कर, डालें उसमें जान
काया रच निज अंश से, करते प्रभु संप्राण
कहलाते कायस्थ- कर, अंध तिमिर से त्राण
परम आत्म ही आत्म है, कण-कण में जो व्याप्त
परम सत्य सब जानते, वेद वचन यह आप्त
कंकर कंकर में बसे, शंकर कहता लोक
चित्रगुप्त फल कर्म के, दें बिन हर्ष, न शोक
मन मंदिर में रहें प्रभु!, सत्य देव! वे एक
सृष्टि रचें पालें मिटा, सकें अनेकानेक
अगणित हैं ब्रम्हांड, है हर का ब्रम्हा भिन्न
विष्णु पाल शिव नाश कर, होते सदा अभिन्न
चित्रगुप्त के रूप हैं, तीनों- करें न भेद
भिन्न उन्हें जो देखता, तिमिर न सकता भेद
पुत्र पिता का पिता है, सत्य लोक की बात
इसी अर्थ में देव का, रूप हुआ विख्यात
मुख से उपजे विप्र का, आशय उपजा ज्ञान
कहकर देते अन्य को, सदा मनुज विद्वान
भुजा बचाये देह को, जो क्षत्रिय का काम
क्षत्रिय उपजे भुजा से, कहते ग्रन्थ तमाम
उदर पालने के लिये, करे लोक व्यापार
वैश्य उदर से जन्मते, का यह सच्चा सार
पैर वहाँ करते रहे, सकल देह का भार
सेवक उपजे पैर से, कहे सहज संसार
दीन-हीन होता नहीं, तन का कोई भाग
हर हिस्से से कीजिये, 'सलिल' नेह-अनुराग
सकल सृष्टि कायस्थ है, परम सत्य लें जान
चित्रगुप्त का अंश तज, तत्क्षण हो बेजान
आत्म मिले परमात्म से, तभी मिल सके मुक्ति
भोग कर्म-फल मुक्त हों, कैसे खोजें युक्ति?
सत्कर्मों की संहिता, धर्म- अधर्म अकर्म
सदाचार में मुक्ति है, यही धर्म का मर्म
नारायण ही सत्य हैं, माया सृष्टि असत्य
तज असत्य भज सत्य को, धर्म कहे कर कृत्य
किसी रूप में भी भजे, हैं अरूप भगवान्
चित्र गुप्त है सभी का, भ्रमित न हों मतिमान

*

सोमवार, 24 मार्च 2014

khushwant singh on religion


अपना धर्म खुद चुनने की आजादी होनी चाहिए
स्रोतः स्व. खुशवंत सिंह, स्थानः नई दिल्ली
प्रस्तुति: गुड्डो दादी
*
खास दिनों पर व्रत रख लेना है। सेक्स से दूर रहना है। कुछ खास किस्म के खाने और पीने से परहेज करना है। उस हाल में मेरा जवाब ठोस ना में होगा। मेरे ख्याल से इन्हें मान लेने या करने से आप बेहतर शख्स नहीं हो सकते।
महान मनोविज्ञानी सिग्मंड फ्रायड ने ठीक ही कहा था, 'जब आदमी धर्म से मुक्त हो जाता है, तब उसके बेहतर जिंदगी जीने की उम्मीदें बढ़ जाती हैं।' महान गैलीलियो ने कई सदी पहले तकरीबन यही कहा था, 'मैं नहीं मानता कि जो भगवान हमें बुद्धि, तर्क और विवेक देता है, वहीं हमें उन्हें भुला देने को कहेगा।' अब्राहन लिंकन का कहना था, 'जब मैं अच्छा काम करता हूं तो मुझे अच्छा लगता है। जब मैं बुरा काम करता हूं तो बुरा लगता है। यही मेरा धर्म है।' कितना सही कहा है लिंकन ने।
हर किसी को अपना धर्म खुद चुनना चाहिए। सिर्फ इसलिए किसी धर्म को नहीं मान लेना चाहिए क्योंकि उसमें उसका जन्म हुआ है। हम नहीं जानते कि कहां से आए हैं? सो, अपनी रचना के लिए भगवान को मान भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन उसे परम मान लेना या करुणामय मान लेने के पीछे कोई सबूत नहीं है। असल में भूकंप, तूफानों और सुनामी में वह अच्छे और बुरे में फर्क नहीं करता। धार्मिक−अधार्मिक और छोटे−बड़े में कोई भेदभाव नहीं करता। आखिर इन सबको हम भगवान का किया ही मानते हैं न। हम धरती पर क्यों आए? इसका जवाब भी तय नहीं है। हम ज्यादा से ज्यादा यह कर सकते हैं कि अपने सबक सीखते रहें। हम कैसे शांति से रह सकें? कैसे अपनी काबलियत का सही इस्तेमाल कर सकें। कैसे सब लोगों के साथ मिलजुल कर रहा जाए। हम सबके लिए कोई बड़ा काम करने की जरूरत नहीं है। काफी लोग इस तरह की जिंदगी जी रहे हैं। मरने के बाद हमारा क्या होता है? उसके लिए बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है। आखिरकार स्वर्ग, नरक और पुनर्जन्म के बारे में कोई सबूत हमारे पास नहीं है। ये सब लोगों ने ही किया है। शायद खुद को ही बरगलाने के लिए।
मनोहर श्याम जोशी
कुमाऊं की पहाडि़यों में अल्मोड़ा के रास्ते में एक गांव पड़ता है सनौलीधार। बस स्टॉप पर ही एक किराना की दुकान है जिसमें डाकघर भी चलता है। वहीं चायवाला है जो गरमागरम चाय, बिस्कुट और पकोड़ा भी दे देता है। उस गांव की खासियत एक स्कूल है। उसकी शुरुआत तो प्राइमरी से हुई थी, लेकिन धीरे−धीरे वह हाईस्कूल हो गया। वहां हेडमास्टर है जो खुद को प्रिंसिपल कहलाना पसंद करता है। अंग्रेजी टीचर है जो प्रोफेसर कहलाना चाहता है। एक अर्ध चीनी लड़की हे कलावती येन। वह नर्सरी क्लास देखती है। एक संगीत की महिला टीचर है और एक मैनेजर है।
इसी गांव में युवा मनोहर श्याम जोशी आते है। कॉलेज से हाल में पढ़ कर निकले और हिंदी के बड़े लेखक बनने की ओर। वह खुराफाती शख्स हैं। अपने साथियों के सेक्स से जुड़े किस्सों को इधर-उधर करने वाले। उनके सबसे बड़े शिकार बनते हैं खष्टीवल्लभ पंत। अंग्रेजी के टीचर हैं। उन्हें प्रोफेसर टटा कहा जाता है। वह 19 साल की कलावती येन के स्वयंभू गार्जिन हो जाते हैं। वही लड़की लेखक को भी बेहद पसंद है। सो, नजदीक रहने के लिए गणित और विज्ञान वगैरह पढ़ाते रहते हैं।
प्रोफेसर टटा और प्रिंसिपल में लड़ाई चलती रहती है। ज्यादातर लड़ाई अंग्रेजी शब्दों मसलन हैंकी पैंकी, होकस−पोकस और कोइटस इंटरोप्टस पर होती है। उन दोनों के बीच-बचाव बेचारी पॉकेट ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी करती है। वहाँ हमेशा अंग्रेजी के लिए अंग्रेजों की तरह काला कोट और पैंट पहननी जरूरी है। वह खुद टाटा की जगह टटा बोलते हैं, लेकिन दूसरों से बिल्कुल सही उच्चारण चाहते हैं।
मनोहर श्याम जोशी मशहूर लेखक और टीवी सीरियल के प्रोड्यूसर थे। उनका व्यंग्य कमाल का था। उसकी मिसाल आप पेंगुइन वाइकिंग से आई 'टटा प्रोफेसर' में देख सकते हैं। इस किताब के लिए उन्हें इरा पांडे के तौर पर बेहतरीन अनुवादक मिली हैं। अपनी मां उपन्यासकार शिवानी पर उनकी किताब 'दिद्दीः माई मदर्स वॉयस' को क्लासिक माना जाता है। कुमाऊंनी बोली को उन्होंने खुब पकड़ा है। शायद इसलिए वह अनुवाद जैसा नहीं लगता। हिंदुस्तानी व्यंग्य की एक मिसाल है यह किताब।
टिप्पणीः यह आलेख स्व. खुशवंत सिंह के पुरालेखों में से एक है- संपादक

रविवार, 23 मार्च 2014

vigyapan ya thagi ?????????

विज्ञापन या ठगी ??????

1) घोटालों से परेशान ना हों, Tata की चाय पीयें, इससे देश बदल
जाएगा|

2) पानी की जगह Coca Cola और Pepsi पीयें और प्यास बुझायें|

3) Lifebuoy और Dettol 99.9% कीटाणु मारते है पर 0.1 %
पुनः प्रजनन के लिए छोड़ ही देते हैं|

4) महिलाओं को बचाने और बटन खुले होने
की चेतावनी देने का ठेका केवल Akshay Kumar ने लिया है|

5) अगर आप Sprite पीते हैं तो लड़की पटाना आपके बाये हाँथ
का खेल है|

6) Salman Khan के अनुसार
महीने भर का Wheel Detergent ले आओ
और कई किलो सोने के मालिक बन जाओ.
आपको नौकरी करने की कोई जरुरत नहीं|

7) Saif Ali Khan और Kreena Kapoor ने शादी एक दुसरे के सर
का Dandruff देख कर की है|

8)यदि किसी के Toothpaste में नमक है तो; यह पूछने के लिए आप
किसी के भी घर का बाथरूम तोड़ सकते हैं|

9) Samsung Galaxy S3 फोन के
अलावा बाकी सभी फोन बंदरों के लिए बने हैं| केवल यही फ़ोन
इंसानों के लिए है!

10) Mountain Dew पीकर पहाड़ से कूद जाइये, कुछ नहीं होगा|

11) Cadbury Dairy Milk Silk Chocolate खाएं कम और मुंह
पर ज्यादा लगायें|

12) Happident चबाइए और बिजली का कनेक्शन कटवा लीजिये|

13) आपके insurance Agents को अपने पापा से
ज्यादा आपकी फ़िक्र रहती हैं|

14) फलमंडी से ज्यादा फल आपके Shampoo में होते हैं|

15) अपने घर का Toilet सदा साफ़ रखें अन्यथा एक Handsome
सा लड़का Harpic और Camera लेकर आपकेToilet की सफाई
का Live Broadcast
करने लगेगा|

16) अगर आपने घर में Asian Paints किया है तो आप दुनिया के
सबसे Intelligent इन्सान हैं|

17) अगर आपने Lux Cozy Big Shot
नहीं पहनी तो आपको मर्द कहलाने काकोई हक़ नहीं|

18) अगर तुम्हारा बेटा Bournvita
नहीं पीता तो वो मंदबुद्धि हो जायेगा|

शनिवार, 22 मार्च 2014

world sparrow day: Save gauraiyaa



"विश्व गौरैया दिवस" पर विशेष:

चूँ-चूँ करती आयी चिड़िया 

प्रस्तुति: संजीव  

कुछ वर्ष पूर्व तक पहले हमारे घर-आँगन में फुदकनेवाली नन्हीं गौरैया आज विलुप्ति के कगार पर है। इस नन्हें परिंदे को बचाने हेतु २०१० से हर वर्ष 20 मार्च "विश्व गौरैया दिवस" के रूप में मनाया जा रहा है ताकि आम जन गुरैया के संरक्षण के प्रति जागरूक हों। भारत में गौरैया की संख्या घटती ही जा रही है। महानगरों में गौरैया के दर्शन दुर्लभ हैं. वर्ष 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य-पक्षी घोषित कर दिया है।
भारतीय डाक विभाग द्वारा 9 जुलाई, 2010 को गौरैया पर जारी किये गये डाक टिकट का चित्र :-

गौरैया के विनाश के जिम्मेदार हम मानव ही है। इस नन्हें पक्षी की सुरक्षा  की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। अब हमें गौरैया को बचाने के लिये हर दिन जतन करना होगा । गौरैया महज एक पक्षी नहीं, हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी है। इनकी संगत पाने के लिए छत पर किसी खुली छायादार जगह पर कटोरी या किसी मिट्टी के बर्तन में चावल और साफ़ पानी रखें फिर देखिये हमारा रूठा दोस्त कैसे वापस आता है।

उत्तर भारत में गौरैया को गौरा, चटक, उर्दू में चिड़िया, सिंधी भाषा में झिरकी, भोजपुरी में चिरई तथा बुन्देली में चिरैया कहते हैं। इसे जम्मू-कश्मीर में चेर, पंजाब में चिड़ी, पश्चिम बंगाल में चरूई, ओडिशा (उड़ीसा) में घरचटिया, गुजरात में चकली, महाराष्ट्र में चिमानी,  कर्नाटक में गुब्बाच्ची, आन्ध्र प्रदेश में पिच्चूका तथा केरल-तमिलनाडु में कूरूवी कहा जाता है.

  
गौरेया पासेराडेई परिवार की सदस्य है, कुछ लोग इसे वीवरफिंच परिवार की सदस्य मानते हैं। इनकी लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर तथा वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है। एक समय में इसके कम से कम तीन बच्चे होते है। गौरेया अधिकतर झुंड में ही रहती है। भोजन तलाशने के लिए गौरेया का एक झुंड अधिकतर दो मील की दूरी तय करते हैं। यह पक्षी कूड़े में भी अपना भोजन तलाश लेते है।

रेडिएशन का कुप्रभाव:

विश्व में तेज़ी से दुर्लभ हो रही गौरेया आज संकट ग्रस्त पक्षी है। खुद को परिस्थितियों के अनुकूल ढाल सकनेवाली गौरैया भारत, यूरोप, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी और चेक गणराज्य आदि देशों में भी तेज़ी से लापता हो रही है, नीदरलैंड में गौरैया को "दुर्लभ प्रजाति" वर्ग में रखा गया है।

पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक मोबाइल टावर के रेडिएशन से पक्षियों और मधुमक्खियों पर बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। इसलिए इस मंत्रालय ने टेलिकॉम मिनिस्ट्री को एक सुझाव भेजा है। जिसमे एक किमी के दायरे में दूसरा टावर ना लगाने की अनुमति देने को कहा गया है और साथ ही साथ टावरों की लोकेशन व इससे निकलने वाले रेडिएशन की जानकारी सार्वजनिक करने को भी कहा गया है जिससे इनका रिकॉर्ड रखा जा  सके। इन  पक्षियों  की  प्रजातियों  पर  है सबसे   अधिक खतरा गौरेया, मैना, तोता, कौआ, उच्च हिमालयी प्रवासी पक्षी आदि। मोबाइल टावर के रेडिएशन से मधु- मक्खियों  में कॉलोनी कोलेप्स डिसऑर्डर पैदा हो जाता है। इस  डिसऑर्डर  में  मधुमक्खियाँ  छत्तों  का  रास्ता  भूल जाती है।
रेडिएशन से वन्य जीवों के  हार्मोनल बैलेंस पर  हानिकारक  असर  होता  है  जिन  पक्षियों  में  मैग्नेटिक  सेंस  होता है और जब ये पक्षी विद्युत मैग्नेटिक तरंगों के इलाक़े में आते हैं तो  इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। रंगों की  ओवरलेपिंग  के कारण पक्षी अपने प्रवास का रास्ता भटक जाते हैं. वैज्ञानिकों  के  मुताबिक  मोबाइल  टावर  के  आसपास  पक्षी  बहुत  ही  कम मिलते हैं। वैज्ञानिको  के  अनुसार  रेडिएशन  से  पशु-पक्षियों  की प्रजनन शक्ति  के साथ-साथ नर्वस  सिस्टम पर विपरीत असर होता है।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-
भारत में ४.४ लाख से ज्यादा मोबाइल टावर तथा पक्षियों की १३०१ प्रजातियाँ हैं जिनमें से ४२ लुफ्त होने की कगार पर हैं। भारत में १00 से ज्यादा प्रवासी पक्षी आते हैं। गौरेया(SPARROW) है! आजकल गौरैया महानगरों ही नहीं कस्बों और गाँवों में बिजली के तारों, घास के मैदानोंघर के आँगन में और खिड़कियों पर कम ही दिखती है! भारत सरकार तथा राज्य सरकारों को बाघों(Tigers) और शेरो(Lions) की तरह इन्हें बचाने के लिये आगे आना होगा, आम लोग आँगन, छत या छज्जे पर छायादार स्थान में मध्यम आकार के दीये में चावल के छोटे--छोटे दाने तथा मिटटी के एक बर्तन में पीने  योग्य  पानी  रख दे! गौरैया की घटती संख्या का मुख्य कारण भोजन और जल की कमी, घोसलों के लिये उचित स्थानों की कमी तथा तेज़ी से कटते पेड़-पौधे हैं।
 
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार पीपल, बरगद, आँवला, बेल, तुलसी, जासौन, धतूरा आदि अनेक पेड़-पौधे  देवता तुल्य है। हमारे पर्यावरण में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। पीपल-बरगद कभी सीधे अपने बीजो से नही लगते, इनके बीजों को गौरैया खाती है और उसके पाचन तंत्र से होकर बीट (मल) में निकलने पर ही उनका अंकुरण होता है। इसीलिए ये वृक्ष  मंदिरों और खंडहरों के नजदीक अधिक उगते है चूँकि इनके आसपास गौरैया का जमावडा होता है। मोरिशस और मेडागास्कर में पाया जानेवाला पेड़ सी० मेजर लुप्त होने कगार पर है क्योंकि उसे खाकर अपने पाचनतंत्र से गुजरने वाला पक्षी डोडो विलुप्त हो चुका है. यही स्थिति गौरैया और पीपल की हो रही है।
 
गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती दस-पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होते हैं लेकिन आजकल हम लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़-पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते है जिससे पौधों में  कीड़े नहीं लगते तथा अपने भोजन से वंचित हो जाती है.  इसलिए गौरैया समेत दुनिया भर के हजारों पक्षी लगभग विलुप्त हो चुके है या फिर किसी कोने में अपनी अन्तिम सांसे गिन रहे हैं। हम सबको मिलकर गौरैया का संरक्षण करना ही होगा वरना यह भी मॉरीशस के डोडो पक्षी और गिद्ध की तरह पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे। इसलिए जागिए और बचाइये गौरैया को ताकि बच्चे गा सकें: 'राम जी की चिड़िया, राम जी का खेत. खाओ री चिड़ियों भर-भर पेट' तथा 'चूँ-चूँ करती आयी चिड़िया, दाल का दाना लायी चिड़िया।' 
बाल गीत:

"कितने अच्छे लगते हो तुम "

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कितने अच्छे लगते हो तुम |
बिना जगाये जगते हो तुम ||
नहीं किसी को ठगते हो तुम |
सदा प्रेम में पगते हो तुम ||
दाना-चुग्गा मंगते हो तुम |
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ  चुगते हो तुम ||
आलस कैसे तजते हो तुम?
क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?
चिड़िया माँ पा नचते हो तुम |
बिल्ली से डर बचते हो तुम ||
क्या माला भी जपते हो तुम?
शीत लगे तो कँपते हो तुम?
सुना न मैंने हँसते  हो तुम |
चूजे भाई! रुचते हो तुम |

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