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सोमवार, 12 अगस्त 2013

health corner: dr. m. c. gupta


स्वास्थ्य सलिला :
डॉ. महेश चन्द्र गुप्ता

Benefits of Walking 
cid:1.3505775927@web192204.mail.sg3.yahoo.com
  • The human body is made to walk.  
  • Walking 30 minutes a day cuts the rate of people becoming diabetic by more than half and it cuts the risk of people over 60 becoming diabetic by almost 70 percent.  
  • Walking cuts the risk of stroke by more than 25 percent.  
  • Walking reduces hypertension. The body has over 100,000 miles of blood vessels. Those blood vessels are more supple and healthier when we walk.  
  • Walking cuts the risk of cancer as well as diabetes and stroke.  
  • Women who walk have a 20 percent lower likelihood of getting breast cancer and a 31 percent lower risk of getting colon cancer.  
  • Women with breast cancer who walk regularly can reduce their recurrence rate and their mortality rate by over 50 percent.  
  • The human body works better when we walk. The body resists diseases better when we walk, and the body heals faster when we walk.  
  • We don't have to walk a lot. Thirty minutes a day has a huge impact on our health.  
  • Men who walk thirty minutes a day have a significantly lower level of prostate cancer. Men who walk regularly have a 60 percent lower risk of colon cancer.  
  • For men with prostate cancer, studies have shown that walkers have a 46 percent lower mortality rate.  
  • Walking also helps prevent depression, and people who walk regularly are more likely to see improvements in their depression.  
  • In one study, people who walked and took medication scored twice as well in 30 days as the women who only took the medication. Another study showed that depressed people who walked regularly had a significantly higher level of not being depressed in a year compared to depressed people who did not walk. The body generates endorphins when we walk. Endorphins help us feel good.  
  • Walking strengthens the heart. Walking strengthens bones. 
  • Walking improves the circulatory system.  
  • Walking generates positive neurochemicals. Healthy eating is important but dieting can trigger negative neurochemicals and can be hard to do.  
  • Walking generates positive neurochemicals. People look forward to walking and enjoy walking.  
  • And research shows that fit beats fat for many people. Walking half an hour a day has health benefits that exceed the benefits of losing 20 pounds.  
  • When we walk every day, our bodies are healthier and stronger. A single 30 minute walk can reduce blood pressure by five points for over 20 hours.  
  • Walking reduces the risk of blood clots in your legs.  
  • People who walk regularly have much lower risk of deep vein thrombosis.  
  • People who walk are less likely to catch colds, and when people get colds, walkers have a 46 percent shorter symptom time from their colds.  
  • Walking improves the health of our blood, as well. Walking is a good boost of high density cholesterol and people with high levels of HDL are less likely to have heart attacks and stroke.  
  • Walking significantly diminishes the risk of hip fracture and the need for gallstone surgery is 20 to 31 percent lower for walkers.  
  • Walking is the right thing to do. The best news is that the 30 minutes doesn't have to be done in one lump of time. Two 15 minute walks achieve the same goals. Three 10 minute walks achieve most of those goals.  
  • We can walk 15 minutes in the morning and 15 minutes at night and achieve our walking goals.  
  • Walking feels good. It helps the body heal. It keeps the body healthy. It improves our biological health, our physical health, our psychosocial health, and helps with our emotional health. Walking can literally add years entire years to your life.
Its good to walk.
Be good to yourself. Be good to your body.
ALL ACCUPRESSURE POINTS ARE IN THE SOLE OF YOUR FEET ......
JUST LIKE YOUR HANDS !!

रविवार, 11 अगस्त 2013

sanskrit bramh vani : mridul kirti

संस्कृत ब्रह्म वाणी क्यों है? – डॉ.मृदुल कीर्ति


अपरा और परा का संयोग ही सकल जगत का बीज है.
बीजं माम सर्व भूतानाम ———–गीता ७/१०
सब प्राणियों का अनादि बीज मुझे ही जान.
आठ भेदों वाली– पञ्च तत्त्व, मन, बुद्धि, अहम् 
यह मेरी अपरा प्रकृति है.–गीता ७–४/५
पञ्च तत्वों की तन्मात्राओं में ही इस जिज्ञासा के सूत्र छिपे हैं
 कि संस्कृत ब्रह्म वाणी क्यों है?
पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश ये पांच स्थूल तत्व हैं. 
रूप ,गंध, रस,स्पर्श और ध्वनि यह पांच इनकी तन्मात्राएँ हैं. 
इन्हें सूक्ष्म महाभूत भी कहते हैं. 
इन पाँचों तत्वों में आकाश का ध्वनि तत्व अन्य सभी तत्वों में समाहित है. 
आकाश सर्वत्र है, क्योंकि ज्यों-ज्यों जड़ता घटती है, 
त्यों-त्यों गति उर्ध्व गामी होती है. 
आकाश की तन्मात्रा ( निहित विशेषता ) नाद है. 
नाद अर्थात ध्वनि, ध्वनि अर्थात स्वर.संस्कृत में ‘र’ का अर्थ प्रवाह होता है,
 ‘स्व’ अर्थात अपना मूल तत्त्व. ‘नाद’ आकाश की तन्मात्रा है जो
आकाश की मूल तत्व शक्ति है, अपना मूल ध्वनि प्रवाह है. 
अतः आदि शक्ति का स्वर स्रोत, भूमा की ध्वनि है,
 तब ही उद्घोषित है कि ‘नाद ही ब्रह्म है.’
नाद –आकाश की वह तन्मात्रा है, 
जो ब्रह्म की तरह ही शाश्वत, विराट, अगम्य, अथाह और आत्म-भू है.
आकाश सर्वत्र है अतः नाद भी सर्वत्र है.
वाणी — नाद- शक्ति, ही वाणी की ऊर्जा है और वाणी का सार्थक रूप
 शब्दों में ही रूपांतरित होता है. 
शब्द अक्षरों से बने हैं.. 
अतः मन जिज्ञासु होता है कि अक्षरों का मूल स्रोत्र क्या है?
अक्षरों का मूल स्रोत
वासुदेव का उदघोष
“अक्षरानामकारोस्मि” —-गीता १०/ ३३
अक्षरों में अकार मैं ही हूँ और बिना आखर के
 शब्द संसार की रचना नहीं हो सकती.
कदाचित अक्षर नाम इसीलिये हुआ कि
 ‘क्षर’ (नाश) ‘अ’ (नहीं) जिसका विनाश नहीं होता वह अक्षर है.
अतः बोला हुआ कुछ भी नाश नहीं होता. 
सो जैसे ब्रह्म अविनाशी है वैसे ही अक्षर भी अविनाशी हैं.
 अतः ” शब्द और ब्रह्म” सहोदर है गर्भा शब्द
ब्रह्मा की नाभी से अक्षरों का निःसृत माना जाना इसी तथ्य की पुष्टि है.
देह विज्ञान और आध्यात्म संयोजन के बिंदु संयोजन की जब बात होती है तो मूलाधार से सहस्त्रधार तक के बिन्दुओं में तीसरा बिंदु ‘मणिपुर’ क्षेत्र का है,
 जो ‘नाभी’ से प्रारंभ होता है. नाभी क्षेत्र 
दिव्य ऊर्जा से पूर्ण है और सृजन का भी स्रोत बिंदु है. 
गर्भस्थ शिशु को भोजन नाभि से ही मिलता है.
 वेदों में मूल स्रोत्र के सन्दर्भ में “हिरण्य गर्भा ” शब्द प्रयुक्त हुआ है.
 ब्रह्मा की नाभी से निःसृत होने का यही संकेत है. 
यहीं पर ‘कुण्डलिनी’ है जो अनंत दिव्य मणियों से पूरित है. 
यहीं से आखर का उच्चारण भी आरम्भ होता है. 
पुष्टि के लिए आप ‘अ ‘ अक्षर का उच्चारण करें तो
 ‘नाभि’ क्षेत्र स्पंदित होता है.
 नाभि क्षेत्र को छुए बिना आप ‘अ ‘ बोल ही नहीं सकते. अतः
‘अकारो विष्णु रूपात’
स्वयं सिद्ध है.
अ से म तक की अक्षर यात्रा ही ‘ओम’ का बोध कराती है, 
क्योंकि ‘ओइम’ में व्योम की सारी नाद शक्ति समाहित है.
सबसे अधिक ध्यान योग्य तथ्य है कि ओम के कोई रूप नहीं होते.
 परब्रह्म के एकत्व का प्रमाण भाषा विज्ञानं के माध्यम से भी है.
बिना अकार के कोई अक्षर नहीं होता 
अर्थात बिनाब्रह्म शक्ति के किसी आखर का अस्तित्व नहीं है. 
आप ‘क’ बोलें तो वह क +अ = क ही है. 
यही ‘ अक्षरों में ब्रह्म के अस्तित्व की अकार रूप में प्रमाणिकता है.
अक्षरों का प्राण तत्व ब्रह्म ही है.
यही वह बिंदु है जहॉं से वेद निःसृत हुए है 
क्योंकि नाद का श्रुति से सम्बन्ध है और हम श्रुति परंपरा के वाहक भी तो हैं.
 ब्रह्मा द्वारा ऋषि मुनियों को ध्वनि संचेतना से ही ज्ञान संवेदित हुए.
 ये अनुभूति क्षेत्र की उर्जा से ही अनुभव में उजागर होकर
 वाणी द्वारा व्यक्त हुए.
पाणिनि अष्टाध्यायी में लिखा है कि ‘पाणिनी व्याकरण’ शिव ने उपदिष्ट की थी.
‘वेद’ सुनकर ही तो हम तक आये हैं. तब ही वेदों को श्रुति’ भी कहते है.
जैसे ब्रह्म अविनाशी है वैसे ही वाणी भी अविनाशी है.
 तब ही उपदिष्ट किया जाता है कि ‘दृष्टि, वृत्ति और वाणी ‘ सब प्रभु में जोड़ दो,
 क्योकि वाणी कई जन्मों तक पीछा करती है. 
वाणी की प्रतिक्रिया से प्रारब्ध भी बनते है,
 इसकी ऊर्जा से वर्तमान और भविष्य भी बनते हैं.
संस्कृत भाषा की विशेषताएं
संस्कृत भाषा का मूल भी दिव्यता से ही निःसृत है.——————-
सम और कृत दो शब्दों के योग से संस्कृत शब्द बना है. 
सम का अर्थ सामायिक अर्थात हर काल, युग में 
एक सी ही रहने वाली.विधा. समय के प्रभाव से परे 
अर्थात कितना ही काल बीते इसके मूल स्वरुप में कोई परिवर्तन नहीं होता.
जो स्वयं में ही पूर्ण और सम्पूर्ण है. कृ क्रिया ‘कृत’ के लिए प्रयुक्त हुआ है.
संस्कृत में सोलह स्वर और छत्तीस व्यंजन हैं.
 ये जब से उद्भूत हुए तब से अब तक इनमें अंश भर भी परिवर्तन नहीं हुए हैं.
 सारी वर्ण माला यथावत ही है.
मूल धातु (क्रिया) में कोई परिवर्तन नहीं होता
 यह बीज रूप में सदा मूल रूप में ही प्रयुक्त होती है. 
जैसे ‘भव’ शब्द है सदा भव ही रहेगा, 
पहले और बाद में शब्द लग सकते हैं जैसे अनुभव , संभव , भवतु आदि.
संस्कृत व्याकरण में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता.
जैसे ब्रह्म अविनाशी वैसे ही संस्कृत भी अविनाशी है.
नाद की परिधि में आते ही ‘अक्षर’ ‘अक्षर’ हो जाते हैं, 
महाकाश में समाहित ब्रह्ममय हो जाते हैं.
सूक्ष्म और तत्व मय हो जाते हैं. 
इस पार गुरुत्वमय तो उस पार तत्वमय , 
नादमय और ब्रह्ममय क्षेत्र का पसारा है.
डॉ.मृदुल कीर्ति
 

शनिवार, 10 अगस्त 2013

nagpanchami

नागपंचमी :
लावण्या शाह

*

नाग पँचमी के अवसर पर भारत के उज्जैन शहर के मँदिर मेँ भगवान शिव और पार्वती जी की प्रतिमा पर शेष नाग छत्र किये हुए हैँ
जिसकी अत्याधिक महिमा है 

  • नाग पूर्वजोँ को भी कहा गया है कि सँपत्ति व सँतति के प्रति बहुत मोह या लोभ के कारण नाग योनि मेँ पैदा होकर वे रखवाली करते हैँ -
    गाईड फिल्म मेँ वहीदा जी का भी एक रोमाँचक सर्प नृत्य दीखलाया गया था -- नाग लोक पाताल लोक है जिसकी राजधानी भोगावती कहलाती है
  • तो आइये, नाग देवताओँ को प्रणाम करेँ --
  • नाग सारे कश्यप ऋषि की सँतान हैँ - और कद्रू और वनिता जो गरिद की माता थीम वे कश्यप जी की पत्नीयाँ थीँ
  • Anantha: अनन्त शेष नाग जिस पर महाविष्णु दुग्ध सागर मेँ शयन करते हैँ
  • Balarama: बलराम: श्री कृष्ण के बडे भाई, रेवती के पुत्र जो शेष नाग के अवतार हैँ
  • Karkotaka: कर्कोटक- जों आबोहवा के नियँत्रक हैँ
  • Padmavati: पद्मावती: राजा धरणेन्द्र की नाग साथिन
  • Takshaka: तक्षक :नागोँ के राजा
  • UlupiArjuna : की पत्नी : नाग वँश की राज महाभारत से (epic Mahabharata.)
  • Vasuki: वासुकी : नागोँ के राजा जिन्होँने देवोँ की अमृत लाने मेँ सहायता की (devas ) Ocean of Milk.

 WHERE NĀGA LIVE

  • Bhoga-vita: भोगावती : पाताल की राजधानी
  • Lake Manosarowar: मानसरोवर : नाग भूमि
  • Mount Sumeru : सुमेरु पर्बत
  • Nagaland : भारत का नागालैन्ड प्राँत
  • Naggar: नग्गर ग्राम : हिमालय की घाटी मेँ बसा Himalayas, तिब्बत
  • Nagpur: नागपुर शहर, भारत (Nagpur is derived from Nāgapuram, )
  • Pacific Ocean: (Cambodian myth)
  • Pātāla: (or Nagaloka) the seventh of the "nether" dimensions or realms.
  • Sheshna's well: in Benares, India, said to be an entrance to Patala.

नाग देवता पर फिल्माये गये नृत्य देखेँ जायेँ - लीजिये ..ये रहे लिन्क

शेष नाग की शैया पर लेटे हुए महा विष्णु की प्राचीन प्रतिमा
शिवलिँगम्`

नागिन फिल्म के गीत मन मेँ गूँज रहे हैँ - 
" मन डोले मेरा तन डोले रे मेरे दिल का गया करार रे ये कौन बजाये बाँसुरिया "


और श्रीदेवी की छवि मन पटल पर उपस्थित हो गयी ! 

नगीना मेँ नीली , हरी आँखोँ के लेन्स लगाये , सँपेरे बने अमरीश पुरी को गुस्से से फूँफकारती हुई, 
डराती हुई लहराती हुई , नाचते हुए, लता जी के स्वर मेँ गाती हुई जादूभरी नागिन 
" मैँ तेरी दुशमन, तू दुशमन है मेरा, मैँ नागिन तू सँपेरा ..आ आ "

और भी एक अद्भुत नृत्य है - श्रीदेवी और जया प्रदा 
दोनोँ साथ नाच रहीँ हैँ मँदिर मेँ और जीतेन्द्र गा रहे हैँ " हे नाग राजा तुम आ जाओ " -

Nameste
http://lavanyam-antarman.blogspot.com/*
संजीव 'सलिल'
नागिन जैसी झूमतीं , श्यामल लट मुख गौर.
ना-गिन अनगिनती लटें, लगे आम्र में बौर..
नाग के बैठने की मुद्रा को कुंडली मारकर बैठना कहा जाता है. इसका भावार्थ जमकर या स्थिर होकर बैठना है. इस मुद्रा में सर्प का मुख और पूंछ आस-पास होती है. इस गुण के अधर पर कुण्डलिनी छंद बना है जिसके आदि-अंत में एक सामान शब्द या शब्द समूह होता है.

कुंडली  छंद :

हिंदी की जय बोलिए, हो हिंदीमय आप.
हिंदी में नित कार्य कर, सकें विश्व में व्याप..
सकें विश्व में व्याप, नाप लें समुद ज्ञान का.
नहीं व्यक्ति का, बिंदु 'सलिल' राष्ट्रीय आन का..
नेह-नरमदा नहा बोलिए होकर निर्भय.
दिग्दिगंत में गूज उठे, फिर हिंदी की  जय..
*
नव संवत्सर पर करें, शब्द-पुत्र संकल्प.
राष्ट्र-विश्व हित ही जियें, इसका नहीं विकल्प..
इसका नहीं विकल्प, समय के साथ चलेंगे.
देश-दुश्मनों की छाती पर दाल दलेंगे..
जीवन का हर पल, मानव सेवा का अवसर.
मानव में माधव देखें, शुभ नव संवत्सर..
*
साँसों के साम्राज्य का, वह मानव युवराज.
त्याग-परिश्रम का रखा, जिसने निज सिर ताज..
जिसने निज सिर ताज, शीश को नित्य नवाया.
अहंकार का पाश 'सलिल' सम, व्यर्थ बनाया..
पीड़ा-वन में राग छेड़ता, जो हासों के.
उसको ही चंदन-वंदन, मिलते श्वासों के..
*
हर दिन, हर पल कर सके, यदि मन सच को याद.
जग-जीवन आबाद कर, खुद भी होता शाद..
खुद भी होता शाद, नेह-नर्मदा बहाता.
कोई रहे न गैर, सकल जग अपना पाता.
कंकर में शंकर दिखते, उसको हर पल-छिन.
'सलिल' करे अभिषेक, विहँसकर उसका हर दिन..
*
धुआँ-धुआँ सूरज हुआ, बदली-बदली धूप.
ऊषा संध्या निशा सा, दोपहरी का रूप..
दोपहरी का रूप,  झुका आकाश दिगंबर.
ऊपर उठती धारा, गले मिल, मिटता अंतर.
सिमट समंदर खुद को, करता कुआँ-कुआँ.
तज सिद्धांत सियासत-सूरज धुआँ-धुआँ..
*
मरुथल बढ़ता, सिमटता हरियाली का राज.
धरती के सिर पर नहीं, शेष वनों का ताज.
शेष वनों का ताज, नहीं पर्वत-कर बाकी.
सलिल बिना सलिलायें, मधुशाला बिन साक़ी.
नहीं काँपता पंछी-कलरव बिन क्यों मानव?
हरियाली का ताज सिमटता, बढ़ता मरुथल..
*
कविता कवि करता अगर, जिए सुकविता आप.
सविता तब ही सकेगा, कवि-जीवन में व्याप..
कवि-जीवन में व्याप, लक्ष्मी दूर रहेगी.
सरस्वती नित लेकर, सुख-संतोष मिलेगी..
निशा उषा संध्या वंदन कर, हर ढल-उगता.
जिए सुकविता आप, अगर कवि करता कविता..
*

smaran : mohammad rafi

स्मरण : 

: कालजयी गायक मोहम्‍मद रफ़ी :

मोहम्मद रफ़ी के चाहने वाले दुनिया भर में हैं. सुमधुर गायक मोहम्मद रफ़ी भले ही हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ करोड़ों दिलों में आज भी अपना स्थान बनाये है. मोहम्मद रफ़ी के विविध आयामी गायन एवं व्यक्तित्व को भूल पाना उनसे मिले किसी भी व्यक्ति के लिए संभव नहीं है. गांव मजीठा, जिला अमृतसर पंजाब में 24 दिसंबर, 1924 को  जन्में मोहम्मद रफ़ी के पिता हाजी अली मोहम्मद और माता अल्लारखी थीं. उनके पिता ख़ानसामा थे. रफ़ी के बड़े भाई मोहम्मद दीन की हजामत की दुकान थी. यहाँ उनके बचपन का काफ़ी वक़्त गुज़रा.

बचपन में रफ़ी इकतारा बजाते फ़कीर के पीछे-पीछे घूमते हुए उसके स्वर में स्वर मिलाकर गाते थे. एक दिन उनके बड़े भाई ने देख लिया और उनके वालिद को बताया तो रफ़ी को काफ़ी डांट पड़ी. उस फ़क़ीर ने रफ़ी को आशीर्वाद दिया था कि वह आगे चलकर ख़ूब नाम कमाएगा. एक दिन दुकान पर आए कुछ लोगों ने ऱफी को फ़क़ीर के गीत इस क़दर सधे हुए सुर में गाते सुना कि वे लोग हैरान रह गए. ऱफी के बड़े भाई ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. 1935 में उनके पिता रोज़गार के सिलसिले में लाहौर आ गए. यहां उनके भाई ने उन्हें गायक उस्ताद उस्मान ख़ान अब्दुल वहीद ख़ान की शार्गिदी में सौंप दिया. बाद में रफ़ी ने पंडित जीवन लाल और उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली खां जैसे शास्त्रीय संगीत के दिग्गजों से भी संगीत सीखा.


आरम्भ में मोहम्मद रफ़ी उस वक़्त के मशहूर गायक और अभिनेता कुंदन लाल सहगल के दीवाने थे  और उनके जैसा ही बनना चाहते थे. वह छोटे-मोटे जलसों में सहगल के गीत गाते थे. क़रीब 15 साल की उम्र में उनकी मुलाक़ात सहगल से हुई. हुआ यूं कि एक दिन लाहौर के एक समारोह में सहगल गाने वाले थे. रफ़ी भी अपने भाई के साथ वहां पहुंच गए. संयोग से माइक ख़राब हो गया और लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया. व्यवस्थापक परेशान थे कि लोगों को कैसे ख़ामोश कराया जाए. उसी वक़्त रफ़ी के बड़े भाई व्यवस्थापक के पास गए और उनसे अनुरोध किया कि माइक ठीक होने तक रफ़ी को गाने का मौक़ा दिया जाए. मजबूरन व्यवस्थापक मान गए. रफ़ी ने गाना शुरू किया, लोग शांत हो गए. इतने में सहगल भी वहां पहुंच गए. उन्होंने रफ़ी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि एक दिन तुम्हारी आवाज़ दूर-दूर तक फैलेगी.

बाद में रफ़ी को संगीतकार फ़िरोज़ निज़ामी के मार्गदर्शन में लाहौर रेडियो में गाने का मौक़ा मिला. उन्हें कामयाबी मिली और वह लाहौर फ़िल्म उद्योग में अपनी जगह बनाने की कोशिश करने लगे. उस दौरान उनकी रिश्ते में बड़ी बहन लगने वाली बशीरन से उनकी शादी हो गई. उस वक़्त के मशहूर संगीतकार श्याम सुंदर और फ़िल्म निर्माता अभिनेता नासिर ख़ान से रफ़ी की मुलाक़ात हुई. उन्होंने उनके गाने सुने और उन्हें बंबई आने का न्यौता दिया. ऱफी के पिता संगीत को इस्लाम विरोधी मानते थे, इसलिए बड़ी मुश्किल से वह संगीत को पेशा बनाने पर राज़ी हुए.
1944 में रफ़ी अपने भाई के साथ बंबई पहुंचे. अपने वादे के मुताबिक़ श्याम सुंदर ने रफ़ी को पंजाबी फ़िल्म गुलबलोच में ज़ीनत के साथ गाने का मौक़ा दिया.  रफ़ी ने गुलबलोच के सोनियेनी, हीरिएनी तेरी याद ने बहुत सताया गीत के ज़रिये पार्श्वगायन के क्षेत्र में क़दम रखा.

नौशाद ने फ़िल्म शाहजहां के एक गीत में उन्हें सहगल के साथ दो पंक्तियां -मेरे सपनों की रानी, रूही, रूही रूही
गाने का मौक़ा दिया. नौशाद ने 1946 में फ़िल्म अनमोल घड़ी का गीत तेरा खिलौना टूटा बालक, तेरा खिलौना टूटा रफी की आवाज़ में रिकॉर्ड कराया. 1947 में फ़िरोज़ निज़ामी ने रफ़ी को फ़िल्म जुगनूं के युगल गीत 'यहां बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है' में रफ़ी को नूरजहां के साथ गाने का मौक़ा दिया.  यह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ. इसके बाद नौशाद ने रफ़ी से फ़िल्म मेला का एक गीत ये ज़िंदगी के मेले गवाया. इस फ़िल्म के बाक़ी गीत मुकेश से गवाये गए, लेकिन रफ़ी का गीत अमर हो गया. यह गीत हिंदी सिनेमा के बेहद लोकप्रिय गीतों में से एक है.

इस बीच रफ़ी संगीतकारों की पहली जोड़ी हुस्नलाल-भगतराम के संपर्क में आए. इस जोड़ी ने अपनी शुरुआती फ़िल्मों प्यार की जीत, बड़ी बहन और मीना बाज़ार में रफ़ी की आवाज़ का भरपूर इस्तेमाल किया. इसके बाद तो नौशाद को भी फ़िल्म दिल्लगी में नायक की भूमिका निभा रहे श्याम कुमार के लिए रफ़ी की आवाज़ का ही इस्तेमाल करना पड़ा. इसके बाद फ़िल्म चांदनी रात में भी उन्होंने रफ़ी को मौक़ा दिया. बैजू बावरा संगीत इतिहास की सिरमौर फ़िल्म मानी जाती है. इस फ़िल्म ने रफ़ी को कामयाबी के आसमान तक पहुंचा दिया. इस फ़िल्म में प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक उस्ताद अमीर खां साहब और डी वी पलुस्कर ने भी गीत गाये थे. फ़िल्म के पोस्टरों में भी इन्हीं गायकों के नाम प्रचारित किए गए, लेकिन जब फिल्म प्रदर्शित हुई तो मोहम्मद रफ़ी के गाये गीत तू गंगा की मौज और ओ दुनिया के रखवाले हर तरफ़ गूंजने लगे. रफ़ी ने अपने समकालीन गायकों तलत महमूद, मुकेश और सहगल के रहते अपने लिए जगह बनाई.

रफ़ी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने तक़रीबन 26 हज़ार गाने गाये, लेकिन उनके तक़रीबन पांच हज़ार गानों के प्रमाण मिलते हैं, जिनमें ग़ैर फ़िल्मी गीत भी शामिल हैं. देश विभाजन के बाद जब नूरजहां, फ़िरोज़ निज़ामी और निसार वाज्मी जैसी कई हस्तियां पाकिस्तान चली गईं, लेकिन वह हिंदुस्तान में ही रहे. इतना ही नहीं, उन्होंने सभी गायकों के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा देशप्रेम के गीत गाये. रफ़ी ने जनवरी, 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के एक माह बाद गांधी जी को श्रद्धांजलि देने के लिए हुस्नलाल भगतराम के संगीत निर्देशन में राजेंद्र कृष्ण रचित सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों, बापू की ये अमर कहानी गीत गाया तो पंडित जवाहर लाल नेहरू की आंखों में आंसू आ गए थे. भारत-पाक युद्ध के वक़्त भी रफ़ी ने जोशीले गीत गाये. यह सब पाकिस्तानी सरकार को पसंद नहीं था. शायद इसलिए दुनिया भर में अपने कार्यक्रम करने वाले रफ़ी पाकिस्तान में शो पेश नहीं कर पाए. ऱफी किसी भी तरह के गीत गाने की योग्यता रखते थे. संगीतकार जानते थे कि आवाज़ को तीसरे सप्तक तक उठाने का काम केवल ऱफी ही कर सकते थे. मोहम्मद रफ़ी ने संगीत के उस शिखर को हासिल किया, जहां तक कोई दूसरा गायक नहीं पहुंच पाया. उनकी आवाज़ के आयामों की कोई सीमा नहीं थी. मद्धिम अष्टम स्वर वाले गीत हों या बुलंद आवाज़ वाले याहू शैली के गीत, वह हर तरह के गीत गाने में माहिर थे. उन्होंने भजन, ग़ज़ल, क़व्वाली, दशभक्ति गीत, दर्दभरे तराने, जोशीले गीत, हर उम्र, हर वर्ग और हर रुचि के लोगों को अपनी आवाज़ के जादू में बांधा. उनकी असीमित गायन क्षमता का आलम यह था कि उन्होंने रागिनी, बाग़ी, शहज़ादा और शरारत जैसी फ़िल्मों में अभिनेता-गायक किशोर कुमार पर फ़िल्माये गीत गाये.


वह 1955 से 1965 के दौरान अपने करियर के शिखर पर थे. यह वह व़क्त था, जिसे हिंदी फ़िल्म संगीत का स्वर्ण युग कहा जा सकता है. उनकी आवाज़ के जादू को शब्दों में बयां करना नामुमकिन है. उनकी आवाज़ में सुरों को महसूस किया जा सकता है. उन्होंने अपने 35 साल के फ़िल्म संगीत के करियर में नौशाद, सचिन देव बर्मन, सी रामचंद्र, रोशन, शंकर-जयकिशन, मदन मोहन, ओ पी नैयर, चित्रगुप्त, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, सलिल चौधरी, रवींद्र जैन, इक़बाल क़ुरैशी, हुस्नलाल, श्याम सुंदर, फ़िरोज़ निज़ामी, हंसलाल, भगतराम, आदि नारायण राव, हंसराज बहल, ग़ुलाम हैदर, बाबुल, जी एस कोहली, वसंत देसाई, एस एन त्रिपाठी, सज्जाद हुसैन, सरदार मलिक, पंडित रविशंकर, उस्ताद अल्ला रखा, ए आर क़ुरैशी, लच्छीराम, दत्ताराम, एन दत्ता, सी अर्जुन, रामलाल, सपन जगमोहन, श्याम जी-घनश्यामजी, गणेश, सोनिक-ओमी, शंभू सेन, पांडुरंग दीक्षित, वनराज भाटिया, जुगलकिशोर-तलक, उषा खन्ना, बप्पी लाह़िडी, राम-लक्ष्मण, रवि, राहुल देव बर्मन और अनु मलिक जैसे संगीतकारों के साथ मिलकर संगीत का जादू बिखेरा.

रफ़ी साहब ने 31 जुलाई, 1980 को आख़िरी सांस ली. उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. जिस रोज़ उन्हें जुहू के क़ब्रिस्तान में दफ़नाया गया, उस दिन बारिश भी बहुत हो रही थी. उनके चाहने वालों ने उन्हें नम आंखों से विदाई दी. लग रहा था मानो ऱफी साहब कह रहे हों-
हां, तुम मुझे यूं भुला न पाओगे
जब कभी भी सुनोगे गीते मेरे
संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे…

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

जन्म दिवस शुभ कामना:

जन्म दिवस शुभ कामना:
  अगस्त- 1-  अमर ज्योति 
                6-  सुनीता सानू
                8 -  डॉ. एस. एन. शर्मा 'कमाल'
               11 - सुरेन्द्र भूटानी 
               28 - श्याम सखा 'श्याम'  

सितंबर-  1 -  शार्दुला नोगजा
                8 -  अनूप भार्गव 
              10 - रविकांत 'अनमोल' 
              23 - रामधारी सिंह 'दिनकर' 

'दिनकर'  अमर अनूप है, किरण शार्दुला शांत
श्याम सखा अनमोल नभ-उर-वासी रवि कांत
देख सुनीता जिन्दगी, भू पर उतर सुरेंद्र
कहे कमल सम अमल हो, सचमुच धन्य नरेन्द्र
ज्यों की त्यों चादर रखूँ, ढाई आखर बांच
ज्ञान-कर्म दश अश्व का, रथपति बोलूँ सांच
वर्ष-ग्रंथि आगमन की, दर्पण से साक्षात्
क्या करना था क्या किया, पूछे नवल प्रभात
'सलिल' करे अभिषेक नित, चन्दन शोभित माथ
सदा रहे- है विनय यह, स्वीकारो हे तात!

download manager

Hindi Tech Blog


Posted: 08 Aug 2013 02:30 AM PDT
डाउनलोड मैनेजर इंटरनेट से डाउनलोडिंग को बहुत आसान बना देते है । ज्यादा फाइल डाउनलोड करनी हो या कोर्इ बडी फाइल डाउनलोड करनी हो सबसे बेहतर विकल्प डाउनलोड मैनेजर ही होते है । ऐसे में एक नया बढि.या विकल्प है eagleget इसमें डाउनलोड मैनेजर की सभी जरुरी खूबिया तो है ही साथ ही ये आपको आासानी से यूटयूब विडियो डाउनलोड करने की अतिरिक्त सुविधा भी देता है ।

ये सभी प्रमुख ब्राउजर जैसे फायरफाक्स, ओपेरा, इंटरनेट एक्सप्लोरर और क्रोम के साथ भी जुड जाता है यानि आप सीधे ब्राउजर से ही इसका उपयोग कर सकते हैं और चाहें तो बिना किसी ब्राउजर के सीधे ही इसका प्रयोग कर सकते हैं ।

एक बार इसें इंस्टाल करने के बाद ये आपके ब्राउजर में किसी लिंक पर राइट किलक करने पर तो उपयोग किया जा ही सकता है साथ ही यूटयूब पर आपको विडियो पर एक अतिरिक्त डाउनलोड बटन भी दिखार्इ देगा जिस पर किलक करके आप यूटयूब विडियो को अलग अलग फार्मेट में किसी एक विकल्प में डाउनलोड कर पायेंगें ।

कुछ इस तरह






साथ ही आप चाहे तो सीधे लिंक से ही यूटयूब विडियो डाउनलोड कर सकते है इसके लिए आपको पहले तो  डाउनलोड मैनेज्र को शुरु करना होगा फिर Video sniffer पर किलक करके दांयी ओर खुली छोटी विंडो में लिंक को टाइप या पेस्ट करना होगा । थोडी देर में नीचे Quality के सामने अपनी पसंद का फार्मेट चुने और उसके सामने रेडियो बटन सेलेक्ट करे फिर नीचे Download पर किलक कर दे आपका यूटयूब विडियो डाउनलोड होने लगेगा ।


कुछ इस तरह


इसमें कुछ अतिरिक्त सुविधांए भी है जैसे आप तय कर सकते है कि एक निशिचत समय में डाउनलोड मैनेजर खुद ही आपकी लिंक की हुर्इ फाइल्स को डाउनलोड करना शुरु कर दे ( मुख्य चित्र देंखें )

और इस टूल की सबसे अच्छी बात तो ये है कि ये बिल्कुल मुफ्त है और आाकार में भी छोटा सिर्फ 4 एम बी का है ।

इसे डाउनलोड करने यहां किलक करें ।

दूसरी अतिरिक्त डाउनलोड लिंक यहां है ।


उम्मीद है ये टूल आपके काम आयेगा ।

बुधवार, 7 अगस्त 2013

Pratinidhi Doha Kosh 11 Dr. Shyam Gupta

ॐ  

प्रतिनिधि दोहा कोष :११ आचार्य संजीव

इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं सर्व श्री/श्रीमती/सुश्री  नवीन सी. चतुर्वेदी, पूर्णिमा बर्मन तथा प्रणव भारती,  डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र', अर्चना मलैया, सोहन परोहा 'सलिल', साज़ जबलपुरी, श्यामल सुमन, शशिकांत गीते तथा  वर्षा शर्मा 'रैनी' के दोहे। आज अवगाहन कीजिए  डा. श्याम गुप्त  रचित दोहा सलिला में :

*

दोहाकार ११: डा. श्याम गुप्त



*

मूल नाम: श्याम बाबू गुप्ता

जन्म: पश्चिमी  के  में  १० नवंबर १९४४, ग्राम मिढाकुर, जिला आगरा , उत्तर प्रदेश

आत्मज : स्व. श्रीमती राम भेजी देवी - स्व.जगन्नाथ प्रसाद गुप्त

 जीवन संगिनी : श्रीमती सुषमा गुप्ता , एम. ए.हिन्दी, कवियत्री -गायिका

शिक्षा: चिकित्सा शास्त्र में स्नातक, शल्य-क्रिया में स्नातकोत्तर उपाधि

सृजन विधा: हिन्दी अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में अगीत, ग़ज़ल, गीति विधा, कहानी आदि

 प्रकाशित कृति:कविता संग्रह:काव्य-दूत, काव्य-निर्झरिणी, काव्य-मुक्तामृत, अगीत महाकाव्य श्रृष्टि, प्रेम-काव्य, काव्य-उपन्यास शूर्पणखा, अगीत साहित्य दर्पण

संपर्क: डा श्याम गुप्त, सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना, लखनऊ २२६०१२,चलभाष: ९४१५१५६४६४।

ईमेल:  drgupta04@gmail.com 

डा श्याम गुप्त के दोहे....

आदि अभाव अकाम अज, अगुन अगोचर आप,
अमित अखंड अनाम भजि,श्याम मिटें त्रय-ताप |   

त्रिभुवन गुरु औ जगत गुरु, जो प्रत्यक्ष सुनाम,
जन्म मरण से मुक्ति दे, ईश्वर करूं  प्रणाम | 

हे माँ! ज्ञान प्रदायिनी,ते छवि निज उर धार,
सुमिरन कर दोहे रचूं, महिमा अपरम्पार |  

श्याम सदा मन में बसें, राधाश्री घनश्याम,
राधे  राधे नित जपें, ऐसे श्रीघनश्याम | 

अंतर ज्योति जलै प्रखर, होय ज्ञान आभास,
गुरु जब अंतर बसि करें,गोविंद नाम प्रकाश | 

शत शत वर्षों में नहीं, संभव निष्कृति मान,
करते जो संतान हित, मातु-पिता वलिदान |

धर्म हेतु करते रहें ,काव्य साधना कर्म,
जग को दिखलाते रहें, शुभ कर्मों का मर्म |  

श्याम जो सुत हो एक ही,पर हो साधु स्वभाव,
कुल आनंदित रहे ज्यों, चाँद-चांदनी भाव |    

नारी सम्मति हो जहां, आँगन पावन होय,
कार्य सकल निष्फल वहां, जहां न आदर सोय|  

हितकारी भोजन करें,खाएं जो ऋतु योग्य,
कम खाएं पैदल चलें, रहें स्वस्थ आरोग्य |   

अपने लिए कमाय औ, केवल खुद ही खाय,
श्याम पापमय अन्न है, जो न साधु को जाय |  

काव्य स्वयं का हो लिखा, माला निज गुंथ पाय,
चन्दन जो निज कर घिसा, अति ही शोभा पाय|  

आयु कर्म धन विद्वता, कुल शोभा अनुसार,
उचित वेश धारण करें, वाणी बुद्धि विचार |      
   
सबको निज में देखता, निज को सब में जान,
सोई रूप अभेद है, श्याम यही है ज्ञान |      

विद्या धर्म अकाम्यता, वेद-विहित सब कर्म,
ज्ञान-कर्म के योग में, निहित सनातन धर्म |   

कर्म के फल की कामना,माने उचित न कोय,
लेकिन पूर्ण अकाम्यता,श्याम न जग में होय |   

फल की जो इच्छा नहीं, धर्माधर्म अलिप्त,
राग द्वेष दुःख से परे, सोई जीवन्मुक्त |    

ज्ञाता ज्ञान औ ज्ञेय का, भेद रहे नहिं रूप,
वह तो स्वयं प्रकाश है, परमानंद स्वरुप |   

सींचे बिन मुरझा गयी, सदाचार की मूल,
श्याम कहाँ फूलें फलें, संस्कार के फूल | 

इस संसार असार में, श्याम प्रेम ही सार,
प्रेम करे दोनों मिलें, ज्ञान और संसार |  

तिर्यक भाव व कर्म को, चित लावे नहिं कोय,
मन लावै तो मन बसे, श्याम त्रिभंगी सोय |  

घिरी परिजनों से प्रिया, बैठे हैं मन मार,
पर चितवन से होरहा, नयनों का व्यापार |   

झूठहि  उठना बैठना, झूठ मान सम्मान,
अब है झूठ सा अवगुण, श्याम’ गुणों की खान |  

घर को सेवै सेविका, पत्नी सेवै अन्य,
छुट्टी लें तब मिल सकें, सो पति-पत्नी धन्य |  

श्याम सुखद दोउ भाव हैं, या सोने के रंग,
सोहे रजनी अंक, और सोहे सजनी अंग |    

पनघट ताल कुआ मिटे, मिटी नीम की छांह,
इस विकास के कारने, उजड़ा सारा गाँव |    

चन्द्र दरस को सुन्दरी, घूंघट लियो उघारि ,
चित चकोर चितबत चकित, दो दो चन्द्र निहारि|  

भ्रकुटि तानि बरजै सुमुखि, मन ही मन ललचाय,
पिचकारी ते श्याम की, तन मन सब रंगि जाय

अपनी लाज लुटा रही, द्रुपद-सुता बाज़ार,
इन चीरों का क्या करूँ, कृष्ण खड़े लाचार |  

ईश्वर अल्लाह कब मिले, हमें झगड़ते यार,
फिर मानव क्यों व्यर्थ ही करता है तकरार |  

सर्द पश्चिमी हवा में, ठिठुरा हिन्दुस्तान,
लिए पूर्वी धूप अब, उगें सूर्य भगवान |