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सोमवार, 11 जून 2012

रामचरित मानस में छंद वैविध्य --सुरेश कुमार चौधरी







--सुरेश कुमार चौधरी
 संस्कृत और प्राकृत/भाषा/अवधी/ब्रज में छन्द दो प्रकार के होते हैं - वार्णिक और मात्रिक | दोनों की इकाई है वर्ण, जो कि मात्रा सहित उच्चारित ध्वनि है | वर्ण से यहाँ अर्थ है
१. एक अकेला (व्यञ्जन रहित) स्वर
२. एक या एक से अधिक व्यञ्जन के बाद एक स्वर (क क्य स्त्य र्स्त्न्य इत्यादि)    

वार्णिक छन्द में वर्णों की सङ्ख्या और लघु-गुरु के क्रम का नियम होता है | जबकि मात्रिक छन्द में केवल मात्राओं की सङ्ख्या का नियम होता है | छन्दों में मात्रा गिनने के लिए और लघु-गुरु निर्धारण के लिए कुछ नियम हैं -


             रामचरित मानस में छंद वैविध्य 



 मात्रा गिनना :  

१. अ इ उ ऋ - ये ह्रस्व स्वर अकेले आएँ या किसी व्यञ्जन के बाद - तब एक मात्रा गिनी जाती है (लघु)
२. आ ई ऊ ए ऐ ओ औ - ये दीर्घ स्वर अकेले आएँ या किसी व्यञ्जन के बाद - तब दो मात्राएँ गिनी जाती हैं (गुरु) |
३. यदि एक ही शब्द में लघु के तुंरत बाद संयुक्ताक्षर (दो या अधिक व्यञ्जन जिनके बीच कोई स्वर न हो) हो तो पहले आनेवाले लघु को गुरु गिना जाता है |
४. छन्द के एक चरण (चौथे या आधे भाग) के अन्त में लघु को गुरु गिना जा सकता हैं यदि चरण पूरा करने के लिए आवश्यकता हो |
५. प्राकृत में एकार और ओकार एकमात्रिक भी होते हैं | मानस गेय है, अतः इसमें दोनों प्रकार के (एकमात्रिक और द्विमात्रिक) एकार और ओकार का प्रयोग है | यह सूक्ष्मज्ञान मानस के छन्द गाने के बाद ही होता है | 
दो शब्दों के बीच आने वाले विराम या अवसान को छन्दःशास्त्र में "यति" की संज्ञा दी जाती है | छन्दःशास्त्र में गणों द्वारा छन्दों का वर्णन किया जाता है | तीन वर्णों के समूह को संक्षेप में लिखने के लिए एक अक्षर का प्रयोग होता है | आठ गण इस प्रकार है |

गण :
१.      लघु-गुरु-गुरु
२.      गुरु-गुरु-गुरु
३.      गुरु-गुरु-लघु
४.       गुरु-लघु-गुरु
५.     लघु-गुरु-लघु  
६.      गुरु-लघु-लघु
७.      लघु-लघु-लघु
८.      लघु-लघु-गुरु

गणों के अक्षरों को कण्ठस्थ करने के लिए एक सूत्र है - "यमाताराजभानसलगाः" | इसके अतिरिक्त एक श्लोक भी है -
                                                              
आदिमध्यावसानेषु यरता यान्ति लाघवम् |       
भजसा गौरवं यान्ति मनौ तु गुरुलाघवम् ||
आदिमध्यावसानेषु यरता यान्ति लाघवम् | भजसा गौरवं यान्ति मनौ तु गुरुलाघवम् || 

मानस में विविध छन्दों की सङ्ख्या: चौपाई - ९३८८, दोहा - ११७२, सोरठा - ८७, श्लोक (अनुष्टुप्, शार्दूलविक्रीडित, वसन्ततिलका, वंशस्थ,  उपजाति, प्रमाणिका, मालिनी, स्रग्धरा, रथोद्धता, भुजङ्गप्रयात, तोटक) - ४७, छन्द (हरिगीतिका, चौपैया, त्रिभङ्गी, तोमर) - २०८ | कुल १०९०२ |

श्रीरामचरितमानस में संस्कृत श्लोकों में प्रयुक्त छन्द ;

  मानस में कुल मिलाकर संस्कृत के ४७  श्लोक हैं जिनके छन्द इस प्रकार हैं  -
 
१. अनुष्टुप्                                                                                                   

यह मानस का पहला छन्द है | वाल्मीकि रामायण मुख्यतः इसी छन्द में लिखी हुई है | इसे श्लोक भी कहते हैं | यह छन्द न पूर्णतयः मात्रिक है, न ही पूर्णतयः वार्णिक | इसमें चार चरण होते हैं | हर चरण में आठ वर्ण होते हैं - पर मात्राएँ सबमें भिन्न भिन्न | प्रत्येक चरण में पाँचवा वर्ण लघु और छठा वर्ण गुरु होता है | पहले और तीसरे चरण में सातवाँ वर्ण गुरु होता है, और दूसरे और चौथे में सातवाँ वर्ण लघु होता है |प्रत्येक चरण के बाद यति होती है | मानस में ७ अनुष्टुप् छन्द हैं - पाँच बालकाण्ड के प्रारंभ में (१.१.१-१.१.५), एक युद्धकाण्ड के प्रारंभ में (६.१.३) और एक उत्तरकाण्ड में रुद्राष्टकम् के अन्त में (७.१०८.९) | उदाहरण - मानस का पहला छन्द (१.१.१) -
वर्णानामर्थसङ्घानां रसानां छन्दसामपि | मङ्गलानां च कर्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ || 

२. शार्दूलविक्रीडित

इस मनोरम छन्द में चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण में १९ वर्ण होते हैं | १२ वर्णों के पश्चात् तथा चरण के अन्त में यति होती है | गणों का क्रम इस प्रकार है - म स ज स त त ग | मानस में यह छन्द सभी काण्डों में प्रयुक्त है (दोहा, सोरठा, चौपाई और हरिगीतिका भी सभी काण्डों में प्रयुक्त हैं ) | मानस में १० शार्दूलविक्रीडित छन्द हैं - बालकाण्ड (१.१.६), अयोध्याकाण्ड (२.१.१), सुन्दरकाण्ड (५.१.१) और युद्धकाण्ड (६.१.२) के प्रारम्भ में एक-एक, अरण्यकाण्ड (३.१.१, ३.१.२) और किष्किन्धाकाण्ड (४.१.१, ४.१.२) के प्रारम्भ में दो-दो, और उत्तरकाण्ड के (और मानस के) अन्तिम दो छन्द (७.१३१.१, ७.१३१.२) | उदाहरण - मानस का अन्तिम छन्द (७.१३१.२) - 

पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं विज्ञानभक्तिप्रदं  मायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम् | श्रीमद्रामचरित्रमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये  ते संसारपतङ्गघोरकिरणैर्दह्यन्ति नो मानवाः ||

३. वसन्ततिलका 

इसे उद्धर्षिणी या सिंहोन्नता भी कहते हैं | यह बड़ा ही सुन्दर छन्द है | इसमें चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण में १४ वर्ण होते हैं, ८ वर्णों के बाद यति होती है | गणों का क्रम इस प्रकार है - त-भ-ज-ज-ग-ग | "उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः" | मानस में दो स्थानों पर यह छन्द प्रयुक्त है - 

 १) बालकाण्ड के प्रारम्भ में (१.१.७)

नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि | स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथाभाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति ||

२) सुन्दरकाण्ड के प्रारम्भ में (५.१.२)

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा | भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां में कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च ||

४. वंशस्थ 

इसे वंशस्थविल अथवा वंशस्तनित भी कहते हैं  | इसके चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण में १२ वर्ण होते हैं और गणों का क्रम होता है - ज त ज र | प्रत्येक चरण में पाँचवे और बारहवे वर्ण के बाद यति होती है | मानस में केवल एक वंशस्थ छन्द का प्रयोग है अयोध्याकाण्ड के प्रारम्भ में (२.१.२) -

प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्लौ वनवासदुःखतः | मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदाऽस्तु सा मञ्जुलमङ्गलप्रदा ||

स्मरण रहे कि कुछ प्रतियों में "मम्ले" पाठ छपा है जो अशुद्ध है | हमारे गुरुदेव के अनुसार - "ग्लैम्लै धातुक्षये" इस गणपाठ सूत्र से म्लै धातु परस्मैपदी होने के कारण लिट्लकार प्रथमपुरुष एकवचन में "मम्लौ" रूप ही बनता है | 

५. उपजाति                                                                                                  

इन्द्रवज्रा (चार चरण, ११ वर्ण - त त ज ग ग) और उपेन्द्रवज्रा (चार चरण, ११ वर्ण - ज त ज ग ग) के चरण जब एक ही छन्द में प्रयुक्त हों तो उस छन्द को उपजाति कहते हैं | साधारणतः उपजाति छन्द संस्कृत के काव्यों में सबसे अधिक प्रयुक्त होता है, मानस में यह एक ही स्थान पर अयोध्याकाण्ड के प्रारंभ में (२.१.३) प्रयुक्त हुआ है |

नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम् | पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम् ||

गुरुवर के अनुसार यहो श्लोक एकाक्षरी रामायण कहलाने योग्य हैं, क्योंकि इसके चार चरणों में प्रभु श्रीराम की चार लीलाओं - बाललीला, विवाहलीला, रणलीला और राज्यलीला का एक ही श्लोक में वर्णन है |

६. प्रमाणिका

इसके चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण में ८-८ वर्ण होते हैं | चरण में वर्णों का क्रम लघु-गुरु-लघु-गुरु-लघु-गुरु-लघु-गुरु (|ऽ|ऽ|ऽ|ऽ) होता है | गणों में लिखे तो ज-र-ल-ग | मानस में १३ प्रमाणिकाएँ हैं | अरण्यकाण्ड में अत्रि मुनि कृत स्तुति (३.४.१ से ३.४.१२) में १२ प्रमाणिकाएँ प्रयुक्त हैं जिनमें से प्रथम है -

नमामि भक्तवत्सलं कृपालुशीलकोमलम् | भजामि ते पदाम्बुजं अकामिनां स्वधामदम्  ||

गुरुदेव के अनुसार १२ प्रमाणिकाएँ प्रयुक्त होने का कारण है कि प्रभु राम ने १२ वर्षों तक चित्रकूट में निवास किया था | उत्तरकाण्ड में काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद में एक प्रमाणिका है - ७.१२२(ग)

विनिश्चितं वदामि ते न अन्यथा वचांसि मे | हरिं नरा भजन्ति येऽतिदुस्तरं तरन्ति ते ||

 
७. मालिनी 

इसकॆ चार चरण हॊतॆ हैं | प्रत्येक चरण में पन्द्रह (१५) वर्ण होते हैं - दो नगण, एक मगण और दो यगण ( न-न-म-य-य ) होते हैं | आठवे वर्ण पर और चरण के अंत में यति होती है | मानस में केवल एक मालिनी छन्द है जो सुन्दरकाण्ड के प्रारम्भ में हनुमान जी की स्तुति में आता है (५.१.३) -

अतुलितबलधामं स्वर्णशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌ | सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिवरदूतं वातजातं नमामि ||

८. स्रग्धरा 

स्रग्धरा मानस में प्रयुक्त संस्कृत छन्दों में सबसे लम्बा है | इसके चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण में वर्ण २१ होते हैं, और ७-७-७ के क्रम से यति | गणों का क्रम इस प्रकार है - म-र-भ-न-य-य-य | तदनुसार लघु(|)-गुरु(ऽ) का क्रम इस प्रकार है - ऽ ऽ ऽ ऽ | ऽ ऽ (यति) | | | | | | ऽ (यति) ऽ | ऽ ऽ | ऽ ऽ (यति) | मानस में दो स्थानों पर यह छंद प्रयुक्त है -
 
१) युद्धकाण्ड पहला (६.१.१)

रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं 
योगीन्द्रज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम् | मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं  वन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम् ||

२) उत्तरकाण्ड पहला छन्द (७.१.१)

केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं 
शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्  | 
पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं  नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम् ||

९. रथोद्धता 

इसके चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण में ११-११ वर्ण होते हैं | गणों का क्रम है र-न-र-ल-ग | हर चरण में तीसरे/चौथे वर्ण के बाद यति होती है | मानस में उत्तरकाण्ड के प्रारंभ में दो रथोद्धता छन्द हैं (७.१.२ और ७.१.३) -
कोसलेन्द्रपदकञ्जमञ्जुलौ कोमलावजमहेशवन्दितौ | जानकीकरसरोजलालितौ चिन्तकस्य मनभृङ्गसङ्गिनौ || कुन्द इन्दुदरगौरसुन्दरं अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम् | कारुणीककलकञ्जलोचनं नौमि शङ्करमनङ्गमोचनम् ||

गुरुवचन के अनुसार ७.१.३ के प्रारंभ में "कुन्दः मन्दबुद्धिः इन्दुदरगौरसुन्दरम्" विग्रह समझना चाहिए | कुन्दः अहम् तुलासीदासः शंकरं नौमि इति | सन्धि के कारण कुन्दः के विसर्ग का लोप हो गया है |

१०. भुजङ्गप्रयात इसकॆ चार चरण हॊतॆ हैं | हर चरण मॆ चार यगण होते हैं (य-य-य-य) | उत्तरकाण्ड में रुद्राष्टक (७.१०८.१-७.१०८.८) में ब्राह्मण द्वारा की गयी शिव-स्तुति में आठ भुजङ्गप्रयात छन्दों का प्रयोग है, जिनमें से प्रथम है -

नमामीशमीशाननिर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवॆदस्वरूपम्‌ | निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजॆऽहम्‌ ||

श्रीरामचरितमानस में प्राकृत (अवधी) भाषा में प्रयुक्त छन्द

११. सोरठा (सौराष्ट्र)                                                                                   

यह मानस में प्राकृत में पहला छन्द है | यह मात्रिक छन्द है | इसमें चार चरणों में ११-१३ ११-१३ मात्राएँ होती हैं | हर चरण के अन्त में यति होती है | पहले और तीसरे चरण के अन्त में तुक होता है, और तुक में गुरु-लघु का क्रम रहता है | ११ मात्राएँ ६-४-१ और १३ मात्राएँ को ६-४-३ में विभाजित होती हैं, परन्तु इस विभाजन में यति या शब्द सीमा का कोई नियम नहीं है | हर चरण के अन्त पर शब्द सीमा होती है | उदाहरण (१.१.८) - 

जेहि सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन | करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ||

दोहा में १३-११ १३-११ का क्रम रहता है और तुक दूसरे और चौथे चरण में बनता है - बाकी सब सोरठे जैसा ही है | वैसे यहाँ भी दूसरे और चौथे चरण में तुक है लेकिन यह दोहा नहीं है क्योंकि बदन और सदन में तुक में गुरु-लघु का क्रम नहीं है, और दूसरे पंक्ति में १३ मात्राओं के बाद यति (शब्द का अंत) नहीं है, "करउ अनुग्रह सोइ" में "बुद्धि" जोड़ने से ११ से सीधे १४ मात्राएँ हो जायेंगी और क्रम १४-१० हो जायेगा | मानस में ८७ सोरठे हैं - बालकाण्ड में ३६, अयोध्याकाण्ड में १३ (हर पच्चीसवे चौपाई समूह के बाद - २.२५, २.५०, २.७५, २.१००, २.१२६, २.१५१,इत्यादि), अरण्यकाण्ड में ८, किष्किन्धाकाण्ड में ३, सुन्दरकाण्ड में १, युद्धकाण्ड में ९ और उत्तरकाण्ड में १७ | 

१२. चौपाई 

इस मात्रिक छन्द के दो चरण होते हैं, प्रत्येक में १६-१६ मात्राएँ होती हैं | हर चरण में ८ मात्राओं के बाद यति होती है | केवल एक चरण हों तो उसे अर्धाली कहते हैं | यह मानस का प्रमुख छन्द है | प्रथम और द्वितीय चरण के अन्त में तुक होता है | उदाहरण (५.४०.६) -

जहाँ सुमति तहँ संपति नाना | जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना ||

हनुमान चालीसा में भी यही छंद है, और वहाँ ४० चौपाइयाँ हैं | मानस में कुल ९३८८ चौपाइयाँ हैं, जिनकी उपमा इस अर्धाली (१.३७.४) में गोस्वामी जी ने मानससरोवर के घने कमल के पत्तों से दी है - 
पुरइनि सघन चारु चौपाई | 

१३. दोहा (द्विपाद)        

 यह भी एक मात्रिक छंद है | इसमें चार चरणों में १३-११ १३-११ मात्राएं होती हैं | हर चरण के अन्त में यति होती है | दूसरे और चौथे चरण के अन्त में तुक होता है, और तुक में गुरु-लघु का क्रम रहता है | १३ मात्राएँ ६-४-३ और ११ मात्राएँ को ६-४-१ में विभाजित होती हैं, परन्तु इस विभाजन में यति या शब्द सीमा का कोई नियम नहीं है | हर चरण के अन्त पर शब्द सीमा होती है | उदाहरण (१.१) - 

जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान | कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान ||

श्रीरामचरितमानस में ११७२ दोहे हैं - जिनमें बालकाण्ड में ३५९, अयोध्याकाण्ड में ३१४, अरण्यकाण्ड में ५१, किष्किन्धाकाण्ड में ३१, सुन्दरकाण्ड में ६२, युद्धकाण्ड में १४८ और उत्तरकाण्ड में २०७ दोहे सम्मिलित हैं |

१४. हरिगीतिका 

यदि मानस कि चौपाइयाँ कमल हैं और दोहे-सोरठे कुमुद हैं, तो निश्चित रूप से हरिगीतिका उत्तुङ्ग शिखरों पे दीखने वाला "ब्रह्मकमल" है | यह छन्द गाने में अत्यन्त मनोहर है, और इसमें गोस्वामीजी के भाव ऐसे निखर के सामने आते हैं कि इस छन्द की शोभा सुनते ही बनती है | इसमें चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण में २८ मात्राएँ होती हैं, जोकि ७-७-७-७ (२-२-१-२, २-२-१-२, २-२-१-२, २-२-१-२) के क्रम से होती हैं | प्रत्येक सातवीं मात्रा के बाद यति होती है | पहले और दूसरे चरण के अन्त में तुक होता है, और तीसरे और चौथे चरण के अन्त में भी तुक होता है | तुक में क्रम लघु-गुरु होता है | मानस में हरिगीतिका चौपाइयों और दोहा/सोरठा के बीच आता है | और इसके प्रारम्भ के २-३ शब्द प्रायः इसके पहले की चौपाई के अंत के २-३ शब्द अथवा उन शब्दों के पर्याय होते है | ध्यान देने योग्य है कि शिव विवाह में ११ स्थानों पर (१ सोरठा और १० दोहों के पहले) और राम विवाह में १२ स्थानों पर (१२ दोहों के पहले) हरिगीतिका छन्द है - स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती के अनुसार इसका कारण है कि रुद्र (शिव) ११ हैं और आदित्य (विष्णु) १२ हैं | उदाहरण (५.३५.११) - 

चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल पावक खरभरे | मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर दुख टरे || कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं | जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं ||

मानस में केवल पाँच छन्द हैं जो प्रत्येक काण्ड में हैं - चौपाई, दोहा, हरिगीतिका, सोरठा और शार्दूलविक्रीडित | हरिगीतिकाओं की सङ्ख्या १३९ है - बालकाण्ड में ४७, अयोध्याकाण्ड में १३, अरण्यकाण्ड में १४, किष्किन्धाकाण्ड में ३, सुन्दरकाण्ड में ६, युद्धकाण्ड में ३८ और उत्तरकाण्ड में १८ |

१५. चौपैया 

चार चरण, हर चरण में ३० मात्राएँ (१०-८-१२) , १० और १८ मात्राओं के बाद यति, हर चरण के अंत में गुरु | पहले और दूसरे चरणों के अन्त में तुक, तीसरे और चौथे चरणों के अंत में तुक | और साथ ही हर चरण के अन्दर १० और १८ मात्राओं के अन्त पे भी तुक | ध्यान रहे - त्रिभङ्गी में १०-८-१४ मात्राओं का क्रम है, और यहाँ १०-८-१२ | मानसजी में बालकाण्ड में १० चौपैया छन्दों का प्रयोग है - १.१८३.९, १.१८४.९, १.१८६.१ से १.१८६.४, १.१९२.१ से १.१९२.४ | इनमें देवताओं द्वारा श्रीरामचन्द्र की स्तुति (१.१८६.१ से १.१८६.४,) और श्रीराम का आविर्भाव (१.१९२.१ से १.१९२.४) तो मानस प्रेमियों को अत्यन्त प्रिय हैं | उदाहरण -

१) देवताओं की स्तुति (१.१८६.१) 

जय जय सुरनायक (१०) + जन सुखदायक (८) + प्रनतपाल भगवंता (१२) = ३० | गो द्विज हितकारी (१०) + जय असुरारी (८) + सिंधुसुता प्रिय कंता (१२) = ३० ||
पालन सुर धरनी (१०) अद्भुत करनी (८) मरम न जानई कोई (१२) = ३० | जो सहज कृपाला (१०) + दीनदयाला (८) करउ + अनुग्रह सोई (१२) = ३० ||

२) श्रीराम जी का आविर्भाव (१.१९२.१)

भए प्रगट कृपाला (१०) + दीनदयाला (८) + कौसल्या हितकारी (१२) = ३० | हरषित महतारी (१०) + मुनि मन हारी (८) + अद्भुत रूप बिचारी (१२) = ३० ||
लोचन अभिरामा (१०) + तनु घनश्यामा (8) + निज आयुध भुज चारी (१२) = ३० | भूषन बनमाला (१०) + नयन बिशाला (८) शोभासिन्धु खरारी (१२) = ३० || 

१६. त्रिभङ्गी

त्रिभङ्गी के एक चरण में ३२ मात्राएँ होती हैं | इसमें एक चरण के अन्दर भी तुक होता है और चरणों के बीच  मैं भी | प्रथम और द्वितीय चरणों में, और तृतीय और चतुर्थ चरणों में तुक होता है - और हर चरण का अन्तिम वर्ण गुरु होता है | ३२ मात्राएँ १०-८-१४ में विभाजित हैं, १० और ८ के बीच यति है, और ८ और १४ के बीच यति है | साथ में १० मात्राओं के अन्तिम वर्ण और ८ मात्राओं के अन्तिम वर्ण में भी तुक बनता है | ऐसे त्रिभंगी को १०-८-८-६ में भी बाँटते हैं, पर मानस में सर्वत्र अन्तिम ८ और ६ के बीच यति न होने के कारण १०-८-१४ का क्रम दिया गया है | मानस में बालकाण्ड में अहल्योद्धार के प्रकरण में चार (४) त्रिभङ्गी छन्द प्रयुक्त हुए हैं - १.२११.१ से १.२११.४ | गुरुवचन के अनुसार इसका कारण है कि अपने चरण से अहल्या माता को छूकर प्रभु श्रीराम ने अहल्या के पाप, ताप और शाप को भङ्ग (समाप्त) किया, अतः गोस्वामी जी की वाणी में सरस्वतीजी ने त्रिभङ्गी छन्द को प्रकट किया | उदाहरण (१.२११.१) -
                                                                                                            
परसत पद पावन (१०) + शोक नसावन (८) + प्रगट भई तपपुंज सही (१४) = ३२ | देखत रघुनायक (१०) + जन सुखदायक (८) + सनमुख होइ कर जोरि रही (१४) = ३२ ||
 अति प्रेम अधीरा (१०) + पुलक शरीरा (८) + मुख नहिं आवइ बचन कही (१४) = ३२ | अतिशय बड़भागी (१०) + चरनन लागी (८) + जुगल नयन जलधार बही (१४) = ३२ ||

१७. तोमर 

तोमर एक मात्रिक छन्द है जिसके प्रत्येक चरण में १२ मात्राएँ होती हैं | पहले और दुसरे चरण के अन्त में तुक होता है, और तीसरे और चौथे चरण के अन्त में भी तुक होता है | मानस में तीन स्थानों पर आठ-आठ (कुल २४) तोमर छन्दों का प्रयोग है | ये तीन स्थान हैं -

१) अरण्यकाण्ड में खर, दूषण, त्रिशिरा और १४००० राक्षसों की सेना के साथ प्रभु श्रीराम का युद्ध (३.२०.१ से ३.२०.८) - 

तब चले बान कराल | फुंकरत जनु बहु ब्याल | कोपेउ समर श्रीराम | चले बिशिख निशित निकाम ||

२) युद्धकाण्ड में रावण का मायायुद्ध (६.१०१.१ से ६.१०१.८)

जब कीन्ह तेहिं पाषंड | भए प्रगट जंतु प्रचंड || बेताल भूत पिशाच | कर धरें धनु नाराच || 

३) युद्धकाण्ड में वेदवतीजी के अग्निप्रवेश और सीताजी के अग्नि से पुनरागमन के पश्चात् इन्द्रदेव द्वारा राघवजी की स्तुति (६.११३.१ से ६.११३.८)
 
जय राम शोभा धाम | दायक प्रनत बिश्राम || धृत तूण बर शर चाप | भुजदंड प्रबल प्रताप || 

१८. तोटक  

तोटक में चार चरण होते हैं | हर चरण में १२-१२ वर्ण होते हैं और सारे छंद में केवल "सगण" (लघु-लघु-गुरु अथवा ||ऽ) का क्रम रहता है ("वद तोटकमब्धिसकारयुतम्" ) | प्रत्येक चरण में ४ सगण होते हैं | मानस जी में ३१ तोटक छन्द हैं जो कि इन स्थानों पर हैं - 

१. युद्धकाण्ड में रावण वध के बाद ब्रह्माजी कृत राघवस्तुति में ग्यारह छन्द (६.१११.१ से ६.१११.११) -

जय राम सदा सुखधाम हरे | रघुनायक सायक चाप धरे ||
भव बारन दारन सिंह प्रभो | गुन सागर नागर नाथ बिभो ||

२. उत्तरकाण्ड में वेदों द्वारा की गयी स्तुति में दस छन्द (७.१४.१ से ७.१४.१०) - 

जय राम रमा रमणं शमनम् | भवताप भयाकुल पाहि जनम् || अवधेश सुरेश रमेश बिभो | शरणागत माँगत पाहि प्रभो ||

३. उत्तरकाण्ड में काकभुशुण्डि जी के पूर्वजन्म की कथा में विकराल कलियुग वर्णन के प्रकरण में दस छन्द (७.१०१.१ से ७.१०१.५, और ७.१०२.१ से ७.१०२.५) - 

बहु दाम सँवारहिं धाम जती | विषया हरी लीन्ह गई बिरती || तपसी धनवंत दरिद्र गृही | कलि कौतुक तात न जात कही ||

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रविवार, 10 जून 2012

TRUE FRIENDSHIP --salil

TRUE FRIENDSHIP


:नवरत्नं (श्रीवल्लभाचार्य‎) हिंदी पद्यानुवाद : संजीव 'सलिल'

नवरत्नं
(श्रीवल्लभाचार्य‎)
हिंदी पद्यानुवाद : संजीव 'सलिल'
*


चिन्ता कापि न कार्या निवेदितात्मभिः कदापीति।
भगवानपि पुष्टिस्थो न करिष्यति लौकिकीं च गतिम् ॥१॥      
करें समर्पित आत्म निज, ग्रहण करें परमात्म
चिंता करें न जगत की, रक्षेंगे सर्वात्म॥१॥

स्वयं को श्रीकृष्ण को समर्पण करते समय कभी भी किसी प्रकार की भी चिंता न करें, भगवान प्रेम और लोक व्यवहार दोनों का संरक्षण करेंगे ॥१॥ 
                              
*

निवेदनं तु स्मर्तव्यं सर्वथा ताह्शैर्जनैः।
सर्वेश्चरश्च सर्वात्मा निजेच्छातः करिष्यति ॥२॥

आत्म समर्पण का रखें, सदा भक्तगण ध्यान
उचित करें सर्वात्म प्रभु, हरि इच्छा बलवान
॥२॥

इस प्रकार के भक्त केवल अपने समर्पण को स्मरण रखें, शेष सब कुछ, सबमें आत्मा रूप विद्यमान सर्वेश्वर,   अपनी इच्छा के अनुसार  करेंगे ॥२॥
*

 
सर्वेषां प्रभु संबंधो न प्रत्येकमिति स्थितिः ।
अतोsन्यविनियोगेsपि चिन्ता का स्वस्य सोsपिचेत् ॥३॥      

सभी आत्म परमात्म के, अंश- न उनमें लीन
आप न चिंता कीजिए, प्रभु-रक्षित सब दीन॥३॥
 
ईश्वर के साथ सबका सम्बन्ध है पर सबकी उनमें निरंतर स्थिति नहीं है, अतः दूसरों की उनमें स्थिति न होने पर चिंता न करें, वे स्वयं ही जानेंगे॥३॥
   
*

 
अज्ञानादथ वा ज्ञानात् कृतमात्मनिवेदनम् ।
यैः कृष्णसात्कृतप्राणैस्तेषां का परिदेवना ॥४॥   
 
अनजाने या जानकर, प्रभु अर्पित कर आत्म
शेष न कुछ दुःख-दर्द हो, ग्रहण करें परमात्म॥४॥

जिन्होंने अज्ञान या ज्ञान पूर्वक श्रीकृष्ण को आत्म समर्पण कर दिया है, अपने प्राणों को उनके अधीन(कृष्ण को समर्पित // क) कर दिया है, उनको क्या दुःख हो सकता है ॥४॥
  
*

 
तथा निवेदने चिन्ता त्याज्या श्रीपुरुषोत्तमे ।
       विनियोगेsपि सा त्याज्या समर्थो हि हरिः स्वतः ॥५॥        

तजकर चिंता-फ़िक्र सब, हरि पग में रख माथ
पूर्ण समर्पण हो- न हो, हरि थामेंगे हाथ ॥५॥
अतःचिंता को त्याग कर श्रीकृष्ण को समर्पण करें, पूर्ण समर्पण न होने पर भी चिंता को त्याग दें,  श्रीहरि निश्चित रूप से सर्व समर्थ हैं ॥५॥ *

 
लोके स्वास्थ्यं तथा वेदे हरिस्तु न करिष्यति ।
पुष्टिमार्गस्थितो यस्मात्साक्षिणो भवताsखिलाः ॥६॥        

लोक-स्वास्थ्य-वेदादि कर, हरि-अर्पित हों धन्य.  
पुष्टिमार्ग में भक्त- हों, साक्षी ईश अनन्य॥६॥

पुष्टि मार्ग में स्थित, जिससे यह अखिल जगत प्रत्यक्ष हुआ  है यानी अस्तित्व में आकर दृश्यमान हुआ है,  उस (अपने) लोक के स्वास्थ्य  और दुःख-सुख  का ध्यान स्वयम  श्री  हरि  करेगें !

पुष्टि मार्ग में स्थित भक्त के लोक, स्वास्थ्य और वेद का पालन निश्चित रूप से सबके साक्षी श्रीहरि ही करेंगे ॥६॥  
*

 
सेवाकृतिर्गुरोराज्ञाबाधनं वा हरीच्छया ।
अतः सेवा परं चित्तं विधाय स्थीयतांसुखम् ॥७॥    

हरि-इच्छा गुरु-वचन सुन, हों सेवा में मग्न.  
पर सेवा कर मन लगा, सदा रहे मुद-मग्न ॥७॥

गुरु की आज्ञा  से बंध  कर अथवा हरि  की  इच्छा से - हर दृष्टि से,   'सेवा  करणीय'  है/ परम धर्म है  ! अत: परसेवा में चित्त  को स्थिर करके सुखावस्था में स्थित  होयें ॥७॥
*

 
चित्तोद्वेगं विधायापि हरिर्यद्यत् करिष्यति ।
तथैव तस्य लीलेति मत्वा चिन्तां द्रुतं त्यजेत ॥८॥        

चित में हो उद्वेग यदि, हरि-लीला लें मान
शीघ्र त्याग कर कीजिए, श्री हरि का ही ध्यान ॥८॥
 
हमारे चित्त में उद्वेग  आदि - हरि जो जो भी  उत्पन्न करें , उसे उनकी लीला  मानकर चिंता को  त्वरित  (शीघ्रता से )  तज  देना चाहिए ॥८॥  
*


 
तस्मात्सर्वात्मना नित्यं श्रीकृष्णः शरणं मम ।
वदद्भिरेव सततं स्थेयमित्येव मे मतिः ॥९॥ 

सर्वात्मा के मूल हरि, शरणागत मैं दास 
सतत कहें मति थिर रखें, यह मेरा विश्वास ॥९॥

अतः मैं सदैव सबके आत्मा श्रीकृष्ण की शरण में हूँ। इस प्रकार बोलते हुए ही निरंतर रहें, ऐसा मेरा निश्चित मत है॥९॥

बाल गीत: लंगडी खेलें..... --आचार्य संजीव 'सलिल'

*
बाल गीत:

लंगडी खेलें.....

आचार्य संजीव 'सलिल'
*



*
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*



आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*



हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*************

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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नवगीत क्यों??... - संजीव सलिल

नवगीत
क्यों??... 
 - संजीव सलिल
*
*
कहीं धूप क्यों?,
कहीं छाँव क्यों??...
*
सबमें तेरा
अंश समाया,
फ़िर क्यों
भरमाती है काया?
जब पाते तब-
खोते हैं क्यों?
जब खोते
तब पाते पाया।
अपने चलते
सतत दाँव क्यों?... 
*
नीचे-ऊपर,
ऊपर-नीचे।
झूलें सब
तू डोरी खींचे,
कोई डरता,
कोई हँसता।
कोई रोये
अँखियाँ मींचे।
चंचल-घायल
हुए पाँव क्यों?... 
*
तन पिंजरे में
मन बेगाना।
श्वास-आस का
ताना-बाना।
बुनता-गुनता
चुप सर धुनता।
तू परखे,
दे संकट नाना।
सूना पनघट,
मौन गाँव क्यों?...
***

शनिवार, 9 जून 2012

what is your sign?


ARIES - The Aggressive
Outgoing. Lovable. Spontaneous. Not one to mess with. Funny. Excellent kisser EXTREMELY adorable. Loves relationships, and family is very important to an Aries. Aries are known for being generous and giving. Addictive. Loud. Always has the need to be 'Right'. Aries will argue to prove their point for hours and hours. Aries are some of the most wonderful people in the world.
TAURUS - The Tramp
Aggressive. Loves being in long relationships. Likes to give a good fight.
Fight for what they want. Can be annoying at times, but for the love of attention. Extremely outgoing. Loves to help people in times of need. Good kisser. Good personality. Stubborn. A caring person. They can be self centered and if they want something they will do anything to get it. They love to sleep and can be lazy. One of a kind. Not one to mess with. Are the most attractive people on earth!
GEMINI - The Twin
Nice. Love is one of a kind. Great listeners Very Good at confusing people... Lover not a fighter, but will still knock you out. Gemini's will not take any crap from anyone. Gemini's like to tell people what they should do and get offended easily. They are great at losing things and are forgetful. Gemini's can be very sarcastic and childish at times, and are very nosey. Trustworthy. Always happy. VERY Loud. Talkative. Outgoing VERY FORGIVING. Loves to make out. Has a beautiful smile. Generous. Strong. THE MOST IRRESISTIBLE.
CANCER - The Beauty
MOST AMAZING KISSER. Very high appeal. A Cancer's Love is one of a kind. Very romantic. Most caring person you will ever meet in your life. Entirely creative Person, most are artists and insane respectfully speaking. They perfected sex and do it often. Extremely random. An Ultimate Freak. Extremely funny and is usually the life of the party. Most cancers will take you under their wing and into their hearts where you will remain forever. Cancers make love with a passion beyond compare
Spontaneous. Not a Fighter, But will kick your ass well if it comes down to it. Someone you should hold on to!
LEO - The Lion
Great talker. Attractive and passionate. Laid back. Usually happy, but when unhappy tend to be grouchy and childish. A Leo’s problem becomes everyone's problem. Most Leos are very predictable and tend to be monotonous. Knows how to have fun. Is really good at almost anything. Great kisser. Very predictable. Outgoing. Down to earth. Addictive. Attractive. Loud. Loves being in long relationships. Talkative. Not one to mess with. Rare to find.
VIRGO - The One that Waits
Dominant in relationships. Someone loves them right now. Always wants the last word. Caring. Smart. Loud. Loyal. Easy to talk to. Everything you ever wanted. Easy to please. A pushover. Loves to gamble and take chances. Needs to have the last say in everything. They think they know everything and usually do. Respectful to others but you will quickly lose their respect if you do something untrustworthy towards them and never regain respect. The do not forgive and never forget the one and only.
LIBRA - The Lame One
Nice to everyone they meet. Their Love is one of a kind. Silly, fun and sweet. Have own unique appeal. Most caring person you will ever meet! However, not the kind of person you want to mess with... you might end up crying... Libras can cause as much havoc as they can prevent. Faithful friends to the end. Can hold a grudge for years. Libras are someone you want on your side. Usually great at sports and are extreme sports fanatics. Kind of dumb at times.
SCORPIO - The Addict
EXTREMELY adorable. Loves to joke. Very Good sense of humour. Will try almost anything once. Loves to be pampered. Energetic. Predictable. GREAT kisser. Always get what they want. Attractive. Loves being in long relationships. Talkative. Loves to party but at times to the extreme. Loves the smell and feel of money and is good at making it but just as good at spending it! Very protective over loved ones. HARD workers. Can be a good friend but if is disrespected by a friend, the friendship will end. Romantic. Caring.
SAGITTARIUS - The Promiscuous One
Spontaneous. High appeal. Rare to find. Great when found. Loves being in long relationships. So much love to give. A loner most of the time. Loses patience easily and will not take crap. If in a bad mood stay FAR away. Gets offended easily and remembers the offense forever. Loves deeply but at times will not show it feels it is a sign of weakness. Has many fears but will not show it. VERY private person. Defends loved ones will all their abilities. Can be childish often. Not one to mess with. Very pretty. Very romantic. Nice to everyone they meet. Their Love is one of a kind. Silly, fun and sweet. Have own unique appeal. Most caring person you will ever meet! Amazing in bed..!!! Not the kind of person you want to mess with- you might end up crying.
CAPRICORN - The Passionate Lover
Love to bust. Nice. Sassy. Intelligent. Sexy. Grouchy at times and annoying to some. Lazy and love to take it easy. But when they find a job or something they like to do they put their all into it. Proud, understanding and sweet. Irresistible. Loves being in long relationships. Great talker. Always gets what he or she wants. Cool. Loves to win against other signs especially Gemini's in sports. Likes to cook but would rather go out to eat at good restaurants. Extremely fun. Loves to joke. Smart.
AQUARIUS - Does It In The Water
Trustworthy. Attractive. Great kisser. One of a kind, loves being in
long-term relationships. Can be clumsy at times but tries hard. Will take on any project. Proud of themselves in whatever they do. Messy, and unorganized. Procrastinators. Great lovers, when their not sleeping. Extreme thinkers. Loves their pets usually more than their family. Can be VERY irritating to others when they try to explain or tell a story. Unpredictable. Will exceed your expectations. Not a Fighter, But will Knock your lights out.

दोहा गीत : पंछी भरे उड़ान... संजीव 'सलिल'

दोहा गीत :
पंछी भरे उड़ान...
संजीव 'सलिल'
*




नीले शुभ्र वितान में, पंछी भरे उड़ान.

चह-चह कीर्तन कर करे, परम पिता का गान...
 *



जिसने पंख दिये वही,
दे उड़ने की शक्ति.
अंतर्मन 
में हो सदा,
उसके प्रति अनुरक्ति.
 


सबसे है पहचान पर, सब उससे अनजान.
नीले शुभ्र वितान में, पंछी भरे उड़ान.......
*
कहाँ ठिकाना?, क्या पता?,
निश-दिन चलना मुक्ति.
थके, रुके, फिर-फिर चले,
नित्य लगाये युक्ति.



 

श्वास-श्वास में पल रहा, आस-आस अरमान.
नीले शुभ्र वितान में, पंछी भरे उड़ान.......
*
पथवारी मैया कहे,
रखो पंथ प्रति भक्ति.
तभी पदों को मिल सके,
पग धरने की शक्ति.



 

रहे स्वच्छ पर्यावरण, 'सलिल' सदा रख ध्यान.
नीले शुभ्र वितान में, पंछी भरे उड़ान.......
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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नवगीत: जो नहीं हासिल... संजीव 'सलिल'

नवगीत:
जो नहीं हासिल...
संजीव 'सलिल'
*
जो नहीं हासिल
वही सब चाहिए...
*
जब किया कम काम
ज्यादा दाम पाया.
या हुए बदनाम
या यश-नाम पाया.
भाग्य कुछ अनुकूल
थोड़ा वाम पाया.

जो नहीं भाया
वही अब चाहिए...
*
चैन पाकर मन हुआ
बेचैन ज्यादा.
वजीरों पर हुआ हावी
चतुर प्यादा.
किया लेकिन निभाया
ही नहीं वादा.

पात्र जो जिसका
वही कब चाहिए...
*
सगे सत्ता के रहे हैं
भाट-चारण.
संकटों का, कंटकों का
कर निवारण.
दूर कर दे विफलता के
सफल कारण.

बंद मुट्ठी में
वही रब चाहिए...
*
कहीं पंडा, कहीं झंडा
कहीं डंडा.
जोश तो है गरम
लेकिन होश ठंडा.
गैस मँहगी हो गयी
तो जला कंडा.

पाठ-पूजा तज
वही पब चाहिए..
*
बिम्ब ने प्रतिबिम्ब से
कर लिया झगड़ा.
मलिनता ने धवलता को
'सलिल' रगडा.
शनिश्चर कमजोर
मंगल पड़ा तगड़ा.

दस्यु के मन में
छिपा नब चाहिए...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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शुक्रवार, 8 जून 2012

नवरत्नं (श्रीवल्लभाचार्य‎) हिंदी पद्यानुवाद : संजीव 'सलिल'

नवरत्नं
(श्रीवल्लभाचार्य‎)
हिंदी पद्यानुवाद : संजीव 'सलिल'
*
चिन्ता कापि न कार्या निवेदितात्मभिः कदापीति।
भगवानपि पुष्टिस्थो न करिष्यति लौकिकीं च गतिम् ॥१॥      
करें समर्पित आत्म निज, ग्रहण करें परमात्म
चिंता करें न जगत की, रक्षेंगे सर्वात्म॥१॥

स्वयं को श्रीकृष्ण को समर्पण करते समय कभी भी किसी प्रकार की भी चिंता न करें, भगवान प्रेम और लोक व्यवहार दोनों का संरक्षण करेंगे ॥१॥ 
                              
*

निवेदनं तु स्मर्तव्यं सर्वथा ताह्शैर्जनैः।
सर्वेश्चरश्च सर्वात्मा निजेच्छातः करिष्यति ॥२॥


आत्म समर्पण का रखें, सदा भक्तगण ध्यान
करें दैव जो उचित हो, हरि इच्छा बलवान
॥२॥

इस प्रकार के भक्त केवल अपने समर्पण को स्मरण रखें, शेष सब कुछ सबके ईश्वर और सबके आत्मा अपनी इच्छा के अनुसार  करेंगे ॥२॥
*

सर्वेषां प्रभु संबंधो न प्रत्येकमिति स्थितिः ।
अतोsन्यविनियोगेsपि चिन्ता का स्वस्य सोsपिचेत् ॥३॥      


सभी आत्म परमात्म के, अंश- न उनमें लीन
आप न चिंता कीजिए, प्रभु-रक्षित सब दीन॥३॥
 
ईश्वर के साथ सबका सम्बन्ध है पर सबकी उनमें निरंतर स्थिति नहीं है, अतः दूसरों की उनमें स्थिति न होने पर चिंता न करें, वे स्वयं ही जानेंगे॥३॥
   
*

अज्ञानादथ वा ज्ञानात् कृतमात्मनिवेदनम् ।
यैः कृष्णसात्कृतप्राणैस्तेषां का परिदेवना ॥४॥   

                        
अनजाने या जानकर, प्रभु अर्पित कर आत्म
शेष न कुछ दुःख-दर्द हो, ग्रहण करें परमात्म॥४॥

जिन्होंने अज्ञान या ज्ञान पूर्वक श्रीकृष्ण को आत्म समर्पण कर दिया है, अपने प्राणों को उनके अधीन कर दिया है, उनको क्या दुःख हो सकता है ॥४॥
  
*

तथा निवेदने चिन्ता त्याज्या श्रीपुरुषोत्तमे ।
       विनियोगेsपि सा त्याज्या समर्थो हि हरिः स्वतः ॥५॥        


तजकर चिंता-फ़िक्र सब, हरि पग में रख माथ
पूर्ण समर्पण हो- न हो, हरि थामेंगे हाथ ॥५॥
अतःचिंता को त्याग कर श्रीकृष्ण को समर्पण करें, पूर्ण समर्पण न होने पर भी चिंता को त्याग दें,  श्रीहरि निश्चित रूप से सर्व समर्थ हैं ॥५॥ *

लोके स्वास्थ्यं तथा वेदे हरिस्तु न करिष्यति ।
पुष्टिमार्गस्थितो यस्मात्साक्षिणो भवताsखिलाः ॥६॥        


लोक-स्वास्थ्य-वेदादि कर, हरि-अर्पित हों धन्य.  
पुष्टिमार्ग में भक्त- हों, साक्षी ईश अनन्य॥६॥

पुष्टि मार्ग में स्थित भक्त के लोक, स्वास्थ्य और वेद का पालन निश्चित रूप से सबके साक्षी श्रीहरि ही करेंगे ॥६॥  
*
सेवाकृतिर्गुरोराज्ञाबाधनं वा हरीच्छया ।
अतः सेवा परं चित्तं विधाय स्थीयतांसुखम् ॥७॥    


हरि-इच्छा गुरु-वचन सुन, हों सेवा में मग्न.  
सेवा में स्थिर सदा चित्त,  रहे मुद-मग्न ॥७॥

गुरु की आज्ञा के अनुरूप अथवा श्रीहरि की इच्छा के अनुसार प्रभु-सेवा ही कर्तव्य है, अतः परमात्मा की सेवा में चित्त को स्थिर करके सुख से रहें ॥७॥  
*

चित्तोद्वेगं विधायापि हरिर्यद्यत् करिष्यति ।
तथैव तस्य लीलेति मत्वा चिन्तां द्रुतं त्यजेत ॥८॥        


दुश्चिंता-उद्वेग में, संयम रख यह मान
लीला है परमेश की, घिनता तज कर ध्यान ॥८॥  

चिंता और उद्वेग में संयम रख कर और ऐसा मान कर कि श्रीहरि जो जो भी करेंगे वह उनकी लीला मात्र है, चिंता को शीघ्र त्याग दें॥८॥
  

*


तस्मात्सर्वात्मना नित्यं श्रीकृष्णः शरणं मम ।
वदद्भिरेव सततं स्थेयमित्येव मे मतिः ॥९॥ 


सर्वात्मा के मूल हरि, शरणागत मैं दास 
सतत कहें मति थिर रखें, यह मेरा विश्वास ॥९॥

अतः मैं सदैव सबके आत्मा श्रीकृष्ण की शरण में हूँ। इस प्रकार बोलते हुए ही निरंतर रहें, ऐसा मेरा निश्चित मत है॥९॥


*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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BE AWARE : How to Detect Hidden Camera in Trial Room?

BE AWARE :

How to Detect Hidden Camera in Trial Room?

*

A few days ago, I received this text message:

Please don't use Trial room of BIG BAZAAR there are pinhole cameras to make MMS of young girls.

So, please forward to all girls. Also forward to all boys who have sisters and girlfriends.



Don't be shy in forwarding this message. Because its about protecting the integrity of all girls & ladies.


In front of the trial room take your... mobile and make sure that mobile can make calls........ 


*
1. How to find hidden hidden camera?
 
If one can't avoid using tril room, toilet or bed roon in public places then be cautious. Prevention is 

better than cure.

 

When you enter into the trail room, take your mobile and make a call.....

If u can't make a call......


There is a hidden camera......


This is due to the interference of fiber optic cable during the signal transfer......



Please forward this to your friends to educate this issue to the

public......To prevent our innocent ladies from HIDDEN CAMERA...........



Pinhole Cameras in Changing Rooms of Big Bazaar, Shoppers Stop?



2. HOW TO DETECT A 2-WAY MIRROR?



When we visit toilets, bathrooms, hotel rooms, changing rooms, etc., How many of you know for sure that the seemingly ordinary mirror hanging on the wall is a real mirror, or actually a 2-way mirror I.e., they can see you, but you can't see them. There have been many cases of people installing 2-way mirrors in female changing rooms or bathroom or bedrooms.



It is very difficult to positively identify the surface by just looking at it. So, how do we determine with any amount of certainty what type of Mirror we are looking at?



CONDUCT THIS SIMPLE TEST:



Place the tip of your fingernail against the reflective surface and if there is a GAP between your fingernail and the image of the nail, then it is a GENUINE mirror.



However, if your fingernail DIRECTLY TOUCHES the image of your nail, then BEWARE, IT IS A 2-WAY MIRROR! (There may be someone seeing you from the other side). So remember, every time you see a mirror, do the "fingernail test." It doesn't cost you anything. It is simple to do.



This is a really good thing to do. The reason there is a gap on a real mirror, is because the silver is on the back of the mirror UNDER the glass.



Whereas with a two-way mirror, the silver is on the surface. Keep it in mind! Make sure and check every time you enter in hotel rooms.



Share this with your sisters, wife, daughters, friends, colleagues, etc.



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