दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 22 अप्रैल 2009
रचना आमंत्रण : नमामि मातु भारती
चुनाव चिंतन : रामेश्वर भइया 'रामू भइया'
सबकी माता भारती, हम सब इसके पूत॥
सुनो बंधुओं मिल चलो, नव चुनाव की ओर।

अंधियारों से छीन लो, अपनी प्यारी भोर॥
प्रत्याशी का कीजिये, धर्म-तुला में तौल।
खरे स्वर्ण को दीजिये, वोट आप अनमोल।।
मंगलमय जन-राज हो, अथवा जंगलराज।
अब कल पर मत छोडिये, निर्णय कर लो आज।।
प्रान्त जाति भाषा धर्म, लिंग-पंथ के भेद।
लोकतंत्र की नाव में, हुए अनेकों छेद।।
मतदाता का देख कर, अतिशय मृदुल स्वभाव।
आतुर हैं नेतृत्व को, नौ ढोबे के पाव।।
निष्ठाओं पर कीजिये, फिर से नया विचार।

अंधी निष्ठा बोझ है, फेंको इसे उतार।।
लुप्त हुआ नेतृत्व वह, था जिससे अनुराग।
अमराई में भर गए, अब तो उल्लू-काग।।
हूजी लश्कर जैश के, गुर्गों का भी जोर।
सभी चाहते तोड़ने, सद्भावों की डोर।।
पाँच साल पूछें नहीं, मुड़कर भी हालात।
उनको भी आघात दे, मतदाता की लात।।
तोडें धनबल-बाहुबल, विषकारी हैं दंत।
वर्ना निश्चित जानिए, लोकतंत्र का अंत।।
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मंगलवार, 21 अप्रैल 2009
चंद अशआर : सलिल
इन्तिज़ार
कोशिशें मंजिलों की राह तकें।
मंजिलों ने न इन्तिज़ार किया।
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बूढा बरगद कर रहा है इन्तिज़ार।
गाँव का पनघट न क्यों होता जवां?
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जो मजा इन्तिजार में पाया।
वस्ल में हाय वो मजा न मिला।
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मिलन के पल तो लगे, बाप के घर बेटी से।
जवां बेवा सी घड़ी, इन्तिज़ार सी है 'सलिल'।
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इन्तिज़ार दिल से करोगे अगर पता होता।
छोड़कर शर्म-ओ-हया मैं ही मिल गयी होती।
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एक दोहा दो दुम का... सलिल
नेता-अफसर चूसते, खून आदमी तंग॥
जंग करते हैं नकली।
माल खाते हैं असली॥
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सोमवार, 20 अप्रैल 2009
सामयिक रचना...
दोहा गजल
आचार्य संजीव 'सलिल'
शक्कर मंहगी हो रही, कडुवा हुआ चुनाव.
क्या जाने आगे कहाँ, कितना रहे अभाव?
नेता को निज जीत की, करना फ़िक्र-स्वभाव.
भुगतेगी जनता'सलिल',बेबस करे निभाव.
व्यापारी को है महज, धन से रहा लगाव.
क्या मतलब किस पर पड़े कैसा कहाँ प्रभाव?
कम ज़रूरतें कर 'सलिल',कर मत तल्ख़ स्वभाव.
मीठी बातें मिटतीं, शक्कर बिन अलगाव.
कभी नाव में नदी है, कभी नदी में नाव.
डूब,उबर, तरना'सलिल',नर का रहा स्वभाव.
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रविवार, 19 अप्रैल 2009
'व्यष्टि से समष्टि तक वही पहुंचे जो सर्व हितकारी हो'-- संजीव सलिल
जबलपुर, १९ अप्रैल २००९. ''चिटठा लेखन वैयक्तिक अनुभूतियों की सार्वजानिक अभिव्यक्ति का माध्यम मात्र नहीं है, यह निजता के पिंजरे में क़ैद सत्य को व्यष्टि से समष्टि तक पहुँचने का उपक्रम भी है. एक से अनेक तक वही जाने योग्य है जो 'सत्य-शिव-सुन्दर' हो, जिसे पाकर 'सत-चित-आनंद' की प्रतीति हो. हमारी दैनन्दिनी अंतर्मन की व्यथा के प्रगटीकरण के लिए उपयुक्त थी चूंकि उसमें अभिव्यक्त कथ्य और तथ्य तब तक गुप्त रहते थे जब तक लेखक चाहे किन्तु चिटठा में लिखा गया हर कथ्य तत्काल सार्वजानिक हो जाता है, इसलिए यहाँ तथ्य, भाषा, शैली तथा उससे उत्पन्न प्रभावों के प्रति सचेत रहना अनिवार्य है. अंतर्जाल ने वस्तुतः सकल विश्व को विश्वैक नीडं तथा वसुधैव कुटुम्बकम की वैदिक अवधारणा के अनुरूप 'ग्लोबल विलेज' बना दिया है. इन माध्यमों से लगी चिंगारी क्षण मात्र में महाज्वाला बन सकती है, यह विदित हो तो इनसे जुड़ने के अस्त ही एक उत्तरदायित्व का बोध होगा. जन-मन-रंजन करने के समर्थ माध्यम होने पर भी इन्हें केवल मनोविनोद तक सीमित मत मानिये. ये दोनों माध्यम जन जागरण. चेतना विस्तार, जन समर्थन, जन आन्दोलन, समस्या निवारण, वैचारिक क्रांति तथा पुनर्निर्माण के सशक्त माध्यम तथा वाहक भी हैं.''
उक्त विचार स्वामी विवेकानंद आदर्श महाविद्यालय, मदन महल, जबलपुर में आयोजित द्विदिवसीय कार्यशाला के द्वितीय दिवस प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा ने व्यक्त किये.
विशेष वक्ता श्री विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र' ने अपने ५ वर्षों के चिटठा-लेखन के अनुभव सुनाते हुए प्रशिक्षुओं को इस विधा के विविध पहलुओं की जानकारी दी. उक्त दोनों वक्ताओं ने अंतरजाल पर स्थापित विविध पत्र-पत्रिकाओं तथा चिट्ठों का परिचय देते हुए उपस्थितों को उनके वैशिष्ट्य की जानकारी दी.
संगणक पर ई मेल आई डी बनाने, चिटठा खोलने, प्रविष्टि करने, चित्र तथा ध्वनि आदि जोड़ने के सम्बन्ध में दिव्य नर्मदा के तकनीकी प्रबंधक श्री मंवंतर वर्मा 'मनु' ने प्रायोगिक जानकारी दी. चिटठा लेखन की कला, आवश्यकता, उपादेयता, प्रभाव, तकनीक, लोकप्रियता, निर्माण विधि, सावधानियां, संभावित हानियाँ, क्षति से बचने के उपाय व् सावधानियां, सामग्री प्रस्तुतीकरण, सामग्री चयन, स्थापित मूल्यों में परिवर्तन की सम्भावना तथा अंतर्विरोधों, अश्लील व अशालीन चिटठा लेखन और विवादों आदि विविध पहलुओं पर प्रशिक्षुओं ने प्रश्न किया जिनके सम्यक समाधान विद्वान् वक्ताओं ने प्रस्तुत किये. चिटठा लेखन के आर्थिक पक्ष को जानने तथा इसे कैरिअर के रूप में अपनाने की सम्भावना के प्रति युवा छात्रों ने विशेष रूचि दिखाई.
संसथान के संचालक श्री प्रशांत कौरव ने अतिथियों का परिचय करने के साथ-साथ कार्यशाला के उद्देश्यों तथा लक्ष्यों की चर्चा करते हुए चिटठा लेखन के मनोवैज्ञानिक पहलू का उल्लेख करते हुए इसे व्यक्तित्व विकास का माध्यम निरूपित किया.
सुश्री वीणा रजक ने कार्य शाला की व्यवस्थाओं में विशेष सहयोग दिया तथा चिटठा लेखन में महिलाओं के योगदान की सम्भावना पर विचार व्यक्त करते हुए इसे वरदान निरुपित किया. द्विदिवसीय कार्य शाला का समापन डॉ. मदन पटेल द्वारा आभार तथा धन्यवाद ज्ञापन से हुआ. इस द्विदिवसीय कार्यशाला में शताधिक प्रशिक्षुओं तथा आम जनों ने चिटठा-लेखन के प्रति रूचि प्रर्दशित करते हुए मार्गदर्शन प्राप्त किया.
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शनिवार, 18 अप्रैल 2009
दिव्य नर्मदा संपादक श्री संजीव 'सलिल' 'वाग्विदान्वर सम्मान' से अलंकृत
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१० मई को 'हिंदी, हिंदी साहित्य और हिंदी साहित्य सम्मलेन' विषयक संगोष्ठी में देश के विविध प्रान्तों से पधारे ११ वक्ताओं ने विद्वतापूर्ण व्याख्यान दिए । साहित्य वाचस्पति डॉ। बालशौरी रेड्डी, अध्यक्ष, तमिलनाडु हिंदी अकादमी ने इस सत्र के अध्यक्षता की। इस सत्र का संचालन डॉ। ओंकार नाथ द्विवेदी ने किया। स्वागत भाषण डॉ। बिपिन बिहारी ठाकुर ने दिया। प्रथम दिवस पूर्वान्ह सत्र में संस्कृत विश्व विद्यालय दरभंगा के पूर्व कुलपति डॉ। जय्मंत मिश्र की अध्यक्षता में ११ उद्गाताओं ने 'आज संस्कृत की स्थिति' विषय पर विचार व्यक्त किए। विद्वान् वक्ताओं में डॉ. तारकेश्वरनाथ सिन्हा बोध गया, श्री सत्यदेव प्रसाद डिब्रूगढ़, डॉ. गार्गीशरण मिश्र जबलपुर, डॉ. शैलजा पाटिल कराड, डॉ.लीलाधर वियोगी अंबाला, डॉ. प्रभाशंकर हैदराबाद, डॉ. राजेन्द्र राठोड बीजापुर, डॉ. नलिनी पंड्या अहमदाबाद आदि ने विचार व्यक्त किये।
अपरान्ह सत्र में प्रो. रामशंकर मिश्र वाराणसी, .मोहनानंद मिश्र देवघर, पं. जी. आर. तिरुपति, डॉ. हरिराम आचार्य जयपुर, डॉ. गंगाराम शास्त्री भोपाल, डॉ. के. जी. एस. शर्मा बंगलुरु, पं. श्री राम देव जोधपुर, डॉ. राम कृपालु द्विवेदी बांदा, डॉ। अमिय चन्द्र शास्त्री मथुरा, डॉ. भीम सिंह कुरुक्षेत्र, डॉ. महेशकुमार द्विवेदी सागर आदि ने संस्कृत की प्रासंगिकता तथा हिंदी--संस्कृत की अभिन्नता पर प्रकाश डाला. यह सत्र पूरी तरह संस्कृत में ही संचालित किया गया. श्रोताओं से खचाखच भरे सभागार में सभी वक्तव्य संस्कृत में हुए.
समापन दिवस पर ११ मई को डॉ। राजदेव मिश्र, पूर्व कुलपति सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी की अध्यक्षता में ५ विद्द्वजनों ने ज्योतिश्पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के प्रति प्रणतांजलि अर्पित की। सम्मलेन के अध्यक्ष साहित्य वाचस्पति श्री भगवती प्रसाद देवपुरा, अध्यक्ष हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग की अध्यक्षता में देश के चयनित ५ संस्कृत विद्वानों डॉ। जय्म्न्त मिश्र दरभंगा, श्री शेषाचल शर्मा बंगलुरु, श्री गंगाराम शास्त्री भोपाल, देवर्षि कलानाथ शास्त्री जयपुर, श्री बदरीनाथ कल्ला फरीदाबाद को महामहिमोपाध्याय की सम्मानोपाधि से सम्मानित किया गया।
११ संस्कृत विद्वानों डॉ। मोहनानंद मिश्र देवघर, श्री जी. आर. कृष्णमूर्ति तिरुपति, श्री हरिराम आचार्य जयपुर, श्री के.जी.एस. शर्मा बंगलुरु, डॉ. रामकृष्ण सर्राफ भोपाल, डॉ. शिवसागर त्रिपाठी जयपुर, डॉ.रामकिशोर मिश्र बागपत, डॉ. कैलाशनाथ द्विवेदी औरैया, डॉ. रमाकांत शुक्ल भदोही, डॉ. वीणापाणी पाटनी लखनऊ तथा पं. श्री राम देव जोधपुर को महामहोपाध्याय की सम्मानोपाधि से सम्मानित किया गया.
२ हिन्दी विद्वानों डॉ। केशवराम शर्मा दिल्ली व डॉ वीरेंद्र कुमार दुबे को साहित्य महोपाध्याय तथा २८ साहित्य मनीषियों डॉ. वेदप्रकाश शास्त्री हैदराबाद, डॉ. भीम सिंह कुरुक्षेत्र, डॉ. कमलेश्वर प्रसाद शर्मा दुर्ग, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर, डॉ. महेश कुमार द्विवेदी सागर, श्री ब्रिजेश रिछारिया सागर, डॉ. मिजाजीलाल शर्मा इटावा, श्री हरिहर शर्मा कबीरनगर, डॉ, रामशंकर अवस्थी कानपूर, डॉ. रामकृपालु द्विवेदी बांदा, डॉ. हरिहर सिंह कबीरनगर, डॉ, अमियचन्द्र शास्त्री 'सुधेंदु' मथुरा, डॉ. रेखा शुक्ल लखनऊ, डॉ. प्रयागदत्त चतुर्वेदी लखनऊ, डॉ. उमारमण झा लखनऊ, डॉ. इन्दुमति मिश्र वाराणसी, प्रो. रमाशंकर मिश्र वाराणसी, डॉ. गिरिजा शंकर मिश्र सीतापुर, चंपावत से श्री गंगाप्रसाद पांडे, डॉ. पुष्करदत्त पाण्डेय, श्री दिनेशचन्द्र शास्त्री 'सुभाष', डॉ. विष्णुदत्त भट्ट, डॉ. उमापति जोशी, डॉ. कीर्तिवल्लभ शकटा, हरिद्वार से प्रो. मानसिंह, अहमदाबाद से डॉ. कन्हैया पाण्डेय, प्रतापगढ़ से डॉ, नागेशचन्द्र पाण्डेय तथा उदयपुर से प्रो. नरहरि पंड्याको ''वागविदांवर सम्मान'' ( ऐसे विद्वान् जिनकी वाक् की कीर्ति अंबर को छू रही है) से अलंकृत किया गया.
उक्त सभी सम्मान ज्योतिश्पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के कर कमलों से प्रदान किये जाते समय सभागार करतल ध्वनि से गूँजता रहा.
अंतर्जाल की अनेक पत्रिकाओं में विविध विषयों में लगातार लेखन कर रहे सलिल जी गद्य-पद्य की प्रायः सभी विधाओं में सृजन के लिए देश-विदेश में पहचाने जाते हैं।
हिंदी साहित्य सम्मलेन के इस महत्वपूर्ण सारस्वत अनुष्ठान की पूर्णाहुति परमपूज्य ज्योतिश्पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती महाराज के प्रेरक संबोधन से हुई। स्वामी जी ने संकृत तथा हिंदी को भविष्य की भाषाएँ बताया तथा इनमें संभाषण व लेखन को जन्मों के संचित पुण्य का फल निरुपित किया ।
सम्मलेन के अध्यक्ष वयोवृद्ध श्री भगवती प्रसाद देवपुरा, ने बदलते परिवेश में अंतर्जाल पर हिंदी के अध्ययन व शिक्षण को अपरिहार्य बताया।
साहित्य समाचार:
जाल पत्रकारिता तथा चिट्ठाजगत : द्विदिवसीय कार्यशाला
जाल तथा चिट्ठा 'स्व' से 'सर्व' का साक्षात् करने के माध्यम -संजीव 'सलिल'
जबलपुर, १८ अप्रैल २००९। ' अंतरजाल तथा चिट्ठा-लेखन आत्म अनुभूतियों को अभिव्यक्त कर, 'स्व' से 'सर्व' का साक्षात् करने का माध्यम है. 'सत-शिव-सुन्दर' से 'सत-चित-आनंद' की प्राप्ति के सनातन भारतीय आदर्श की साधना के पथ पर अदेखे-अनजाने से संयुक्त होकर समय की सामान्य सीमा को लांघते हुए असीम और निस्सीम की प्रतीति का अवसर ये माध्यम सर्व सामान्य को उपलब्ध करा रहे हैं. सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम स्वयं को इन माध्यमों से लाभान्वित करते हैं या साथी आकर्षणों और विवादों में सिमटकर व्यर्थ कर देते हैं. तकनीकी निपुणता को वैश्विक संचेतना जाग्रति का माध्यम बनाया जा सके तो मानव मात्र के लिया यह आयाम कल्याणकारी सिद्ध होगा अन्यथा यही माध्यम विनाश को आमंत्रण देगा.' ये विचार दिव्य नर्मदा पत्रिका के संपादक, विख्यात कवी-समीक्षक संजीव 'सलिल' ने स्वामी विवेकानंद आदर्श महाविद्यालय, मदन महल द्वारा 'जाल पत्रकारिता तथा चिट्ठा लेखन' पर आयोजित द्विदिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन वक्तव्य में व्यक्त किये. इसके पूर्व महाविद्यालय के संचालक श्री प्रशांत कौरव ने कार्य शाला के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए अतिथि वक्ताओं का परिचय दिया, उपस्थित लगभग ५० सहभागियों ने चिट्ठा-लेखन के तकनीकी, भाषिक, सामाजिक, आर्थिक, विधिक आदि पक्षों की जानकार प्राप्त की तथा शंकाओं का समाधान प्राप्त किया. नयी दुनिया दैनिक समाचार पात्र के विधिक संवाददाता श्री सुरेन्द्र दुबे ने चिट्ठा-लेखन संबन्धी विधिक जिज्ञासाओं का समाधान किया. चैनल ९ एक्स के स्ट्रिंगर श्री मतलूब अहमद अंसारी, रंगकर्मी श्री संदीप पांडे, चैनल २४ की प्रदेश प्रभारी सुश्री वीणा रजक आदि ने अंतरजाल पत्रकारिता के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला तथा प्रशिक्षुओं का मार्गदर्शन किया. प्रशिक्षुओं के आग्रह पर श्री गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल', महिला-बाल विकास अधिकारी ने अंतिम दिन सभी को अपना चिट्ठा प्रारंभ करने के लिए अवसर तथा संसाधन उपलब्ध कराये जाने से सहमति व्यक्त करते हुए चिट्ठा-लेखन के भविष्य से अवगत कराया. संचालक श्री प्रशांत कौरव ने तत्सम्बन्धी व्यवस्थाएं करने के निर्देश देते हुए धन्यवाद ज्ञापन कर प्रथम दिवस की कार्यशाला का समापन किया.
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कविता
बूढे सपने !
प्रदीप पाठक
(हाल ही मे हुए बम्ब धमाकों से प्रेरित यह रचना उस गाँव का हाल बताती है जिसे खाली करवा दिया गया है क्योंकि वहाँ कभी भी जंग हो सकती है। वो सारे गाँव के लोग हर दम खानाबदोश की ज़िन्दगी जीते हैं। मै सोचता हूँ हम हर बार क्या खो रहे हैं, इसका ज़रा सा भी इल्म नहीं हमको-सं.)
वो देखो !
गाँव की मस्जिद।
आज भी नमाज़ को
तरस रही है।
फूलों के पेड़ -
बच्चों के स्कूल,
सब सूने पड़े हैं।
लगता है-आज फिर
काफिला आया है।
सिपाहियों का दस्ता लाया है।
गाँवों की पखडंडियाँ
फिर से उजाड़ हो गई।
मौलवी की तमन्ना,
फिर हैरान हो गई।
फिर मन को टटोला है।
जंग ने फिर से कचौला है।
दर्द भी पी लिया है।
अपनों से जुदा हुए-
पर अरमानों को सी लिया है।
खामोश आँखों ने-
फिर ढूँढा है सपनों को।
नादान हथेलियों में-
फिर तमन्ना जागी है।
पर क्यों सरफरोश हो गई,
आशायें इस दिल की।
क्यों कपकपी लेती लौ,
मोहताज़ है तिल तिल की।
टिमटिमाते तारे भी,
धूमिल से हैं।
बारूद के धुएँ में जुगनू भी,
ओझल से हैं.
बस करो भाई!
अब घुटन सी हो रही है।
न करो जंग का ऐलान फिर-
चुभन सी हो रही है।
बड़ी मुश्किलों से,
रमजान का महीना आया है।
मेरी तकदीर की
आखिरी ख्वाहिश को,
संग अपने लाया है।
कर लेने दो अजान
फिर अमन की खातिर,
बह लेने दो पुरवाई
बिखरे चमन की खातिर.
यूँ खून न बरसाओ !
अबकी सुबह निराली है।
हर पतझड़ के बाद मैंने-
देखी हरियाली है।
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शब्द-यात्रा : अजित वडनेरकर
चमक
चमक सका वह जो हरे, तम् दे नित्य प्रकाश।
सब का हित कर तोड़ दे, निजी स्वार्थ के पाश।।
चमकदार सतह के अर्थ में इंडो-ईरानी भाषा परिवार में जहां रुच् या रुख धातुएं बनती हैं वहीं भारोपीय भाषा परिवार में यह ल्युक leuk का रूप लेती है। विज्ञान की नई खोजों और तकनीकों से विकास की दौड़ में लगातार मनुष्य आगे बढ़ा है। शब्द भी इसके साथ ही नए रूप और अर्थ ग्रहण करते चलते हैं। दीपवर्तिका जो मात्र कपास का सूत्र होता था, जिसे जलाकर पुराने समय में रात को रोशनी की जाती थी, दीयाबाती के रूप में प्रकाश का पर्याय बनी। बाद में सिर्फ बत्ती रह गई। बत्ती जलाना यानी प्रकाश करना। विद्युत बल्ब का आविष्कार होने के बाद बल्ब के आकार को ध्यान में रखकर इलेक्ट्रिक बल्ब को लट्टू कहा जाने लगा। यूं लट्टू शब्द हिन्दी में गढ़ा नहीं गया बल्कि गोल, घूमनेवाले खिलौने के तौर पर इसे पहले से जाना जाता है। इसके बावजूद लट्टू की बजाय लोग बत्ती शब्द का ही इस्तेमाल करते हैं। विद्युतधारा के लिए अंग्रेजी में इलेक्ट्रिसिटी शब्द है मगर हिन्दी में विद्युत से बने देशज रूप बिजली का ज्यादा प्रयोग होता है। वैसे बिजली के लिए हिन्दी में लाईट शब्द का इस्तेमाल इतना आम हो चला है कि लाईट मारना जैसा मुहावरा बन गया जो नितांत हिन्दी से जन्मा है। बिजली न होने पर अक्सर यही कहा जाता है कि लाईट नहीं है, चाहे दिन का वक्त हो। इसी तर्ज पर बिजली न रहने पर बत्ती गुल मुहावरा प्रयोग भी कर लिया जाता है। हालांकि हर बार मकसद यही रहता है कि इलेक्ट्रिसिटी न रहने की वजह बिजली से काम करनेवाले उपकरण चल नहीं सकेंगे। रुच् , रुख की श्रंखला में भारोपीय ल्युक धातु से ही बना है अंग्रेजी का लाईट शब्द जिसका मतलब होता है रोशनी, प्रकाश। ल्युक से जर्मन में बना लिट (लिख्त Licht), मध्यकालीन डच में बना लुट (लुख्त lucht) और पुरानी अंग्रेजी में लेट-लोट leoht, leht जैसे रूप बने जिनसे आज की अंग्रेजी में लाईट light शब्द बना। दीप्ति, चमक आदि अर्थ में फारसी के रुख का ही एक और रूप बनता है अफ्रूख्तन afruxtan जिसके मायने हैं प्रकाशित करना, रोशनी करना। वेस्ट जर्मनिक के ल्युख्तम की इससे समानता गौरतलब है। इसका भी वही अर्थ है। फारसी ज़बान का फारुक़ (fo-ruq फारुख और फ़रोग़ उच्चारण भी है) भी इसी कड़ी का शब्द है जिसका मतलब उजाला, प्रकाश होता है जबकि अरबी में भी फारुक़ नाम होता है जिसका अर्थ सच की शिनाख्त करने वाला है। यूं देखा जाए तो सच हमेशा रोशन होता है, इस तरह अरबी फारुक़ की फारसी वाले फारुक़ से रिश्तेदारी मुमकिन है। फारूक़ के बाद इसी श्रंखला में जुड़ता है चिराग़ Ceraq जिसका मतलब होता है दीया, दीपक। इसमें roc का परिवर्तन raq में हुआ है। भारोपीय ल्युक धातु से बना ग्रीक का ल्युकोस leukos, लिथुआनी में बना लॉकास laukas, जिसका अर्थ है पीला, पीतवर्ण। प्राचीनकाल में मनुष्य के पास प्रकाश का मुख्य स्रोत अग्नि ही था जिसमें पीली आभा वाली रोशनी होती है। इसलिए दुनियाभर की भाषाओं में प्रकाश, कांति, दीप्ति से जुड़े जितने भी शब्द है उनमें पीले रंग का संदर्भ भी आमतौर पर आता है। इसी तरह अर्मीनियाई भाषा में lois का मतलब होता है प्रकाश जबकि lusin शब्द चंद्रमा के लिए प्रयुक्त होता है जो प्रकाश स्रोत है। इसी तरह लैटिन में लुसियर lucere यानी चमक और लक्स lux यानी प्रकाश जैसे संदर्भ महत्वपूर्ण हैं। हिन्दुस्तान लीवर कंपनी के प्रसिद्ध ब्रांड साबुन के जरिये लोग लक्स से परिचित है। साबुन के तौर पर लक्स नाम से यहां बदन को चमकाने से ही अभिप्राय है। चमक का सौदर्य से रिश्ता हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं। चमक ही विशिष्टता की सूचक है इसीलिए शानो-शौकत और विलासिता के संदर्भ में डीलक्स शब्द का प्रचलन है। भारत में डीलक्स होटल, डीलक्स ट्रेन, डीलक्स बंगले भी होते हैं। यही नहीं, फुटपाथी चाय वाले की सबसे महंगी चाय का नाम भी डीलक्स ही होता है।
सूर्य चन्द्र जुगनू सभी, चमक रहे है देख।
किसने कितना तम् पिया, 'सलिल' यही अव्लेख॥
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ग़ज़ल
- 'सलिल जी'
चल पड़े अपने कदम तो,मंजिलें भी पायेंगे.
कंठ-स्वर हो साज़ कोई, गीत अपने गायेंगे.
मुश्किलों से दोस्ती है, संकटों से प्यार है.
'सलिल' बनकर नर्मदा हम, सत्य-शिव दुहारायेंगे.
स्नेह की हर लहर हर-हर, कर निनादित हो रही.
चल तनिक अवगाह लें, फिर सूर्य बनकर छायेंगे.
दोस्तों की दुश्मनी की 'सलिल' क्यों चिंता करें.
दुश्मनों की दोस्ती पाकर मरे- जी जायेंगे.
चुनें किसको, तजें किसको, सब निकम्मे एक से.
मिली सत्ता तो ज़मीं से, दूर हो गर्रायेंगे.
दिल मिले न मिलें लेकिन हाथ तो मिलते रहें.
क्या पता कब ह्रदय भी हों एक, फिर मुस्कायेंगे.
स्नेह-सलिला में नहाना, 'सलिल' का मजहब धरम.
सफल हो श्रम साधना, हम गगन पर लहरायेंगे.
हिंदी कविता : संजीव 'सलिल'
संजीव 'सलिल'
*
दोहा-चौपाई सरस, गाया मैंने मीत.
नेह निभाने की नहीं, उसे सुहाई रीत.
नहीं भावना का किया, दो कौडी भी मोल.
मौका पाते ही लिया, छिप जेबों को तोल.
केर-बेर का संग यह, कब तक देता साथ?
जुडें नमस्ते कर सकें, अगर अलग हों हाथ.
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एक शेर
इन्तिज़ार दिल से करोगे जो पता होता.
छोड़कर शर्मो-हया मैं ही मिल गयी होती.
शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009
एक शे'र : आचार्य संजीव 'सलिल'
शिकवा न दुश्मनों से मुझको रहा 'सलिल'।
हैरत में हूँ दोस्तों ने प्यार से मारा।
गुरुवार, 16 अप्रैल 2009
चुनाव चालीसा
जय-जय भारत भारती, जय-जय हिंदुस्तान।
आशीषों मम लेखनी, रचूँ काव्य मतदान॥
कुटिल जनों के हाथ में चली न जाए नाव।
आँख खोलकर कीजिये, अपना सही चुनाव॥
जय-जय प्यारा भारत देशा, भू मंडल पर राष्ट्र विशेषा।
सहस बरस तक सही गुलामी, शासक आए नामी-नामी॥
जब गाँधी की आँधी आयी, तब जाकर आजादी पाई॥
जनता पर जनता ही राजा, लोकतंत्र का मूल तकाजा॥
हम ही अपने मत के दाता, एक दिवस के क्षणिक विधाता॥
घोषित होता दिवस इलेक्शन, हरकत में आ जाता नेशन॥
क्या होरी, क्या धनिया-झुमरू, बाँध जाते सबके ही घुँघरू॥
नेता शहरी, गाँव-गाँव के, ढानी-कसबे, ठांव-ठांव के॥
बैनर, माइक, झंडे-झंडी, राजनीति के चंडू- चंडी॥
नए-पुराने शातिर पंजे, साथ कमल के खेलें कंचे॥
एक मुलायम-एक कठोरा, बाइसिकल का करे ढिंढोरा॥
लालटेन को लेकर लल्लू, समः रहा सूरज को उल्लू॥
कल तक जिनके जूते मारे, आज हुए हाथी को प्यारे॥
कहीं पे हँसिया कहीं हथौडा, हर दल का एक चिन्हित घोड़ा॥
डाकू-गुंडे, चोर-लुटेरे, हर दल में पैठे हैं गहरे॥
जब-जब आता दौर चुनावी, हो जाते जन यही प्रभावी॥
इस दल से उस दल के अन्दर, आते-जाते शातिर बन्दर॥
अपने घर को हरनेवाले, तन के उजले मन के काले॥
नेता क्या सब रंगे सियार, अन्दर नफरत ऊपर प्यार॥
जनता को सुख-सपन दिखाना, जाति-वर्ण से प्रेम सिखाना॥
लड़वाना भाषा से भाषा, उत्तर-दक्षिण की परिभाषा॥
अगडे औ' पिछडे का अंतर, कानों में देते हैं मंतर॥
मीना मुस्लिम जाट अहीरा, सबके वोटन हेतु अधीरा॥
रूपया बहता बनकर पानी, मदिरा की भी यही कहानी॥
वंशवाद के कुछ रखवारे, बाथरूम में नंगे सारे॥
बेटा पोता कहीं लुगाई, स्वयं नहीं तो छोटा भाई॥
दोहन हेतु गाय दुधारी, हर दल में है मारा-मारी॥
वोटर-वोटर द्वारे जाना, वोट मांगते ना शर्माना॥
बाद विजय के करते छुट्टी, पॉँच बरस की मानो कुट्टी॥
कहाँ देश है, कहाँ समाजा, इस चिंतन का नहीं रिवाजा॥
सरे लोक-विधानी बाड़े, नेतागण के नए अखाडे॥
गाँधी-नेहरू, नहीं पटेला, चौराहे पर देश अकेला॥
किसको थामे?, किसको छोडे?, किसके पीछे भारत दौडे॥
लोकतंत्र की चक्क-मलाई, चाट रहे मौसेरे भाई॥
बीसों दल का एक नतीजा, भये इलेक्शन बर्जर-पीजा॥
जन सज्जन सब भये उदासा, दुर्जन खेल रहे हैं पाँसा॥
बहुत निकट हैं नए इलेक्शन, आओ नूतन करें सिलेक्शन॥
एक यही अवसर है प्यारा, पाँच बरस तक नहीं दुबारा॥
मन वचनी कर्मन से सच्चा, चलो चुनें अब नेता अच्छा॥
रामू भैया ने यह दर्पण, मतदाता को किया समर्पण॥
अब तक खाए आपने, नासमझी से घाव ॥
मतदाताओं कीजिये, अब तो सही चुनाव॥
वोट आपका कीमती, रखिये इससे प्रीत ॥
निर्भयता मतदान की, देगी सच्चा मीत ॥
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शब्द-यात्रा : अजित वडनेरकर
आज की बात आज ही: 'सलिल'
ऐ मनुज!
बोलती है नज़र तेरी, क्या रहा पीछे कहाँ?
देखती है जुबान लेकिन, क्या 'सलिल' खोया कहाँ? 
कोई कुछ उत्तर न देता, चुप्पियाँ खामोश हैं।
होश की बातें करें क्या, होश ख़ुद मदहोश हैं।
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सत्य यही है हम दब्बू हैं...
अपना सही नहीं कह पाते।
साथ दूसरों के बह जाते।
अन्यायों को हंस सह जाते।
और समझते हम खब्बू हैं...
निज हित की अनदेखी करते।
गैरों के वादों पर मरते।
बेटे बनते बाप हमारे-
व्यर्थ समझते हम अब्बू हैं...
सरहद भूल सियासत करते।
पुरा-पड़ोसी फसलें चरते। 
हुए देश-हित 'सलिल' उपेक्षित-
समझ न पाए सच कब्बू हैं...
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लोकतंत्र का यही तकाज़ा
चलो करें मतदान।
मत देना मत भूलना
यह मजहब, यह धर्म।
जो तुझको अच्छा लगे
तू बढ़ उसके साथ।
जो कम अच्छा या बुरा
मत दे उसको रोक।
दल को मत चुनना
चुनें अब हम अच्छे लोग।
सच्चे-अच्छे को चुनो
जो दे देश संवार।
नहीं दलों की, देश
अब तो हो सरकार।
वादे-आश्वासन भुला, भुला पुराने बैर।
उसको चुन जो देश की, कर पायेगा खैर।
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एक शे'र : दोस्त -आचार्य संजीव 'सलिल'
आ रहे हैं दोस्त मिलने के लिए॥
बुधवार, 15 अप्रैल 2009
POETRY -DR. RAM SHARMA

-DR. RAM SHARMA , MEERUT.
I still remember my childhood,
Love, affection and chide of my mother,
Weeping in a false manner,
Playing in the moonlight,
Struggles with cousins and companions,
Psuedo-chide of my father,
I still have everything with me,
But i miss,
Those childhood memories
OCTOPUS
Man has become octopus,
entangled in his own clutches,
fallen from sky to earth,
new foundation was made,
of rituals,
customs and manners,
tried to come out of the clutches,
but notwaiting for doom`s day
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