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सोमवार, 15 अप्रैल 2024

अप्रैल १५ , सॉनेट, उषा, श्रृंगार गीत, तुम, राग छंद, शिव, दोहे, प्यार, आम चुनाव

सलिल सृजन अप्रैल १५
*
सॉनेट
उषा
उषा ललित लालित्यमयी।
है मनहर चितचोर सखी।
कवि छवि देखे नयी नयी।।
अपनी किस्मत आप लिखी।।
निधि सतरंगी मनोरमा।
सत्य सुनीता नीलाभित।
ज्योति-कन्हैया लिए विमा।।
नीलम-रेखा अरुणाभित।।
बालारुण खेले कैंया।
उछल-कूद बाहर भागे।
कलरव करती गौरैया।।
संग गिलहरी अनुरागे।।
उषा प्रभाती रही सुना।
कनक-जाल रमणीय बुना।।
***
नहले पे दहला
कभी कभी यूँ भी हम ने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है?
औरों ने हमें नहीं बख्शा वो रास्ता बताया है।
जिस पर उन्होंने अपना पग नहीं बढ़ाया है।
***
प्रश्नोत्तर
छिपकली से जान कैसे बचाएँ?
मत देखें छिप कली
ऐसी हरकत नहीं भली
उसका करा दें विवाह
मिल जाएगा छुटकारा
कली बन जाएगी फूल
नहीं चुभेगी बनकर शूल
१५-४-२०२३
***
सॉनेट
चमन
*
चमन में साथी! अमन हो।
माँ धरित्री को नमन कर।
छत्र निज सिर पर गगन कर।।
दिशा हर तुझको वसन हो।।
पूर्णिमा निशि शशि सँगाती।
पवन पावक सलिल सूरज।
कह रहे ले ईश को भज।।
अनगिनत तारे बराती।
हर जनम हो श्वास संगी।
जिंदगी दे यही चंगी।
आस रंग से रही रंगी।।
न मन यदि; फिर भी नमन कर।
जगति को अपना वतन कर।
सुमन खिल; सुरभित चमन कर।।
१५-४-२०२२
•••
कृति चर्चा :
२१ श्रेष्ठ लोककथाएँ मध्य प्रदेश : जड़ों से जुड़ाव अशेष
तुहिना वर्मा
*
[कृति विवरण : २१ श्रेष्ठ लोककथाएँ मध्य प्रदेश, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', आई.एस.बी.एन. ९७८-९३-५४८६-७६३-७, प्रथम संस्करण २०२२, आकार २१.५ से.मी.X१४ से.मी., आवरण पेपरबैक बहुरंगी लेमिनेटेड, पृष्ठ ४७, मूल्य १५०/-, डायमंड बुक्स नई दिल्ली, संपादक संपर्क ९४२५१८३२४४।]
*
लोककथाएँ लोक अर्थात जनसामान्य के सामुदायिक, सामाजिक, सार्वजनिक जीवन के अनुभवों को कहनेवाली वे कहानियाँ हैं जो आकार में छोटी होती हुए भी, गूढ़ सत्यों को सामने लाकर पाठकों / श्रोताओं के जीवन को पूर्ण और सुंदर बनाती हैं। आम आदमी के दैनंदिन जीवन से जुड़ी ये कहानियाँ प्रकृति पुत्र मानव के निष्कपट और अनुग्रहीत मन की अनगढ़ अभिव्यक्ति की तरह होती हैं। प्राय:, वाचक या लेखक इनमें अपनी भाषा शैली और कहन का रंग घोलकर इन्हें पठनीय और आकर्षक बनाकर प्रस्तुत करता है ताकि श्रोता या पाठक इनमें रूचि लेने के साथ कथ्य को अपने परिवेश से जुड़कर इनके माध्यम से दिए गए संदेश को ग्रहण कर सके। इसलिए इनका कथ्य या इनमें छिपा मूल विचार समान होते हुए भी इनकी कहन, शैली, भाषा आदि में भिन्नता मिलती है।
भारत के प्रसिद्ध प्रकाशन डायमंड बुक्स ने भारत कथा माला के अंतर्गत लोक कथा माला प्रकाशित कर एक बड़े अभाव की पूर्ति की है। देश में दिनों-दिन बढ़ती जा रही शहरी अपसंस्कृति और दूरदर्शन तथा चलभाष के आकर्षण से दिग्भ्रमित युवजन आपकी पारंपरिक विरासत से दूर होते जा रहे हैं। पारम्परिक रूप से कही जाती रही लोककथाओं का मूल मनुष्य के प्रकृति और परिवार से जुड़ाव, उससे उपजी समस्याओं और समस्याओं के निदान में रहा है। तेजी से बदलती जीवन स्थितियों (शिक्षा, आर्थिक बेहतर, यान्त्रिक नीरसता, नगरीकरण, परिवारों का विघटन, व्यक्ति का आत्मकेंद्रित होते जाना) में लोककथाएँ अपना आकर्षण खोकर मृतप्राय हो रही हैं। हिंदी के स्थापित और नवोदित साहित्यकारों का ध्यान लोक साहित्य के संरक्षण और संवर्धन की ओर न होना भी लोक साहित्य के नाश में सहायक है। इस विषम स्थिति में प्रसिद्ध छन्दशास्त्री और समालोचक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा संपादित ''२१ श्रेष्ठ लोक कथाएँ' मध्यप्रदेश'' का डायमंड बुक्स द्वारा प्रस्तुत किया जाना लोक कथाओं को पुनर्जीवित करने का सार्थक प्रयास है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।
यह संकलन वस्तुत: मध्यप्रदेश के वनवासी आदिवासियों में कही-सुनी जाती वन्य लोककथाओं का संकलन है। पुस्तक का शीर्षक ''२१ श्रेष्ठ आदिवासी लोककथाएँ मध्य प्रदेश'' अधिक उपयुक्त होगा। पुस्तक के आरंभ में लेखक ने लोककथा के उद्भव, प्रकार, उपयोगिता, सामयिकता आदि को लेकर सारगर्भित पुरोवाक देकर पुस्तक को समृद्ध बनाने के साथ पाठकों की जानकारी बढ़ाई है। इस एक संकलन में में १९ वनवासी जनजातियों माड़िया, बैगा, हल्बा, कमार, भतरा, कोरकू, कुरुख, परधान, घड़वा, भील, देवार, मुरिया, मावची, निषाद, बिंझवार, वेनकार, भारिया, सौंर तथा बरोदिया की एक-एक लोककथाएँ सम्मिलित हैं जबकि सहरिया जनजाति की २ लोककथाएँ होना विस्मित करता है। वन्य जनजातियाँ जिन्हें अब तक सामान्यत: पिछड़ा और अविकसित समझा जाता है, उनमें इतनी सदियों पहले से उन्नत सोच और प्रकृति-पर्यावरण के प्रति सचेत-सजग करती सोच की उपस्थिति बताती है कि उनका सही मूल्यांकन नहीं हुआ है। सलिल जी का यह कार्य नागर और वन्य समाज के बीच की दूरी को कम करने का महत्वपूर्ण प्रयास है।
माड़िया लोककथा 'भीमदेव' में प्रलय पश्चात् सृष्टि के विकास-क्रम की कथा कही गयी है। बैगा लोककथा 'बाघा वशिष्ठ' में बैगा जनजाति किस तरह बनी यह बताया गया है। 'कौआ हाँकनी' में हल्बा जनजाति के विकास तथा महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। कमार लोककथा 'अमरबेल' में उपयोग के बाद वृक्षों पर टाँग दिए जनेऊ अमरबेल में बदल जाने की रोचक कल्पना है। बेवफा पत्नी और धोखेबाज मित्र को रंगरेली मानते हुए रंगेहाथ पकड़ने के बाद दोनों का कत्ल कर पति ने वन में दबा दिया। बरसात बाद उसी स्थान पर लाल-काले रंग के फूलवाला वृक्ष ऊगा जिसे परसा (पलाश) का फूल कहा गया। यह कहानी भतरा जनजातीय लोक कथा 'परसा का फूल' की है। कोरकू लोककथा 'झूठ की सजा' में शिववाहन नंदी को झूठा बोलने पर मैया पार्वती द्वारा शाप दिए जाने तथा लोक पर्व पोला मनाये जाने का वर्णन है। कुरुख जनजातीय लोक कथा 'कुलदेवता बाघ' में मनुष्य और वन्य पशुओं के बीच मधुर संबंध उल्लेखनीय है। 'बड़ादेव' परधान जनजाति में कही जानेवाली लोककथा है। इसमें आदिवासियों के कुल देव बड़ादेव (शिव जी) से आशीषित होने के बाद भी नायक द्वारा श्रम की महत्ता और समानता की बात की गयी है। अकाल के बाद अतिवृष्टि से तालाब और गाँव को बचाने के लिए नायक झिटकू द्वारा आत्मबलिदान देने के फलस्वरूप घड़वा वनवासी झिटकू और उसकी पत्नी मिटको को लोक देव के रूप में पूजने की लोककथा 'गप्पा गोसाइन' है। भीली लोककथा 'नया जीवन' प्रलय तथा उसके पश्चात् जीवनारंभ की कहानी है।
देवार जनजाति की लोककथा 'गोपाल राय गाथा' में राजभक्त महामल्ल गोपालराय द्वारा मुगलसम्राट द्वारा छल से बंदी बनाये गए राजा कल्याण राय को छुड़ाने की पराक्रम कथा है। कहानी के उत्तरार्ध में गोपालराय के प्रति राजा के मन में संदेह उपजाकर उसकी हत्या किए जाने और देवार लोकगायकों द्वारा गोपालराय के पराक्रम को याद को उसने वंशज मानने का आख्यान है। मुरिया जनजातीय लोककथा 'मौत' में सृष्टि में जीव के आवागमन की व्यवस्था स्थापित करने के लिए भगवन द्वारा अपने ही पुत्र मृत्यु का विधान रचने की कल्पना को जामुन के वृक्ष से जोड़ा गया है। 'राज-प्रजा' मावची लोककथा है। इसमें शर्म की महत्ता बताई गए है। 'वेणज हुए निषाद' इस जनजाति की उत्पत्ति कथा है। मामा-भांजे द्वारा अँधेरी रात में पशु के धोखे में राजा को बाण से बींध देने के कारण उनके वंशज 'बिंझवार' होने की कथा 'बाण बींध भए' है। 'धरती मिलती वीर को' वेनकार लोककथा है जिसमें पराक्रम की प्रतिष्ठा की गयी है। भरिया जनजाति में प्रचलिटी लोककथा 'बुरे काम का बुरा नतीजा' में शिव-भस्मासुर प्रसंग वर्णित है। सहरिया जनजाति के एकाकी स्वभाव और वन्य औषधियों की जानकारी संबंधी विशेषता बताई गयी है 'अपने में मस्त' में। 'शंकर का शाप' लोककथा आदिवासियों में गरीबी और अभाव को शिव जी की नाराजगी बताती है। सौंर लोककथा 'संतोष से सिद्धि' में भक्ति और धीरज को नारायण और लक्ष्मी का वरदान बताया गया है। संग्रह की अंतिम लोककथा 'पीपर पात मुकुट बना' बरोदिया जनजाति से संबंधित है। इस कथा में दूल्हे के मुकुट में पीपल का पत्ता लगाए जाने का कारन बताया गया है।
वास्तव में ये कहानियाँ केवल भारत के वनवासियों की नहीं हैं, विश्व के अन्य भागों में भी आदिवासियों के बीच प्रलय, सृष्टि निर्माण, दैवी शक्तियों से संबंध, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों को कुलदेव मानने, मानव संस्कृति के विस्तार, नई जातियाँ बनने,पराक्रमी-उदार पुरुषों की प्रशंसा आदि से जुड़ी कथाएँ कही-सुनी जाती रही हैं।
संभवत: पहली बार भारत के मूल निवासी आदिवासी की लोककथाओं का संग्रह हिंदी में प्रकाशित हुआ है। इस संकलन की विशेषता है की इसमें जनजातियों के आवास क्षेत्र आदि जानकारियाँ भी समाहित हैं। लेखक व्यवसाय से अभियंता रहा है। अपने कार्यकाल में आदिवासी क्षेत्रों में निर्माण कार्य करते समय श्रमिकों और ग्रामवासियों में कही-सुनी जाती लोक कथाओं से जुड़े रहना और उन्हें खड़ी हिंदी में इस तरह प्रस्तुत करना की उनमें प्रकृति-पर्यावरण के साथ जुड़ाव, लोक और समाज के लिए संदेश, वनावासियों की सोच और जीवन पद्धति की झलक समाहित हो, समय और साहित्य की आवश्यकता है। इन कहानियों के लेखक का यह प्रयास पाठकों और समाजसेवियों द्वारा सराहा जाएगा। प्रकाशक को और पुस्तकें सामने लाना चाहिए।
***
साहित्यिक पहेली
खोजें साहित्यकारों के नाम


























(उत्तर सबसे नीचे)


मुक्तिका
अपने हिस्से जितने गम हैं।
गिने न जाते लेकिन कम हैं।।
बरबस देख अधर मुस्काते।
नैना बेबस होते नम हैं।।
महाबली खुद को कहता जो
अधिक न उससे निर्दय यम हैं।।
दिये जगमगाते ऊपर से
पाले अपने नीचे तम हैं।।
मैं-मैं तू-तू तूतू मैंमैं
जब तक मिलकर हुए न हम हैं।।
उनका बम बम नाश कर रहा
मंगलकारी शिव बम बम हैं।।
रम-रम राम रमामय में रम
वे मदहोश गुटककर रम हैं।।
१५-४-२०२२
•••
मुक्तिका
कर्ता करता
भर्ता भरता
इनसां उससे
रहता डरता
बिन कारण जो
डरता; मरता
पद पाकर क्यों
अकड़ा फिरता?
कह क्यों पर का
दुख ना हरता
***
द्विपदियाँ / अशआर
कोरोना के व्याज, अनुशासित हम हो रहे।
घर के करते काज, प्रेम से।।
*
थोड़े जिम्मेदार, हुए आजकल हम सभी।
आपस में तकरार, घट गई।।
*
खूब हो रहा प्यार, मत उत्पादन बढ़ाना।
बंद घरों के द्वार, आजकल।।
*
तबलीगी लतखोर, बातों से मानें नहीं।
मनुज वेश में ढोर, जेल दो।
*
१५-४-२०२०
***
श्रृंगार गीत
तुम
*
तुम हो या साकार है
बेला खुशबू मंद
आँख बोलती; देखती
जुबां; हो गयी बंद
*
अमलतास बिंदी मुई, चटक दहकती आग
भौंहें तनी कमान सी, अधर मौन गा फाग
हाथों में शतदल कमल
राग-विरागी द्वन्द
तुम हो या साकार है
मद्धिम खुशबू मंद
*
कृष्ण घटाओं बीच में, बिजुरी जैसी माँग
अलस सुबह उल्लसित तुम, मन गदगद सुन बाँग
खनक-खनक कंगन कहें
मधुर अनसुने छंद
तुम हो या साकार है
मनहर खुशबू मंद
*
पीताभित पुखराज सम, मृदुल गुलाब कपोल
जवा कुसुम से अधरद्वय, दिल जाता लख डोल
हार कहें भुज हार दो
बनकर आनंदकंद
तुम हो या साकार है
मन्मथ खुशबू मंद
***
संस्मरण
आम चुनाव
***
मुझे एक चुनाव में पीठासीन अधिकारी बनाया गया, आज से ४५ साल पहले, तब ईवीएम नहीं होती थी, न वाहन मिलते थे। मैं अभियंता था। ट्रेनिंग में कोई कठिनाई नहीं हुई। मुख्यालय से ९९ कि मी दूर रेल से तहसील मुख्यालय पहुँचा। अपने दल के किसी सदस्य को जानता नहीं था। माइक से बार-बार घोषणा कराने पर एक साथी मिले जो शिक्षक थे। हमें लोहे की चार भारी पेटियाँ मिलीं। लगभग साढे़ चार हजार मतपत्र मिले जिनका आकार टेब्लॉयड अखबार के बराबर था। अन्य सामग्री और खुद के कपड़े, बिस्तर और खाने नाश्ते का सामान भी था। शामियाना को एक किनारे बैठकर सूची से सामान का मिलान करने और मतपत्रों को गिनकर गलत मतपत्र बदलवाए। तब तक बाकी दो सहायक आए। एक-एक मतपेटी उन्हें थमाई। अब बस पकड़ना थी। दल में दो पुलिस सिपाही भी थे पर गायब, उनके नाम से मुनादी कराई, जब बस में बैठ गए, तब वे प्रकट हुए। मैं समझ गया कि सामान ढोेने से बचने को लिए आस-पास होते हुए भी नहीं, मिले घुटे पीर हैं। डाल-डाल और पात-पात का नीति अपनाना ठीक लगा। बस चलते समय वे उपस्थिति प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर कराने आए। मैंने इंकार कर दिया कि मैं आपकी गैर हाजिरी रिपोर्ट कर चुका हूँ। मैं मतदान केंद्र पर दो कर्मचारी नियुक्त कर चुनाव करा लूँगा, आप वापिस जाएँ और एस. पी. से निलंबन आदेश लेकर जाँच का सामना करें। उनके पैरों तले से जमीन सरकने लगी, बाजी उलटती देख माफी माँगने लगे। मैंने बेरुखी बनाए रखी।
बस से ४५ कि मी दूर ब्लॉक मुख्यालय तक जाना था। वहाँ सिपाहियों ने आगे बढ़कर मतपेटियाँ और मतपत्र सम्हाले जिसके लिए उनकी ड्यूटी लगाई गई थी। अब हमें ८ कि. मी. बैलगाड़ी से जाना था। कोटवार २ बैलगाड़ी लेकर राह देख रहा था। बैलगाड़ी ने नदी किनारे उतारा। यहाँ डोंगी (पेड़ का तना खोखला कर बनाई छोटी नाव) मिलीं। दल के मुखिया के नाते सबको नियंत्रण में रखकर, सब काम समय पर कराना था। मैं २२ साल का, शेष सब मेरे पिता की उम्र के। पहली डोंगी पर मतपत्र, मतपेटी लेकर एक सिपाही को साथ मैं खुद बैठा। दोपहर २ बज रहे थे। सबको भूख लग रही थी, खाने के लिए रुकते तो एक घंटा लगता। मैंने तय किया कि मतदान केंद्र पहुँच ,कर वहाँ व्यवस्था जो कमी हो उसको ठीक कराने की व्यवस्था कराने के बाद भोजन आदि हो। दल के बाकी लोग पहले खाना चाहते थे। अँधेरा होने पर गाँव में कुछ मिलना संभव न होता। कहावत है बुरे वक्त में खोटा सिक्का काम आता है। मैंने वरिष्ठ सिपाही को किनारे ले जाकर पट्टी पढ़ाई कि सीधे बिना रुके मतदान केंद्र चलोगे और पूरे समय मेरे कहे अनुसार काम करेंगे तो शिकायत वापिस लेकर कर्तव्य प्रमाणपत्र दे दूँगा। अंधा क्या चाहे?, दो आँखें। उसने जान बचते देखी तो मेरे साथ आगे बढ़कर मतपेटी लेकर डोंगी में जा बैठा। उसे बढ़ता देख उसका साथी दूसरी डोंगी में जा बैठा। एक डोंगी में दो सवारी, एक मतपेटी और डोंगी चालक, लहर के थपेड़ों को साथ डोंगी डोलती, हमारी जान साँसत में थी। मुझे तो तैरना भी नहीं आता था पर हौसला रखकर बढ़ते रहे।
राम-राम करते दूसरे किनारे पहुँच चैन की साँस ली। सब सामान की जाँच कर कंदों पर लादा और शुरू हुई पदयात्रा, ४ किलोमीटर पैदल कच्चे रास्ते, पगडंडी और वन के बीच से से होते हुए मतदान स्थान पहुँचे। प्राथमिक शाला एक कमरा, परछी, देशी खपरैल का छप्पर, शौचालय या अन्य सुविधा का प्रश्न ही नहीं उठता था। कमरे में सुरक्षित स्थान पर मतदान सामग्री रखवाई। अब तक ४ बज चुके थे, भूखे और थके तो थे ही दल के सदस्य खाने पर टूट पड़े। मैंने उन्हें भोजन आदि करने दिया किंतु खुद पटवारी और कोटवार को लेकर व्यवस्था देखी। सूर्य अस्ताचल की ओर अग्रसर था। बिजली गाँव में नहीं आई थी।


केंद्र में दो मेजें, दो बेंचे, दो कुर्सियाँ, एक स्टूल, एक बाल्टी, एक लोटा, दो गिलास, एक मटका, एक चिमनी, एक फटी-मैली दरी... कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा का तर्ज पर जुटाई गई थी। कमरे के दरवाजे ऐसे कि धक्का देते ही टूट जाएँ। खिड़की बिना पल्लों की चौखट में लोहे के सारी मात्र। यहाँ भी पटवारी और कोटवार दामन बचाते मिले। मुझे एक वरिष्ठ साथी प्रशिक्षण के मध्य गप-शप करते समय बता चुके थे कि पीठासीन अधिकारी के साथ अलग-अलग विभागों के लोग होते हैं जो जानते हैं कि एक दिन बाद अलग हो जाना है। पर्याय: वे सहयोग न कर, जैसे तैसे बेगार टालते हैं जबकि उच्चाधिकारियों को हर कार्य शत-प्रतिशत सही और समय पर चाहिए, न हो तो बिजली पीठासीन अधिकारी पर ही गिरती है। मैंने हालत से निबटने का तरीका पूछ तो वे बोले 'हिकमत अमली'। मैंने यह शब्द पहली बार सुन। वे




संवस, १५.४.२०१९
***
छंद बहर का मूल है: ३
राग छंद
*
छंद परिचय:
बीस मात्रिक महादैशिक जातीय छंद।
तेरह वार्णिक अति जगती जातीय राग छंद।
संरचना: SIS ISI SIS ISI S
सूत्र: रजरजग।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं मुफ़ाइलुं फ़अल।
*
आइये! मनाइए, रिझाइए हमें
प्यार का प्रमाण भी दिखाइए हमें
*
चाह में रहे, न सिर्फ बाँह में रहे
क्रोध से तलाक दे न जाइए हमें
*
''हैं न आप संग तो अजाब जिंदगी''
बोल प्यार बाँट संग पाइए हमें
*
जान हैं, बनें सुजान एक हों सदा
दे अजान रोज-रोज भाइये हमें
*
कौन छंद?, कौन बहर?, क्यों पता करें?
शब्द-भाव में पिरो बसाइए हमें
*
संत हों न साधु हों, न देवता बनें
आदमी बने तभी सुहाइये हमें
*
दो, न दो रहें, न एक बनें, क्यों कहो?
जान हमारी बनें बनाइए हमें
१५.४.२०१७
***
खबरदार दोहे
.
केर-बेर का सँग ही, करता बंटाढार
हाथ हाथ में ले सभी, डूबेंगे मँझधार
(समाजवादी एक हुए )
.
खुल ही जाती है सदा, 'सलिल' ढोल की पोल
मत चरित्र या बात में, अपनी रखना झोल
(नेताजी संबंधी नस्तियाँ खुलेंगी)
.
न तो नाम मुमताज़ था, नहीं कब्र है ताज
तेज महालय जब पूजे तभी मिटेगी लाज
(ताज शिव मंदिर है)
.
जयस्तंभ की मंजिलें, सप्तलोक-पर्याय
कलें क़ुतुब मीनार मत, समझ सत्य-अध्याय
(क़ुतुब मीनार जयस्तंभ है)
.
दोहा सलिला:
रश्मिरथी रण को चले, ले ऊषा को साथ
दशरथ-कैकेयी सदृश, ले हाथों में हाथ
.
तिमिर असुर छिप भागता, प्राण बचाए कौन?
उषा रश्मियाँ कर रहीं, पीछा रहकर कौन
.
जगर-मगर जगमग करे, धवल चाँदनी माथ
प्रणय पत्रिका बाँचता, चन्द्र थामकर हाथ
.
तेज महालय समर्पित, शिव-चरणों में भव्य
कब्र हटा करिए नमन, रखकर विग्रह दिव्य
.
धूप-दीप बिन पूजती, नित्य धरा को धूप
दीप-शिखा सम खुद जले, देखेरूप अरूप
१५-४-२०१५
.
छंद सलिला;
शिव स्तवन
*
(तांडव छंद, प्रति चरण बारह मात्रा, आदि-अंत लघु)
।। जय-जय-जय शिव शंकर । भव हरिए अभ्यंकर ।।
।। जगत्पिता श्वासा सम । जगननी आशा मम ।।
।। विघ्नेश्वर हरें कष्ट । कार्तिकेय करें पुष्ट ।।
।। अनथक अनहद निनाद । सुना प्रभो करो शाद।।
।। नंदी भव-बाधा हर। करो अभय डमरूधर।।
।। पल में हर तीन शूल। क्षमा करें देव भूल।।
।। अरि नाशें प्रलयंकर। दूर करें शंका हर।।
।। लख ताण्डव दशकंधर। विनत वदन चकितातुर।।
।। डम-डम-डम डमरूधर। डिम-डिम-डिम सुर नत शिर।।
।। लहर-लहर, घहर-घहर। रेवा बह हरें तिमिर।।
।। नीलकण्ठ सिहर प्रखर। सीकर कण रहे बिखर।।
।। शूल हुए फूल सँवर। नर्तित-हर्षित मणिधर ।।
।। दिग्दिगंत-शशि-दिनकर। यश गायें मुनि-कविवर।।
।। कार्तिक-गणपति सत्वर। मुदित झूम भू-अंबर।।
।। भू लुंठित त्रिपुर असुर। शरण हुआ भू से तर।।
।। ज्यों की त्यों धर चादर। गाऊँ ढाई आखर।।
।। नव ग्रह, दस दिशानाथ। शरणागत जोड़ हाथ।।
।। सफल साधना भवेश। करो- 'सलिल' नत हमेश।।
।। संजीवित मन्वन्तर। वसुधा हो ज्यों सुरपुर।।
।। सके नहीं माया ठग। ममता मन बसे उमग।।
।। लख वसुंधरा सुषमा। चुप गिरिजा मुग्ध उमा।।
।। तुहिना सम विमल नीर। प्रवहे गंधित समीर।।
।। भारत हो अग्रगण्य। भारती जगत वरेण्य ।।
।। जनसेवी तंत्र सकल। जनमत हो शक्ति अटल।।
।। बलिपंथी हो नरेंद्र। सत्पंथी हो सुरेंद्र।।
।। तुहिना सम विमल नीर। प्रवहे गंधित समीर।।
।। भारत हो अग्रगण्य। भारती जगत वरेण्य ।।
।। जनसेवी तंत्र सकल। जनमत हो शक्ति अटल।।
।। सदय रहें महाकाल। उम्मत हों देश-भाल।।
।। तुहिना सम विमल नीर। प्रवहे गंधित समीर।।
।। भारत हो अग्रगण्य। भारती जगत वरेण्य ।।
।। जनसेवी तंत्र सकल। जनमत हो शक्ति अटल।।
***
दोहा सलिला
सत-चित-आनंद पा सके, नर हो अगर नरेन्द्र.
जीवन की जय बोलकर, होता जीव जितेंद्र..
*
अक्षर की आराधना, हो जीवन का ध्येय.
सत-शिव-सुन्दर हो 'सलिल', तब मानव को ज्ञेय..
*
नर से वानर जब मिले, रावण का हो अंत.
'सलिल' न दानव मारते, कभी देव या संत..
**
प्यार के दोहे:
तन-मन हैं रथ-सारथी:
*
दो पहलू हैं एक ही, सिक्के के नर-नार।
दोनों में पलता सतत, आदि काल से प्यार।।
*
प्यार कभी मनुहार है, प्यार कभी तकरार।
हो तन से अभिव्यक्त या, मन से हो इज़हार।।
*
बिन तन के मन का नहीं, किंचित भी आधार।
बिन मन के तन को नहीं, कर पाते स्वीकार।।
*
दो अपूर्ण मिल एक हों, तब हो पाते पूर्ण।
अंतर से अंतर मिटे, हों तब ही संपूर्ण।।
*
जब लेते स्वीकार तब, मिट जाता है द्वैत।
करते अंगीकार तो, स्थापित हो अद्वैत।।
१५-४-२०१०
*
पहेली - खोजिए साहित्यकारों के नाम
उत्तर
बाएं से दाएं
महादेवी - महादेवी वर्मा म
देवी - आशापूर्णा देवी (बांग्ला)
वीर - वीर सावरकर (मराठी), क्षेत्रि वीर (मणिपुरी)
पंत गोविंद वल्लभ, सुमित्रानंदन पंत,
वृन्दावन- वृन्दावन लाल वर्मा
विराट - विष्णु विराट, चन्द्रसेन विराट,
रावी - रामप्रसाद विद्यार्थी
काका - काका हाथरसी, काका कालेलकर (मराठी)
शानी - गुलशेर खां शानी
नीरज - गोपाल प्रसाद सक्सेना नीरज,
सारथी - ओ. पी. शर्मा सारथी (डोगरी), रंजीत सारथी (सरगुजिहा)
गुरु - कामता प्रसाद, रामेश्वर प्रसाद गुरु, गुरु सक्सेना, गुरु गोबिंद सिंह (पंजाबी)
रील - गुरुनाम सिंह रील, दिलजीत सिंह रील,
शिवानी - गौरा पंत शिवानी,
चक्र - सुदर्शन सिंह चक्र, कुम्भार चक्र (उड़िया), चक्रधर अशोक,
सुभद्रा - सुभद्रा कुमारी चौहान,
अमृत लाल - अमृत लाल नागर, अमृत लाल वेगड़, अमृता प्रीतम (पंजाबी)
लाल - लक्ष्मी नारायण लाल, श्रीलाल शुक्ल, लाल पुष्प (सिंधी)
ऊपर से नीचे
महावीर - महावीर रवांल्टा
महावीर प्रसाद - महावीर प्रसाद द्वुवेदी, महावीर प्रसाद जोशी (राजस्थानी)
प्रसाद - जय शंकर प्रसाद, महावीर प्रसाद, हजारी प्रसाद, शत्रुघ्न प्रसाद,
प्रभा - प्रभा खेतान
प्रभाकर - विष्णु प्रभाकर, प्रभाकर माचवे , प्रभाकर बैगा, प्रभाकर श्रोत्रिय
ऊँट - रामानुज लाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी'
चोंच - कांतानाथ पांडेय 'चोंच'
तनूजा - तनूजा चौधरी, तनूजा मुंडा, तनूजा मजूमदार, तनूजा शर्मा 'मीरा' तनूजा सेठिया, तनूजा चंद्रा
चौधरी - बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय "प्रेमधन, राजकमल चौधरी, रघुवीर चौधरी (गुजराती),
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
तुलसी - गोस्वामी तुलसीदास, आचार्य तुलसी, तुलसी बहादुर क्षेत्री (नेपाली), डॉ, तुलसीराम,
निराला - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,
माखन लाल - माखनलाल चतुर्वेदी 'एक भारतीय आत्मा'
दाएं से बाएं
प्रेमचंद - धनपत राय 'प्रेमचंद'
तिरछा
लाला - लाला भगवान दीन, लाला श्रीनिवास दास, लाला पूरणमल, लाला जगदलपुरी
रघुवीर - डॉ. रघुवीर, रघुवीर सहाय, रघुवीर चौधरी (गुजराती)

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