चंद्र यान पर कविताएँ
विक्रम लैंडर
*
जब लेता है
आदमी उधार,
तब हो जाता है
विक्रम लैंडर।
नहीं रखता संपर्क
अपनी धरती से,
अपनी कक्षा में रहकर।
***
यादों की बारात
*
अब विक्रम के
कंधे पर नहीं लदता,
गोदी में बैठता है
रोवर बैताल।
पहले सवाल पूछता था
बनकर अनजान,
अब उत्तर देता है
अपना प्रज्ञान।
करता है चहल कदमी
दूर कर गलतफहमी,
विक्रम से करता है बात
मानो निकल रही हो
यादों की बारात।
***
चाँद पर बैठे हुए
विक्रम और प्रज्ञान,
रखते हैं हर बात का पूरा ध्यान।
दोनों देख पा रहे हैं
दिल्ली में बन गया है
नया संसद भवन
पूरा हुआ है अरमान।
लेकिन नहीं सुधरे सांसद
कर रहे हैं बदजुबानी,
भूल गए हैं मर्यादा।
राजनेता खींच रहे हैं
एक दूसरे की टाँग
जुमला बताकर वादा।
सात के विरोध में हड़ताल,
नहीं कर रहे अपनों की पड़ताल।
सीमाएँ हैं अशांत,
नेतागण दिग्भ्रांत।
बोलते बिगड़े बोल,
बातों में रखते झोल।
अनुशासित रहो मतिमान,
सच सिखा रहे विक्रम-प्रज्ञान।
मानवता का हो गान,
देश रहे गतिमान।
***
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