कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 4 मई 2021

सर्व समावेशी हिंदी

लेख 
सर्व समावेशी हिंदी 
*
जन्म से अब तक हिंदी के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि यह भाषा सामाजिक-राजनैतिक झंझावातों का सामना करते हुए, विपरीत परिस्थितियों के तूफ़ान में भी बिना विचलित हुए नम केवल खड़ी रह सकती है अपितु निरंतर बढ़ती जाती है। विरोध की आँधियों से हिंदी की जिजीविषा, शक्ति और लोकप्रियता में सतत वृद्धि होती है। हिंदी ने बाधाओं और आलोचनाओं से जीवनपथ पर आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी ऊर्जा ग्रहण की है। जान सामान्य के मध्य, रोजमर्रा की बातचीत में जन्मी, आम मजदूर-किसानों की जिव्हा पर पली-पुसी पैदा हिंदी को कभी राज्याश्रय न मिला, न ही आरंभ में विदवजजनों और साहित्यिकों ने इसे अपनाया बल्कि इस भाषा में लिखनेवालों के लिए  महाकवि केशवदास कहते हैं- 
 “भाषा बोल न जानहीं, जिनके कुल के दास। 
तिन भाषा कविता करी, जडमति केशव दास।। 
यही हिंदी सहस्त्राधिक वर्षों से न सिर्फ डटकर खड़ी है बल्कि वह संसार की सबसे ज्यादा व्यवहृत करनेवाली बोली बन चुकी है और हिंदी से यह गौरव छीनने के लिए हिंदी भाषी ही छूती-छोटी राजनैतिक ईकाईयाँ (राज्य) गठित कर उनमें प्रचलित बोलिओं को भाषा का दर्जा देकर हिंदी बोलनेवालों की संख्या घटा रहे हैं। एक विचित्रता यह भी है कि मानक हिंदी देश के किसी भी हिस्से की मातृभाषा आज तक नहीं रही है फिर भी यह विश्व भाषा बन चुकी है और दुनिया के भाषाई मानचित्र पर अपनी छाप छोड़ रही है। 
दिलचस्प तथ्य है कि -
- हिंदी साहित्य का पहला इतिहास 'इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐन्दूई ऐन्दूस्तानी' फ्रेंच भाषा में 'गार्सा द तासी' ने दो भागों में १८३९ तथा १८४७ में प्रकाशित कराया। 
- हिंदी का पहला अख़बार 'उदंत मार्तण्ड' साप्ताहिक बांग्ला के गढ़  कलकत्ता (कोलकाता) में ३७ नंबर आमडतल्ला गली, कोलूटोला से जुगलकिशोर सुकुल ने ३० मई १८२६ को प्रकाशित किया। 
- हिंदी की पहली विज्ञान कथा अंबिकादत्त व्यास (१८५८-१९००) द्वारा लिखित 'आश्चर्य वृत्तान्त' उनके समाचार पत्र 'पीयूष प्रवाह' में १८८४-१८८ तक के अंकों में प्रकाशित हुई। 
- पहली हिंदी फ़िल्म 'राजा हरिश्चंद्र', वर्ष १९१३ में मराठी भाषी दादा साहेब फाल्के (३० अप्रैल १८७० -१६ फरवरी १९४४ने बनाई।  
- हिंदी का प्रथम थिसारस 'पद्य-शब्द-कोष' १९२९ में सत्यनारायण सिंह वर्मा द्वारा प्रकाशित कराया गया। वर्तमान में फ़िल्म पत्रिका माधुरी के संपादक अरविन्द कुमार व कुसुम कुमार द्वारा प्रकाशित थिसारस लोकप्रिय है। 
- हिंदी का पहला विश्वविद्यालय म. गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, ८ जनवरी १९९७ को महाराष्ट्र के वर्धा में स्थापित हुआ। 
- हिंदी कम्प्यूटिंग का श्रीगणेश १९८३:  सी-डैक द्वारा डॉस आधारित जिस्ट (GIST - Graphics and Intelligence based Script Technology) के विकास से हुआ। भारतीय लिपियों के लिये इस्की मानक जारी कर १९८६ में भारतीय भाषाओं के लिये मानक इनस्क्रिप्ट कुंजीपटल मानक स्वीकृत हुए। एऍलपी (एप्रॅक्स लैंग्वेज़ प्रोसैसर) - भारत सरकार के संस्थान सी-डैक का डॉस-आधारित स्वतंत्र बहुभाषी हिन्दी शब्द संसाधक  लगभग उतना ही शक्तिशाली और सुविधा-संपन्न जितना कि उस समय वर्डस्टार नामक अंग्रेज़ी सॉफ्टवेयर था।
१९९१ में यूनिकोड आया। 
-  हिंदी का पहला सॉफ्टवेयर सी डैक, पुणे में २९ अप्रैल २००२ को बना। 
- पहली हिंदी वेबसाइट शारजाह में पूर्णिमा बर्मन द्वारा बनाई गई।  

हिंदी फ़िल्मी गीतों पर हिंदी न जाननेवाले रूसी, चीनी, जापानी, केन्याई भी झूमते हैं। 
क्या है इस हिंदी में , जो औरों में नहीं है? 
कुछ तो है इस भाषा में जिसके कारण दुनिया इसकी दीवानी है। वजह एक ही है, वह है इस भाषा की सर्वसमावेशी प्रवृत्ति। 
हिंदी ने अरबी, फ़ारसी, फ्रेंच, जापानी,पुर्तगाली, चीनी, डच, अंग्रेजी सभी भाषाओँ के शब्दों को बड़े प्यार से अपनाया है और उन्हें अपने भाषिक संस्कार में इस तरह ढाला कि वे अन्यभाषाई लगते ही नहीं। अरबी (औरत, अदालत, कानून, कुर्सी, कीमत, गरीब, तारीख, जुर्माना, जिला, शादी, सुबह, हिसाब आदि),  फ़ारसी (तनख्वाह, आदमी, चश्मा, बीमार, गुब्बारा, जानवर, जेब इत्यादि),  पुर्तगाली (अचार, चाभी, संतरा, साबुन, पपीता, आलपिन, बाल्टी, गमला, बस्ता, मेज, बटन, कारतूस, तिजोरी, तौलिया, फीता, तंबाकू, कॉफी आदि),  तुर्की (कैंची, चाकू, तोप, बारूद, लाश, दारोगा, बहादुर, चम्मच, उर्दू, तमाशा, चुगली, कालीन, चेचक आदि), फ्रेंच (काजू, कारतूस, मेयर, अँगरेज़, रेस्तरां, सूप आदि),  डच (तुरुप, बम, चिड़िया, ड्रिल आदि), रुसी (बुजुर्ग, उजबक आदि),  यूनानी (एटलस, टेलीफोन, एकेडमी आदि), जापानी (रिक्शा, हाइकु, सायोनारा आदि) को हिंदी आत्मसात कर चुकी है। और तो और 'हिंदी' शब्द भी हिंदी का अपना नहीं है बल्कि यह फ़ारसी से आयातित है। ऐसी सर्वसमावेशी भाषा को तो सबकी दुलारी होना ही था। 
हिंदी चलचित्रों ने ने अपनी मसालेदार कहानियों एवं गीतों से हिंदी को विश्वपटल पर अपने पैर मज़बूती से ज़माने में सहायता की है। यूनिकोड, लैंग्वेज कनवर्टर, ट्रांस्लिट्रेट सॉफ्टवेयर आदि के आ जाने से हिंदी की पहुँच और भी व्यापक हुई है। भूमंडलीकरण के फलस्वरूप दुनिया के एक लैपटॉप में सिमट जाने से भी हिंदी की पहुँच व्यापक हुई है। सीरियलों की चटखारेदार दुनिया ने भी हिंदी की व्याप्ति बढ़ाने में सहायता की है। 
हिंदी विश्व के तीस से अधिक देशों में पढ़ी-पढ़ाई जाती है।  लगभग  १००विश्वविद्यालयों में हिंदी के अध्यापन केंद्र हैं। अमरीका में लगभग २० केंद्रों में हिंदीके अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था है। मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, त्रिनिडाड जैसे देशों में भारतीय मूल के निवासियों की उल्लेखनीय संख्या होने के कारण वहां हिंदी स्वत: सस्नेह प्रचारित होती है। आज हम कह सकते हैं कि हिंदी का भविष्य उज्जवल है और यह आगे और आगे और भी आगे ऐसे ही बढ़ती जाएगी।
***

कोई टिप्पणी नहीं: