मुक्तिका:
संजीव
.
मनचला मन चला
शुभ मुहूरत टला
कर रहा जो भला
और का, है भला
ढांक ले तू गला
फिर न कहना गला
नोन का था डला
घुल गया जब डला
ले न कोई सिला
लब रहे गर सिला
गुल हसीं जो खिला
दे नहीं वह खिला
मारने जो पिला
सिर किया पिलपिला
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संजीव
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मनचला मन चला
शुभ मुहूरत टला
कर रहा जो भला
और का, है भला
ढांक ले तू गला
फिर न कहना गला
नोन का था डला
घुल गया जब डला
ले न कोई सिला
लब रहे गर सिला
गुल हसीं जो खिला
दे नहीं वह खिला
मारने जो पिला
सिर किया पिलपिला
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