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बुधवार, 21 मार्च 2012

मुक्तिका: --संजीव 'सलिल'






मुक्तिका:
संजीव 'सलिल'
*
दिल से निकली दिल की बातें दिल तक जो पहुँचाती है.
मीत! गीत कहिए या कविता, सबको वही लुभाती है..

दीपक जलता, शलभ निछावर कर देता निज जीवन को.
कब चिंता करता कि भावना किसको तनिक सुहाती है?.

नाम कोई हो, धाम कोई हो, अक्षर-शब्द न तजते अर्थ.
व्यर्थ मनुज को उहापोह या शंका क्यों मन भातीं हैं?.

कथ्य-शिल्प पूरक होते हैं, प्रतिस्पर्धी मत मानें.
फूल भेंट दें या गुलदस्ता निहित स्नेह की पाती है..

जो अनुरागी वही विरागी, जो अमूल्य बहुमूल्य वही.
खोना-पाना, लेना-देना, जग-जीवन की पाती है..

'सलिल' न निंदा की चट्टानों से घबराकर दूर रहो.
जो पत्थर को फोड़ बहे, नर्मदा तार-तर जाती है..

**

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

6 टिप्‍पणियां:

अचल वर्मा ने कहा…

achal verma ✆

2:08 am (3 घंटे पहले)


गुथ्थियाँ सुलझ गईं और बात समझ आ गई

आपकी कविता दिलों को फिर बहुत लुभा गई


अचल वर्मा

vijay2@comcast.net ने कहा…

vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com

ekavita


आ० ’सलिल’ जी,



दीपक जलता, शलभ निछावर कर देता निज जीवन को.
कब चिंता करता कि भावना किसको तनिक सुहाती है?.

बहुत सुन्दर ।
बधाई,

विजय

- mandalss@gmail.com ने कहा…

- mandalss@gmail.com
अति सुंदर आचार्यजी
एत और उम्दा रचना के लिए बधाई

sn Sharma ✆ ने कहा…

ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita


आ० आचार्य जी,
मुक्तिका के द्वारा भाषा के प्रभाव का सुन्दर निरूपण है ।
आपकी लेखनी को पुनः नमन

सादर,
कमल

Divya Narmada ने कहा…

tejwani girdhar

बेहतरीन रचना है, साधुवाद

subodh srivastava ने कहा…

subodh srivastava

sunder abhivyakti..