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शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

दोहा मुक्तिका ... आस प्रिया है श्वास की --संजीव 'सलिल



दोहा मुक्तिका ...
आस प्रिया है श्वास की
संजीव 'सलिल
*
आस प्रिया है श्वास की, जीवन है मधु मास.
त्रास-हास सम भाव से, सहिये बनिए ख़ास..

रास न थामें और की, और न थामे रास.
करें नियंत्रण स्वयं पर, तभी रचाएं रास..

कोई न ग्रस्त काल को, सभी काल के ग्रास.
बन कर सूरज चमक ले, बौना हो खग्रास..

जब मुश्किल का समय हो कोई न डाले घास.
तिमिर घेर ले तो नहीं, आती छाया पास..

हो संकल्प सुदृढ़ अगर, चले मरुत उनचास.
डिगा नहीं सकता तनिक, होता सफल प्रयास..

तम पग-तल धरकर दिया, देता 'सलिल' उजास.
मौन भाव से मौत वर, होता नहीं उदास..

कौन जिसे होता नहीं, कभी सत्य-आभास.
सच वर ले यदि 'सलिल' हो, जीवन सुमन-सुवास..

***************
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

2 टिप्‍पणियां:

shardula ने कहा…

दोहा मुक्तिका ...

आस प्रिया है श्वास की, जीवन है मधु मास.
त्रास-हास सम भाव से, सहिये बनिए ख़ास..---सुन्दर!

रास न थामें और की, और न थामे रास.
करें नियंत्रण स्वयं पर, तभी रचाएं रास.. ----- सुन्दर!

dks poet ✆ dkspoet@yahoo.com ekavita ने कहा…

dks poet ✆ ekavita

आदरणीय सलिल जी,
इस सुंदर दोहा मुक्तिका के लिए साधुवाद स्वीकार करें
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’